27 क्षेत्रों में भाजपा हुई राजनैतिक रूप से विधवा

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  • धर्म संकट में दरी उठाने वाले भाजपाई, बिकाऊ चलेगें या टिकाऊ

    भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम।
    वक्त है बदलाव का नारा देने वाली भाजपा की सरकार और केन्द्रीय संगठन में कहीं कोई बदलाव हुआ हो या नहीं , लेकिन इस नारे पर मप्र की पूरी भाजपा सरकार व संगठन पूरी तरह से चलती दिख रही है। यही वजह है कि इस बदलाव की बयार के बीच अब यह तो तय हो गया है कि भाजपा में दरी बिछाने वाले कार्याकर्ताओं के लिए कोई जगह नहीं बची है। सालों की मेहनत के बाद अपने आप को तरासने और पार्टी की नीति व रीति में ढालने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं में अब पार्टी की सत्ता को लेकर बढ़ती भूख और सिद्दांतों को तिलाजंली देकर बढ़ता विजयी भाव निराशा की वजह बनता जा रहा है। इसकी वजह से निराश कार्यकर्ता अपनी ही पार्टी के आला नेताओं व रणनीतिकारों को दमोह उपचुनाव में पार्टी को करारी हार का उपहार देकर चेतावनी दे चुके हैं , इसके बाद भी पार्टी में बाहरी नेताओं को बुलकार उनके सिर पर ताज रखने का क्रम बना हुआ है।
     यही वजह है कि अब तो यहां तक कहा जा रहा है कि दो साल बाद 2023 में होने वाले आम विधानसभा चुनाव में यह नई 27 सुहागिनें दरी बिछाऊ निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ताओं के लिए भारी दिक्कत देनी वाली साबित होनी वालीं हैं। यह वे नई सुहागिनें हैं जो बीते डेढ़ साल में अपने दल को छोड़कर भाजपा में आयी हैं और भाजपा में आने के बाद उनका नई बहू की तरह स्वागत करते हुए उन्हें सरकार के तमाम विभागों का न केवल मुखिया बना दिया गया है , बल्कि उनके हाथ में सत्ता की अपने -अपने इलाकों की तिजोरी भी सौंप दी गई है।
    इसकी वजह से कई दशकों से पार्टी के लिए विरोध के साथ ही व्यक्तिगत दंश झेल रहे कार्यकर्ताओं को अब इन सुहागिनों के करीबीओं की कृपा की दरकार बनने लगी है। इसकी वजह से अब यह भी कयास लगने लगे हैं कि भाजपा में बिकाऊ चलेगें या फिर टिकाऊ। हालत यह हो गई है कि भले ही जरुरत न हो लेकर अगर विपक्षी दल को कोई नेता मिल जाता है तो भाजपा उसके लिए पलक पांवड़े बिछाने में कोई गुरेज नहीं करती है। इसका उदाहरण दमोह के राहुल लोधी बाद अब बड़वाह विधायक सचिन बिड़ला हैं।  इन विधायकों के दलबदल की वजह से न तो सत्ता पर कोई प्रभाव पड़ना था और न ही संगठन पर, फिर भी बड़ा दांव लगाया जा रहा है। बिड़ला ऐसे 27 वें बिधायक बन गए हैं जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं। प्रदेश में इसकी शुरूआत बीते साल मार्च में हुई थी, तब से यही क्रम बना हुआ है।  भाजपा को बिड़ला पर दांव ऐसे समय लगाना पड़ा है, जब उनके संसदीय क्षेत्र ख्ांडवा लोकसभा क्षेत्र में उपचुनाव हो रहा है।
    बिड़ला के भाजपा में आने से भले ही भाजपा को इस सीट पर फायदा नजर आ रहा हो , लेकिन प्रदेश की भाजपा और सरकार को लेकर प्रदेश में सवाल खड़ा होना शुरू हो गए हैं। सरकार अगर अच्छा काम कर रही थी और संगठन ने बेहतर प्रत्याशी मैदान में उतारा था , तो आखिर उसे कांग्रेस विधायक की जरुरत क्यों पड़ गई। उधर इस मामले में कांग्रेस के साथ ही उसके प्रदेश में एक मात्र कर्ताधर्ता कमलनाथ की संगठन क्षमता पर भी सवाल और गंभीर होते जा रहे हैं। इसकी वजह है कि प्रदेश में पहली बार ऐसा हुआ है कि पहले एक साथ श्रीमंत के साथ उनके समर्थक 22 विधायकों ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया था और उसके बाद लगातार कोई न कोई कांग्रेस विधायक कांग्रेस को अलविदा कह रहा है। यह क्रम बीते डेढ़ साल से बदस्तूर जारी है। यही वजह है कि आम विधानसभा चुनाव में वर्ष 2018 में 114 चुनाव जीतने वाली कांग्रेस के पास अब महज 94 विधायक ही रह गए हैं और वह सत्ता की जगह विपक्ष में बैठने को मजबूर बनी हुई है।
