भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। बैतूल संसदीय क्षेत्र को भाजपा का गढ़ माने जाना लगा है। बीते 28 सालों से इस लोकसभा सीट पर भाजपा को ही जीत मिलती आ रही है। आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित इस संसदीय क्षेत्र से इस बार के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दलों ने पुराने चेहरों पर ही दांव लगाया है। भाजपा ने दुर्गादास उइके तो कांग्रेस ने रामू टेकाम को प्रत्याशी बनाया है। विकास के मामले में निष्क्रिय रहे दुर्गादास को इस बार चुनाव में रामू द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दों ने उलझा दिया है। दरअसल, भाजपा प्रत्याशी दुर्गादास उइके अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में निविर्वाद तो रहे लेकिन कोई ऐसा खास कमाल भी नहीं कर पाए, जिसे विपक्ष के आरोपों का वह मजबूती से जबाव दे पाएं। यही वजह है कि चुनाव प्रचार के दौरान वे केंद्र सरकार की योजनाओं को ही लगातार गिना कर अपने पक्ष में मतदान की अपील कर रहे हैं। उधर, कांग्रेस प्रत्याशी रामू टेकाम को पार्टी के बिखराव, नेताओं की नाराजगी और पार्टी के बड़े नेताओं के चुनाव प्रचार में नहीं आने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इसकी वजह से उन्हें स्थानीय मुद्दों पर ही जोर लगाना पड़ रहा है। इस सीट पर तीसरे चरण के तहत दो दिन बाद सात मई को मतदान होना है, इसके साथ ही मतदाताओं के मन में क्या है? यह ईवीएम में कैद हो जाएगा। इस सीट पर प्रचार के लिए जहां प्रधानमंत्री और भाजपा के सबसे बड़े चेहरे नरेन्द्र मोदी सभा कर चुके हैं, तो वहीं कांग्रेस का कोई बड़ा नेता अब तक प्रचार के लिए नहीं आया है। इस संसदीय क्षेत्र के बैतूल जिले में कांग्रेस के चार विधायक थे , लेकिन पांच माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में बैतूल जिले की सभी चारों विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर बड़ा झटका दिया था। इस लोकसभा सीट की आठ में से छह पर अब भाजपा तो दो पर कांग्रेस विधायक हैं।
बेरोजगारी और पलायन बना मुसीबत
लोकसभा चुनाव में बैतूल संसदीय क्षेत्र के मतदाता प्रत्याशियों से यह तीखा सवाल जरूर कर रहे हैं कि रोजगार के साधनों की कमी और पलायन जैसी समस्या को दूर करने के लिए क्या किया है। भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के पास इसका कोई जवाब नहीं है और वे सिर्फ आश्वासन देकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं कि चुनाव जीतने के बाद उनकी पहली प्राथमिकता होगी कि रोजगार के साधनों की कमी दूर की जाए।
28 वर्ष से भाजपा को मिल रही जीत
बैतूल संसदीय क्षेत्र पर पिछले 28 वर्ष से लगातार भाजपा को जीत मिल रही है। वर्ष 1996 के चुनाव में भाजपा ने स्थानीय उम्मीदवार स्व विजय कुमार खंडेलवाल को मैदान में उतारा था और उन्होंने कांग्रेस के कब्जे से सीट छीन ली थी। इसके बाद वर्ष 1998, 1999 और 2004 में भी वे लगातार जीत दर्ज करने में सफल रहे। वर्ष 2007 में विजय खंडेलवाल के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनके पुत्र हेमंत खंडेलवाल को भाजपा ने मैदान में उतारा। हेमंत ने जीत हासिल की। वर्ष 2009 में परिसीमन के कारण बैतूल संसदीय क्षेत्र एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। भाजपा ने ज्योति धुर्वे को टिकट दिया। वे जीत गईं। वर्ष 2014 में भी ज्योति धुर्वे ने अपनी जीत दोहराई। वर्ष 2019 में भाजपा ने शिक्षक रहे दुर्गादास उइके को प्रत्याशी बनाया। वे रिकार्ड मतों से जीत दर्ज करने में सफल रहे।
सांसद को करना पड़ रहा विरोध का सामना
भाजपा प्रत्याशी दुर्गादास उइके अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में क्षेत्र विशेष तौर पर दूरस्थ क्षेत्रों में सतत संपर्क बनाए रखने में सफल नहीं रहे हैं। हरदा की विधानसभाओं में भी उनकी पहुंच कम रही है। इस कारण से उन्हें चुनाव प्रचार के दौरान कड़े विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है। मुलताई विधानसभा क्षेत्र के ग्राम हसलपुर में पार्टी के ही लोगों ने चुनावी बैठक के दौरान जमकर आड़े हाथ ले लिया था। यही स्थिति हरसूद विधानसभा क्षेत्र में भी बनी हुई है। सांसद दुर्गादास उइके अब ऐसी गलती न होने का वादा करते हुए जनता से मान-मनौव्वल भी मांग रहे हैं। अनौपचारिक चर्चा में उन्होंने कुछ जगह स्वीकार भी किया है कि उन्हें पर्याप्त समय नहीं मिल पाया जिससे वे जनता से समन्वय नहीं बना पाए और अब जनता से मेल-मिलाप के धागे जोडऩा उनके लिए चुनौती है।
आरिफ बेग ने बीजेपी को दिलाई थी पहली जीत
1989 में यहां भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार जीत दर्ज की और बीजेपी की टिकट पर पार्टी के अल्पसंख्यक चेहरे आरिफ बेग ने अशलम शेर खान को हराकर बीजेपी को पहला चुनाव जिताया था। इसके बाद 1991 में कांग्रेस, फिर 1996, 1998, 1999 और 2004 में बीजेपी के विजय खंडेलवाल ने जीत दर्ज की। इसके बाद 2008 में हेमन्त खंडेलवाल, 2009 और 2014 में बीजेपी की ज्योति धुर्वे सांसद चुनी गई।
यह है जातीय गणित: बैतूल लोकसभा सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, हालांकि बात अगर इस सीट के जातिगत समीकरणों की जाए तो यहां एससी एसटी वर्ग के मतदाता ही निर्णायक भूमिका में नजर आते हैं। बैतूल सीट पर एससी एसटी के बाद ओबीसी और सामान्य वर्ग प्रभावी होता है, जबकि अल्पसंख्यक वोटर्स भी यहां ठीक-ठाक माने जाते हैं, ऐसे में यहां पूर्व के चुनावों में इस वर्ग से भी प्रत्याशी चुनाव लड़ते रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक इस सीट पर सर्वाधिक 47 फीसदी एससीएसटी, पिछड़ा वर्ग के करीब 26 , सामान्य वर्ग के 22 और अल्पसंख्यक वर्ग के लगभग 5 फीसदी मतदाता हैं।
05/05/2024
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