स्मार्ट सिटी नहीं झुग्गियों का…शहर बन रहा भोपाल

  • झुग्गी मुक्त राजधानी बनाने के सारे प्रयास फेल
  • विनोद उपाध्याय
भोपाल

मप्र ही नहीं देश के खूबसूरत शहरों में भोपाल शुमार है। यहां की आबोहवा और हरियाली आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। राजधानी की इसी खूबसूरती को देखते हुए 25 जून 2015 को इसे स्मार्ट सिटी बनाने की कवायद शुरू हुई थी। तकरीबन 9 साल बाद भी भोपाल को स्मार्ट सिटी बनाने का सपना आधा-अधूरा है, लेकिन शहर में झुग्गी-झोपडिय़ों का जाल लगातार बढ़ता ही जा रहा है। 10 प्रतिशत झुग्गियां हर साल शहर में बढ़ जाती हैं।
गौरतलब है कि देश के सबसे महंगे शहरों में भोपाल की गिनती होती है। यहां जमीनों के भाव सोने से भी अधिक महंगे हैं। इसके बावजूद यहां शहर के बीचों-बीच प्राइम लोकेशंस पर झुग्गी बस्तियां बसी हुई हैं। राजभवन से सटे इलाके में रोशनपुरा बस्ती, बाणगंगा, भीमनगर, विश्वकर्मा नगर जैसी टॉप 8 झुग्गी बस्तियां करीब 300 एकड़ में फैली हैं। इनके अलावा राहुल नगर, दुर्गा नगर, बाबा नगर, अर्जुन नगर, पंचशील, नया बसेरा, संजय नगर, गंगा नगर, बापू नगर, शबरी नगर, ओम नगर, दामखेड़ा, उडिय़ा बस्ती, नई बस्ती, मीरा नगर जैसी कुल 388 बस्तियां शहर में हैं। इन सबकी जमीन का हिसाब लगाएं तो यह करीब 1500 एकड़ के आसपास बैठती है। इनमें से ज्यादातर पॉश इलाकों में ही हैं।
राजधानी में 300 झुग्गी बस्तियां
राजधानी में झुग्गी बस्तियों का जाल दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार शहर की 1500 एकड़ जमीन पर 300 झुग्गी बस्तियां काबिज हैं। कई बस्तियां  प्राइम लोकेशंस पर बसी हैं। सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भोपाल को झुग्गीमुक्त बनाने के लिए सरकार लगभग 1400 करोड़ खर्च कर चुकी है, लेकिन इसके बाद भी बस्तियां लगातार बढ़ रही हैं।  1984 में अर्जुन सिंह सरकार ने पहली बार झुग्गी मुक्त शहर के लिए अभियान चलाया। 2004 में बाबूलाल गौर ने झुग्गियों के री-डेंसिफिकेशन की योजना बनाई। 2015 में पीएम आवास योजना की शुरुआत हुई और शहर में पक्के मकान व पट्टे देने का अभियान शुरू हुआ। लेकिन सरकार के सारे प्रयास फेल होते चले गए। आज आलम यह है कि कोलार, अयोध्या बाइपास रोड, अवधपुरी भेल क्षेत्र, खजूरीकला, बरखेड़ा पठानी, करोंद, गांधी नगर, बैरागढ़, मिसरोद, 11 मील रोड, कटारा, बागमुगालिया, बागसेवनिया, पटेल नगर, कलियासोत कैचमेंट नेहरू नगर, नीलबड़, रातीबड़, भौरी आदि क्षेत्र में सबसे अधिक  झुग्गी-झोपडिय़ों  का जाल बिछ गया है। हाउसिंग फॉर आल के तहत गरीबों के लिए साढ़े सात हजार से अधिक आवास बनने की योजना है। अभी तक साढ़े तीन हजार आवास बन चुके हैं। साढ़े चार हजार आवास और बनाए जाएंगे। 1100 आवास निर्माणाधीन हैं। वास्तविक हकदारों को आवास आवंटित किए गए हैं, लेकिन आलम यह है कि उसके बाद भी शहर में  झुग्गी-झोपडिय़ां बढ़ रही हैं। नगर निगम द्वारा जेएनएनयूआरएम, प्रधानमंत्री आवास योजना और हाउसिंग फार आल के तहत हितग्राहियों को बनाकर आवंटित किए गए 50 प्रतिशत से अधिक आवास किराए पर चल रहे हैं। पंचशील नगर, श्याम नगर, अर्जुन नगर, नेहरू नगर, जनता कालोनी, इंदिरा नगर, 11 नंबर, ईदगाह हिल्स, बाजपेयी नगर आदि क्षेत्रों में विभिन्न योजनाओं के तहत गरीबों के लिए आवास बनाए गए हैं, जो बेहद कम दामों में झुग्गीवासियों को दिए गए। वर्तमान में यहां बड़ी संख्या में लोग रहते हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश आवास किराये पर हैं। यदि उक्त क्षेत्रों में जांच की जाए तो 50 प्रतिशत से अधिक आवासों के किराये पर चलने का खुलासा हो जाएगा।
