बांधों की रेत से होगी अरबों की कमाई

रेत
  • खजाना भरने शिव ‘राज’ की अनूठी पहल
  • बाढ़, जल संकट की समस्या होगी दूर, सालभर होगा बिजली उत्पादन

आपदा को अवसर में बदलकर मप्र को खुशहाल बनाने वाली शिवराज सरकार अब प्रदेश के खाली खजाने को भरने की कवायद में जुट गई है। इसके लिए हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा हो की तर्ज पर सरकार ने प्रदेश के बड़े बांधों में जमा गाद और रेत को निकलवाकर कमाई करने का निर्णय लिया है। इससे बांधों पर पडऩे वाला दबाव कम होगा, जिससे उनकी उम्र बढ़ेगी। शिवराज सरकार के इस कदम को अन्य राज्यों में भी अनुसरण किया जा सकता है।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
मप्र प्राकृतिक संसाधनों और खनिज संपदा से परिपूर्ण प्रदेश है। शिवराज सिंह चौहान जबसे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों और खनिज संपदा के संरक्षण के लिए क्रांतिकारी कदम उठाया है। इसी कड़ी में उनकी सरकार ने प्रदेश के चार बड़े बांधों से रेत व सिल्ट (गाद) निकालने का ठेका देने के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है। पहले चरण में रानी अवंतिबाई सागर बरगी, तवा, इंदिरा सागर और बाणसागर बांध का ठेका दिया जाएगा। इन चारों बांधों से जो गाद निकाली जाएगी, उसमें 15 से लेकर 40 प्रतिशत तक रेत मिल सकती है। गाद किसानों को दी जाएगी, जिसे वे खेतों में डालेंगे। इससे भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ेगी। वहीं, इससे जो रेत प्राप्त होगी, उससे शासन को राजस्व मिलेगा। ठेका 15 से 25 साल के लिए उस कंपनी को दिया जाएगा, जिसका 3 साल का टर्नओवर 500 करोड़ रुपए होगा। अनुमान है कि सरकार को इससे सालाना 300 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होगा।
मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि जलाशयों से सिल्ट व रेत निकालने से बांधों की उम्र बढ़ेगी और पर्यावरण संतुलित होने के साथ-साथ जलाशय में पानी भरने की क्षमता भी बढ़ेगी। जल संसाधन विभाग के मुताबिक बांधों में गाद जमने से जल भंडारण क्षमता कम हो जाती है। इसके चलते रेत व सिल्ट निकालने का प्रस्ताव कैबिनेट में भेजा गया था। इसका असर सिंचाई और पेयजल व्यवस्था से जुड़ी योजनाओं पर पड़ता है। जलाशयों के अलग-अलग ठेके होंगे। यह काम ऐसी कंपनी को दिया जाएगा, जिसे इस क्षेत्र में काम करने का अनुभव हो। रेत का बेस प्राइज 100 रुपए प्रति घनमीटर होगा और ठेकेदार को सालाना न्यूनतम 20 करोड़ जमा करने होंगे।

मप्र के बांधों में भरा है रेतीला सोना
मप्र की बड़ी नदियों पर जो बांध बने हैं उनमें रेत का भंडार है। पर्यावरणविदों का कहना है की बांधों में भरे रेत को निकालने से सरकार का खजाना तो भरेगा ही, बांधों की लाइफ भी बढ़ेगी। मप्र की लाइफ लाइन नर्मदा नदी पर बने पांच बांध सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। इन बांधों के जरिए बिजली और सिंचाई के दावे सिर्फ दावे बनकर रह गए। जबकि इन बांधों के कारण हजारों लोग विस्थापन, बाढ़, बेरोजगारी, भूखमरी का दंश झेल रहे हैं। एक बारगी इन नर्मदा पर बन बरगी, इंदिरा