चुनाव से पहले कांग्रेस ने फिर चला किसानों की कर्ज माफी का दांव

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भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में डेढ़ दशक बाद जिस दांव से कांग्रेंस ने डेढ़ दशक की लगातार भाजपा सरकार को सत्ता से बाहर कर सरकार में वापसी की थी, उसी दांव को एक बार फिर चल दिया गया है। यह दांव है किसान कर्ज माफी का। खास बात यह है कि प्रदेश में इस बार भी यह मामला वैसा ही है जैसा आज से चार साल पहले था।
किसान कर्ज माफी की घोषणा तब भी पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा प्रदेश के मालवा निमाड़ इलाके में एक जनसभा के दौरान की गई थी , तो इस बार भी उनके द्वारा इसी अंचल से फिर इसकी घोषणा की गई है। अंतर इतना है कि इस बार यह घोषणा उनके द्वारा निकाली जा रही भारत जोड़ो यात्रा के 11 वें दिन की गई है। आज उनकी यात्रा का प्रदेश में अंतिम दिन है। आज उनकी यात्रा शाम को राजस्थान की सीमा प्रवेश कर जाएगी।  यात्रा के ब्रेक के दौरान आज राहुल से किसान संगठनों ने मुलाकात की है। उन्होंने राहुल से मांग करते हुए कहा, अगर 2023 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है, तो बचे हुए किसानों के कर्ज भी माफ किए जाएं। राहुल ने इस पर सहमति जताई है।
राहुल यात्रा के दौरान तमाम लोगों से बीते रोज  मिलते रहे।  दोपहर दो बजे लंच ब्रेक के दौरान राहुल ने किसानों के प्रतिनिधि मंडल से मुलाकात की।  इस दौरान राहुल ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भी बुलाया था। किसानों ने मध्यप्रदेश में खाद और बीज किल्लत की कहानी राहुल को सुनाई। राहुल ने पहले उनसे पूछा, आप लोगों को क्या-क्या दिक्कतें आती हैं। फिर उनसे उपज के दाम सही मिल रहा है, सरकार कितना सहयोग कर रही है? उनका कहना था कि सरकार उतना सहयोग नहीं कर रही है, जितना किसानों को जरूरत है। उपज का दाम नहीं मिलता है। किसानों ने राहुल से कहा कि जब कमलनाथ मुख्यमंत्री थे, तब किसानों की कर्ज माफी के लिए अभियान चलाया था। किसानों के 50 हजार और एक लाख रुपए तक के कर्ज माफ हुए हैं। जिन किसानों को कर्ज माफी का लाभ नहीं मिला है, उनमें ज्यादातर वे किसान हैं, जिनका कर्ज दो लाख रुपए तक का है। इसलिए कांग्रेस की सरकार बनने पर किसानों का कर्ज माफी का अभियान फिर से चलाया जाए। राहुल ने कहा, मैं सहमत हूं। इस पर नाथ ने कहा कि सरकार में आने पर कर्जमाफी अभियान को पूरा करेंगे।
किसानों की अहम भूमिका
मध्यप्रदेश की ही बात करें तो यहां कांग्रेस की सरकार बनने में किसानों के वोट ने बड़ी भूमिका अदा की थी। कांग्रेस के वादों ने किसानों को उसकी ओर लुभाया। मालवा का ही उदाहरण लें तो यहां 2013 में कांग्रेस को महज 2 सीटें मिली थीं लेकिन 2018 चुनाव में उसने 27 सीटें हासिल कीं। सीधे 25 सीटों का फायदा। बात करें पूरे मालवा-निमाड़ की तो यहां कुल 66 सीटें और भाजपा ने 2013 में यहां 55 सीटें हासिल की थीं। मालवा-निमाड़ में 15 जिले, और 2 संभाग आते हैं। ये जिले हैं इंदौर, धार, खरगौन, खंडवा, बुरहानपुर, बड़वानी, झाबुआ, अलीराजपुर, उज्जैन, रतलाम, मंदसौर, शाजापुर, देवास, नीमच और आगर।  पश्चिमी मध्यप्रदेश के इंदौर और उज्जैन संभागों में फैले इस अंचल में आदिवासी और किसान तबके के मतदाताओं की बड़ी तादाद है। 2013 के चुनाव में भाजपा ने 57 सीटों पर कब्जा जमाया था, कांग्रेस सिर्फ 9 सीटें जीत सकी थी। सीटों का यही अंतर भाजपा की सरकार बनने में सबसे महत्वपूर्ण साबित हुआ था। अपने बुरे दिनों में भी भाजपा कहीं जमी रही तो इसी इलाके में। लेकिन बीते चुनाव में यहां की जनता ने भाजपा को नकार दिया था।
पिछले कुछ चुनावों में किसानों की कर्ज माफी बड़ा मुद्दा बना है। इस बार भी मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुए चुनाव में किसानों का मुद्दा छाया रहा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे जमकर भुनाया और इसका पार्टी को जबरदस्त फायदा भी मिला। तीनों प्रदेशों में उसकी सरकार बनी। तो क्या किसानों की कर्जमाफी से अब सत्ता मिलने का रास्ता साफ होने लगा है। हालिया समय में किसानों के कई आंदोलन हुए हैं। कर्ज माफी को लेकर किसानों ने दिल्ली तक मार्च भी किया। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को हाथों हाथ लेते हुए इसे जमकर भुनाया। इसका फायदा भी मिला है।  
भाजपा सांसद के भाई यात्रा में शामिल हुए
केंद्रीय विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को गुना लोकसभा सीट से हराने वाले भाजपा सांसद केपी यादव के भाई अजय यादव भी बीते रोज  यात्रा में शामिल हुए हैं। वे कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह के साथ फोटो खिंचवाते हुए भी नजर आए। अजय ने कहा, भाई मजबूरी में भाजपा में गए हैं। हमारा पूरा परिवार कांग्रेस के साथ हमेशा से रहा है।
जीत का सुपरहिट फॉर्मूला
गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब के चुनाव नतीजे बताते हैं कि किसानों का मु्ददा चुनाव जीतने का सुपरहिट फॉर्मूला बन चुका है। इन राज्यों में इसी मुद्दे ने सियासी दलों को सत्ता तक पहुंचाया। तकरीबन सभी राज्यों में सरकारों ने किसानों का एक निश्चित रकम तक का कर्ज माफ भी किया। ये स्थिति तब है जब केंद्र सरकार ने किसानों के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं। लेकिन ये चुनावी रेवड़ी कब तक बांटी जाएगी। नया ट्रेंड ये है कि सरकार बनते ही किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाए और सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ा दिया जाए। कर्जमाफी पर भले ही सरकार पर करोड़ों-अरबों का बोझ पड़े लेकिन लोक लुभावन फैसला कर्ज में दबे किसानों को लुभा रहा है। इस मुद्दे पर सरकारें बन रही हैं। कोई भी पार्टी इसे नजरअंदाज करने की स्थिति में नहीं है।

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