
- संगठन की दृष्टि से प्रदेश को आधा दर्जन जोनों में बांटा
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। विंध्य प्रदेश का वो हिस्सा है, जिसे बसपा के लिए प्रवेश द्वारा माना जाता है। इसकी वजह है इसी अंचल से बसपा को प्रदेश का पहला लोकसभा सदस्य मिला था। इसी तरह से चंबल अंचल में बसपा को मतदाताओं का अच्छा खासा समर्थन मिलता रहता है। यह बात अलग है कि समय के साथ उसके वोट बैंक में भाजपा ने ऐसी सेंध लगाई है कि अब वह खाता खोलने के लिए भी तरस रही है। उप्र में भी बसपा पूरी तरह से हांसिए पर जा चुकी है। यही वजह है कि अब एक बार फिर से बसपा ने मप्र के इन दोनों अंचलों पर ध्यान देना शुरु कर दिया है, जिससे की आगे होने वाले चुनावों में उसे जनसमर्थन मिल सके। यही वजह है कि वो एक बार फिर से खोई हुई सियासी जमीन तलाशने की तैयारी कर रही है। विंध्य अंचल की बात की जाए तो मऊगंज इलाके में बीते दिनों हुईं घटनाओं के बाद पार्टी ने इस इलाके में यकायक अपनी सक्रियता दिखानी शुरु कर दी है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने नई नियुक्तियां कर प्रदेश में संगठन को मजबूत बनाने का लक्ष्य दिया है। बसपा प्रमुख मायावती ने हाल ही में उच्च स्तरीय बैठक के बाद मप्र को 6 जोन में बांट कर इसका जिम्मा केंद्रीय स्टेट कॉर्डिनेटर के तौर पर दिलीप बौद्ध की नियुक्ति कर सौंप दिया है। उनसे कहा गया है कि वे प्रत्येक जोन में 3 प्रभारी व विस स्तर पर प्रभारियों की नियुक्ति कर दो महीने में जनाधार बढ़ाने के लक्ष्य को हासिल करने में जुट जाएं। दरअसल विंध्य अंचल में इन दिनों अलग-अलग घटनाओं की वजह से आदिवासी समुदाय और ब्राह्मणों में जमकर नाराजगी बनी हुई है। बसपा इसे अपने पक्ष में भुनाने के प्रयासों में हैं।
ब्राह्मणों के असंतोष को भुनाने की रणनीति
विंध्य में मऊगंज के गडरा गांव में आदिवासी परिवार के पिता-पुत्र और बेटी की संदिग्ध मौत और पुलिस के एएसआई रामचरण गौतम की पीट-पीट कर हत्या के मामले में बसपा क्षेत्र में बड़े स्तर पर सडक़ों पर उतर चुकी है। मऊगंज में ही युवक सनी द्विवेदी की हत्या के बाद से ब्राह्मण समाज नाराज है। क्षेत्र में ब्राह्मणों की नाराजगी में भी बसपा अपना सियासी फायदा तलाश रही है। दरअसल यही वो अंचल है , जहां से बसपा को प्रदेश में पहली बार पार्टी का सांसद मिला था। यह सांसद 1991 में मिला था। विंध्य उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है, इसलिए भी यहां पर बसपा का प्रभाव रहता है। इसी तरह से इसके पहले विधानसभा में भी बसपा का खाता इसी अंचल की देवतालाब सीट पर वर्ष 1990 में खुला था। इसके बाद हुए 93 के चुनाव में भी 5 ग्वालियर-चंबल और विंंध्य की 5 सीटों पर बसपा को जीत मिली थी। यही दो अंचल हैं जहां से बसपा विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती आयी है। अपवाद स्वरुप जरुर एक दो बार बुंदेलखंड अंचल में बसपा को जीत मिली, लेकिन उसमें बसपा की भूमिका कम प्रत्याशी की स्वयं अधिक रही है। इन दोनों ही अंचलों में मिलने वाले मतों की वजह से बसपा को राष्ट्रीय दल का रुतबा भी मिला। यह बात अलग है कि इसके बाद भी मप्र में बीते विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जिस तरह की स्थिति बनी इतनी खराब मप्र में कभी भी नहीं रही है। प्रदेश में इस बार उसका खाता तक नहीं खुल सका है। यही नहीं मत प्रतिशत में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है।
समीकरण बिगाडऩे में सफल
इतना जरुर है कि बसपा प्रत्याशी जीते या नहीं,लेकिन करीब डेढ़ दर्जन सीटों पर प्रत्याशियों का समीकरण जरुर बिगाड़ देती है, जिससे कभी कांग्रेस तो कभी बसपा को फायदा हो जाता है।
अब तक ये सीटें जीतने में कामयाब रही बसपा
ग्वालियर-चंबल – सबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अम्बाह, मेहगांव, गोहद, सेंवढ़ा, भांडेर, ग्वालियर ग्रामीण, गिर्द (2008 के बाद भितरवार), डबरा, करैरा, अशोकनगर।
विंध्य – चित्रकूट, रैगांव, रामपुर बघेलान, सिरमौर, त्योंथर, मऊगंज, देवतालाब, मनगवां, गुढ़। बुंदेलखंड में पथरिया।