न्यायिक आयोग की जांच के… मुद्दों से गर्माएगा बजट सत्र

  • जांच पूरी…रिपोर्ट का पता नहीं
  • विनोद उपाध्याय
न्यायिक आयोग

मप्र में किसी भी गंभीर घटना की जांच के लिए जिस तत्परता से न्यायिक जांच आयोग गठित होते हैं, उनकी रिपोर्ट पर कार्रवाई में उतनी ही सुस्ती बरती जाती है। इसका नतीजा यह हुआ है कि आयोगों द्वारा जांच तो पूरी कर ली जाती है, लेकिन उनकी रिपोर्ट का अता-पता नहीं है। अब 7 फरवरी से होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पेंशन घोटाले की रिपोर्ट सहित अन्य रिपोर्ट को सदन में प्रस्तुत करने की मांग करेगी। माना जा रहा है कि इससे बजट सत्र गरमाएगा।
 सन 2008 से अब तक विभिन्न घटनाओं की जांच के लिए गठित सात आयोगों ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है, लेकिन इनमें से एक पर ही कार्रवाई हो पाई है, बाकी ठंडे बस्ते में है। इन्हीं में से एक है पेंशन घोटाले की रिपोर्ट। सामाजिक सुरक्षा पेंशन में हुई गड़बडिय़ों की जांच तो सरकार ने न्यायिक आयोग बनाकर करा ली, पर 11 वर्ष बाद भी इसकी रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत नहीं की गई है। यह कोई अकेला मामला नहीं है। मंदसौर गोलीकांड की रिपोर्ट भी जून 2018 से गृह विभाग में लंबित पड़ी हुई है। इसको लेकर न्यायालय में याचिका भी लग चुकी है। इसी तरह भोपाल यूनियन कार्बाइड जहरीली गैस रिसाव जांच, गोसपुरा मान मंदिर ग्वालियर की पुलिस मुठभेड़ की हुई जांच की रिपोर्ट पर भी अभी कार्यवाही ही चल रही है।
सात जांच आयोग में से एक में कार्रवाई
गौरतलब है कि प्रदेश में 2008 से 2017 के बीच घटित हुई गंभीर घटनाओं की जांच के लिए सात जांच आयोग गठित हुए हैं, जिनमें से एक की ही रिपोर्ट विधानसभा में रखी गई। बाकी 6 में सरकार का जवाब है कि कार्यवाही प्रचलन में है। जबकि जांच आयोग अधिनियम 1952 की धारा 3 (4) में साफ तौर पर कहा गया है कि आयोग की रिपोर्ट प्राप्त होने पर सरकार को छह महीने में दोषियों पर कार्रवाई कर रिपोर्ट विधानसभा में रखना जरूरी होगा। अभी तक सरकार ने पेटलावद में मोहर्रम जुलूस को रोके जाने की घटना के लिए गठित जांच आयोग की रिपोर्ट प्राप्त होने पर दोषियों पर कार्रवाई कर जांच प्रतिवेदन विधानसभा में रखा है।
हाल ही में लटेरी गोलीकांड की जांच के लिए आयोग का गठन किया गया है। विधानसभा में सरकार द्वारा विभिन्न मामलों में दिए जवाब के अनुसार कई आयोगों की रिपोर्ट पर कार्यवाही प्रचलन में है। इनमें नगर निगमों में पेंशन घोटाले की जांच के लिए आयोग 8 फरवरी 2008 को गठित किया गया था। जस्टिस एनके जैन आयोग ने रिपोर्ट 15 सितंबर 2012 को सरकार को सौंप दी। मौजूदा स्थिति में सामाजिक न्याय विभाग में कार्यवाही प्रचलन में है। भिंड गोली चालन में 12 जुलाई 2012 को न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया। जस्टिस सीपी कुलश्रेष्ठ की रिपोर्ट गृह विभाग को 17 जनवरी 2018 को भेजी गई, तब से कार्यवाही प्रचलन में है। भोपाल यूनियन कार्बाइड में जहरीली गैस रिसाव मामले में जांच आयोग 25 अगस्त 2010 को गठित किया गया। जस्टिस एसएल कोचर ने रिपोर्ट 24 फरवरी 2015 को सौंप दी। इस पर गैस राहत विभाग में कार्रवाई प्रचलित है।  ग्वालियर में मुठभेड़ में मौत पर जांच की रिपोर्ट 9 जनवरी 2017, पेटलावद विस्फोट पर जांच आयोग की रिपोर्ट 6 अप्रैल 2016 और मंदसौर गोली कांड में जांच की रिपोर्ट 14 जून 2018 को गृह विभाग को भेजी जा चुकी है । आयोगों की रिपोर्ट पर कार्रवाई न होने के मामले में हाईकोर्ट में याचिका लगाने वाले पूर्व विधायक पारस सकलेचा का कहना है कि आयोग का गठन सच्चाई जानने के लिए होता है, लेकिन यहां सरकार इसलिए रिपोर्ट विधानसभा में  नहीं  रख रही है, जिससे दोषियों के नाम सामने न आ सकें।
