- पार्टी के फॉर्मूले पर 30 विधायकों का कट सकता है टिकट
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा इस समय पीढ़ी परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। संगठन में युवाओं को जिम्मेदारी देने के बाद अब पार्टी आलाकमान की मंशा है कि आगामी चुनावी में अधिक से अधिक युवाओं को टिकट दिया है। इसके लिए पार्टी ने 60+ का फॉर्मूला बनाया है। यानी 60 की उम्र पार कर चुके नेताओं को विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा। अगर 2023 में भाजपा ने मप्र में यह फॉर्मूला लागू किया जाता है तो विधानसभा अध्यक्ष, 6 मंत्रियों समेत 30 विधायकों का टिकट कट सकता है।
प्रदेश भाजपा के उम्रदराज नेता सत्ता का मोह छोड़ पाएंगे या नहीं, यह तो भविष्य तय करेगा, लेकिन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का टिकट मिलना मुश्किल लग रहा है। दरअसल, पार्टी के कई नेता 60 प्लस वाले फॉर्मूले में फिट नहीं हैं। लिहाजा उन्हें टिकट मिलने में दिक्कत आ सकती है। पार्टी इन्हें चुनावी मैदान में उतारने में हिचकिचा सकती है।
ये भी हो जाएंगे 60+ के पार
आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के और जो विधायक 60+ के पार हैं या हो जाएंगे उनमें सूबेदार सिंह रजौधा- जौरा, गोपीलाल जाटव-गुना, पुरुषोत्तम लाल तंतुवाय- हटा, श्यामलाल द्विवेदी-त्योंथर, पंचूलाल प्रजापति- मनगंवा, केदारनाथ शुक्ल-सीधी, अमर सिंह-चितरंगी रामलल्लू वैश्य-सिंगरौली, सुशील कुमार तिवारी-पनागर, करण सिंह वर्मा-इछावर, नारायण पटेल- मंधाता, देवीलाल धाकड़-गरोठ, यशपाल सिंह सिसोदिया-मंदसौर, डॉ. राजेंद्र पांडे-जावरा, अजय विश्नोई-पाटन, गौरीशंकर बिसेन-बालाघाट, सीतासरन शर्मा-होशंगाबाद, नागेंद्र सिंह-नागौद, नागेंद्र सिंह-गुढ़, जयसिंह मरावी-जयसिंह नगर, प्रेमशंकर कुंजीलाल वर्मा-सिवनी मालवा, महेंद्र सिंह हार्डिया-इंदौर-5 और पारस जैन-उज्जैन उत्तर का नाम शामिल है।
कुछ के टिकट काटे तो कुछ पर लगाया दांव
2018 में विधानसभा चुनाव के दौरान अमित शाह ने भोपाल में चिंतन मंथन किया था। तब उन्होंने संकेत दिया था कि 65 प्लस नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। इस कारण गौरीशंकर शेजवार, कुसुम मेहदेले, माया सिंह, हर्ष सिंह, अन्तर सिंह आर्य सहित कई और बुजुर्ग नेताओं के टिकट काट दिए गए थे। हालांकि राजनीतिक दल कई तरह के मापदंड तय करता है, लेकिन चुनाव आने पर किसी भी तरह से सिर्फ जीत ही मकसद होता है। ऐसे में तय किए गए मापदंड भी कई बार ब्रेक किए जाते हैं। इसके बाद भी भाजपा-कांग्रेस ने 60+ या इससे अधिक उम्र वाले नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा था, लेकिन इसमें से सिर्फ 3 को जीत मिली थी। भाजपा के तीन प्रत्याशी गुढ़ से नागेंद्र सिंह (76), नागौद से नागेंद्र सिंह (76) और रेगांव से जुगल किशोर बागरी (75) चुनाव जीतने में सफल रहे। गुढ़ विधायक नागेंद्र सिंह विधानसभा में सबसे उम्रदराज जनप्रतिनिधि बने थे। तब उनकी उम्र 76 वर्ष थी।
विस अध्यक्ष सहित 6 मंत्री उम्रदराज
2023 में पार्टी ने 60+ के फॉर्मूले के आधार पर आकलन करें तो विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम, 6 मंत्री और पार्टी के लगभग 23 विधायक अगले साल होने वाले चुनाव के दौरान 60 वर्ष की आयु पूरी कर चुके होंगे। इनमें लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव, खाद्य मंत्री बिसाहूलाल सिंह, खेल एवं युवा कल्याण यशोधरा राजे सिधिया, नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेन्द्र सिंह, लोक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी और पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण रामखेलावन पटेल का नाम शामिल है। ऐसे में पार्टी को देवतालाब, शिवपुरी, अमरपाटन, खुरई, सांची, रेहली और अनूपपुर के लिए नए उम्मीदवार की अभी से तलाश शुरू करनी होगी। वैसे इन नेताओं में से कईयों के पुत्र वर्षों से इन विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
परिवारवाद से भाजपा की दूरी
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की टीम में भी नए चेहरों को मौका दिया गया है, जिसमें ज्यादातर युवा हैं। साथ ही परिवारवाद को भी दूर रखा गया है। नंदकुमार सिंह चौहान के निधन के बाद यह माना जा रहा था कि उनकी जगह उनके बेटे को टिकट मिल सकता है लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। ऐसा ही उदाहरण दमोह उपचुनाव में देखने को मिला, जहां पर जयंत मलैया और उनके बेटे को पार्टी ने टिकट नहीं दिया। हालांकि मलैया को टिकट न देने के चलते पार्टी को हार मिली। लेकिन पार्टी ने जो गाइडलाइन तय की है उसके मुताबिक ही चल रही है।
पिछला चुनाव हार गए थे कई उम्रदराज नेता
कई ऐसे नेता भी हैं जो पिछले चुनाव में हार चुके हैं, लेकिन एक बार फिर अगले चुनाव के लिहाज से अपने क्षेत्रों में सक्रिय हैं। इन नेताओं में उमाशंकर गुप्ता, रामकृष्ण कुसमारिया, हिम्मत कोठारी और रुस्तम सिंह भी टिकट के लिए दावेदारी कर सकते हैं, लेकिन चुनाव तक इन सभी की आयु 70 के पार हो जाएगी। हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणामों में भी इस फॉर्मूले का गहरा असर पड़ा है। ऐसे में अब मप्र के दिग्गज नेताओं को चुनावी मैदान से बाहर होने का डर सताने लगा है। चुनाव आने पर पार्टी इनको रिटायर कर सकती है।