सागर, महेश्वर, ओंकारेश्वर और सरदार सरोवर बांधों के लाभों पर गौर करें तो समझ आया जाएगा कि ये बांध बस खड़े हो गए हैं। इससे मिलने वाला लाभ नाकाफी है। बांधों के निर्माण के समय बिजली उत्पाद और सिंचाई के बड़े-बड़े दावे किए गए थे। लेकिन इन बांधों से न बिजली मिल पा रही है और न ही पर्याप्त सिंचाई की व्यवस्था हो पाई है। लेकिन इन बांधों की तलहटी में रेतीला सोना भरा पड़ा है। मप्र सरकार ने बांधों से रेत और गाद निकालने का जो निर्णय लिया है, वह कमाई का बड़ा स्रोत बन सकता है। विशेषज्ञों का कहना है की बांधों की तलहटी में अच्छी क्वालिटी की रेत है जो महंगे दामों में बिक सकती है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर कहती हैं कि इन बांधों के निर्माण से लाभ कम नुकसान अधिक हुआ है अब तक तो यही दर्शाता है। इन बांधों में गाद और रेत भरी पड़ी है। इससे बांधों पर दबाव बढ़ रहा है। सरकार गाद और रेत निकालने जा रही है, यह अच्छी बात है। अन्य बांधों में भी यह प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए।

बाढ़ की समस्या होगी दूर
प्रदेश में हर साल बांधों के ओवर फ्लो होने और बाढ़ आने की एक वजह है बांधों में गाद और रेत का भरा होना। दरअसल, इनके कारण बांध में पर्याप्त पानी जमा नहीं हो पाता है। इस कारण या तो पानी ओवर फ्लो होकर चारों तरफ फैल जाता है या फिर आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है। बांधों से गाद और रेत निकलने के बाद बाढ़ की समस्या दूर हो सकती है। मप्र के एक गैर-लाभकारी संगठन मंथन अध्ययन केंद्र के श्रीपद धर्माधिकारी कहते हैं कि बांध के अधिकारियों की लापरवाही से गाद और रेत जमा हुई है। दरअसल, कम बारिश के डर के चलते उनका सारा ध्यान सिर्फ अधिक से अधिक पानी का भंडारण करने पर होता है। साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) की ओर से किए गए आकलन के अनुसार, मप्र के बांधों में जल ग्रहण क्षमता दिन पर दिन कम होती जा रही है। इस कारण बड़े-बड़े बांध होने के बाद भी मप्र में पानी की समस्या बनी रहती है। बांधों में भरपूर जल भराव नहीं होने के कारण न तो सिंचाई और न ही पीने के लिए पानी उपलब्ध हो पाता है। स्थिति का आंकलन इसी से लगाया जा सकता है कि गर्मी के दिनों में बिजली बनाने के संयंत्र पानी की कमी के कारण बंद करने पड़ते हैं। प्रदेश के राजस्व विभाग के अनुसार विगत वर्ष प्रदेश के 52 में से 39 जिलों में अतिवृष्टि और बाढ़ से बहुत अधिक क्षति हुई थी। राज्य में जून से सितंबर माह के बीच हुई वर्षा से लगभग 60 लाख 47 हजार हेक्टेयर क्षेत्र की 16 हजार 270 करोड़ रूपये की फसल प्रभावित हुई थी। इसमें लगभग 53 लाख 90 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में 33 प्रतिशत तक फसल क्षतिग्रस्त हुई थी। प्रदेश में अति-वृष्टि से क्षतिग्रस्त मकानों में 55 हजार 372 पक्का-कच्चे मकान, 4 हजार 98 पक्के मकान तथा 55 हजार 267 आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त कच्चे मकान शामिल थे। इसी क्रम में 3 हजार 649 झोपडिय़ां और 3 हजार 274 पशु शेड भी क्षतिग्रस्त हुए थे। राजस्व विभाग के अनुसार प्रदेश में अति-वृष्टि से सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की राशि 2285 करोड़ रूपए आंकी गई थी। फसलों की कुल क्षति का अनुमान लगभग 16 हजार 270 करोड़ रूपए थे। विशेषज्ञों का कहना है कि बांधों से गाद और रेत निकलने के बाद बाढ़ के मामले कम होंगे।