 गठजोड़ से बढ़ रहा झुग्गियों का ग्राफ
शहर को झुग्गी मुक्त करने का सरकार का सपना शायद कभी साकार नहीं होगा, क्योंकि सरकारी कर्मचारी, स्थानीय नेता और झुग्गी माफिया के गठजोड़ से झुग्गियों को बसाने का कारोबार लंबे समय से चला आ रहा है। शहर में बढ़ता झुग्गियों का ग्राफ इस बात का जीता-जागता प्रमाण है, जबकि झुग्गियों के विस्थापन को लेकर कई योजनाएं बनीं, आवास बनाए गए, लेकिन झुग्गियों की संख्या कम नहीं हुई। झुग्गियों में रहने वाले लोगों ने आवास तो लिए, लेकिन 50 प्रतिशत से अधिक हितग्राहियों ने उनको किराये पर दे दिया या बेच दिया है और आज वह लोग दोबारा झुग्गी में रह रहे हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि यही हाल रहा तो यह शहर कभी भी झुग्गी मुक्त नहीं हो पाएगा। नगर निगम के अधिकारियों की लापरवाही का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनको इस बात की ही जानकारी नहीं है कि निगम द्वारा बनाए गए आवासों में कितने वास्तविक हकदार रहते हैं। अवैध झुग्गियों में रहने वाले परिवार प्रति वर्ष नगर निगम के जोनल कार्यालय से 700 रुपये शुल्क की कटवाते हैं और एक बत्ती कनेक्शन के तहत 100 रुपये बिजली बिल भरते हैं। नियमानुसार अवैध होने की स्थिति में शुल्क लेने के बजाय कार्रवाई होना चाहिए, लेकिन यहीं पार्षद और भूमाफिया का गठजोड़ अपनी भूमिका निभाता है और शुल्क भुगतान करवाकर यह साबित करने की कोशिश की जाती है कि संबंधित परिवार वर्षों से इस जगह पर काबिज है, जिसके आधार पर पट्टा स्वीकृत होता है।
 टॉप टेन शहरों में भोपाल
भोपाल को स्लम फ्री सिटी करने के पीछे सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है । बावजूद इसके बस्तियों की संख्या कम होने के बजाए बढ़ी हैं। सबसे ज्यादा झुग्गी वाले टॉप-10 शहरों में भोपाल का नाम भी शामिल है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि स्लम फ्री सिटी बनाने का सपना आखिर कब पूरा होगा। शहर स्मार्ट सिटी कैसे बनेंगे, जब हर कोशिश फेल हो रही है। सरकार झुग्गियों को हटाने के लिए लगभग 1400 करोड़ खर्च कर चुकी है, लेकिन इसके बाद भी बस्तियां लगातार बढ़ रही हैं। प्रदेश में भाजपा की सरकार हो या कांग्रेस की। कोई भी सरकार राजधानी भोपाल को झुग्गी से मुक्त नहीं करा पाई है। वर्तमान में पीएम आवास योजना के तहत घर बनाने की कवायद की जा रही है। इधर घर और फ्लैट देने का अभियान धीमा हुआ और वहां झुग्गी बनाने की रफ्तार बढ़ती चली गई। वहीं सरहदी इलाकों में सबसे ज्यादा झुग्गियां बस गई है। सरकारी भूमि पर भी तेजी से कब्जों की संख्या बढ़ रही है। अपर आयुक्त निधि सिंह का कहना है कि पीएम आवास योजना की हाउसिंग फॉर ऑल स्कीम के तहत झुग्गियों की शिफ्टिंग के लिए आवास निर्माण किए जा रहे हैं। इनके आवंटन के लिए परिवारों को चिन्हित किया गया है। अवैध निर्माण पर नगर निगम लगातार कार्रवाई कर रहा है।

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