
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में भले ही दो साल बाद विधानसभा के आम चुनाव होने हैं, लेकिन अभी से भाजपा ने अपनी चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं। इन तैयारियों में संगठन द्वारा उन सीटों के लिए विशेष रणनीति बनाकर काम शुरू किया जा रहा है, जिन पर बीते आम विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा था। रणनीति के तहत इसके लिए वह 82 सीटें चयनित की गई हैं, जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति के लिए आरक्षित हैं। दरअसल इन सीटों पर फोकस करने की वजह है बीते विस चुनाव में भाजपा को 44 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था, जिसकी वजह से भाजपा सरकार बनाने में पिछड़ गई थी।
बीते चुनाव में जहां भाजपा को इन आरक्षित 82 सीटों में से महज 38 ही सीटें मिली और 21 सीटों का पार्टी को नुकसान हुआ था, जबकि इसके पहले वर्ष 2013 के चुनाव में भाजपा को 59 सीटों पर जीत मिली थी, जिसकी वजह से भाजपा की सरकार पुन: आसानी से बन गई थी।
करीब ढाई साल बाद होने वाले आम विधानसभा चुनाव में इस तरह की स्थिति न बने इसके लिए अब भाजपा संगठन के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इन सीटों के मतदाताओं को पार्टी से जोड़ने के लिए अभी से जतन शुरू करने की योजना बनाई है। इन दोनों ही संगठनों के रणनीतिकारों का मानना है कि सत्ता और संगठन स्तर पर इन दोनों वर्गों का भरोसा हासिल करने के लिए विशेष प्रयास अभी से शुरू किए जाएं , जिससे कि चुनाव के समय उनका समर्थन मिल सके। यही वजह है कि अब भाजपा ने इन सीटों पर संघ की तरह पूर्णकालिक कार्यकर्ता भेजना तय किया है। इसके अलावा संगठन में स्थानीय स्तर पर इन वर्गों के कार्यकर्ताओं को प्रमुखता से शामिल करने के भी निर्देश दिए गए हैं। यही नहीं उन लोगों को भी पार्टी से जोड़ने को कहा गया है जिनका अपने -अपने वर्गों में अच्छा जनाधार है। इसके लिए ऐसे लोगों की तलाश करने को भी कहा जा चुका है। दरअसल इन दोनों ही वर्गों में मजबूत पकड़ रखने वाले नेताओं की पार्टी में कमी है। फिलहाल जो बड़े नेता पार्टी में हैं उनकी पकड़ अपने इलाके तक ही सीमित है। उनमें से कई नेताओं और उनके परिजन भी बीते चुनाव में हार चुके हैं। दरअसल इन क्षेत्रों में भाजपा ने स्थानीय मुद्दों की तो अनदेखी की ही साथ ही अपने वायदे भी पूरे नहीं किए, जिसकी वजह से भाजपा को विस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा मालवा निमाड़ इलाके में जयस ने भी भाजपा को बहुत नुकसान पहुंचाया है।
यह भी बनाया फार्मूला
संगठन द्वारा इन सभी 82 सीटों पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए एक फार्मूला तय किया गया है जिसके तहत खासतौर पर समाज के बीच अपनेपन का संदेश देने का काम किया जाएगा। इसके लिए संगठन के अलावा सरकार के स्तर पर इन क्षेत्रों की अधूरी योजनाओं और अन्य विकास के कामों को प्रमुखता से पूरा कराने का काम किया जाएगा। इसके साथ ही इन इलाकों में पार्टी के आदिवासी और दलित विधायकों के साथ ही मंत्रियों को भी मैदानी स्तर पर सक्रियता बढ़ाने को कहा गया है।
जयस व गोंगपा का भी खतरा
दरअसल बीते चुनाव में जयस ने कांग्रेस को समर्थन किया था, जिसकी वजह से भाजपा को मलावा निमाड़ में नुकसान का सामना करना पड़ा। इस आदिवासी समुदाय के मत पहले भाजपा को मिलते थे, जो बीते आम चुनाव में कांग्रेस को मिले थे। उधर जीजीपी का भले ही कोई प्रत्याशी न जीता हो लेकिन उसने करीब दो फीसदी मत हासिल किए थे। इसी तरह से बसपा ने भी पांच फीसदी मत हासिल किए थे। इसकी वजह से भाजपा को बीते चुनाव में करीब साढ़े तीन फीसदी मतों का नुकसान उठाना पड़ा था।
लोकसभा की सभी 10 सीटें जीती भाजपा
खास बात यह है कि विधानसभा चुनावों में जिन सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा, उन्हीं सीटों पर लोकसभा चुनाव में भाजपा को न केवल जीत मिली बल्कि समर्थन भी बहुत अच्छा मिला। इन विधानसभा सीटों के तहत आने वाली सभी दस लोकसभा सीटें न केवल भाजपा ने 2014 में जीती बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी वही परिणाम दोहराए।
यह है सीटों का आंकड़ा
- विधानसभा की कुल सीट- 230
- आरक्षित अजजा- 47
- आरक्षित अजा – 35
2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के खाते में आई सीटें - अजजा- 31
- अजा- 28
- कुल 59 सीटें
- वर्ष 2018 के चुनाव में सीटें
- अजजा- 22
- अजा- 16