भाजपा कार्यकर्ता अब बनेंगे ‘साहब’

  • संगठन को मजबूत करने तैयार किया प्लान

विधानसभा और लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड जीत दिलाने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं को पद और प्रतिष्ठा देकर भाजपा संगठन को मजबूत करने की कवायद में जुट गया है। पार्टी करीब 2 लाख से अधिक कार्यकर्ताओं को ताकत देने जा रही है। वहीं करीब 10 हजार निष्ठावान कार्यकर्ताओं को ‘साहब’ बनाने का प्लान तैयार किया गया है।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
मप्र वह राज्य बन चुका है, जहां अपनी जमीनी पैठ को लेकर भाजपा पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रही है। दरअसल, 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बंपर जीत हासिल की, उसके ठीक बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने क्लीन स्वीप करते हुए बेहतरीन प्रदर्शन किया। देश भर में मप्र में भाजपा अगर मजबूत है तो उसकी एक बड़ी वजह है, मप्र भाजपा के नेता और कार्यकर्ता। अब खबर आ रही है कि भाजपा इन्हें बड़ा ईनाम देने जा रही है। भाजपा के कार्यकर्ता यानी कि संगठन से जुड़े हुए वे लोग जो लगातार संगठन में सक्रिय रहते हैं और पार्टी के लिए जी जान से कार्य करते हैं। चर्चा हो रही है कि लगातार चुनाव जीतती आ रही भाजपा अगर अभी भी अपने कार्यकर्ताओं के हितों की ओर ध्यान नहीं देगी, तो पार्टी में बड़े स्तर पर कोई असंतोष पनप सकता है। इसीलिए भाजपा ने यह असंतोष पनपे, उससे पहले ही एक नया रोड मैप तैयार कर लिया है। यह रोड मैप है पार्टी के प्रति वफादार कार्यकर्ताओं को ईनाम देने का है। ईनाम से मतलब यहां नगद राशि नहीं, बल्कि अलग-अलग जो समितियां होंगी, जो निगम मंडल होंगे, उनमें कहीं ना कहीं भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी तय करने की तैयारियों में पार्टी जुट गई है।
विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिताने के लिए जी तोड़ मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं को पार्टी अब सरकारी मशिनरी (एल्डरमैन, समितियों)का हिस्सा बनाने जा रही है। इसके लिए जिलाध्यक्षों से पार्टी के समर्पित और कर्मठ कार्यकर्ताओं का नाम मांगा गया है। गौरतलब है कि भाजपा कैडर बेस पार्टी और कार्यकर्ता पार्टी की रीढ़ माने जाते हैं। इसलिए पार्टी की कोशिश है कि कार्यकर्ताओं को सरकार में जिम्मेदारी देकर उनका मनोबल बढ़ाया जाए। मप्र में निगम और मंडलों की नियुक्तियां होती हैं। यह समितियां सिर्फ निगम और मंडलों तक नहीं, बल्कि ग्राम पंचायत स्तर तक जाती हैं। ऐसे में भाजपा की अब यह कोशिश है कि ग्राम पंचायत स्तर से लेकर निगम मंडलों तक, उसके जो कार्यकर्ता हैं उन्हें एक तरीके से चिन्हित किया जाए और उन्हें इन समितियों में जगह भी दी जाए। बीते दिनों हुई प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की बैठक के बाद भाजपा नेताओं से संकेत मिले थे कि पार्टी के समर्पित और अच्छा काम करने वाले नेताओं कार्यकर्ताओं का विशेष ध्यान रखा जाएगा। निगम मंडलों में नियुक्तियां हो या समितियों में जगह देने की बात हो, इसमें कोई दो राय नहीं कि जो सत्ता रूढ़ दल होता है, उनके कार्यकर्ताओं को उसमें प्राथमिकता दी भी जाती है। फिलहाल माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी मप्र में अपने कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने की पूरी कोशिश करेगी।