बूढ़े बांधों को मिलेगा जीवन
मप्र सरकार द्वारा 4 बांधों में से रेत और गाद निकालने के निर्णय से देशभर में संदेश गया है कि ऐसा करके सरकारें कमाई के साथ बूढ़े बांधों का जीवन भी संवार सकती हैं। गौरतलब है कि मप्र सरकार द्वारा लगातार किए जा रहे सिंचाई सुविधा में वृद्धि के प्रयासों के तहत बूढ़े हो चुके करीब दो दर्जन से अधिक बाधों का नए सिरे से रखरखाव किए जाने की तैयारी की गई है। इन पर कुल मिलाकर छह अरब की राशि खर्च होने का अनुमान है। यह राशि सिंचाई विभाग कर्ज के माध्यम से जुटाएगा। यह वे बांध हैं जिनका निर्माण हुए करीब पांच दशक से अधिक का समय हो चुका है। इन बाधों का रखरखाव करने के साथ ही नए सिरे से कुछ इलाकों में नहरों का निर्माण भी किया जाएगा। इकोनॉमिक एंड पॉलिटकली वीकली (ईपीडब्ल्यू)का मानना है कि अगर मप्र सरकार प्रदेश के सभी पुराने बांधों में जमा रेत और गाद को निकलवा दे तो कम खर्च में इन बांधों को नया जीवन मिल जाएगा।
सिंचाई विभाग के सूत्रों के मुताबिक पुराने बांधों की मरम्मत के लिए सरकार द्वारा विश्व बैंक से 455 करोड़ का कर्ज लेने की तैयारी की जा रही है। इसके अतिरिक्त इसमें 20 फीसदी राशि का हिस्सा राज्य सरकार द्वारा दिया जाएगा। माना जा रहा है कि इस 551 करोड़ के खर्च के बाद प्रदेश में करीब 5 लाख हेक्टेयर जमीन में नए सिरे से सिंचाई सुविधा बढ़ जाएगी। दरअसल लंबे समय से रखरखाव न होने की वजह से इन बांधों के गेट से लेकर पाल तक जर्जर अवस्था में पहुंच चुके हैं। इन सभी का सुधारकार्य किया जाना जरुरी हो चुका है। इस कर्ज के लिए विश्व बैंक द्वारा प्रदेश सरकार को स्वीकृति दी जा चुकी है। गौरतलब है कि करीब डेढ़ दशक पहले भी प्रदेश सरकार ने इसी तरह के कई बेहद पुराने बांधों की मरम्मत पर कर्ज लेकर 1900 करोड़ व्यय किए थे। उस समय भी अधिकांश पैसा नहरों के निर्माण पर खर्च किया गया था। यही वजह है कि अब प्रदेश में सिंचाई विभाग के पास 33 लाख हेक्टेयर इलाके में सिंचाई की सुविधा मौजूद है। सिंचाई विभाग के सूत्रों के मुताबिक जिन पुराने बांधों का रखरखाव किया जाना है उनमें भगवंत सागर, चंदिया तालाब, वीरपुर तालाब, गांधी सागर बांध, हथसाई खेड़ा बांध, चोरल परियोजना, चंदोरा परियोजना, गाडगिल सागर परियोजना, केरवा बांध, माही परियोजना, नंदनवारा तालाब, वीर सागर, बहोरी बांध परियोजना, राजधाट परियोजना, यसाकाल्दा तालाब, मनसूरवारी परियोजना आदि शामिल है। इसमें भी सबसे अधिक राशि 286 करोड़ से अधिक गांधी सागर परियोजना पर खर्च किया जाना प्रस्तावित है।

गाद, रेत और बजरी के घर्षण से कमजोर हो रहे बांध
