- सदस्यता अभियान और संगठनात्मक चुनाव में सक्रियता का हो रहा आकलन
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। करीब एक साल से निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्ति की आस ताक रहे नेताओं की अगले वर्ष के पहले या दूसरे महीने में मनोकामना पूरी हो सकती है। गौरतलब है कि निगम-मंडल में पद पाने का फॉर्मूला पहले ही तय हो चुका है। यानी सदस्यता अभियान और संगठनात्मक चुनाव में अच्छा काम (बेस्ट परफॉर्मर) करने वालों की ही ताजपोशी होगी। भाजपा सूत्रों का कहना है कि सदस्यता अभियान और संगठनात्मक चुनाव में नेताओं की सक्रियता का आंकलन किया जा रहा है। गौरतलब है कि डॉ. मोहन यादव सरकार ने फरवरी में एक ही आदेश में 45 बोर्ड, निगमों व प्राधिकरणों के अध्यक्ष और उपाध्यक्षों को हटा दिया था, जिससे यह स्पष्ट हो गया था कि सीएम डॉ. यादव नई व्यवस्था चाहते हैं।
गौरतलब है कि मोहन सरकार ने ये साफ कर दिया है कि इस बार अगर लाभ के पद पर काबिज होना है ,तो सख्त इम्तिहान देना होगा। ये इम्तिहान हर उस नेता के लिए होगा जो निगम-मंडल के पदों पर दावेदारी जता रहे हैं। अब ऐसे नेताओं को नियुक्ति बहुत आसानी से नहीं मिलने वाली है। ये नेता अपनी वरिष्ठता का हवाला देकर या किसी दिग्गज नेता की सिफारिश लाकर ही पद हासिल नहीं कर सकेंगे। नए फॉर्मूले के तहत हर नेता को अपनी काबीलियत खुद साबित करनी पड़ेगी। ये शर्त रखने की बड़ी वजह है भाजपा का सदस्यता अभियान और संगठनात्मक चुनाव। गौरतलब है कि दिसंबर, 2021 में तत्कालीन शिवराज सरकार ने निगम, मंडलों में 25 अध्यक्ष और उपाध्यक्षों की नियुक्तियां की थीं। पिछले साल चुनाव से करीब सात महीने पहले 35 और राजनीतिक नियुक्तियां की गईं। बोर्ड और निगमों के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है, जबकि उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है। शिवराज सरकार ने अपने चौथे कार्यकाल में 50 से ज्यादा पदों पर राजनीतिक नियुक्तियां कीं। फरवरी में हटाए गए कई अध्यक्ष और उपाध्यक्षों का कार्यकाल तीन साल से ज्यादा बचा हुआ था।
इंतजार है निगम मंडलों में नियुक्तियों का
प्रदेश में नए चेहरे के साथ नई सरकार के काबिज होते ही नेताओं को इंतजार है कि निगम मंडलों में नियुक्तियां कब होगी। बहुत से नेता अपनी दावेदारी भी जता रहे हैं, लेकिन हर बार किसी न किसी वजह से निगम-मंडल में नियुक्तियों का मामला उलझ रहा है। पहले माना जा रहा था कि निगम मंडल में नियुक्तियां लोकसभा चुनाव के बाद होंगी, लेकिन ये चुनाव भी पूरे हो गए और नियुक्तियों का सिलसिला शुरू नहीं हुआ। इसके बाद बारी आई उपचुनावों की। पर अब लगता है कि संगठनात्मक चुनाव खत्म होने के बाद ही निगम-मंडलों में नियुक्ति होगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद प्रदेश के निगम-मंडल, प्राधिकरण व आयोगों में राजनीतिक नियुक्ति की बात से इसकी आस में बैठे नेताओं के चेहरे खिल गए हैं। ऐसे में जिन नेताओं ने संगठनात्मक चुनाव में और इसके पहले सदस्यता अभियान में अच्छा काम किया है, उनको जल्द ही निगम, मंडल, प्राधिकरण में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष नियुक्ति मिल सकती है।
तत्परता से पार्टी संगठन के काम में जुटे नेता
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने पार्टी के कार्यकर्ताओं को संगठन में अच्छा काम करने पर निगम मंडलों में राजनीतिक नियुक्ति की बात कही थी। तभी से कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्र में पार्टी संगठन के काम को करने में काफी रुचि लेने लगे थे। अब मुख्यमंत्री द्वारा संगठनात्मक चुनाव के बाद निगम, मंडलों में नियुक्ति किए जाने की बात से इन नेताओं को उम्मीद जागी है। खासकर वे नेता खासे उत्साहित हैं, जिन्होंने संगठनात्मक चुनाव और सदस्यता अभियान में अच्छा काम किया है। कांग्रेस से भाजपा में आए कई ऐसे नेता जिन्होंने विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में पाला बदला था, वे भी इसी आस में है कि उनको किसी निगम, मंडल में एडजस्ट किया जाएगा। इसके लिए इन नेताओं ने चुनाव के दौरान भाजपा के प्रत्याशी के लिए काफी मेहनत भी की थी। प्रदेश में निगम-मंडलों के अलावा प्राधिकरण, आयोगों में नियुक्ति की जाती है, तो 100 से ज्यादा नेताओं को मौका मिल सकता है। क्योकि निगम-मंडलों में अध्यक्ष के अलावा उपाध्यक्ष के पद पर भी नियुक्ति की जाती रही है। वहीं, आयोग में अध्यक्ष के साथ सदस्य बनाए जाते है। जानकारी के मुताबिक राज्य सूचना आयोग में वर्तमान में मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा तीन आयुक्त है, जबकि यहां 10 आयुक्तों की नियुक्ति की जा सकती है। इस तरह आयोग में आयुक्त के 7 पद रिक्त हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार में कई बोर्ड का गठन किया था, जिनमें राजनीतिक नियुक्तियां की जाती हैं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने 10 सितंबर को अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों की मांग पर बड़ा निर्णय लिया कि निगम, मंडलों का नेतृत्व प्रमुख सचिवों की जगह मंत्री करेंगे। यह व्यवस्था मंत्रियों के हाथ में रखने के लिए की गई थी, न कि अधिकारियों के हाथ में। इस संबंध में आदेश जारी होने के बाद मंत्रियों ने तत्काल अपने-अपने विभाग से जुड़े निगम, मंडलों में अध्यक्ष का पदभार ग्रहण कर लिया था।