अब भाजपा कार्यकर्ताओं की बारी
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से उपजी नाराजगी का असर देखते हुए मप्र भाजपा संगठन अब अपने जोश भरने की तैयारी में जुट गया है। पार्टी ने इसके लिए खास प्लान तैयार किया है। अब भाजपा कार्यकर्ता ‘साहब’ बनेंगे। कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए भाजपा इन कार्यकर्ताओं को बोर्ड, निगम, आयोग, निकाय, सहकारी समितियों और अंत्योदय समितियों में मौका देगी। भाजपा का लक्ष्य कि वह हर मंडल से कार्यकर्ता का समायोजन करे। मप्र भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को लेकर बड़ा कदम उठाने जा रही है। पार्टी दस हजार से ज्यादा सक्रिय कार्यकर्ताओं को सरकार में शामिल करेगी। इसकी तैयारियां की जा रही हैं। भाजपा नेतृत्व नगरीय निकायों में एल्डरमैन, समितियों और कॉलेजों की जनभागीदारी समितियों में कार्यकर्ताओं को नियुक्त कर रही है। इस मामले को लेकर पार्टी पदाधिकारियों ने जिला प्रभारियों और जिलाध्यक्षों के साथ एक बैठक की है। इस बैठक में जिलाध्यक्षों को कहा गया है कि वे अपने-अपने जिलों में सभी नेताओं के साथ समन्वय स्थापित करें। इसके बाद उनके साथ मिलकर समितियों में नियुक्ति के लिए कार्यकर्ताओं के नाम तय करें। ये नाम तय हो जाने के बाद उन्हें प्रदेश संगठनों को भेजा जाएगा। गौरतलब है कि, जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ता अक्सर पार्टी पदाधिकारियों को ये शिकायत करते हैं कि विधायक, मंत्री और सांसद बन जाने के बाद उन लोगों की नियुक्ति को भुला या टाल दिया जाता है। कार्यकर्ताओं की इस बात को पार्टी ने गंभीरता से लिया है। इसलिए अब भाजपा इन नियुक्तियों को लेकर देर नहीं करना चाहती। बता दें, राज्य के हर विभाग में समितियां होती हैं। इन समितियों में अशासकीय सदस्य नियुक्त किए जा सकते हैं। इन्हीं समितियों में इन कार्यकर्ताओं को नियुक्त किया जाएगा।
जानकारी के अनुसार, प्रदेश भाजपा कार्यालय में आयोजित वरिष्ठ नेताओं की बैठक के बाद जिलाध्यक्षों व जिला प्रभारियों के साथ एक अलग बैठक हुई। इस बैठक में जिलाध्यक्षों को कहा गया है कि वे जिले में सभी नेताओं से समन्वय करके अलग-अलग समितियों में नियुक्ति के लिए कार्यकर्ताओं के नाम तय करके प्रदेश संगठन को भेजेंगे। जिन्हें विभिन्न समितियों में पदाधिकारी बनाया जाएगा। दरअसल, भाजपा अब अपने दस हजार से ज्यादा सक्रिय कार्यकर्ताओं को सरकार में एडजस्ट करने की तैयारी कर रही है। सभी नगरीय निकायों में एल्डरमैन से लेकर कॉलेजों की जनभागीदारी समितियों, दीनदयाल अंत्योदय समितियों सहित अन्य संमितियों में पार्टी कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है। जानकारी के अनुसार, नई सरकार के गठन के बाद से कार्यकर्ताओं की सत्ता में भागीदारी का इंतजार हो रहा है। पार्टी ने संकेत दिया है कि एक-दो दिन में मंत्रियों को जिलों के प्रभार बंट जाएंगे। इसके बाद जिलों की कोर कमेटियों का भी पुनर्गठन होगा। चुनाव में मैदान में काम करने वाले कार्यकर्ताओं की शिकायत होती है कि सांसद, विधायक और मंत्री बन जाने के बाद अन्य नियुक्तियों को टाला जाता है। संगठन इस बार इस मामले में देरी करने के मूड में नहीं है। सरकार के विभिन्न विभागों की हर स्तर की समितियां जहां अशासकीय सदस्य नियुक्त करने का प्रावधान है उनमें पार्टी कार्यकर्ताओं को नियुक्त किया जाएगा। इसके लिए जिलाध्यक्ष से लेकर पार्टी के सीनियर नेता प्रशासन से संपर्क करेंगे ताकि हर स्तर पर नियुक्ति की प्रक्रिया के अनुसार कार्रवाई की जा सके।