देश में बांध पुराने और कमजोर होते जा रहे हैं, इसलिए खतरा भी बढ़ता जा रहा है। देशभर में 5,745 बांध हैं, जिनमें से 293 बांध 100 साल से ज्यादा पुराने हैं। 25 फीसदी बांधों की उम्र 50 से 100 साल के बीच है। 2025 तक हालात भयावह हो चुके होंगे, क्योंकि उस समय तक 301 बांध 75 साल पुराने हो चुके होंगे। इकोनॉमिक एंड पॉलिटकली वीकली (ईपीडब्ल्यू) के एक लेख के मुताबिक, 2025 तक 496 बड़े बांध 50 साल से अधिक पुराने हो चुके होंगे। लेख में कहा गया है कि भारत में बांध महज 100 साल की उम्र के हिसाब से ही डिजाइन किए गए हैं। ईपीडब्ल्यू के लेख के मुताबिक, सभी विशाल भंडारण क्षमता वाले निर्माण समय के साथ कमजोर पड़ते जाते हैं। लहरों, गाद, रेत और बजरी के घर्षण की वजह से निर्माण में इस्तेमाल की गई कांक्रीट और स्टील जैसी सामग्री का क्षरण होने लगता है, जिसके चलते बांध कमजोर हो जाते हैं। लेख के अनुसार तापीय प्रसार (थर्मल एक्सपेंशन) और गुहिकायन (कैविटेशन) का भी बांधों पर विपरीत असर पड़ता है और वह कमजोर हो जाते हैं। हालांकि, सीडब्ल्यूसी के अधिकारियों का कहना है कि उम्र का बांधों की सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि कई पुराने बांध संतोषजनक प्रदर्शन कर रहे हैं। जल शक्ति मंत्रालय के पुनर्वास एवं सुधार परियोजना की ओर से 2010 तक बांध संबंधी विफलताओं को लेकर कराए गए विश्लेषण से पता चलता है कि 44.44 फीसदी मामलों में विफलताएं निर्माण के पहले पांच वर्षों के दौरान घटित हुई हैं। 50 से 100 साल तक पुराने बांधों में विफलता की दर 16.67 प्रतिशत और 100 साल से ज्यादा पुराने बांधों में यह 5.56 प्रतिशत से अधिक थी।
सीडब्ल्यूसी के अनुसार, अगर गाद, रेत और बजरी को बांधों से निकाल दिया जाए तो उनकी उम्र बढ़ जाएगी। यानी मप्र सरकार ने बांधों से गाद और रेत निकालने का जो निर्णय लिया है, वह क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है। मंथन अध्ययन केंद्र से जुड़े रहमत कहते हैं कि बाढ़ का एक कारण और है और वह कैचमेंट एरिया का प्रवाह इंडेक्स कम होना। यानी जो घना जंगल था, वो कम हो गया। जंगल ही बारिश के पानी के प्रवाह को कम रखते थे या रोकते थे। अब जंगल कम हो गया इसलिए सीधे बिना रूके सरपट पानी खेतों व गांवों में चला आता है। इसके अलावा, रासायनिक खेती भी एक कारण है। यह खेती मिट्टी की जलधारण क्षमता को कम कर देती है। उसमें पानी पीने या जज्ब करने की क्षमता कम हो जाती है। पहले सूखा और बाढ़ की स्थिति कभी-कभार ही उत्पन्न हुआ करती थी। अब यह समस्या लगभग नियमित और स्थाई हो गई है। हर साल सूखा और बाढ़ का कहर हमें झेलना पड़ रहा है। सूखा यानी पानी की कमी। अगर पानी नहीं है तो किसानों को भयानक सूखा का सामना करना पड़ता है। इस संकट को भी किसानों को लगभग सहना पड़ता है। दूसरी ओर बाढ़ से भी भयंकर स्थितियों का सामना करना पड़ता है। सिर्फ बाढ़ ही नहीं, सूखे की स्थिति भी मानव निर्मित है। लगातार जंगल काटे जा रहे हैं। ये जंगल ही पानी को स्पंज की तरह सोखकर रखते थे। वे ही नहीं रहेंगे तो पानी कम होगा ही।

हर साल एक प्रतिशत बढ़ती है गाद और रेत
