- गौरव चौहान
आधी छोड़ पूरी को धावे, पूरी मिले न आधी पावे, यह बुंदेलखंडी कहावत पूरी तरह से पूर्व डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे पर फिट बैठती दिखती है। दरअसल वे राज्य प्रशासनिक सेवा की अफसर थीं। अचानक उनके मन में राजनीतिक महत्वाकांक्षा ऐसी जागी कि उन्होंने डिप्टी कलेक्टर के पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस की सदस्यता ले ली। दरअसल उन्हें लग रहा था कि कांग्रेस उन्हें हाथों हाथ लेते हुए विधायक का टिकट थमा देगी और वे जीतकर विधानसभा पहुंच जाएंगी। इस बीच कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया , लेकिन फिर उन्हें लगा कि लोकसभा का टिकट पार्टी दे सकती है, लेकिन कांग्रेस की सूची जारी हुई तो उन्हें एक बार फिर से निराशा ही हाथ लगी। इसके बाद से राजनीति को लेकर उनमें निराशा पैदा हो गई है। इसकी वजह है पार्टी ने टिकट तो दिया नहीं उलटे, उनके हाथ से अफसरी वाली नौकरी का जाना है। राजनीति में आने के पांच माह के अंदर ही उन्हें पता चल गया कि इस राह पर चल पाना आसान नही हैं। यही वजह है कि अब उन्हें एक बार फिर से अफसरी वाली नौकरी की याद सताने लगी है। यही वजह है कि अब उनके द्वारा प्रदेश सरकार से नौकरी में वापसी की गुहार लगाई गई है। इसके लिए उन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग को पत्र भी लिख दिया है। दरअसल निशा राज्य प्रशासनिक सेवा की पूर्व अधिकारी हैं। उन्होंने जब नौकरी से इस्तीफा दिया था, तब वे छतरपुर जिले के लवकुशनगर में एसडीएम थीं। दरअसल, निशा बांगरे विधानसभा चुनाव में बैतूल के आमला विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस से टिकट की दावेदार थीं। इसके लिए उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। निशा सुर्खियों में तब आईं, जब इस्तीफा मंजूर नहीं किए जाने पर वे सीधे सरकार से टकरा गईं थीं। इसी दौरान वे हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट चली गर्इं और वे आमला से भोपाल तक सरकार के खिलाफ पदयात्रा पर निकल गई थीं। कोर्ट के आदेश पर गत 23 अक्टूबर को सरकार ने उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया, लेकिन तब तक कांग्रेस आमला से मनोज माल्वे को प्रत्याशी घोषित कर चुकी थी। निशा को उम्मीद थी कि पार्टी माल्वे का टिकट काटकर उन्हें टिकट देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके दो दिन बाद निशा ने जब छिंदवाड़ा में कांग्रेस की सदस्यता ली, तो कमलनाथ ने कहा था, निशा बांगरे आप चिंता मत कीजिएगा। हम आपसे प्रदेश की सेवा कराएंगे। आप उदाहरण बनेंगी, कोई बात नहीं कि आप चुनाव नहीं लड़ रही हो। आपकी सेवा की आवश्यकता पूरे प्रदेश को है। निशा को उम्मीद थी की कांग्रेस सरकार बनने पर उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी, लेकिन कांग्रेस चुनाव हार गई और निशा के सपने टूट गए। हाल में कांग्रेस ने निशा को मुख्य प्रदेश प्रवक्ता की जिम्मेदारी सौंपी है।
परिवार चाहता है कि मैं नौकरी में वापस आ जाऊं
इस मामले में निशा का कहना है कि, कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के समय लोकसभा का टिकट देने का वादा किया था। मैं भिंड या टीकमगढ़ सीट से टिकट मांग रही थी, पर कांग्रेस ने अपना वादा पूरा नहीं किया। अब मेरा परिवार चाहता है कि मैं वापस नौकरी में आ जाऊं। इसके लिए मैंने जनवरी में सामान्य प्रशासन विभाग को पत्र लिखा है, पर अभी तक वहां से कोई जवाब नही आया। चूंकि सामान्य प्रशासन विभाग मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पास है, इसलिए मैं उनसे मुलाकात कर अपनी बात रखना चाह रही हूं, पर वे चुनाव में व्यस्त हैं। पूर्व में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब अधिकारियों ने त्यागपत्र देकर चुनाव लड़ा और चुनाव हारने के बाद वे फिर से नौकरी में आ गए।
यह अफसर भी राजनीति के बियाबान में गुम हुए
प्रदेश के जो अफसर राजनीति के बियाबान में गुम हो चुके हैं, उनमें रिटायर्ड आईपीएस अफसर एमपी वरकडे कांग्रेस से टिकट मांग चुके हैं. 2018 में डीआईजी पद से रिटायर हुए हैं, लेकिन उन्हें अब तक पद से लेकर टिकट दोनों का इंतजार बना हुआ है। वरद मूर्ति मिश्रा आईएएस की नौकरी छोडक़र राजनीतिक पार्टी बना चुके हैं, लेकिन अब उनकी सियासत में चर्चा तक नहीं होती है। इसी तरह से पूर्व आईएएस अफसर वी के बाथम भी कांग्रेस से टिकट मांगते रहे हैं। उधर, जबलपुर कमिश्नर रह चुके आईएएस अफसर बी. चंद्रशेखर ने भी राजनीति के लिए वीआरएस लिया था। वे कई महत्वपूर्ण विभागों में जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। उनका भी टिकट पाने का सपना अधूरा ही रह गया है। इधर, अजीता वाजपेयी पांडे का भी लगभग यही हाल है। उधर, रिटायर्ड आईएएस अफसर हीरालाल त्रिवेदी सपाक्स पार्टी के अध्यक्ष हैं, चुनाव में उनके साथ ही उनकी पार्टी को भी लोग नकार चुके हैं। प्रदेश में इनके अलावा कई अन्य अफसर हैं, जो राजनीति में जाने के लिए पार्टी की सदस्यता ले चुके हैं , लेकिन उन्हें अब तक निराशा ही हाथ लगी है। इनमें पूर्व आईएएस पन्नालाल सोलंकी, पूर्व आईपीएस अधिकारी पवन जैन , भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी गाजी राम मीणा और आजाद सिंह डबास के नाम शामिल हैं।