दो दशक बाद पहल
भाजपा सरकार के पिछले करीब दो दशक में यह पहला अवसर होगा, जब सत्ता में कार्यकर्ताओं की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है। लगभग 33 साल पहले तत्कालीन सुंदरलाल पटवा सरकार में ये समितियां बनाई गई थीं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में आए विपरीत परिणाम और कार्यकर्ताओं में उपजे असंतोष से सीख लेते हुए मप्र में कार्यकर्ताओं की सरकार में भागीदारी सुनिश्चित करने की तैयारी कर रही है। पार्टी की योजना है कि अगले छह महीनों में ग्राम पंचायत से लेकर राजधानी तक कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाकर उन्हें जिम्मेदारी दे दी जाए। मप्र भाजपा के प्रदेश मंत्री रजनीश अग्रवाल का कहना है कि प्रदेश सरकार के विविध प्रकार के सार्वजनिक उपक्रम समितियां मंडल निगम में अशासकीय सदस्यों की नियुक्तियां की जाती है। यह शासन के नियम अनुसार होती हैं। वास्तव में यह प्रक्रिया जनता और सरकार के बीच पुल का कार्य करती हैं। शासन की गति तेज होती है। अंत्योदय समितियां और सहकारिता उनमें एक हैं। इनमें कौन लोग होंगे, कब होगी और पद्धति क्या होगी यह तय करने का अधिकार प्रदेश सरकार को है। गौरतलब है कि कार्यकर्ताओं के बल पर भाजपा बड़ी पार्टी बनी है। इसलिए सत्ता में कार्यकर्ताओं की भागीदारी बढ़ाने के मॉडल पर काम कर रही भाजपा सरकार ने सरकारी योजनाओं की राजधानी से ग्राम पंचायत स्तर तक निगरानी के लिए दीनदयाल अंत्योदय समितियों के पुर्नगठन का रास्ता साफ कर दिया है। दीनदयाल अंत्योदय समितियों में राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री और जिला स्तर पर प्रभारी मंत्री अध्यक्ष होंगे। हर स्तर पर गठित समितियों में एससी और एससी वर्ग की महिलाओं के लिए पद आरक्षित रहेंगे। पहले चरण में गांव से राजधानी भोपाल तक दीनदयाल अंत्योदय समितियों का गठन किया जाएगा। राज्य स्तरीय समिति में यथासंभव हर वर्ग की प्रदेश में जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। इसके जरिये पांच लाख भाजपा कार्यकर्ताओं को सत्ता में भागीदार बनाया जाएगा। वर्ष 1991 में भाजपा की सरकार के दौरान ये समितियां काम करती थीं। नए मॉडल में समितियां राज्य, जिला, नगर, विकासखंड और ग्राम पंचायत स्तर पर होंगी। प्रदेश में पंचायतों की बड़ी संख्या होने और जिला व राज्य स्तर पर इन समितियों के गठन से भाजपा से जुड़े कार्यकर्ता इस काम से जुड़ जाएंगे।

निगम-मंडलों की कुर्सी
