भाजपा संगठन चुनाव: सांसद, मंत्री और विधायकों पर कड़ी नजर

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माननीयों के समर्थक-रिश्तेदार नहीं बनेंगे ओहदेदार

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। विधानसभा-लोकसभा चुनाव में मिली जीत के बाद अब भाजपा का पूरा फोकस संगठन चुनाव पर है। भाजपा में संगठनात्मक बदलाव के लिए संगठन चुनाव की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। फिलहाल बूथ स्तर पर भाजपा के सक्रिय सदस्यों को पदाधिकारी चुना जा रहा है। भाजपा के संगठन चुनाव पर केंद्रीय नेतृत्व की विशेष नजर है। इसके लिए जारी हाईकमान के निर्देश में कहा गया है कि बूथ, मंडल या जिलाध्यक्ष के चुनाव निष्पक्ष और सर्वसम्मति से होने चाहिए। विधायक या सांसद अपने समर्थक या रिश्तेदार को संगठन में बैठाने का प्रयास करें तो उसे सफल न होने दिया जाए। इसका सीधा आशय यही है कि कोई भी जनप्रतिनिधि संगठन को जेब में रखने यानी अपनी मर्जी से चलाने की कोशिश करेगा तो ऐसे प्रयास को विफल कर देना है। चुनाव से जुड़े प्रभारियों को भी स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि जनप्रतिनिधियों के घर बैठकर संगठन चुनाव की औपचारिकता नहीं निभाई जाए। इसकी वजह यह मानी जा रही है कि मप्र में सत्ता शीर्ष पर जो पीढ़ी परिवर्तन हुआ है, उससे संगठन प्रभावित नहीं हो। भाजपा के संगठन पर्व के तहत 14 नवंबर से बूथ कमेटी के चुनाव शुरू हो चुके हैं जो 20 नवंबर तक चलेंगे। भाजपा का संगठन पर्व पर हमेशा से ही सर्वाधिक फोकस रहता है। मप्र को लेकर केंद्रीय नेतृत्व विशेष तौर पर गंभीर रहता है। इसका कारण यह है कि मप्र का भाजपा संगठन पार्टी की प्रयोगशाला रही है। संगठन क्षमता यहां इतनी मजबूत है कि चुनाव हो या कोई अन्य चुनौती, पार्टी का प्रदर्शन सदैव श्रेष्ठ रहा है। यही वजह है कि पार्टी संगठन चुनाव में किसी तरह की कोई कोताही बरतना नहीं चाहती। स्व. कुशाभाऊ ठाकरे, प्यारेलाल खंडेलवाल, कैलाश जोशी और राजमाता विजयाराजे सिंधिया को प्रदेश में संगठन की मजबूत नींव रखने का श्रेय दिया जाता है।
नड्डा की कार्यशाला में बनेगी रणनीति
जानकारी के मुताबिक दिल्ली में संगठन चुनाव को लेकर आयोजित कार्यशाला पार्टी के नेताओं ने एक ही संदेश दिया जाएगा कि पार्टी अपनी ताकत का एहसास करने के लिए तैयार रहे। जिला स्तर तक कार्यशालाएं कराकर भाजपा इस बार के संगठन चुनाव को और मजबूत बनाएगी। राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार अगले 90 दिनों में भाजपा के जिला अध्यक्ष और प्रदेश अध्यक्ष में परिवर्तन को तय करने की रणनीति बनी है। इस कार्यशाला में भाजपा के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित अन्य राष्ट्रीय पदाधिकारियों और सभी प्रदेश अध्यक्षों सहित संगठन से जुड़े लगभग सवा सौ शीर्ष नेता शामिल होंगे। संगठन चुनाव के पहले चरण में 14 से 20 नवंबर तक संगठन चुनाव का पहला चरण पूरा हो जाएगा। इसमें बूथ कमेटियों का गठन हो जाएगा। मंडल और जिलाध्यक्ष के चुनाव से पहले 22 नवंबर को सभी राज्यों के चुनाव प्रभारियों की दिल्ली में बैठक होगी, जिसमें अगले चरणों की तिथि तय की जाएगी। पार्टी नेताओं का यह भी आंकलन है कि इस बैठक में राष्ट्रीय स्तर पर कार्यकारी अध्यक्ष की घोषणा हो सकती है।
जातीय समीकरण तय करेंगे जिलाध्यक्ष
भाजपा में संगठनात्मक चुनाव की गतिविधियों ने गति पकड़ ली है।  दिसंबर माह के अंत में जिलाध्यक्ष का चुनाव होना है। जिलाध्यक्ष पद के लिए अंचल के सभी जिलों में जोर आजमाइश शुरु हो गई है। जिला स्तर पर बूथ और मंडल के चुनाव होने के बाद प्रदेश का शीर्ष नेतृत्व जिलाध्यक्षों के नाम पर विचार करेगा। यह तय माना जा रहा है कि भाजपा जिलाध्यक्षों की नियुक्तियों में जातीय समीकरणों को साधने का प्रयास करेगी। वहीं जिलों में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए बड़े नेताओं ने अपने खेमों से नाम छांटना शुरु कर दिए हैं।
समर्थक-रिश्तेदारों को बैठाने से परहेज
पार्टी सूत्रों के मुताबिक इस पर भाजपा के संगठन चुनाव में विधायक-सांसदों पर कड़ी नजर है। स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि बूथ, मंडल या जिलाध्यक्ष के चुनाव निष्पक्ष और सर्वसम्मति से होने चाहिए। विधायक या सांसद अपने समर्थक या रिश्तेदार को संगठन में बैठाने का प्रयास करें तो उसे सफल नहीं होने दिया जाएगा। भाजपा पीढ़ी परिवर्तन की रणनीति पर काम कर रही है। इसका सीधा आशय यही है कि कोई भी जनप्रतिनिधि संगठन को जेब में रखने यानी अपनी मर्जी से चलाने की कोशिश करेगा तो ऐसे प्रयास को विफल कर देना है। पिछले संगठन चुनाव में बुंदेलखंड के एक विधायक ने अपने घर पर ही संगठन चुनाव की सारी प्रक्रिया पूरी करवा ली थी। बाद में शिकायत मिली तो नए सिरे से प्रक्रिया करवाई गई। महाकौशल और विध्य क्षेत्र में कुछ ताकतवर मंत्रियों ने भी अपने समर्थकों को ही पदाधिकारी बनवा दिया था। पार्टी चाहती है कि ऐसे किसी मामले की पुनरावृत्ति न हो। पिछली बार हुए चुनावों में अधिकांश विधायकों ने अपने चहेते कार्यकर्ताओं को मंडल अध्यक्ष बनवा लिया था। इसकी शिकायत दिल्ली तक हुई थी। तब शिकायतों के आधार पर प्रदेश संगठन ने कुछ मंडल अध्यक्ष भी बदले थे। इस बार संगठन सांसद, विधायकों और संगठन के जिले के नेताओं से चर्चा के बाद मंडल अध्यक्ष का निर्वाचन करेगा। पार्टी का प्रयास होगा कि सर्वसम्मति से अध्यक्ष का नाम तय हो और कहीं भी चुनाव की नौबत न आए।

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