विशेषज्ञों के अनुसार मप्र के बांधों में हर साल औसतन एक प्रतिशत गाद और रेत जमा होती है। लेकिन इसके निपटारे के लिए फिलहाल कोई प्रबंधन नहीं किया जाता है। हालांकि गाद निकालने की प्रक्रिया जटिल है। इससे बांधों का जल भराव क्षेत्र दिन पर दिन कम होता जाता है और बरसात में बाढ़ की स्थिति निर्मित होती है। मप्र के बांधों में रेत, गाद और बजरी इतनी मात्रा में भरी पड़ी है कि उम्रदराज बांधों पर खतरा मंडराने लगा है। प्रदेश के 25 बांध 100 साल से भी अधिक पुराने हो गए हैं और अधिकांश खतरे की जद में हैं। वैसे भी मप्र के बांध पिछले कुछ सालों से जर्जर अवस्था में पहुंच गए हैं। प्रदेश के करीब 91 बांध उम्रदराज हैं और ये कभी भी दरक सकते हैं। वाटर रिसोर्स डेवलपमेंट के आंकडों के अनुसार प्रदेश में पेयजल उपलब्ध कराने, सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए 168 बड़े और सैकड़ों छोटे बांध बनाए गए हैं। देखरेख और मेंटेंनेंस के अभाव में कई छोटे-बड़े बांध बूढ़े और जर्जर हो चुके हैं। इनमें से कुछ की उम्र 100 साल से ज्यादा है। इन उम्रदराज बांधों को लेकर बेपरवाह प्रशासन ने न तो इन्हें डेड घोषित किया और न ही मरम्मत की कोई ठोस पहल की। ऐसे में ये लबालब बांध यदि दरक गए या टूट गए तो कभी भी बड़ी तबाही ला सकते हैं। इन बांधों की वजह से नदियां भी अपनी दिशा बदल सकती हैं। इससे भी बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। लेकिन इस ओर कभी किसी का ध्यान नहीं गया है।
जानकारों का कहना है कि मप्र के बांधों में से अभी तक कभी भी गाद और रेत नहीं निकाले गए हैं। नदियों के साथ आने वाले गाद बांधों को प्रभावित करते हैं। इससे बांधों की क्षमता कम होने लगती है। वर्तमान में आधा सैकड़ा बांध ऐसे हैं, जो रेत और गाद से भरे पड़े हैं। सरकार को इन बांधों की ओर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। संजय सरोवर परियोजना के तहत बनाए गए एशिया के सबसे बड़े मिट्टी के बांध पर खतरा मंडरा रहा है। एक तरफ इस बांध के तटबंध की मिट्टी लगातार बह रही है वहीं इसमें रेत और गाद भरी हुई है।

अभी कितने सुरक्षित हैं बांध…
केंद्र सरकार ने माना था कि देश के कुल 5,000 बांधों में से 670 ऐसे इलाके में जो भूकंप संभावित जोन की उच्चतम श्रेणी में आते हैं। ऐसे बांधों में मप्र के करीब 24 बांध भी शामिल हैं। सवाल ये उठता है कि भूकंप संभावित इलाकों में मौजूद ये बांध आखिर कितने सुरक्षित हैं। मौजूदा समय में उपयोग किए जाने वाले 100 से ज़्यादा बांध 100 वर्ष से भी पुराने हैं। भारत में बांध बनाने की परंपरा सदियों पुरानी है और पिछले 50 वर्षों में ही देश के विभिन्न राज्यों में 3,000 से ज्यादा बड़े बांधों का निर्माण हुआ है। लेकिन इनके रखरखाव पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। इस कारण इन बांधों में रेत, गाद और बजरी भरी पड़ी है। मप्र में ऐसे बांधों की संख्या बहुतायत है। आलम यह है कि अब ये बांध लोगों की जानमाल के लिए भी खतरे की घंटी बजा रहे हैं।
