छोटे दलों के मतों पर भी…भाजपा का हुआ कब्जा

भाजपा

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश के चुनावों में जारी दो दलीय व्यवस्था एक बार फिर से मजबूत हो गई है। इस बार भाजपा के पक्ष में चली साइलेंट लहर की आंधी में क्षेत्रीय व छोटे दलों को भी कांग्रेस की  ही तरह भारी नुकसान को उठाना पड़ा है। भाजपा को पिछले चुनाव की तुलना में इस बार साढ़े सात फीसदी से अधिक मत मिले हैं। इसकी वजह से प्रदेश में तीसरे दलों का तो खाता ही नहीं खुला है, साथ ही प्रदेश के क्षेत्रीय दल भी पूरी तरह से बेअसर साबित हुए हैं। इस बार महज एक सीट पर ही अन्य दल को जीत मिल सकी है। यह जीत भी उस दल को मिली है , जो पहली बार चुनावी मैदान में उतरी थी।
भारतीय जनता पार्टी ने अपने वोट प्रतिशत में अभूतपूर्व वृद्धि की है। उसे 2.11 करोड़ वोट मिले है जो 48.55 प्रतिशत है।  इस तरह उसके 2018 के वोट प्रतिशत 41.02 के मुकाबले 7.53 प्रतिशत अधिक वोट मिले। वहीं, कांग्रेस को 40.40 प्रतिशत यानी 1.75 करोड़ वोट मिले। उसके वोट  में 0.49 प्रतिशत की मामूली गिरावट आई है। चुनाव के आंकड़ों के गणित में कमाल की बात यह है कि सात प्रतिशत से कुछ अधिक प्रतिशत वोट बढ़ते ही भाजपा की सीटें 163 पर पहुंच गई अर्थात 2018 में मिली सोटो से 54 सीटें बढ़ गईं, जबकि कांग्रेस के वोट प्रतिशत में आधा प्रतिशत गिरावट से वह 66 सीटों पर सिमट गई। इससे पहले 1977 की जनता लहर में जनसंघ को 47.28 प्रतिशत वोट मिले थे। 2003 में जब भाजपा सत्ता में आई थी तब उसका वोट प्रतिशत 31.6 प्रतिशत था।
भाजपा के पास अब एक दर्जन राज्य
भाजपा अब 12 राज्यों में सत्ता में है जबकि तीन राज्यों के साथ कांग्रेस उत्तर भारत में अब तक की सबसे खराब स्थिति में पहुंच गई है। देश की 57 प्रतिशत जनसंख्या और 58 प्रतिशत क्षेत्रफल पर भाजपा का राज है। लोकसभा चुनाव से बमुश्किल चार महीने पहले रविवार को मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की बुरी हार हुई। अब उत्तर में वह केवल हिमाचल में सत्ता में है। दक्षिण में उसके हाथ कर्नाटक के बाद तेलंगाना आ गया है। जब सोनिया गांधी ने पार्टी अध्यक्ष का पद संभाला था तब आखिरी बार कांग्रेस केवल एक हिंदी भाषी राज्य में 1998 में सत्ता में थी। और पंजाब में अपनी सरकार के साथ आम आदमी पार्टी (आप) राष्ट्रीय दलों में तीसरे स्थान पर है।
कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटा
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में कांग्रेस को मध्यप्रदेश में 48.87 प्रतिशत वोट मिले थे। यह प्रतिशत घटकर 2018 में 41 पर आ गया था।  इस बार यह इससे भी नीचे चला गया है। चुनावों में जिस तरह 2019 और 2014 और इससे भी पहले सीधा मुकाबला भाजपा-कांग्रेस में था, उसी तरह विधानसभा चुनावों में भी नतीजे आए हैं। बसपा व सपा को कोई सीट नहीं मिली। एक सीट नई पार्टी भारतीय आदिवासी पार्टी को मिली, जिसके कमलेश्वर डोडियार चुनाव जीते। 2018 में वे निर्दलीय चुनाव लड़े थे। पिछले चुनावों में दो सीटें जीतने वाली बसपा चार सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। निर्दलीयों के मत प्रतिशत को भाजपा ने निगल लिया है।

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