बसपा का सियासी दांव पड़ सकता है भाजपा-कांग्रेस पर भारी

भाजपा-कांग्रेस

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। उत्तर प्रदेश के सियासी रण में लगातार पराजय झेल रही बसपा ने अब मप्र पर पूरा फोकस कर लिया है। यही वजह है कि  अगले माह होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी ने नया अप्रत्याशित दांव चलकर दोनों प्रमुख दल भाजपा व कांग्रेस के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है। अगर यह दंाव पूरी तरह से सफल रहा तो प्रदेश की दर्जनों सीटों पर अप्रत्याशित चुनाव परिणाम देखने को मिल सकते हैं। यही वजह है कि जैसे ही बसपा व गोडवाना गणतंत्र पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन होने घोषणा की गई, तो भाजपा व कांग्रेस के रणनीतिकारों को नए सिरे से मंथन करना पड़ रहा है। दरअसल इस गठबंधन का असर प्रदेश की आरक्षित 82 सीटों पर पड़ने की संभावना जताई जा रही है। इन सीटों का आंकड़ा इतना बड़ा है कि बगैर इनकी बदौलत कोई भी दल सरकार नहीं बना सकता है। प्रदेश के विंध्य और महाकौशल अंचल में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का अपना बड़ा प्रभाव है। यह दल भले ही जीत हासिल न कर सके , लेकिन सामने वाले प्रत्याशी को हराने की क्षमता जरुर रखते हैं। इसी तरह से बसपा का भी उप्र की सीमा से लगे इलाकों में प्रभाव है। इस तरह से दोनों दलों का प्रभाव लगभग प्रदेश के 75 फीसदी हिस्से में है। गौरतलब है कि एक समय प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी तीसरी सबसे बड़ी सियासी ताकत बनती नजर आ रही थी , लेकिन पार्टी के अंदर लगातार होने वाली उठापटक के चलते उसके विधायकों की संख्या अब इक्का-दुक्का ही रह गई है। दोनों दलों के बीच हुए समझौते के मुताबिक बसपा 178 और जीजीपी 52 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। दरअसल प्रदेश में 17 फीसदी दलित वोटर हैं, तो 22 प्रतिशत आदिवासी मतदाता हैं। अगर इन्हें विधानसभा सीटों के आधार पर देखें, तो 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, तो 35 विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। ऐसा माना जाता है कि बसपा का कोर वोट इन्हीं आरक्षित सीटों से निकलता है। और यहीं से उनके अधिकांश विधायक विधानसभा पहुंचते रहे हैं। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को पिछले कुछ चुनावों से जीत नसीब नहीं हुई हो, लेकिन वह प्रमुख दलों के प्रत्याशियों का खेल जरूर बिगाड़ते रहे हैं। यह अलग बात है कि अब जीजीपी का पहले जैसा असर नजर नहीं आता है।  
बीते चुनाव में बसपा को मिली थीं दो सीटें
वर्ष 2018 के चुनाव पर नजर डाली जाए, तो तब बसपा ने 230 में से 227 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और सिर्फ 2 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई थी और ये दोनों सीट भी बसपा के खाते में अनारक्षित विधानसभा सीटों से आयी थीं। पार्टी को सभी एससी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। यही नहीं पार्टी को 202 सीटों पर जमानत से भी हाथ धोना पड़ा था। यह बात अलग है कि उसके हिस्से में आए मतों की वजह से वह प्रदेश तीसरी सबसे बड़ी पार्टी जरुर बन गई थी। बीते चुनाव में भाजपा को 1 करोड़ 56 लाख 43 हजार 623 , कांग्रेस को 1 करोड़ 55 लाख 95 हजार 696 वोट मिले थे। दोनों दलों की तुलना में बसपा को 129 लाख 11 हजार 642 वोट यानी 5.1 फीसदी वोट मिले थे। इधर आदिवासी बाहुल्य 47 सीटों में से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का विंध्य के शहडोल उमरिया, महाकौशल में आने वाले डिंडौरी और मंडला में प्रभाव माना जाता है। लेकिन इस नए गठंबधन के जरिए जीजीपी ने 52 सीटों से अपने उम्मीदवार उतारने का निर्णय लिया है। यानी एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों से 5 ज्यादा, जहां वह बीएसपी के कोर वोट के सहारे जीत की संभावना को तलाशेगी ।
गोंगपा का प्रभाव
गठबंधन के बाद ग्वालियर -चंबल की सभी सीटें बीएसपी के खाते में दे दी गई हैं। इसके अलावा विंध्य क्षेत्र और बुंदेलखंड की अधिकांश सीटें भी बसपा को ही दे दी गई हैं। इसी तरह से महाकौशल अंचल की सभी सीटों गोंगपा के खाते में गई हैं। अगर बीते चुनाव पर नजर डालें तो गोंगपा ने ब्यौहारी और अमरबाड़ा में दूसरा स्थान पाया था। इसके अलावा गोंगपा का प्रभाव लखनादौन, शहपुरा और विछिया में भी माना जाता है। इन सीटों पर उसके उम्मीदवारों को 40 हजार के आसपास मत मिले थे। यही नहीं बीते चुनाव में उसके प्रत्याशियों ने 12 सीट पर कांग्रेस के और आठ सीट पर भाजपा के समीकरण बिगाडक़र उन्हें हारने पर मजबूर कर दिया था। इसके अलावा 22 सीटों पर उसके प्रत्याशियों ने दस हजार से अधिक मत हासिल किए थे।
बसपा का प्रदेश में प्रभाव  
अगर बीते आम चुनाव की बात करें तो ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में अधिकांश सीटों पर बसपा दूसरे या तीसरे नंबर पर रही थी। इसी तरह से बसपा के लिए सतना जिले की रामपुर बघेलान, रैंगाव, मुरैना जिले की दिमनी, निवाड़ी, राजनगर , रीवा की सिमरिया, और सिरमौर सीट बहुत महत्वपूर्ण सीटें हैं। रामपुर बघेलान में साल 2008 और 1993 के चुनाव में बसपा जीत चुकी हैं। प्रदेश की 65 सीटों पर बसपा का वोट बैंक 10 प्रतिशत तक रहा है। 2018 के विस चुनाव में भाजपा को 41.6 प्रतिशत और बसपा को 5.1 प्रतिशत वोट मिले थे।  2003, 2008 और 2013 के विस चुनावों में औसतन 69 सीट पर पार्टी का वोट शेयर 10 प्रतिशत से अधिक रहा है। साल 1993 और साल 1998 में मध्य प्रदेश में बसपा के 11-11  विधायक रह चुके हैं।

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