मंदसौर गोलीकांड रिपोर्ट 5 साल बाद भी सार्वजनिक नहीं
इसी तरह मंदसौर गोलीकांड में मारे गए किसानों की मौत के मामले की जांच के लिए गठित जैन आयोग की रिपोर्ट करीब पांच साल गुजर जाने के बावजूद सार्वजनिक नहीं की गई है। जबकि, रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया जा चुका है कि आत्मरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए परिस्थितिवश गोलीचालन की स्थिति बनी थी। हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में रिपोर्ट सार्वजनिक करने को लेकर याचिका भी लग चुकी है। गौरतलब है कि मंदसौर जिले के पिपलिया मंडी में छह जून 2017 को किसान आंदोलन के दौरान कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित होने के बाद गोली चालन की घटना हुई थी। इस घटना में पांच किसानों की मौके पर मौत हो गई थी। इस मामले की जांच के लिए गठित जस्टिस जेके जैन की अध्यक्षता वाली आयोग ने 2018 को राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंप दी थी। जांच आयोग अधिनियम 1952 की धारा 3 के अनुसार शासन का यह दायित्व है कि छह महीने के अंदर जांच आयोग की रिपोर्ट तथा रिपोर्ट की अनुशंसा के आधार पर कार्रवाई करे और इस कार्रवाई से राज्य राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए 12 जून 2017 विधानसभा को अवगत कराए। जैन आयोग की ओर से शासन को रिपोर्ट दिए हुए करीब पांच साल का समय हो गया था। लेकिन अभी तक राज्य सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई है। सरकार ने रिपोर्ट भी विधानसभा में पेश नहीं की है। इसको लेकर विधानसभा में विधायकों ने अलग-अलग सवाल भी लगाए गए थे। इस पर सरकार ने जवाब भी अलग- अलग दिए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक बाला बच्चन जांच रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत नहीं करने को लेकर प्रश्न भी उठा चुके है, पर सरकार की ओर से यह उत्तर दिया जा रहा है कि कार्यवाही प्रचलन में है। सात फरवरी से प्रारंभ होने वाले विधानसभा के बजट सत्र में कांग्रेस के सदस्यों द्वारा फिर इस विषय को उठाने की तैयारी की गई है। वहीं, सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि संबंधित विभागों द्वारा कार्यवाही पूर्ण करने पर रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत की जाएगी।
विधानसभा में पेश नहीं हुई रिपोर्ट
जानकारी के अनुसार सात फरवरी से प्रारंभ हो रहे विधानसभा के बजट सत्र में कांग्रेस फिर इस विषय को उठाने की तैयारी में है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना में गड़बड़ी की शिकायतों पर तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने जस्टिस एनके जैन आयोग बनाकर जांच कराई थी। प्रदेश में नगरीय निकायों और पंचायतों के माध्यम से हितग्राहियों का सत्यापन कराया गया था, जिसमें यह बात प्रमाणित हुई कि कई मृतकों के नाम पर पेंशन जा रही थी और इसके वितरण की प्रक्रिया भी पारदर्शी नहीं थी। आयोग की अनुशंसा पर व्यवस्था में सुधार कर सीधे खातों में राशि के अंतरण की व्यवस्था बनाई गई, पर आयोग की रिपोर्ट अब तक विधानसभा में प्रस्तुत नहीं की गई है।

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