इनमें बालाघाट जिले के डोगरबोदी, अमनल्ला, बिठली, बसीनखार, रामगढ़ी, तुमड़ीभाटा, कुतरीनल्ला, बड़वानी जिले में रंजीत, बैतूल जिले में सतपुड़ा, भोपाल जिले में केरवा, हथाईखेड़ा, छतरपुर जिले में मदारखबनधी, गोरेताल, दमोह जिले में माला, मझगांव, हसबुआमुदर, गोड़ाघाट, चिरेपानी, रेद्दैया, छोटीदेवरी, जुमनेरा, नूनपानी, दतिया जिले में रामसागर(गुना), रामपुर, अमाही, खानपुरा, जमाखेड़ी, भरोली, मोहरी, केशोपुर, खानकुरिया, समर सिंघा, ग्वालियर जिले में हरसी, तिगरा, रामोवा, टेकनपुर, सिमरियानग, खेरिया, रीवा जिले में गोविंदगढ़, सागर जिले में नारायणपुरा, रतोना, चांदिया, सतना जिले में लिलगीबुंदबेला, सीहोर जिले में जमनोनिया, सिवनी जिले में अरी, समाल, चिचबुंद, बारी, शाजापुर जिले में नरोला, सिलोदा, शिवपुरी जिले में धपोरा, चंदापाठा, डिनोरा, नागदागणजोरा, झलोनी, रजागढ़, अदनेर, ककेटो, विदिशा जिले में घटेरा, उज्जैन जिले में अंतालवासा, कड़ोडिया, शाजापुर जिले में नरोला, सिलोदा, होशंगाबाद जिले में दुक्रिखेड़ा, धनदीबड़ा, इंदौर जिले में यशवंत नगर, देपालपुर, हशलपुर, जबलपुर जिले में परियट, बोरना, पानागर, कटनी जिले में पिपरोद, गोहबंनधा, पथारेहटा, दारवारा, पब्रा, अमेठा, जगुआ, जगुआ, लोवर सकरवारा, अपर सकरवारा, बोहरीबंद, अमाड़ी, बोरिना लोवरटी, मौसंधा, मंदसौर जिले में पोदोंगर, गोपालपुरा, पन्ना जिले में लोकपाल सागर, रायसेन जिले में लोवर पलकसती बांध पुराने और जर्जर हो चुके हैं। इन बांधों से रेत और गाद निकालकर इन्हें नवजीवन दिया जा सकता है।

ड्रेजिंग मशीन से निकाली जाएगी रेत
नदियां अपने साथ गाद, रेत, पत्थर के टुकड़े और खनिज बहाकर लाती हैं। इससे नदी या बांध का तल उथला हो जाता है। सरकार प्रदेश में पहली बार तवा, बरगी, इंदिरा सागर, बाण सागर बांधों की रेत बेचेगी। इन बांधों की ड्रेजिंग से निकलने वाली 1280 मिलियन घन मीटर रेत बेची जाएगी। बांधों की रेत को बेचने से सरकार के खजाने में सालाना 300 करोड़ रुपए आएंगे। बांधों से ड्रेजिंग मशीन से रेत निकाली जाएगी। ड्रेजिंग मशीन पानी में उतरकर रेत छानेगी। इसके अलावा लंबे पाइप (कन्वेयर बेल्ट) की मदद से रेत को बांध से बाहर फेंका जाएगा। इन बांधों से ड्रेजिंग मशीन द्वारा पहली बार रेत निकाली जाएगी। हालांकि बिहार, पश्चिम बंगाल, हैदराबाद में ड्रेजिंग मशीन से रेत, गाद निकाली जा चुकी है। अधिकारियों का कहना है कि रेत निकालने के पहले की प्रक्रिया पर काम हो रहा है। अभी उसका टेंडर होगा। उसके बाद संबंधित कंपनी यह काम करेगी। ड्रेजिंग मशीन से रेत निकालने वाली टीम तवा बांध का निरीक्षण करेगी।
रेत निकालने के लिए ड्रेजिंग मशीन को तवा बांध में उतारा जाएगा। मशीन से तवा बांध का पानी हिलाया जाएगा। इससे कचरा, गाद और रेत पानी में घुलकर ऊपर आ जाएंगे। मशीन में दो जालियां लगी रहती हैं। पहली जाली में बड़ा कचरा अटकेगा, उसके नीचे वाली जाली में रेत आ जाएगी। जाली की रेत को पाइप के माध्यम से बांध से बाहर फेंका जाएगा। इस तरह बांध से रेत निकाली जाएगी। यह तकनीक सामान्यत: बंदरगाहों के आसपास जमी सिल्ट को हटाने के लिए अपनाई जाती है। अब तवा बांध की रेत निकाली जाएगी।

सरकार ने रेत का न्यूनतम मूल्य बढ़ाया
