लोकसभा चुनाव: कांग्रेस के लिए खलनायक बनी बसपा

 बसपा

न खुद जीती और न ही कांग्रेस को जीतने दिया

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। उप्र के साथ ही मप्र में भी बसपा अब अपना राजनैतिक बजूद खोती जा रही है। यही वजह है कि पहले विधानसभा और उसके बाद लोकसभा चुनाव में भी वह अपना खाता नहीं खोल सकी है। यह जरुर है कि उधार के प्रत्याशियों की बदौलत किसी न किसी सीट पर वह अपनी ताकत दिखाती रहती है। ऐसा इस बार भी लोकसभा चुनाव में देखने को मिला है। भले ही उसके प्रत्याशी जीत नहीं सके हैं , लेकिन तीन लोकसभा चुनाव क्षेत्र में वह कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए खलनायक जरूर बनी है। अगर तीन सीटों पर बसपा प्रत्याशी चुनावी मैदान में नहीं होते , तो भाजपा की जगह कांग्रेस के प्रत्याशी सांसद होते। इनमें खासतौर पर मुरैना, सतना और रीवा की सीटें तो शामिल हैं । इसके अलावा कांग्रेस अगर रणनीतिक रुप से चुनावी मैदान में उतरती तो भिंड और ग्वालियर में भी पांसा पलटा जा सकता था। दरअसल इन दोनों सीटों पर कांग्रेस की बगावत ने नुकसान पहुंचाया है। यही वजह  रही कि भाजपा प्रदेश में क्लीनस्वीप करने में सफल रही है। एक समय ऐसा भी था, जब बसपा कई सीटों पर दूसरे नंबर पर रहती थी और विधानसभा के साथ लोकसभा सीट भी जीत जाती थी। 1996 में सतना में बसपा के सुखलाल कुशवाहा ने दो पूर्व मुख्यमंत्रियों स्व अर्जुन सिंह एवं वीरेंद्र कुमार सखलेचा को एक साथ हरा कर सभी को हतप्रभ कर दिया था। अब यह पार्टी एक अदद जीत के लिए तरस रही है। एक समय बसपा के एक दर्जन तक विधायक हुआ करते थे, लेकिन अब विधानसभा में भी लोकसभा जैसा हाल है।
गर्ग बने मुसीबत
कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीद मुरैना लोकसभा सीट पर थी। यहां कांग्रेस के सत्यपाल सिंह सिकरवार भाजपा के शिवमंगल सिंह तोमर पर भारी पड़ रहे थे। कांग्रेस को पहला झटका कांग्रेस के रमेश गर्ग ने दिया। वे पार्टी से बगावत कर बसपा के टिकट पर मैदान में उतर गए। नतीजा आया तब पता चला कि कांग्रेस के सत्यपाल 52 हजार 530 वोटों के अंतर से हार गए जबकि, रमेश गर्ग को 1 लाख 79 हजार से ज्यादा वोट मिले। साफ है कि यदि वे बगावत न करते तो बाजी कांग्रेस के हाथ होती। दूसरा मुरैना में विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने ऐसा चुनावी प्रबंधन किया कि कांग्रेस को मौका ही नहीं मिल सका। उनके प्रयास से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक राम निवास रावत और मुरैना की महापौर शारदा सोलंकी भाजपा में शामिल हो गई थीं।
सतना में  त्रिपाठी ने डुबोई लुटिया
सतना प्रदेश की दूसरी ऐसी लोकसभा सीट रही, जहां कांग्रेस को जीत की बहुत उम्मीद थी। यहां सांसद गणेश सिंह के खिलाफ जमकर माहौल था। कांग्रेस ने गणेश को विधानसभा में हराने वाले विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा को मैदान में उतारा था। भाजपा के गणेश को लेकर सर्वाधिक नाराजगी ब्राह्मण समाज में थी। लेकिन पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी बसपा के टिकट पर चुनाव में उतर गए। उन्हें 1 लाख 85 हजार से ज्यादा वोट मिले, जिसकी वजह से कांग्रेस के सिद्धार्थ 84 हजार 949 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए। इससे त्रिपाठी को तो कोई फायदा नहीं हुआ बल्कि भाजपा की राह आसान हो गई।
और भिंड में बिगड़ गया माहौल
कांग्रेस में भिंड में भी बगावत हुई। 2019 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े देवाशीष जरारिया ने टिकट न मिलने पर बगावत कर दी और बसपा के टिकट पर मैदान में उतर गए। यहां कांग्रेस के फूल सिंह बरैया भाजपा की संध्या राय को अच्छी टक्कर दे रहे थे। जरारिया के चुनाव लड़ने के ऐलान के साथ कांग्रेस का माहौल बिगडऩे लगा। देवाशीष को मात्र 20 हजार 465 वोट मिले और फूल सिंह बरैया 64 हजार 840 वोटों के अंतर से हार गए। यहां भाजपा की संध्या के खिलाफ नाराजगी देखने को मिल रही थी, लेकिन वे जीतने में सफल रहीं।
ग्वालियर में कंसाना का लगा झटका
ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस को बगावत का सामना करना पड़ा। यहां कांग्रेस के युवा नेता कल्याण सिंह कंसाना बागी होकर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ गए। कंसाना को मात्र 33 हजार 465 वोट मिले, लेकिन उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीण पाठक का माहौल बिगाड़ने का काम किया। पाठक ने भाजपा के भारत सिंह कुशवाहा को कड़ी टक्कर दी, पर 70 हजार 210 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए। यहां भी भाजपा और कांग्रेस के बीच अच्छा मुकाबला देखने को मिला।
रीवा खजुराहो में बसपा को सर्वाधिक मत
बसपा की कम होती पकड़ का खुलासा एक बार फिर से लोकसभा चुनाव की मतगणना के आंकड़ों से होता है। इसकी वजह है प्रदेश में चार ही ऐसी लोकसभा सीटें रही हैं, जहां पर उसे 50 हजार से ज्यादा मत मिल सके हैं। मुरैना और सतना के अलावा रीवा और खजुराहो में बसपा को अच्छे वोट मिले। खजुराहो में बसपा के कमलेश कुमार को सबसे ज्यादा 2 लाख 31 हजार से ज्यादा वोट मिले। वजह यह थी कि यहां कांग्रेस का कोई प्रत्याशी ही नहीं था। भाजपा के वीडी शर्मा इस सीट में 5 लाख 41 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीते। दूसरी सीट रीवा में बसपा के अभिषेक बुद्धसेन पटेल 1 लाख 17 हजार वोट ले जाने में कामयाब रहे। यहां भाजपा के जनार्दन मिश्रा कांग्रेस की नीलम मिश्रा से 1 लाख 93 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीते। पहले बसपा को चंबल-ग्वालियर, बुंदेलखंड और विंध्य अंचल की लगभग हर लोकसभा सीट में 1 से 2 लाख वोट मिलते थे। इन अंचलों में बसपा विधानसभा का चुनाव भी जीतती थी, लेकिन इस बार तो पह भी नहीं जीत सकी है।

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