- अबकी बार 200 पार का रोडमैप तैयार
- हरीश फतेहचंदानी
भाजपा ने गुजरात की तरह मप्र में भी रिकॉर्ड जीत का रोड मैप तैयार कर लिया है। इस रोड मैप के अनुसार पार्टी ने 51 फीसदी वोट के साथ 200 पार का जो लक्ष्य बनाया है, उसे दलित और आदिवासियों के साथ पूरा किया जाएगा। गौरतलब है की मार्च 2020 में सत्ता में वापसी के बाद से ही भाजपा ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को साधना शुरू कर दिया था। इन तीन सालों में सत्ता और संगठन ने इन दोनों वर्गों में इतनी पैठ बना ली है जिससे, पार्टी को उम्मीद है की इस बार के चुनाव में यह वर्ग खुलकर भाजपा का साथ देगा और पार्टी गुजरात से भी बड़ी जीत हासिल करेगी। गौरतलब है कि गुजरात में आदिवासी और दलित मतदाताओं ने भाजपा को भरपूर समर्थन दिया है।
गौरतलब है की प्रदेश में एससी और एसटी का बड़ा वोट बैंक है। प्रदेश में 47 सीटें आदिवासियों के लिए और 35 सीटें दलितों के लिए सुरक्षित हैं। कहा जाता है कि ये 82 सीटें ही सत्ता की राह तय करती हैं। वैसे प्रदेश में आदिवासी और दलित मतदाता करीब 125 सीटों पर निर्णायक प्रभाव डालते हैं। इसलिए प्रदेश की राजनीति में हर पार्टी की कोशिश है की इन दोनों वर्ग के बीच पैठ बढ़ाई जाए। वैसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का अपने पहले कार्यकाल से इन दोनों वर्गों पर फोकस रहा है। प्रदेश की अधिकांश योजनाएं इन्हीं वर्गों को केंद्रित कर बनाई गई हैं। चौथी पारी में तो सरकार का पूरा फोकस इन पर ही है। इसलिए भाजपा को उम्मीद है की अबकी बार 200 से अधिक सीटों पर जीत आसानी से मिल सकती है। इस कारण से सत्ता और संगठन ने अपनी सारी ताकत दलित और आदिवासी समुदाय को रिझाने में झोंक दी है। भाजपा ने 11 अप्रैल को महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती से लेकर लगातार सामाजिक समरसता का अभियान चला रखा है। इस अभियान के तहत 14 अप्रैल को बाबा साहब अंबेडकर की जन्म स्थली महू में मुख्यमंत्री के मौजूदगी में दलितों के लिए बड़ा कार्यक्रम किया गया। इस श्रृंखला में आज ग्वालियर में एक लाख दलितों के हो रहे महाकुंभ में सीएम शिवराज सिंह चौहान , श्रीमंत और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ संगठन के सभी शीर्ष नेता हिस्सा ले रहे हैं।
सामाजिक कार्यकर्ताओं को मिलेगा टिकट
मप्र में अबकी बार 200 पार के नारे को साकार करने के लिए भाजपा टिकट वितरण में सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी टिकट देगी। इसके लिए पार्टी ऐसे कार्यकर्ताओं को चिन्हित कर रही है जिनकी जनता के बीच पकड़ मजबूत हो। पार्टी सूत्रों का कहना है कि नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी ने सामाजिक संतुलन बनाकर टिकट दिया था। सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के तहत टिकट वितरण से निकाय चुनावों में भाजपा को बड़ी सफलता मिली थी। इसलिए अब विधानसभा चुनाव में भी भाजपा उसी फॉर्मूले को अपना सकती है। भाजपा सूत्रों को कहना है कि पार्टी ने 2018 के चुनाव से सबक लेते हुई इस बार चुनाव में टिकट बांटने के फार्मूले में बदलाव करने का निर्णय लिया है। पार्टी टिकट चयन में सिर्फ राजनीतिक कार्यकर्ताओं को शामिल न कर सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच से भी बेहतर छवि वाले लोगों को प्रत्याशी बनाएगी। पार्टी की तैयारी 10 से 15 प्रतिशत टिकट समाज के बीच काम करने वाले अच्छे लोगों को देने की है। इसके लिए भाजपा ने अपनी रणनीतियों पर काम करना शुरू कर दिया है।
जनकल्याणकारी योजनाओं की झड़ी …
मप्र में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग ने जब-जब भाजपा को समर्थन दिया है प्रदेश में पार्टी की सरकार बनी है। इसको देखते हुए सत्ता, संगठन और संघ का फोकस इन पर रहता है। 2018 में दलितों और आदिवासियों का समर्थन नहीं मिलने के कारण भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी थी। हालांकि पार्टी ने 2020 के बाद इन दोनों समुदायों में वापसी की। इसी वजह से 2020 के बाद होने वाले 31 विधानसभा और एक लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव में भी भाजपा ने आरक्षित वर्ग से अधिक से अधिक सीटें जीती। भाजपा इस समय अपना सारा जोर ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदाय को रिझाने में लगा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों के लिए पेसा एक्ट लागू कर जबरदस्त मास्टर स्ट्रोक खेला है। इसी तरह दलितों के लिए भी जनकल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लगाई गई है। भाजपा को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के पिछड़ा वर्ग से होने का और महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और राज्यपाल मंगू भाई पटेल के आदिवासी होने का भी लाभ मिल रहा है।
सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला
एक तरफ भाजपा विधानसभा चुनाव को देखते हुए अपने बेस को मजबूत कर रही है। दूसरी तरफ, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत अन्य शीर्ष नेता जातिगत समीकरणों का बैलेंस बनाने में भी जुटे हैं। इसके तहत एक तरफ एससी जातियों के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। वहीं, मुख्यमंत्री खुद भाजपा के दलित आइकॉन्स के लिए समर्थन दिखाने में जुटे हैं। इसके अलावा दलितों के करीब आने की कोशिश के तहत उनके घर पहुंचने की मुहिम भी चलाई गई। भाजपा जिस सामाजिक समरसता के फार्मूले को विधानसभा चुनाव में अपनाने जा रही है उसका नगरीय निकाय चुनाव में सफल प्रयोग हो चुका है। थिंक टैंक कहे जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विचार है कि आने वाले समय में राजनीति को भ्रष्टाचार, अहंकार और जनता से दूरी बनाकर रहने वाले नेताओं से मुक्त कर समाज के लोगों की भागीदारी बढ़ाना है। यही वजह है कि आने वाले चुनाव से भाजपा इस प्रयोग को करेगी।
संघ की गहरी पैठ
भाजपा के लिए सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट यह है कि संघ की दलित और आदिवासियों के बीच गहरी पैठ है। संघ परिवार के देशभर में एक लाख से अधिक सेवा प्रकल्प चल रहे हैं। इन सेवा प्रकल्पों के कारण दलितों और आदिवासियों में भाजपा का प्रभाव जबरदस्त रूप से बढ़ा है। संघ के अनुषांगिक संगठन लगातार इनके बीच सक्रिय रहते हैं। अभी हालही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मध्य क्षेत्र की महत्वपूर्ण बैठक इंदौर के केशव विद्यापीठ में संपन्न हुई। इसमें संघ के चारों प्रांतों के शीर्ष पदाधिकारियों के अलावा भाजपा के शीर्ष नेताओं ने हिस्सा लिया। संघ ने जनजातीय सुरक्षा मंच के माध्यम से धर्मांतरित ईसाइयों को आरक्षण देने के खिलाफ डिलिस्टिंग आंदोलन चला भी रखा है।