राज्यवर्धन सिंह को चुनौती देंगे बालमुकुंद गौतम

राज्यवर्धन सिंह-बालमुकुंद गौतम
  • लंबे समय से बदनावर में गौतम  दिखा रहे हैं सक्रियता

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में भले ही अभी विधानसभा के चुनाव होने में आठ माह का समय है, लेकिन शह और मात के खेल की चौसर अभी से बिछाना शुरु हो गई है। इसके लिए मुहरों को बैठाना शुरु कर दिया गया है। कांग्रेस का लक्ष्य इस दौरान पार्टी के लिए उन नेताओं को हर हाल में हराना बना हुआ है, जिनकी वजह से सरकार से बाहर होना पड़ा था। कमलनाथ ने पार्टी के लिए जयचंद बन चुके ऐसे नेताओं को मात देने के लिए मजबूत चेहरों की तलाश अभी से कर ली है। पार्टी की बगावत और सरकार से बाहर होने की टीस अब भी कमलनाथ के मन में बनी हुई है, यही वजह है कि वे हर हाल में श्रीमंत समर्थकों को चुनावी रण में मात देना चाहते हैं। श्रीमंत समर्थकों में से एक बदनावर से विधायक और मंत्री राजवर्धन सिंह के खिलाफ कांग्रेस एक मत से हारने वाले पूर्व विधायक एवं शराब ठेकेदार बालमुकुंद गौतम को उतारने की तैयारी कर चुकी है। गौतम द्वारा बदनावर से चुनाव लडऩे की बीते एक साल से चुनावी तैयारी की जा रही है। इसके लिए वे इस विधानसभा क्षेत्र में लगातार सक्रिय बने हुए हैं। माना जा रहा है कि गौतम को टिकट मिला तो राजवर्धन के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले एक होटल कांड में राजवर्धन का नाम खूब उछला था और कांग्रेस ने इसे खूब प्रचारित भी किया था। बदनावर राजपूत बाहुल क्षेत्र है। इसी को लेकर कांग्रेस उत्साहित है। हालांकि राजपूत के नाम पर भी गौतम का अंदरखाने विरोध बताया जा रहा है। लोग उन्हें उत्तर प्रदेश का राजपूत बताने से भी नहीं चूक रहे। जबकि बदनावर के स्थानीय राजपूत इसका विरोध करते हुए कहते है कि गौतम यूपी के ठाकुर है और उनका इस इलाके के राजपूतों से रोटी बेटी का कोई संबंध नहीं है। धार जिले की बदनावर विधानसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण हमेशा प्रभावी फैक्टर रहा है। इस सीट पर आजादी से अभी तक निर्दलीय उम्मीदवार को मौका नहीं मिला। यह विधानसभा सीट जनसंघ, भाजपा और कांग्रेस के बीच ही बदलती रही।
रहा राजपूतों का दबदबा
धार जिले की बदनावर विधानसभा पर राजपूत समाज के उम्मीदवारों का दबदबा रहा है। अब 14 विधानसभा चुनावों में से सात बार इस सीट से राजपूत उम्मीदवार विजयी रहा है। यही नहीं बदनावर का इतिहास देखें तो यहां पर कुछ अपवाद छोडक़र यहां हमेशा सत्ता के विपरीत निर्णय लेने की परम्परा रही है। सन् 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति की लहर जैसे माहौल में जब कांग्रेस ने प्रदेश में जबरदस्त बहुमत प्राप्त किया था, लेकिन बदनावर में कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव हार गए थे। यहां से भाजपा के रमेश चंद्र सिंह राठौर ने जीत दर्ज की थी। इसी प्रकार 1989 मे पूरे देश में राम लहर चली थी और प्रदेश में भाजपा ने जबरदस्त सीटें लेकर सरकार बनाई थी, तब भी यहां के मतदाताओं ने भाजपा की बजाए कांग्रेस के उम्मीदवार प्रेमसिंह दत्तीगांव को जीतवा कर भेजा था।  इसी तरह 1993 में जब प्रदेश मे कांग्रेस का जादू सिर चढक़र बोल रहा था और कांग्रेस का हर छोटा बड़ा नेता जीत गया था, लेकिन बदनावर के मतदाताओं ने कांग्रेस के बजाए भाजपा पर विश्वास जताया था।
राजपूतों और पाटीदारों बाहुल
क्षेत्र में राजपूत मतदाता करीब 35 से 40 हजार हैं। पाटीदार करीब 40 से 45 हजार मतदाता हैं। वही 50 हजार आदिवासी मतदाता भी हैं, जबकि 15 से 18 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। इसके अलावा जाट , सिरवी, यादव, माली, राठौर समाज के लोग यहां रहते हैं। बदनावर की पूरी राजनीति राजपूत और पाटीदार मतदाता के इर्द गिर्द ही घूमती है। यही निर्णायक मतदाता हैं और यही कारण है कि दोनों ही प्रमुख पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस राजपूत और पाटीदार प्रत्याक्षी चुनने में ज्यादा विश्वास रखती है। पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस से राज्यवर्धन सिंह और बीजेपी से भंवर सिंह शेखावत दोनों राजपूत उम्मीदवार थे ।
ऐसा है बदनावर का भूगोल
बदनावर विधानसभा क्षेत्र की सीमा धार, रतलाम, उज्जैन, इंदौर, झाबुआ जिलों को टच करती हैं। इस इलाके में खेती किसानी वाले मतदाता अधिक हैं। राजपूत और पाटीदारों के पास जमीन अच्छी मात्रा में है। एक बड़े भू भाग पर खेती की जाती है और क्षेत्र के किसान सीजन की फसलों के साथ ही साथ ही सब्जियां भी उगाते हैं। जो बड़े शहरों तक भी भेजी जाती हैं। बदनावर, इंदौर-रतलाम- उज्जैन-धार जैसे शहरों के बीच स्थित होने के कारण व्यापार व्यवसाय की दृष्टि से भी संपन्न माना जाता है ।

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