प्रदेश में करीब छह माह से निगम-मंडल-प्राधिकरिणों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष की नियुक्ति की राह देख रहे नेताओं की जल्द ही लॉटरी लगने वाली है। सूत्रों का कहना है कि भाजपा हाईकमान ने राजनीतिक नियुक्तियों के लिए हरी झंडी दे दी है। साथ ही कहा गया है कि निष्ठावान वरिष्ठ नेताओं को निगम-मंडल और प्राधिकरणों में पदस्थ किया जाए। गौरतलब है कि इन दिनों प्रदेश भर के भाजपा नेताओं के भोपाल से लेकर दिल्ली तक के फेरे बढ़ गए हैं। यह नेता अपने साथ अपनी उपलब्धियों के ब्यौरे के साथ ही पूर्व में मिले आश्वासनों का पुलिंदा लेकर भी चल रहे हैं। उन्हें सत्ता में भागीदारी के लिए जो नेता मददगार साबित होने वाला लगता है, उसे अपनी बायोडाटा वाली फाइल थमा दी जाती है। यह वे नेता हैं, जिन्हें विधानसभा और लोकसभा चुनाव में दावेदारी के बाद भी टिकट नहीं दिया गया था। यही वजह है कि अब यह नेता चाहते हैं कि उन्हें निगम मंडल में भागीदारी मिल जाए। भाजपा सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद से निगम मंडलों में अपनी ताजपोशी का इंतजार कर रहे नेताओं की उम्मीद जल्द पूरी हो सकती है। पार्टी हाईकमान ने इसके लिए हरी झंडी दे दी है। निगम-मंडलों में उन सीनियर नेताओं की नियुक्ति की जाएगी जो पार्टी में लगातार समर्पित भाव से काम कर रहे हैं और उन्हें अब तक कोई बड़ा पद नहीं मिला है। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ या उसके अनुषांगिक संगठनों से जुड़े नेताओं को भी तरजीह दी जाएगी। भाजपा ने इसके लिए संघ से भी दस नाम मांगे हैं। वहीं प्रदेश संगठन भी अपनी सूची तैयार कर रहा है। जिस पर मंथन किया जाएगा। आपको बता दें कि मोहन कैबिनेट के गठन के बाद सभी निगम मंडलों को भंग कर दिया गया था।
गौरतलब है कि भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में संगठन नेताओं ने इस बात के संकेत दिए थे कि जिन नेताओं ने चुनाव में अच्छा काम किया है और पार्टी के हर फैसले के साथ रहे हैं। पार्टी उनका पूरा ख्याल रखेगी। इसके बाद से ही निगम मंडलों में पदों पर नियुक्ति को लेकर हलचल शुरु हो गई थी। इनमें अधिकांश वे नेता शामिल हैं, जो विधानसभा चुनाव के समय किन्हीं कारणों से टिकट से वंचित कर दिए गए थे पर उन्होंने बगावती तेवर न अपनाते हुए पार्टी द्वारा तय प्रत्याशी के पक्ष में पूरे मन से काम किया। ऐसे वरिष्ठ नेता अब निगम-मंडलों एवं प्राधिकरणों में अपनी तैनाती चाहते हैं। निगम मंडल में नियुक्तियों को लेकर दावेदारों में बैचेनी बढ़ती जा रही है। टिकट पाने से वंचित रह गए जिन नेताओं के नसीब में आश्वासन आए थे वे इन नियुक्तियों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इसके अलावा संगठन और चुनाव के कामों में सालों से लगे नेताओं को भी अपने काम के इनाम का इंतजार है। इसके अलावा कांग्रेस से चार साल पहले और विधानसभा चुनाव के दौरान अपने समर्थकों के साथ आए नेताओं को भी अपने राजनीतिक पुनर्वास का इंतजार है। सूत्रों की मानें तो दिल्ली में इसे लेकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और प्रदेश संगठन महामंत्री बीएल संतोष मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से चर्चा कर चुके हैं। निगम, प्राधिकरण, आयोग समेत चार दर्जन सार्वजनिक उपक्रमों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष समेत सदस्य अथवा संचालक मंडल में नियुक्तियां होनी हैं। इनके अध्यक्ष और उपाध्यक्षों को कैबिनेट और राज्यमंत्री का दर्जा दिया जाता है। यही वजह है कि इनके दावेदारों की संख्या काफी ज्यादा है और पार्टी को नाम तय करने में भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। वहीं