हाथी पर सवार भाजपाई बिगाड़ेंगे सत्ता का खेल

भाजपाई
  • ग्वालियर-चंबल अंचल में भाजपा के बागी बसपा से लड़ रहे चुनाव

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में सत्ता की तस्वीर बनाने वाले ग्वालियर-चंबल अंचल में इस बार भाजपा के लिए उसके बागी नेता परेशानी का सबब बन गए हैं। पार्टी ने जिन नेताओं को टिकट नहीं दिया है, उनमें से कई बसपा में शामिल हो गए हैं। यही नहीं बसपा ने उन्हें टिकट देकर मैदान में उतार दिया है। अब ये बागी भाजपाई अपनी पूर्व पार्टी के नेताओं की जीत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बन सकते हैं। दरअसल, प्रदेश में लगातार पांचवीं बार सरकार बनाने का सपना देख रही भाजपा में बागियों के हाथी की सवारी करने से बेचैनी बढ़ी है। भाजपा संगठन और उसके रणनीतिकार बगावत करने वाले अपनों को मनाने की आखिरी कोशिश कर रहे हैं। यह बात दीगर भाजपा का यह रास्ता आसान नहीं है, क्योंकि बागियों को बसपा से टिकट मिल चुका है।  ग्वालियर अंचल में पिछले चुनाव तक बसपा के मैदान में उतरने से कांग्रेस को नुकसान होता था, लेकिन उत्तर प्रदेश में जिस तरह से हाथी वाले दल की पोजीशन डाउन हुई है, उसके कारण अब कांग्रेस के साथ भाजपा को भी नुकसान हो रहा है।

बसपा का बड़ा वोट बैंक
राजनीतिक पंडित यह मान रहे हैं कि बसपा सुप्रीमो के सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले के तहत टिकट देने से उसका मूल वोटर अपने पुराने दल की ओर खिंचने लगा है। यही कारण है कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा को कोई महत्व नहीं दिया। लिहाजा बसपा ने प्रदेश में बड़ी तादाद में प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। बसपा के ज्यादातर प्रत्याशी वे हैं, जो दूसरे दलों से बगावत उसके पाले में आए हैं। इस बार हाथी की चाल ने कांग्रेस की तुलना में भाजपा को ज्यादा परेशान किया है। ऐसा इसलिए कि भाजपा से बगावत कर हाथी की सवारी करने वालों की संख्या ज्यादा है। हाथी की सवारी से भाजपा को होने वाले नुकसान से कैसे बचाया जाए, इसको लेकर पार्टी के रणनीतिकार मंथन कर रहे हैं। ग्वालियर-चंबल संभाग में मुरैना और भिंड जिला उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे हैं, जिसके कारण यहां बसपा का एक समय खासा प्रभाव था। बसपा की राजनीति में ऐसे प्रभाव तभी कारगर साबित होते हैं, जब कांग्रेस और भाजपा के नेता हाथी की सवारी करते हैं। इस बार बसपा ने अंचल में उन्हीं को मैदान में उतारा है, जो दूसरे दल से टिकट नहीं मिलने के बाद उनके पास आए हैं। अंचल में पहली बार देखा जा रहा है कि भाजपा से नाराज नेताओं ने ही बसपा में जाने का सफर तय किया है। जिस तरह से भाजपा से बगावत कर कई नेता बसपा में पहुंचे हैं और अब चुनावी मैदान में हैं, उससे होने वाले नुकसान से भाजपा भी अंजान नहीं है।

किसी ने बसपा तो कोई सपा और आप में
ग्वालियर-चंबल अंचल में भाजपा से टिकट नहीं मिलने से नाराज कई नेताओं ने बसपा, सपा या आप का दामन थाम लिया है और अपनी पूर्व पार्टी के लिए परेशानी खड़ी कर दिया है। भिंड में बसपा से भाजपा में आए विधायक संजीव सिंह कुशवाहा को जब टिकट नहीं मिला और उनके स्थान पर नरेन्द्र सिंह कुशवाह को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया, तो संजीव फिर बसपा में पहुंच गए और अब हाथी निशान पर चुनाव मैदान में हैं। मुरैना में भाजपा के पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह लंबे समय से टिकट का इंतजार कर रहे थे, लेकिन भाजपा के ही एक कद्दावर नेता उनको पसंद नहीं करते थे। लिहाजा उन्हें टिकट से वंचित होना पड़ा। रुस्तम ने अपने बेटे राकेश सिंह के लिए टिकट मांगा था, लेकिन भाजपा ने उनको टिकट नहीं दिया, तो पिता-पुत्र दोनों ने बसपा में चले गए। अब राकेश बसपा से चुनाव मैदान में हैं। भाजपा के पुराने नेता व पूर्व विधायक रसाल सिंह लहार से टिकट की दावेदारी कर रहे थे। जब उनके स्थान पर भाजपा ने अंबरीष शर्मा को उम्मीदवार बनाया, तो उन्होंने बगावत कर बसपा से चुनाव मैदान में उतर गए। अटेर में एक समय था, जब भाजपा के पूर्व विधायक मुन्ना सिंह भदौरिया के यहां भाजपा के बड़े नेताओं का आना लगा रहता था, क्योंकि मुन्ना सिंह के बड़े भाई भोला सिंह आरएसएस के बड़े पदाधिकारी थे। भाई के निधन के बाद मुन्ना सिंह को भाजपा ने दरकिनार कर दिया। वे इस बार भी अटेर से टिकट मांग रहे थे, लेकिन भाजपा ने प्रदेश सरकार के मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया पर दांव लगाया। नाराज मुन्ना भाजपा छोड़ सपा से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं चाचौड़ा से भाजपा की पूर्व विधायक ममता मीणा इस बार भी टिकट की दावेदारी कर रही थी, क्योंकि वह पिछले पांच साल से क्षेत्र में सक्रिय थीं। भाजपा ने टिकट जब प्रियंका मीणा को दे दिया, तो नाराज होकर वे चुनावी मैदान में कूद गई और भाजपा की मुश्किलें बढ़ा रही हैं।

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