- एक गांव की साधारण लडक़ी मेघा परमार की असाधारण कहानी
- रेवती रमण शर्मा
हाल ही द एवरेस्ट गर्ल नाम से एक किताब आई है। मध्यप्रदेश के एक गांव भोजनगर की साधारण सी लडक़ी मेघा परमार की असाधारण कहानी पर आधारित यह पुस्तक उसकी एवरेस्ट विजय के हौसले की जानकारी से पाठकों को अवगत करवाती है।
इस पुस्तक को भोपाल के प्रमुख टीवी पत्रकार ब्रजेश राजपूत ने उपन्यास शैली में लिखा है। उनके अनुसार यह किताब लिखना लंबी यात्रा रही। मेघा परमार ने 22 मई 2019 को माउंट एवरेस्ट को फतह करते हुए चोटी पर भारतीय ध्वज फहराया। मेघा मध्यप्रदेश सरकार की बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना की ब्रांड एम्बेसडर रह चुकी हैं। पर्वतारोही होने के साथ ही वह प्रशिक्षित स्कूबा डाइवर है। इन दिनों वह मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में व्याख्यान देती हैं। पर्वतारोहण के क्षेत्र में मेघा को अनेक सम्मान व पुरस्कार मिल चुके हैं। मेघा के अनेक रंगीन चित्रों से सुसज्जित इस पुस्तक दो खंडों में 14 अध्यायों में मेघा की कहानी व उसके हौंसले के बारे में विस्तार से बताया गया है। पहले खंड का शीर्षक देखा एक ख्वाब तो… में मैं वापस नहीं जाऊंगी, मेरा गांव, मेरा बचपन, गांव से कस्बे की उड़ान, वो कॉलेज के खुशनुमा दिन, एनएसएस कैंप से लगे सपनों को पंख, पर्वतारोहण का जुनून, पहली चढ़ाई बेस कैंप तथा यह स्पांसरशिप नहीं आसान नामक अध्याय दिये गये हैं। दूसरे खंड का शीर्षक ख्वाब जो पूरा हुआ रखा गया है। इस खंड में शिखर के पास से वापसी, निराशा का सागर और संकल्प, एक और हादसा, वो दमखम बढ़ाने के दिन, फिर एवरेस्ट की ओर, शिखर की ओर बढ़े कदम तथा और अब अंतिम चढ़ाई शीर्षक से अध्याय दिये गये हैं।
ब्रजेश राजपूत ने इस पुस्तक को बहुत ही शानदार ढंग से लिखा है। मेघा परमार का अब तक का जीवन प्रेरणादायक रहा है। किन परिस्थितियों से निकलकर मेघा परमार ने एक ओर स्कूबा डाइविंग से सागर की गहराई को देखा तो दूसरी ओर एक जुनूनी लडक़ी के रूप में एवरेस्ट पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर उसने देश का और महिला वर्ग का मान बढ़ाया। ब्रजेश राजपूत ने उसके दु:खों, अभावों और सफलता की चोटी पर पहुंचने की रोमांचक दास्तान को प्रस्तुत किया है। आम तौर पर किसी पुस्तक के शीर्षक से पाठक यह मान लेते हैं कि यह पुस्तक तो संबंधित कार्य अर्थात पर्वतारोहण में रूचि रखने वाले किसी व्यक्ति के लिए ही उपयोगी होगी। ऐसा नहीं है। यह पुस्तक सभी युवक- युवतियों के लिए प्रेरणास्पद पुस्तक है। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आप में अपने दिल में छुपे इच्छा को पूरा करने का जुनून पैदा होगा। यही इस पुस्तक और मेघा परमार की जिंदगी के वृतांत की खूबी है। भोपाल के मंजुल पब्लिशिंग हाउस ने 172 पृष्ठों की इस पुस्तक का बहुत ही अच्छे ढंग से प्रकाशन किया है। मात्र 350 रुपए की यह पुस्तक बच्चों, विशेषकर युवतियों को पढ़ाने योग्य है। मेघा परमार की यह कहानी उन्हें अपने सपनों को पूरा करने, अपने परिवार का मान बढ़ाने और राष्ट्र का गर्व बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगी। पुस्तक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर और भी कम कीमत में बिक्री के लिए उपलब्ध है। कम से कम स्कूलों के पुस्तकालयों में तो यह पुस्तक होनी ही चाहिए।