संघ भी अपने कोटे के दस नामों पर विचार कर रहा है। इसमें अधिकांश वे नेता शामिल हैं जो संघ से भाजपा में गए हैं। शिवराज सरकार में संभागीय संगठन मंत्री के दायित्व से मुक्त किए गए आधा दर्जन से अधिक नेताओं को निगम मंडल में पदों से नवाजा गया था। इनमें आशुतोष तिवारी, शैलेन्द्र बरूआ, जितेन्द्र लिटौरिया जैसे नेता शामिल थे। तब इन्हें आरएसएस के कोटे से ही माना गया था। इस बार इनकी जगह नए नामों पर संघ विचार कर रहा है। निगम मंडलों में दो बार रह चुके नेताओं को इस बार मौका नहीं मिलेगा। ऐसा नए चेहरों को मौका देने के लिए किया जा रहा है। संगठन से जुड़े एक बड़े नेता की मानें तो इस बार ज्यादा से ज्यादा नए चेहरों को निगम मंडल और प्राधिकरणों में जगह दी जाएगी। दरअसल पार्टी हाईकमान को कई नेताओं ने लिखित में भेजा है कि कुछ चेहरों को हर बार निगम मंडल में कोई न कोई पद दिया जाता है। इसके बाद यह निर्णय लिया गया है कि जो नेता दो बार निगम मंडल या प्राधिकरणों में ताजपोशी पा चुके हैं, उन्हें अब और मौका नहीं दिया जाएगा। संगठन के कुछ ऐसे नेता जिन्होंने विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बेहतर काम किया है, उन्हें इस बार प्राथमिकता में रखा जाएगा। इसमें प्रदेश से लेकर जिलों तक के नेता शामिल है।

सहकारी समितियों की मिलेगी कमान
50 लाख से अधिक किसानों सहकारी समितियों के चुनाव बार-बार टलने के बाद भाजपा ने समितियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए फॉर्मूला तैयार कर लिया है। इस फॉर्मूले के तहत अब सहकारी समितियों में प्रशासकों की जगह भाजपा नेताओं को पदस्थ किया जाएगा। इसको लेकर गतदिनों भाजपा कार्यालय में प्रदेशभर से आए सहकारी नेताओं ने प्रदेश संगठन के साथ बैठक कर मसौदा तैयार किया है। गौरतलब है कि प्रदेश में सहकारी समितियों के चुनाव लंबे समय से नहीं हो पा रहे हैं। हाई कोर्ट के निर्देश पर इसकी प्रक्रिया प्रारंभ हुई, लेकिन सदस्य सूची ही नहीं बन पाई, इसलिए चुनाव फिर टल गए हैं। खरीफ फसलों की बोवनी में किसानों के व्यस्त होने के कारण कार्य प्रभावित हुआ। उधर, हाईकोर्ट के दबाव में सरकार चाहती है कि जल्द से जल्द चुनाव कराए जाएं। इसके तहत निर्वाचन की बजाय संचालक मंडलों के सदस्य नियुक्त करने का निर्णय लिया गया है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में वर्ष 2013 में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और अपेक्स बैंक के चुनाव हुए थे। इसके बाद से प्रशासक ही पदस्थ हैं। सहकारिता चुनाव को लेकर सरकार पर अदालत का दबाव बना हुआ है। हाईकोर्ट के दबाव में सरकार ने जुलाई से सितंबर तक चार चरणों में चुनाव का कार्यक्रम भी घोषित किया था। मगर मानसून को आगे कर चुनाव चुपचाप से दबा दिए गए। सरकार को परेशानी से बाहर निकालने का जिम्मा संगठन ने उठाया है। प्रदेश में कृषि सहित सभी क्षेत्रों में करीब 55 हजार सहकारी समितियां हैं। जिनमें 2018 से ही प्रशासक ही काम संभाल रहे हैं। जानकारी के अनुसार गतदिनों भाजपा प्रदेश कार्यालय में प्रदेश भर से बुलाए गए 15 सहकारिता नेताओं के साथ सीएम मोहन यादव, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा, सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग व प्रदेश संगठन के तमाम वरिष्ठ नेताओं