
- मिशन 2023 के लिए पंचायत व निकाय चुनाव माने जा रहे सेमी फाइनल
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। त्रिस्तरीय पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव भाजपा व कांग्रेस के लिए करो या मरों वाले बन गए हैं। इसकी वजह है प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा के आम चुनाव । इन आम चुनावों को दोनों ही दलों ने मिशन 2023 का नाम दिया हुआ है। इसकी वजह से पंचायत व नगरीय निकाय चुनावों को विस चुनाव से पहले सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। यही वजह है की अभी से दोनों ही दलों के संगठन द्वारा पूरी ताकत लगाने की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। दोनों ही दलों ने निकाय चुनाव तो ठीक पंचायत चुनावों में अपने विधायकों को अधिक से अधिक से समर्थकों को जिताने का जिम्मा सौंप दिया है। खास बात यह है की प्रदेश में पंचायत चुनाव गैरदलीय आधार पर होते हैं। इन चुनावों में जिस भी दल को जीत मिलेगी उसके लिए विधानसभा चुनाव के लिए माहौल बन जाएगा। इसी वजह से ही भाजपा और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को मैदानी स्तर पर मोर्चा संम्हालने के लिए तैनात किया जा रहा है। भले ही पंचायत चुनाव गैर दलीय आधार पर होते हैं लेकिन इसमें राजनीतिक दलों का पूरा-पूरा दखल रहता है। यही नहीं ग्रामीणों को यह भी पता रहता है की कौन से प्रत्याशी किस दल का समर्थक है और उसके पक्ष में किस दल के समर्थक प्रचार कर रहे हैं। यही नहीं जनपद और जिला पंचायत के चुनाव में तो पार्टियां खुलकर अपने समर्थकों को न सिर्फ चुनाव मैदान में उतारती हैं, बल्कि उन्हें जिताने के लिए दलों का संगठन पूरी ताकत लगा देता है। दरअसल, इन्ही चुनावों से माहौल बनने के साथ ही विधानसभा व लोकसभा चुनावों के लिए दलों का ताकत मिलती है। यही वजह है कि भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा सहित वरिष्ठ नेताओं ने तो वहीं कांग्रेस की ओर से कमलनाथ के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी मोर्चा संभाल रहे हैं। मुख्यमंत्री ने मंत्रियों को प्रभार और गृह जिले में स्थानीय निकाय के चुनाव की जिम्मेदारी दी है, तो वहीं भाजपा संगठन द्वारा जिलों के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिए गए हैं। यही नहीं प्रत्याशी चयन में आम राय बनाने पर भी सर्वाधिक जोर दिया जा रहा है। इसकी वजह है यदि इन चुनाव में कार्यकर्ताओं के बीच मतभेद हुए तो उसका नुकसान पार्टी को उठाना पड़ सकता है। उधर, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ ने भी विधायकों को यह चुनाव विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल की तरह लेने के निर्देश देते हुए उन्हें अपने क्षेत्र के साथ पड़ोसी विधानसभा की जिम्मेदारी भी दी है। कांग्रेस द्वारा प्रत्याशी चयन के लिए जिला समितियां बना दी गई हैं, जो सहमति के आधार पर नाम तय करेंगी। फिलहाल दोनों ही दल अपने पक्ष में माहौल बनाने की तैयारी में लगे हुए हैं।
देर रात तक चली आरक्षण की प्रक्रिया
25 मई को देर रात तक आरक्षण की प्रक्रिया चलती रही जिसकी रिपोर्ट बीती देर रात तक पंचायतराज संचालनालय आती रही। अभी तक आयी रिपोर्ट के मुताबिक जिला पंचायत सदस्य के लिए हुए आरक्षण में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 140, अनुसूचित जनजाति के लिए 231 और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 98 सीटों का आरक्षण किया गया है। 406 सीट अनारक्षित हैं। 2014-15 के चुनाव में जिला पंचायत में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 136, अनुसूचित जनजाति के लिए 222, अन्य पिछड़ा वर्ग 168 और अनारक्षित सीटें 315 थीं। इसी तरह सरपंच पद के लिए अभी तक संचालनालय को 22 हजार 424 पंचायतों की जानकारी प्राप्त हुई। हैं। इसमें तीन हजार 302 अनुसूचित जाति, सात हजार 837 अनुसूचित जनजाति, दो हजार 821 अन्य पिछड़ा वर्ग और आठ हजार 562 अनारक्षित वर्ग के लिए निर्धारित हुई हैं। हालांकि, कुछ जिलों से रिपोर्ट आना अभी बाकी है। वहीं, पिछले चुनाव को देखें तो कुल 22 हजार 607 सीटों में अनुसूचित जाति के लिए तीन हजार 248, अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए सात हजार 812, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए चार हजार 76 और अनारक्षित सात हजार 471 सरपंच के पद थे।
सीटें बढ़ने के बाद भी ओबीसी को हुआ 70 सीटों का नुकसान
प्रदेश में परिसीमन के बाद भले ही त्रिस्तरीय पंचायतों में सीटों की संख्या में वृद्धि हो गई है, लेकिन इसका फायदा होने की जगह ओबीसी वर्ग को इसका नुकसान हुआ है। इस नुकसान की वजह बने हैं दोनों प्रमुख राजनैतिक दल भाजपा व कांग्रेस। पिछले चुनाव में जिला पंचायत सदस्य की 841 सीटें थीं, जो इस बार बढ़कर 875 हो गई हैं लेकिन ओबीसी आरक्षण में 70 सीटों को नुकसान हुआ है। सूबे में 2014-15 के चुनाव में ओबीसी के लिए 168 सीटें आरक्षित थीं, जो इस बार कम होकर महज 98 रह गई। इसी तरह सरपंच पद के आरक्षण में भी पिछड़ा वर्ग को नुकसान हुआ है। पंच पद की रिपोर्ट जरुर अभी नहीं आयी है। इसी तरह से जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण की प्रक्रिया 31 मई को भोपाल में होगी। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने सुप्रीम कोर्ट से राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की पिछड़ा वर्ग के प्रतिवेदन के आधार पर आरक्षण की प्रक्रिया पूरी कराई।