- आदिवासी वोट बैंक का मिल सकता है समर्थन
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। भले ही प्रदेश में जयस नेता अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने का दावा कर चुके हैं, लेकिन जिस तरह से उसके नेताओं में मतभेद सामने आ रहे हैं, उसका फायदा उठाने में कांग्रेस व भाजपा के रणनीतिकार पीछे नहीं रहना चाहते हैं। यही वजह है कि बीते चुनाव में जहां कांग्रेस ने जयस के बड़े नेता हीरालाल अलावा को पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतारा था, जिसका फायदा कांग्रेस को मिला था। इससे सबक लेते हुए इस बार भाजपा भी इस मामले में पीछे नहीं रहना चाहती है। माना जा रहा है कि दो माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा भी जयस के कुछ प्रभावशाली नेताओं को अपने टिकट पर चुनाव में उतार सकती है। इससे जहां जयस नेताओं को फायदा होगा , तो भाजपा को भी आदिवासी मतदाताओं का साथ मिल जाएगा। इसकी वजह है जयस की मालवा निमाड़ अंचल के अनुसूचित जनजाति वर्ग में मजबूत पकड़ बना लेना। यह बात अलग है कि अब तक जयस नेता आपसी फूट के बाद भी इस बार किसी भी राजनीतिक दल को समर्थन नहीं देने का दावा कर रहे हैं , लेकिन राजनीति में कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता है। जयस सूत्रों के अनुसार संगठन ने तय किया है कि संगठन के जो नेता दूसरे दलों के साथ मिलकर चुनाव में उतरेंगे, उनका भी संगठन पूरी तौर पर खुलकर समर्थन नहीं करेगा। इसके बाद भी कुछ जयस नेताओं के नाम अभी से कांग्रेस और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए चर्चा में आ रहे हैं। इसके अलावा जयस भी अपने स्तर पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। इसके तहत जयस नेता बतौर निर्दलीय मैदान में उतरेंगे। यह बात अलग है कि प्रदेश में हमेशा से चुनावी मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच ही होता आया है, लेकिन बीते कुछ सालों में जयस ऐसा संगठन बन चुका है जिसकी अपने समाज पर बेहद मजबूत पकड़ बन चुकी है। यही पकड़ भाजपा व कांग्रेस के लिए चिंता की वजह बनी हुई है। राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि जयस जैसा संगठन कांग्रेस एवं भाजपा की चुनावी रणनीति का हिस्सा बन चुका है। इसे युवाओं का संगठन माना जाता है। इसकी कमान भी युवाओं के पास ही है। बीते चुनाव में जयस का लाभ कांग्रेस ले चुकी है, इस वजह से माना जा रहा है कि इस बार भाजपा भी जयस के नेताओं को प्रत्याशी बनाने की राह खोल सकती है।
जयस की सियासी ताकत
फिलहाल प्रदेश में अभी जयस के खाते में एक विधायक हीरा लाल अलावा के रुप में है। वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे। बीते साल पंचायत चुनाव में करीब 1000 करीब सरपंच, 43 समर्थक जिला पंचायत सदस्य, 127 समर्थक जनपद सदस्य चुनकर आए थे। 47 आरक्षित सीट हैं। जबकि 35 सामान्य सीटें ऐसी हैं, जहां समाज ज्यादा संख्या में है। यानी जयस 82 सीटों पर चुनावी रणनीति तैयार कर रहा है। हालांकि नेताओं में फूट की वजह से कई नेता राजनीतिक दलों के पाले में जा सकते हैं। कुछ नेताओं से दलों का संपर्क भी हो चुका है।
सामान्य सीटों पर भी जयस
जयस अनुसूचित जनजाति बाहुल्य सामान्य सीटों पर भी प्रत्याशी उतार सकती है। फिलहाल गुना जिले की 3 सीटों के नाम सामने आए हैं। जिनमें चाचीड़ा से पंचम भील, राधौगढ़ से मर्दन भील और बमौरी से रणविजय भूरिया (जयस जिलाध्यक्ष) के नाम सामने आए हैं। तीनों जयस के सदस्य हैं। इसके अलावा नरसिंहपुर जिले की गाडरवारा सीट से चंद्रभान धुर्वे, सिवनी- मालवा सीट से लक्ष्मण पर्ने उत्तर सकते हैं। पिछले चुनाव निर्दलीय 17 हजार करीब वोट मिले थे। डिंडौरी जिला पंचायत सदस्य रुद्रेश परस्ते डिंडौरी सीट से उतर सकते हैं।
भाजपा के संपर्क में कई नेता
सूत्रों की मानें तो जयस के एक गुट के 4 बड़े नेता भाजपा के भी संपर्क में बने हुए है। इनमें मांगीलाल इकवाले बड़वानी जिले की राजपुर सीट से कांग्रेस के बाला बच्चन के खिलाफ चुनाव में उतर सकते हैं। वे आदिवासी अधिकारी कर्मचारी संगठन आकाश के सदस्य है और वैज्ञानिक हैं। इसी तरह डॉ हितेश मुजाल्दे खरगोन जिले की भीकनगांव सीट से उतर सकते हैं। पेशे से पटवारी नितेश अलावा अलीराजपुर जिले की जोवट सीट से प्रत्याशी हो सकते हैं। अनिल अलावा धार जिले की गंधवानी सीट से कांग्रेस के उमंग सिधार के खिलाफ मैदान में उतर सकते है। जिला पंचायत सदस्य केसू निलामा भी सैलाना सीट से उतर सकते हैं। चार ही नहीं किया है। मनावर से जयस समर्थक लालसिंह वर्मन भी निर्दलीय या भारत राष्ट्र समिति (बीआरसी) से चुनाव मैदान में उत्तर सकते हैं।