ने चुनावों के विकल्प पर मंथन किया है। तीन स्तरों पर हुई बैठकों में पहले भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के वर्तमान व पुराने नेताओं के साथ सीएम व प्रदेश संगठन ने चर्चा की। फिर सभी ने सहकारिता मंत्री ने प्रकोष्ठ के नेताओं के साथ विकल्पों पर मंथन किया। अंत में जिलाध्यक्षों, प्रदेश पदाधिकारियों की मौजूदगी में सीएम यादव व प्रदेशाध्यक्ष शर्मा ने लंबी चर्चा कर जल्द से जल्द सभी समितियों व संचालक मंडलों में नियुक्ति करने पर सहमति बनाई।
छह साल से अटके सहकारिता चुनावों के लिए भाजपा ने जमीन बनाना शुरू कर दी है। इसके लिए सबसे पहले सहकारी समितियों से प्रशासकों की रवानगी की जाएगी। इन सरकारी प्रशासकों की जगह भाजपा के सहकारिता नेता पदस्थ किए जाएंगे। संगठन ने सभी जिलों से 3 से 5 नामों की पैनल मांगी है। पैनल मिलते ही नियुक्तियां शुरू हो जाएंगी। सभी समितियों में अपने सदस्य नियुक्त करने के साथ ही भाजपा प्रदेश भर में सदस्यता अभियान चलाकर समितियों को जिंदा करने का काम भी करेगी। ताकि चुनाव होने पर पार्टी का वर्चस्व कम न हो सके। ये नियुक्तियां होते ही सरकारी अधिकारी प्रशासक जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएंगे। भाजपा के सहकारिता नेता समितियों की कमान संभालते ही गांव स्तर तक समितियों को दोबारा जिंदा करने का काम करेंगे। सरकार द्वारा प्रशासक बनाए जाने वाले भाजपा नेताओं को तीन टास्क दिए जाएंगे। इनमें प्रमुख है सदस्यता अभियान, समितियों का परिसीमन, डिफाल्टर समितियों के सदस्यों से कर्ज की वसूली करना और फिर समितियों के चुनाव कराना। सरकार द्वारा नियुक्त किए जाने वाले सदस्यों को छह माह के अंदर खुद भी चुनाव जीतना होगा और अपनी समितियों के भी चुनाव कराना होंगे। प्रदेश में नवंबर के बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। ताकि उसके बाद छह माह में प्रदेश स्तर तक चुनाव पूर्ण हो जाएं। प्रदेश की लगभग 60 फीसदी समितियां डिफाल्टर हो चुकी हैं। प्रशासकों ने डिफाल्टर सदस्यों से वसूली पर भी ध्यान नहीं दिया। समितियां डिफाल्टर होने से नए किसानों को भी नहीं जुड़े। सबसे अधिक नुकसान वर्ष 2020 में कांग्रेस सरकार गिरने के बाद किसानों को उठाना पड़ा। शिवराज सरकार द्वारा जीरो प्रतिशत ब्याज पर दिए जा रहे ऋण का लाभ किसानों को नहीं मिल सका। दूसरी तरफ कांग्रेस की कर्ज माफी योजना के कारण लाखों किसान डिफाल्टर हो गए। इससे वे भी आगे कर्ज नहीं ले सके। भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक मोहनलाल राठौर का कहना है कि सत्ता और संगठन की संयुक्त बैठक में सहकारिता चुनावों की तैयारी को लेकर महत्वपूर्ण चर्चा हुई है। चुनावों का आधार तैयार करने जल्द ही प्रशासकों की जगह संगठन के सक्रिय कार्यकर्ताओं को मौका दिया जाएगा। जिलों से पैनल मिलते ही हर समिति में प्रशासक नियुक्त कर दिए जाएंगे। अभियान चलाकर नए सदस्य भी बनाए जाएंगे। ताकि सरकार की योजनाओं का लाभ अधिक से अधिक किसानों को मिल सके।

2 लाख कार्यकर्ता बनेंगे सशक्त
भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाएगी। इसके लिए पार्टी उन्हें सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों में भागीदारी देकर उनके मनोबल को बढ़ाएगी। गौरतलब है कि भाजपा कैडर बेस पार्टी है। इसमें कार्यकर्ता का सबसे अधिक महत्व होता है। लेकिन सत्ता में कार्यकर्ताओं के लिए कोई स्थान सुनिश्चित नहीं रहता है। इससे कार्यकर्ताओं में असंतोष दिखता रहता है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। पार्टी की रणनीति के अनुसार अब भाजपा के कार्यकर्ताओं की सरकार में भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। भाजपा सरकार के पिछले करीब दो दशक में यह पहला अवसर होगा, जब सत्ता में कार्यकर्ताओं की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है। लगभग 33 साल पहले तत्कालीन सुंदरलाल पटवा सरकार में ये समितियां बनाई गई थीं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में आए विपरीत परिणाम और कार्यकर्ताओं में उपजे असंतोष से सीख लेते हुए मप्र में भाजपा दो लाख कार्यकर्ताओं की सरकार में भागीदारी सुनिश्चित करने की तैयारी कर रही है। पार्टी की योजना है कि अगले छह महीनों में ग्राम पंचायत से लेकर राजधानी तक कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाकर उन्हें जिम्मेदारी दे दी जाए। मप्र भाजपा के प्रदेश मंत्री रजनीश अग्रवाल का कहना है कि प्रदेश सरकार के विविध प्रकार के सार्वजनिक उपक्रम समितियां मंडल निगम में अशासकीय सदस्यों की नियुक्तियां की जाती है। यह शासन के नियम अनुसार होती हैं। वास्तव में यह प्रक्रिया जनता और सरकार के बीच पुल का कार्य करती हैं। शासन की गति तेज होती है। अंत्योदय समितियां और सहकारिता उनमें एक हैं। इनमें कौन लोग होंगे, कब होगी और पद्धति क्या होगी यह तय करने का अधिकार प्रदेश सरकार को है। गौरतलब है कि कार्यकर्ताओं के बल पर भाजपा बड़ी पार्टी बनी है। इसलिए सत्ता में कार्यकर्ताओं की भागीदारी बढ़ाने के मॉडल पर काम कर रही भाजपा सरकार ने सरकारी योजनाओं की राजधानी से ग्राम पंचायत स्तर तक निगरानी के लिए दीनदयाल अंत्योदय समितियों के पुर्नगठन का रास्ता साफ कर दिया है। दीनदयाल अंत्योदय समितियों में राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री और जिला स्तर पर प्रभारी मंत्री अध्यक्ष होंगे। हर स्तर पर गठित समितियों में एससी और एससी वर्ग की महिलाओं के लिए पद आरक्षित रहेंगे। पहले चरण में गांव से राजधानी भोपाल तक दीनदयाल अंत्योदय समितियों का गठन किया जाएगा। इन्हें मप्र (लोक अभिकरणों के माध्यम से) दीनदयाल अंत्योदय कार्यक्रम का क्रियान्वयन अधिनियम 1991 और 20 सूत्रीय कार्यक्रम एवं क्रियान्वयन कमेटी के तहत अधिकार संपन्न बनाया जाएगा। एक्ट होने के कारण इन समितियों को कई तरह के प्रशासनिक अधिकार भी मिल जाएंगे। इसके बाद सहकारी समितियों के चुनाव करवाकर गांव से लेकर भोपाल तक की सहकारी समितियों में कार्यकर्ताओं की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। निगम-मंडल सहित अन्य संस्थाओं में भी राजनीतिक नियुक्तियां की जाएंगी।