    यह नेता कर चुके हैं दलबदल
    कमलनाथ सरकार व कांग्रेस की कार्यप्रणाली से नाराज चल रहे जिन नेताओं ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामा हैं उनमें गांविद सिंह राजपूत, तुलसी सिलावट, प्रद्युम्न सिंह तोमर , इमरती देवी, मेंन्द्र सिंह सिसौदिया, डां प्रभुराम चौधरी  , ऐेंदल सिंह कंसाना, रघुराज सिंह कंषना, गिर्राज दंडोतिया, कमलेश जाटव, ओपीएस भदौरिया, रणवीर सिंह जाटव, मुन्ना  लाल गोयल, रक्षा संतराम सिरोनिया, जसमंत जाटव , सुरेश धाकड़, जजपाल सिंह जज्जी, बृजेन्द्र सिंह यादव, बिसाहू लाल सिंह, मनोज सिंह पटेल, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, हरदीप सिंह डंग, प्रद्युम्नसिंह लोधी, सुमित्रा देवी, नारायण पटेल , राहुल लोधी और अब सचिन बिड़ला शामिल हैं।
    उपचुनाव का बन रहा है लगातार इतिहास
    प्रदेश की यह विधानसभा को इस बार उपचुनावों के लिए याद किया जाएगा। इस विधानसभा में अब तक 31 सीटों पर उपचुनाव हो चुके हैं और एक और सीट के लिए उपचुनाव होना लगभग तय माना जा रहा है। प्रदेश में इस विधानसभा का पहला उपचुनाव छिंदवाड़ा सीट से शुरू हुआ था। इस सीट के विधायक दीपक सक्सेना ने मुख्यमंत्री कमलनाथ के  लिए इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद दूसरा उपचुनाव भाजपा के गुमान सिंह डामोर के सांसद निर्वाचित होने के बाद झाबुआ विधायक पद से इस्तीफा देने की वजह से हुआ था।  इसके बाद से तो प्रदेश में उपचुनाव की बाढ़ सी आ गई।
    बिकाऊों  की वजह से भाजपा  में खदबदाने लगा असंतोष
    जिस तरह से भाजपा में आयतित लोगों को लाया जा रहा है उसकी वजह से भाजपा के कार्यकर्ताओं में तो ठीक बड़े नेताओं तक में असंतोष खदबदाना शुरू हो गया है। यही वजह है कि अब भाजपा के विधायक तक अपना विरोध सोशल मीडिया से लेकर सार्वजनिक रूप से करने में पीछे नही रह रहे हैं। पहले से नाराज चल रहे विधायक द्वय अजय विश्नोई, नारायण त्रिपाठी व राकेश गिरी के बाद अब इनमें पूर्व मंत्री कुसुम मेहदेले और ध्रुव नारायण सिंह का नाम भी शामिल हो गया है। इन दोनों ही नेताओं ने आज ट्वीट किए हैं। इनमें मेहदेले ने अपने ट्वीट में लिखा है कि पौराणिक कथाओं में है कि भस्मासुर को कोई नहीं मार पाया था , स्वत: ही अति प्रसन्नता में नृत्य करते हुए स्वयं ही कठोर तपस्या से प्राप्त वरदान से भस्म होकर मर गया था। उनके इस ट्वीट को अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता व संगठन पर हमला माना जा रहा है। इसी तरह से एक अन्य ट्वीट पूर्व विधायक ध्रुव नारायण सिंह द्वारा किया गया है। जिसमें उनके द्वारा लिखा गया है कि सलीके से झूठ बोलना जिसकी आदत में आ जाता है होता यूं है कि फिर वो शख्स सियासत में आ जाता है। दन दोनों ही ट्वीट के राजनैतिक पंडितों द्वारा अपने-अपने तरीके से मायने निकाले जा रहे हैं , लेकिन तय है कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।

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