भाजपा ने मठाधीशों को दी जिम्मेदारी

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गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में भाजपा इस बार का चुनाव कई स्तरों पर लड़ रही है। इसके पीछे पार्टी का मकसद है कि कोई भी ऐसा अवसर छूट न जाए जिससे जीत का रिकॉर्ड बनाने का मौका चुक न जाए। इसी कड़ी में पार्टी ने क्षत्रप फॉर्मूला भी अजमान की रणनीति बनाई है। इसके तहत पार्टी ने क्षेत्रीय कद्दावर नेताओं को आगे करके चुनाव लडऩे का फैसला किया है। यानी जो नेता जिस क्षेत्र से आता है, उसकी लोकप्रियता को उसी क्षेत्र में भुनाया जाएगा। कह सकते हैं कि चुनावी मोर्चे पर अग्रिम योद्धा क्षेत्रीय क्षत्रप ही रहेंगे। इस रणनीति के तहत पार्टी ने मठाधीशों को जिम्मेदारी दी है। यानी पार्टी के उम्मीदवारों को अपने क्षेत्र में जिताने की जिम्मेदारी मठाधीशों पर रहेगी। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर किसी मठाधीश यानी पार्टी के दिग्गज नेता को उसके क्षेत्र में जिम्मेदारी दी जाएगी तो उसका चुनाव पर काफी असर दिखेगा। इसलिए क्षत्रपों को उन्हीं के क्षेत्र में चुनावी जिम्मेदारी सौंप दी गई है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल सिंह आर्य को ग्वालियर-चंबल अंचल में सक्रिय किया गया है। भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय मालवांचल में मैदानी जमावट करेंगे, तो महाकौशल में केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रहलाद पटेल और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह मोर्चा संभालेंगे। विंध्य अंचल की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी विधायक राजेंद्र शुक्ल को दी गई है। बुंदेलखंड को केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार संभालेंगे, जबकि मध्य भारत क्षेत्र में मैदानी जमावट के साथ मुख्यमंत्री पूरे प्रदेश में दौरे करेंगे।
विजयवर्गीय साधेंगे मालवा-निमाड़
मप्र की राजनीति में मालवा-निमाड़ का किंग मेकर माना जाता है। इसलिए भाजपा-कांग्रेस के साथ ही सभी पार्टियों की नजर मालवा-निमाड़ पर रहती है। इस क्षेत्र से जिस राजनीतिक दल को बढ़त मिलती है, उसका सत्ता के शीर्ष तक पहुंचना तय माना जाता है। 66 विधानसभा सीटों वाले इस क्षेत्र से पार्टी के पक्ष में परिणाम लाने की जिम्मेदारी पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को सौंपी गई है। भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनाव में 66 में से 57 सीटें जीतीं थीं और 2018 के चुनाव में 27 सीटों पर सिमट गई थी। अनुसूचित जनजाति वर्ग बहुल सीटों पर भाजपा को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा था। खरगोन, बुरहानपुर और अलीराजपुर आदि जिलों में एक भी सीट भाजपा को नहीं मिली थी। वहीं धार, झाबुआ, बड़वानी और शाजापुर में एक-एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था। बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में जब मार्च 2020 में चौथी बार सरकार भाजपा ने बनाई तो इस क्षेत्र में मिशन 2023 को लेकर रणनीति पर काम शुरू कर दिया था। मालवा-निमाड़ की एसटी मतदाता बहुल 22 सीटों पर भाजपा सरकार और संगठन चरणबद्ध तरीके से सक्रिय हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मालवा-निमाड़ में लगातार दौरे चल रहे हैं। विजयवर्गीय की क्षेत्र में पकड़ है और कार्यकर्ताओं से सीधा संपर्क और संवाद है। नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए वे अलग-अलग क्षेत्रों में बैठक भी कर चुके हैं। पार्टी ने उन्हें पूरे मालवांचल में दौरा करने के निर्देश दिए हैं।
ग्वालियर-चंबल पर सबसे अधिक फोकस
2018 के विधानसभा चुनाव के परिणामों के आधार पर भाजपा ने अपना सबसे अधिक फोकस ग्वालियर-चंबल पर कर रखा है। दरअसल, भाजपा ग्वालियर-चंबल अंचल को बड़ी चुनौती मान रही है। वर्ष 2018 के चुनाव में इस अंचल की 34 में से भाजपा को केवल सात सीटें मिली थीं। जबकि 27 सीटें कांग्रेस ने जीतीं थीं। यह तस्वीर 2013 के चुनाव से एकदम अलग थी। तब भाजपा को 20 और कांग्रेस को 12 सीटें मिली थीं। भाजपा की सीटों में कमी की मुख्य वजह एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन को लेकर हुए आंदोलन के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया के चेहरे के जादू को भी माना गया। कांग्रेस ने कमलनाथ और सिंधिया के चेहरे पर ही पिछला चुनाव लड़ा था। भाजपा ने इस चुनाव में दोनों ही कमियों को पूरा करने की कोशिश की है। इस बार सिंधिया भाजपा के साथ हैं। वहीं सागर में संत रविदास मंदिर के लिए भूमिपूजन करके अनुसूचित जाति वर्ग को भी साधने की कोशिश की है। इसके अलावा इस अंचल के कद्दावर नेताओं नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और लाल सिंह आर्य को पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं को संगठित करके रखने और वोट प्रतिशत बढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। तोमर और सिंधिया क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। सिंधिया ने पिछले दिनों क्षेत्र में विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों में भी भाग लिया।
विंध्य की जिम्मेदारी राजेंद्र शुक्ल को
कभी कांग्रेस का गढ़ रहा विंध्य वर्तमान में भाजपा का गढ़ बना हुआ है। 2018 के चुनाव में विंध्य में भाजपा विंध्य की 30 सीटों में से भाजपा ने 24 सीटें जीतीं थीं। पार्टी इस अंचल में भी मालवा-निमाड़ जैसी ही कसरत कर रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कार्यक्रम क्षेत्र में हो चुके हैं। विंध्य अंचल की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी विधायक राजेंद्र शुक्ल को दी गई है। ये इस क्षेत्र में अच्छा प्रभाव रखने वाले नेता हैं। पिछले दिनों पूर्व विधायक अभय मिश्रा को पार्टी की सदस्यता दिलाई गई है। मऊगंज को जिला बनाकर भी सियासी दांव खेला गया है। इसके पीछे विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम और प्रदीप पटेल की बड़ी भूमिका रही है।
महाकौशल-बुंदेलखंड में भी खासी कसरत
भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती महाकौशल क्षेत्र है। 2018 में महाकौशल में कांग्रेस आगे रही थी। महाकौशल में कांग्रेस ने 38 में से 24 सीटें जीतकर भाजपा को पराजित किया था। इसलिए भाजपा को महाकौशल में खासी कसरत करनी पड़ रही है। महाकौशल में केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रहलाद पटेल और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह को सक्रिय किया गया है। बुंदेलखंड में भाजपा मजबूत स्थिति में है। यहां केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार सहित शिवराज सरकार के मंत्रियों को संगठन ने सक्रिय किया है।

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