खराब हुआ खाना दे सकता है इमारतों को मजबूती

  • आईआईटी इंदौर के शोधकर्ताओं का खुलासा…

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
खाद्य कचरा सड़ने के बाद शानदार काम कर सकता है। इसे कंक्रीट में मिलाने के बाद उसका टिकाऊपन बढ़ जाता है। यह खुलासा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) इंदौर के शोधकर्ताओं के शोध में हुआ है। शोधकर्ताओं ने खाद्य अपशिष्ट यानी खाद्य कचरे को गैर-रोगजनक बैक्टीरिया के साथ कंक्रीट में मिलाकर इस्तेमाल करने का एक अनूठा तरीका खोज निकाला है। इससे कंक्रीट की निर्माण शक्ति ही दोगुनी नहीं होती, बल्कि कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आ सकती है। इस शोध टीम में प्रोफेसर संदीप चौधरी, डॉ. हेमचंद्र झा, डॉ. अक्षय, अनिल ठाकरे, शिवम राजपूत और डॉ. संचित गुप्ता शामिल हैं।
शोध दल में शामिल संस्थान के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर संदीप चौधरी के मुताबिक, खाद्य कचरा के सड़ने पर कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) छोड़ता है। इस खाद्य कचरे को बैक्टीरिया और कंक्रीट में मिलाने पर सीओ2 कंक्रीट में मौजूद कैल्शियम आयनों के साथ प्रतिक्रिया करके कैल्शियम कार्बोनेट क्रिस्टल बनाती है। ये क्रिस्टल कंक्रीट में मौजूद छेदों और दरारों को भर देते हैं और वजन पर कोई खास असर डाले बगैर कंक्रीट को ठोस बना देते हैं। शोध टीम के अनुसार उनका मौजूदा कार्य वर्तमान में फैक्ट्री स्केल पर उपयोग के लिए उपयुक्त है। इसका मतलब है कि ईंटों, ब्लॉकों और प्रीकास्ट कंक्रीट के निर्माता कम लागत और कम कार्बन निर्माण सामग्री के उत्पादन के लिए इस शोध का उपयोग कर सकते हैं। शोध टीम खाद्य अपशिष्ट और बैक्टीरिया को शामिल करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की दिशा में काम कर रही है, ताकि सभी प्रकार के निर्माण अनुप्रयोगों में इसका उपयोग आसानी से किया जा सके।
इस तरह किया प्रयोग
आईआईटी इंदौर के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा की गई शोध में ये सामने आया कि वैश्विक स्तर पर लगभग एक तिहाई खाद्य उत्पादन बर्बाद हो जाता है। इस अपशिष्ट के अपघटन से लगभग 4400 मिलियन टन सीओ2 या वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का 8 प्रतिशत निकलता है। क्या होगा अगर कोई बताए कि खाद्य अपशिष्ट वास्तव में कंक्रीट के गुणों में मदद कर सकता है और सीओटू उत्सर्जन को कम कर सकता है। खाद्य अपशिष्ट के साथ चयनित गैर-रोगजनक बैक्टीरिया को मिलाने से कंक्रीट की ताकत दोगुनी हो सकती है। स्थायित्व में सुधार हो सकता है, दरारें ठीक हो सकती हैं और सीओटू को कैप्चर करने में मदद मिल सकती है। इससे कई लाभ मिलते हैं और कंक्रीट की प्रभावी लागत भी कम हो जाती है।  प्रो. चौधरी ने कहा, हमने सड़े हुए फलों के गूदे और उनके छिलकों जैसे खाद्य कचरे में गैर-रोगजनक बैक्टीरिया (ई कोली की एक किस्म) मिलाने के बाद इसे कंक्रीट में मिलाया। इससे कंक्रीट की मजबूती दोगुनी हो गई। इस बैक्टीरिया की खासियत यह है कि छेद और दरारें भरते ही यह बढऩा बंद कर देता है। यही वजह है कि बाद में निर्माण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। उन्होंने बताया, शोध के लिए घरेलू खाद्य कचरे (फूलगोभी का डंठल, आलू का छिलका, मेथी का तना) और खराब फलों के कचरे (सड़े पपीते का गूदा) पर फोकस किया।
सस्ता, टिकाऊ और पर्यावरण फ्रेंडली
आईआईटी इंदौर के जैव विज्ञान और जैव चिकित्सा इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर हेमचंद्र झा ने बताया कि पहले के तरीकों में कंक्रीट में बैक्टीरिया मिलाने के लिए सिंथेटिक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता था। ये रसायन इस प्रक्रिया को महंगा और पर्यावरण के कम मुफीद बनाते थे। आईआईटी इंदौर के शोधकर्ताओं ने इस प्रक्रिया की लागत कम करने के लिए सिंथेटिक रसायनों की जगह खाद्य कचरे का इस्तेमाल किया। यह कचरा पानी में घुल जाता है और बैक्टीरिया के साथ मिलकर आसानी से कंक्रीट में मिल जाता है। इससे यह तरीका सस्ता और अधिक टिकाऊ हो जाता है। शोधकर्ता डॉ. हेमचंद्र झा के अनुसार खाद्य अपशिष्ट को शामिल करने और उपयुक्त गैर-रोगजनक जीवाणु की पहचान करने की प्रक्रिया इसे अलग बनाती है। कंक्रीट में बैक्टीरिया के पहले के अनुप्रयोगों में सिंथेटिक रसायनों का उपयोग किया जाता था, जिससे यह प्रक्रिया महंगी और कम टिकाऊ हो जाती थी। खाद्य अपशिष्ट को शामिल करने के कई अलग-अलग तरीकों की जांच करने के बाद हमने पाउडर के रूप में खाद्य अपशिष्ट का उपयोग किया है। जिससे इसे पानी में घुलना आसान हो जाता है और कंक्रीट के गुणों में बाधा नहीं आती है। विभिन्न बैक्टीरिया के साथ 20 से अधिक वर्षों के शोध में यह पहली बार है जब बैक्टीरिया ने कंक्रीट की ताकत को दोगुना (205.94 प्रतिशत) कर दिया है और कम प्रभावी लागत और कार्बन फुटप्रिंट दिखाया है।

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