राज्य सरकार ने रेत का न्यूनतम मूल्य (आफसेट प्राइज) बढ़ा दिया है। अब 125 रुपए प्रति घनमीटर के बजाय 250 रुपये प्रति घनमीटर की दर से रेत खदानों की बोली शुरू होगी। यह वृद्धि उन खदानों पर लागू नहीं होगी, जो वर्तमान में ठेकेदार संचालित कर रहे हैं। गौण खनिज मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने यह निर्णय लिया है। गृह मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा ने आठ जिलों (आलीराजपुर, रायसेन, मंदसौर, सीहोर, आगर-मालवा, उज्जैन एवं अन्य) में रेत खदानों की नीलामी प्रक्रिया जल्द शुरू करने के निर्देश दिए हैं। इन जिलों में ठेकेदार, खदानें समर्पित कर चुके हैं या रायल्टी की किस्त जमा नहीं करने के कारण उनके ठेके निरस्त किए गए हैं। बैठक में विभागीय कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए व्यवस्थाओं के विकेंद्रीकरण और विभाग में विभिन्न् पदों पर अधिकारियों-कर्मचारियों की भर्ती करने का निर्णय हुआ है। विभाग के प्रमुख सचिव सुखवीर सिंह ने गौण खनिजों के अवैध उत्खनन को रोकने के लिए किए जा रहे और किए जाने वाले उपायों के बारे में विस्तार से बताया। डा. मिश्रा ने कहा कि गौण खनिज के अवैध उत्खनन को रोकने के लिए आधुनिक तकनीक का अधिकतम उपयोग करें। वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने कहा कि रेत के अवैध उत्खनन को रोकने के साथ विभागीय सशक्तिकरण के लिए आवश्यक प्रबंधन जरूरी हैं। खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि नियंत्रण प्रणाली को सशक्त बनाना जरूरी है। नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा मंत्री हरदीप सिंह डंग ने कहा कि अवैध उत्खनन करने वाले क्षेत्रों की पहचान कर पुख्ता कार्रवाई करें।
मप्र में रेत कारोबारियों के साथ अब खनिज विभाग के जिलों में पदस्थ माइनिंग अफसर एग्रीमेंट करेंगे। इन्हीं अफसरों के पास अभी रेत के अवैध उत्खनन को रोकने और अवरोध के बिना उसके परिवहन का काम है। खनिज विभाग ने कैबिनेट सब कमेटी के सामने ऐसा प्रस्ताव रखा है जिस पर फिलहाल सहमति नहीं बनी है। वर्तमान में खदानों की नीलामी के साथ रेत कारोबारियों से एग्रीमेंट खनिज निगम करता है। रेत खदानों का ताजा ठेका करीब 1250 करोड़ रुपए में उठा है। इससे पहले जब जिलों की पंचायतों के अधिकार में ये खदानें थीं तो सिर्फ 250 करोड़ के करीब राजस्व सरकार को मिला था। प्रस्तावित नई व्यवस्था में तीन साल के लिए नीलामी तो खनिज निगम करेगा, लेकिन जिलों में अलग-अलग समूहों के साथ माइनिंग अधिकारी एग्रीमेंट करेंगे। कमेटी के सामने विभाग ने प्रस्ताव दिया है कि अभी रेत का ऑफसेट प्राइज 125 रुपए प्रति घनमीटर है। इसे बढ़ाकर 250 रुपए किया जा रहा है। कैबिनेट सब कमेटी में गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव, वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा, खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह और मंत्री हरदीप सिंह डंग हैं। कोरोना के कारण आठ जिलों मंदसौर, अलीराजपुर, रायसेन, रीवा, शिवपुरी, राजगढ़, धार और छतरपुर में रेत का ठेका निरस्त हो चुका है। पन्ना, भिंड, शाजापुर और रतलाम के ठेकेदारों ने खदान सरेंडर करने का आवेदन दे दिया है। इन जिलों में नए सिरे से ठेके हो सकते हैं।

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