विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। अगर बीते आधा दर्जन चुनावों पर नजर डालें तो, राजधानी भोपाल भाजपा का मजबूत गढ़ बन चुकी है, लेकिन जिस तरह से बीते चुनाव में कांग्रेस ने तीन सीटें जीती थीं, उससे भाजपा का यह गढ़ दरकता नजर आ रहा है। यही वजह है कि इस बार भाजपा के सामने अपने इस किले को बचाकर उसे मजबूत करने की चुनौती बनी हुई है, जबकि कांग्रेस के सामने पुरानी जीत को दोहराने की बड़ी चुनौती है। दरअसल भोपाल में कुल मिलाकर सात विस सीटें आती हैं। इनमें से छह शहरी हैं तो, एक पूरी तरह से ग्रामीण। छह में से दो सीट जरुर ग्रामीण और शहरी इलाके की मिली -जुली हंै। भोपाल के शहरी इलाके में दक्षिण-पश्चिम, भोपाल उत्तर, भोपाल मध्य और नरेला सीटें आती हैं। हुजूर और गोविंदपुरा को अर्ध-शहरी और बैरसिया को ग्रामीण क्षेत्र माना जाता है। इन सात में से तीन सीटों पर बीते चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। यही वजह है कि इस बार भाजपा भोपाल की सीटों को बेहद गंभीरता से ले रही है। भोपाल में इस बार कांग्रेस व भाजपा दोनों ही दल विद्रोहियों से परेशान है, जिसकी वजह से भाजपा व कांग्रेस दोनों को इस बार मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। बीते चुनाव में प्रदेश का भोपाल एकमात्र शहर था , जहां से एक साथ दो मुस्लिम चेहरों को विधायक बनने का मौका मिला था। इस चुनाव में भोपाल उत्तर से आरिफ अकील और भोपाल मध्य से आरिफ मसूद विधायक निर्वाचित हुए थे।
भोपाल मध्य: भाजपा व कांग्रेस के जीत के दावे
इस सीट के अस्तित्व में आने के बाद बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाताओं वाले भोपाल मध्य में 2008 और 2013 में लगातार दो बार भाजपा को जीत मिली, लेकिन बीते चुनाव में कांग्रेस के आरिफ मसूद ने तत्कालीन भाजपा विधायक सुरेंद्र नाथ सिंह को हराकर यह सीट जीत ली थी। मसूद इस बार भाजपा के ध्रुवनारायण सिंह के खिलाफ मैदान में हैं, जो 2008 में इस निर्वाचन क्षेत्र के अस्तित्व में आने के बाद इससे चुने जाने वाले पहले विधायक थे। ध्रुव इस सीट पर एक बार पहले भी विधायक चुने जा चुके हैं। इस बीच मसूद ने हिंदु मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ बनाई है। फिलहाल जीत किसे मिलेगी कहा नहीं जा सकता है।
गोविंदपुरा सीट: कांग्रेस दे रही चुनौती
करीब साढ़े चार दशक से इस सीट पर भाजपा ही जीतती आ रही है। इस सीट पर पूर्व में पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत बाबूलाल गौर ने आठ बार जीत दर्ज की है। इसके बाद उनकी पुत्रवधू और मौजूदा विधायक कृष्णा गौर भाजपा के टिकट पर दो बार जीत दर्ज कर चुकी हैं। वे इस बार फिर से मैदान मे हैं। उनका मुकाबला इस बार कांग्रेस के रविंद्र साहू से है। फिलहाल इस सीट को भाजपा के लिए सबसे अधिक आसान सीटों में माना जाता है।
नरेला सीट: पर क्या बन रहे समीकरण
भाजपा नेता और राज्य में मंत्री विश्वास सारंग नरेला सीट से अब तक अपराजित बने हुए हैं। यह सीट भी 2008 में अस्तित्व में आयी थी। उनका मुकाबला इस बार बीते चुनाव के प्रत्याशी की अपेक्षा अधिक मजबूत प्रत्याशी मनोज शुक्ला से है। मनोज बीते कई सालों से लगातार चुनाव की तैयारियों में लगे हुए थे। इस सीट पर आप ने रईसा मलिक को उम्मीदवार बनाया है। इसके अलावा कई निर्दलीय प्रत्याशी भी मैदान में हैं। इस सीट के चुनाव परिणाम इस बार मुशि£म मतदाताओं पर निर्भर होता दिख रहा है।