राज्य स्तरीय समिति में यथासंभव हर वर्ग की प्रदेश में जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। इसके जरिये पांच लाख भाजपा कार्यकर्ताओं को सत्ता में भागीदार बनाया जाएगा। वर्ष 1991 में भाजपा की सरकार के दौरान ये समितियां काम करती थीं। नए मॉडल में समितियां राज्य, जिला, नगर, विकासखंड और ग्राम पंचायत स्तर पर होंगी। प्रदेश में पंचायतों की बड़ी संख्या होने और जिला व राज्य स्तर पर इन समितियों के गठन से भाजपा से जुड़े दो लाख से अधिक कार्यकर्ता इस काम से जुड़ जाएंगे। इन्हें सरकारी योजनाओं की निगरानी व सलाह के अधिकार होंगे। इसके लिए उन्हें मानदेय तो नहीं मिलेगा पर ब्लॉक, जिला और राज्य स्तरीय समिति के सदस्य को बैठकों में शामिल होने के लिए यात्रा भत्ता और दैनिक भत्ते दिए जाएंगे। राज्य स्तर पर साल में दो बार, जिला और विकासखंड स्तर पर माह में एक बार समिति की बैठक होंगी। बैठकों में निर्धारित कार्यक्रम में लक्ष्य और उपलब्धियों की गुणात्मक एवं संख्यात्मक समीक्षा की जाएगी। दरअसल, भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक भाजपा की सरकार होनी चाहिए। इसके लिए कार्यकर्ताओं का सशक्त होना जरूरी है।

दो साल से खाली पड़े हैं एल्डरमैन के पद
प्रदेश भाजपा संगठन की सक्रियता को देखते हुए दो साल से खाली पड़े एल्डरमैन के पदों पर नियुक्ति की आस जागी है। एल्डरमैन के लिए कई ऐसे नेता कतार में हैं, जो निगम चुनाव में टिकट के प्रबल दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने टिकट नहीं दिया। वहीं कई वरिष्ठ भाजपा नेता भी एल्डरमैन के लिए दावेदारी कर रहे हैं। पूरे प्रदेश में 16 नगर निगम, 99 नगरपालिका और 298 नगरपालिका परिषद हैं। इन सभी में एल्डरमैन मनोनीत किए जाएंगे। नगर निगमों में 12-12 एल्डरमैन का मनोनयन होना है। पहले इनकी संख्या 6 रहती थी, लेकिन इसे दोगुना कर दिया गया है, जबकि नगर पालिका में 4 की जगह 6 और नगर परिषद में 2 के स्थान पर 4 एल्डरमैन नियुक्त किए जाएंगे। सत्तापक्ष द्वारा ये नियुक्तियां की जाती हैं। इसके पहले भी भोपाल नगर निगम में एल्डरमैन रहे हैं, लेकिन 2022 में नगर निगम में भाजपा की परिषद बनने के बाद इसे टाला जा रहा था। भाजपा की बैठक में इसको लेकर हरी झंडी मिल गई है और जल्द ही एल्डरमैन की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू होना है। इसको लेकर दावेदारों में हलचल बढ़ गई है। हालांकि ये नाम संगठन की ओर से ही दिए जाएंगे, इसलिए अपने-अपने समर्थकों को एल्डरमैन बनाने के लिए नेता दम भी लगाएंगे। वहीं पिछले निगम चुनाव में किसी न किसी कारण से टिकट से वंचित रहे भाजपा नेता और वरिष्ठ नेताओं में से एल्डरमैन मनोनीत किए जा सकते हैं। प्रक्रिया कब से शुरू होगी, इसको लेकर अभी कोई तारीख तय नहीं की गई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि अब जब ऊपर से ही हरी झंडी मिल गई है तो जल्द ही सबकुछ तय हो जाएगा।
प्रदेश में अधिकांश निगम, मंडल और बोर्ड खाली पड़े हैं। एक समय था, जब नेताओं का बड़े निगम-मंडलों में बोलबाला हुआ करता था। कई आयोग भी खाली पड़े हैं, जिन पर अध्यक्षों की नियुक्ति की जाना है। वहीं भोपाल विकास प्राधिकरण अध्यक्ष सहित अन्य पद भी खाली पड़े हैं। इस पर भी अध्यक्ष सहित संचालक मंडल की नियुक्ति की जाना है। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार निगम-मंडलोंं के खाली पदों पर भी जल्द नियुक्ति करेगी। भोपाल में प्राधिकरण अध्यक्ष के लिए कई दावेदार हैं तो संचालक मंडल में आने के लिए भी कई भाजपा नेता आतुर हैं। इनमें कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए कई नेता शमिल हैं।

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