बाबू कम…विभाग हो न जाएं बेदम!

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में सरकार एक साल के अंदर 2 लाख सरकारी पदों पर भर्तियां करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए प्रारंभिक तैयारियां शुरू हो गई है। वहीं दूसरी तरफ स्थिति यह है कि मंत्रालयीन सेवा के कर्मचारी लगातार सेवानिवृत हो रहे हैं। लेकिन विडंबना यह है कि उनकी जगह दूसरी भर्तियां नहीं हुई हैं। इस कारण मंत्रालयीन सेवा के आधे से ज्यादा पद खाली हैं। नियमित भर्ती नहीं होने के कारण कर्मचारी संघों को इन पदों के लैप्स होने का खतरा है। वहीं विभागों में बाबूओं की कमी के कारण आशंका जताई जा रही है कि विभाग बेदम न हो जाएं। देखा जाए तो मप्र में रोज नए ऐलान हो रहे हैं। राज्य सरकार भी जमीनी स्तर पर कसावट की बात कर रही है। लेकिन इन ऐलानों और उसके क्रियान्वयन और कसावट में एक पेंच फंसा है। वो ये है कि जिन अधिकारियों-कर्मचारियों पर इसका जिम्मा है, वो ही काम के बोझ तले दबे हैं। उस पर तुर्रा ये कि राज्य में तैनात कई अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते हैं।
जानकारी के अनुसार वर्तमान में मंत्रालय सेवा के 68 प्रतिशत पद खाली। नियमित भर्ती नहीं होने के कारण कर्मचारी संघों को इन पदों के लैप्स होने का खतरा है।  वहीं विभागों के कामकाज प्रभावित हो रहे है, क्योंकि जो कर्मचारी सेवानिवृत्त हुए उनके हिस्से का काम मौजूदा कर्मचारियों के पास है। विभागों द्वारा इन कर्मचारियों के हवाले किए गए कामों की गति धीमी है। असर प्रदेश के निचले स्तर तक पड़ रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार मंत्रालयीन सेवा में फिर कभी भर्ती ही नहीं हुई। सुपरवाइजर के पांच स्थाई पद हैं, लेकिन अब केवल गंगाराम सिंह ही बचे हैं। वॉलमैन जैसे पदों पर तो वर्षों से नियुक्तियां नहीं हुई। भृत्य के स्थाई व अस्थाई को मिलाकर 441 पद हैं, जिनमें से केवल 261 ही भरे हैं। बाकी खाली है। इस संबंध में सामान्य प्रशासन विभाग के एक अफसर का कहना है कि जब भर्ती करने संबंधी निर्देश मिलेंगे, तब कार्यवाही शुरू करेंगे। खाली पदों में घड़ीसाज व टेलर जैसे पद भी शामिल है। प्रथम कर्मचारी की नियुक्ति और उनके सेवानिवृत्त होने के बाद से कभी भर्ती ही नहीं हुई।
आईएएस भी काम के बोझ तले दबे
मप्र की आबादी लगातार बढ़ रही है और जिलों की संख्या भी 55 हो गई है। लेकिन इन जिलों को संभालने के लिये प्रशासनिक अधिकारियों की संख्या बढऩे के बजाए घट रही है। आलम ये है कि प्रदेश में तैनात 350 आईएएस काम के बोझ तले दबे हैं। इनमें से कई के पास एक से चार विभाग तक के अतिरिक्त प्रभार हैं। जिसकी वजह से लोगों के जनहित के रोजमर्रा के कामकाज प्रभावित हो रहे हैं और मौजूदा कर्मियों पर भारी दबाव पड़ रहा है। हालांकि राज्य सरकार लगातार जमीन स्तर पर नीतियों के कड़े क्रियान्वयन पर जोर दे रही है, लेकिन जिन अधिकारियों पर इसका जिम्मा है, वे काम के भारी बोझ के कारण इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पा रहे हैं। इसी बीच दूसरा डाटा ये बताता है कि 89 अफसर अगले पांच साल में रिटायर हो जाएंगे। अहम ये भी है कि केन्द्र सरकार ने अगस्त 2022 में मप्र आईएएस कैडर की समीक्षा की थी। तब राज्य में आईएएस कैडर संख्या 459 थी। दो साल गुजर जाने के बाद भी इस संख्या को बढ़ाने पर विचार नहीं किया गया। अफसरों की इस कमी को लेकर सरकार विपक्ष के निशाने पर है। विपक्ष का कहना है कि सरकार प्रमोटी अफसरों को अपने फायदे के लिए तवज्जो दे रही है।
865 कर्मचारी ही बचे
मंत्रालयीन सेवा के कर्मचारी प्रत्येक विभाग में कार्यरत हैं। माना जाता है कि इन्हें अन्य कर्मचारियों की तुलना में सरकार की रीति-नीति से जुड़ा ज्यादा अनुभव है, क्योंकि इनकी तैनाती हमेशा मंत्रालय में ही होती है। बाहर नहीं भेजा जाता। असल में सरकार को ताकत देने और निचले स्तर तक योजनाओं के बेहतर संचालन के लिए मंत्रालय सेवा के तहत 2244 पदों का सृजन किया था। जिनमें सहायक अनुभाग अधिकारी से लेकर चतुर्थ श्रेणी के पद शामिल थे।

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