हुजूर सीट: भाजपा का गढ़
हुजूर सीट के 2008 में गठन के बाद से हुए सभी तीनों चुनावों में भाजपा ने जीत हासिल की है। दो बार के भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा इस बार फिर से मैदान में हैं, जबकि कांग्रेस ने नरेश ज्ञानचंदानी को फिर से मैदान में उतारा है, जो पिछली बार 16,000 से अधिक वोटों से हार गए थे। इस सीट पर विकास कामों के दम पर एक बार फिर से शर्मा को जीत की उम्मीद है। उधर, ज्ञानचंदानी को अपने समाज के मतदाताओं से उम्मीद बनी हुई है। फिलहाल ग्रामीण इलाके के मतदाता यहां पर निर्णायक रहने वाले हैं। यही वजह है कि दोनों ही प्रत्याशियों का जोर ग्रामीण इलाकों पर बना हुआ है।
भोपाल उत्तर, दक्षिण-पश्चिम, मध्य और नरेला में दिलचस्प लड़ाई
जानकारों का कहना है कि आरएसएस ने लगभग पांच दशक पहले भोपाल को उस समय अपनी प्रयोगशाला बनाया था, जब आरएसएस कार्यकर्ता जगन्नाथ राव जोशी को 1967 में भोपाल लोकसभा सीट से जनसंघ के टिकट पर मैदान में उतारा गया था। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार मैमूना सुल्तान को हराया था। भोपाल शहर और आसपास के इलाके पिछले तीन दशक में भाजपा का गढ़ बन गए हैं। लेकिन भोपाल उत्तर, भोपाल दक्षिण-पश्चिम, भोपाल मध्य और नरेला में चुनावी लड़ाई इस बार दिलचस्प हो गई है, क्योंकि कांग्रेस और भाजपा दोनों के उम्मीदवारों का राजनीतिक भविष्य जीत पर निर्भर है। शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और रोजगार के अवसर जैसे बुनियादी मुद्दे अभियान से गायब हैं। भाजपा की शहर इकाई के अध्यक्ष सुमित पचौरी ने शहर की सभी सीटें जीतने का भरोसा जताया, लेकिन स्वीकार किया कि भोपाल उत्तर में कड़ी प्रतिस्पर्धा है। पचौरी ने कहा कि भोपाल उत्तर, भोपाल मध्य और नरेला ऐसी सीट हैं जहां लोग सांप्रदायिक आधार पर वोट करते हैं। गोविंदपुरा और हुजूर भाजपा के गढ़ हैं, जबकि वह भोपाल दक्षिण-पश्चिम सीट भी वापस ले लेगी।
भोपाल उत्तर: कांग्रेस की मुश्किल
बीते चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। इस सीट को आरिफ अकील की परंपरागत सीट माना जाता है। इस सीट पर इस बार कांग्रेस ने उनके बेटे आतिफ अकील को टिकट दिया है। इस बीच पार्टी के ही दो बड़े नेता विद्रोह कर मैदान में उतर गए हैं। इनमें से एक तो आरिफ अकील के भाई हैं, तो दूसरे कांग्रेस नेता नासिर इस्लाम शामिल हैं। इस सीट पर भाजपा ने अपने प्रत्याशी पूर्व महापौर आलोक शर्मा को बहुत पहले ही मैदान में उतार दिया था। उधर, आप ने भी इस सीट से पार्षद मोहम्मद सउद को मैदान में उतारा है। कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले भोपाल उत्तर में इस बार दिलचस्प सियासी जंग देखने को मिल रही है। गौरतलब है कि 1990 के बाद पहला चुनाव है, जब छह बार के विधायक आरिफ अकील स्वास्थ्य कारणों से चुनाव नहीं लड़ रहे और कांग्रेस ने उनकी जगह उनके बेटे आतिफ अकील को मैदान में उतारा है। आरिफ यहां केवल एक बार 1993 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भाजपा उम्मीदवार से हारे थे।
05/11/2023
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