- किसान जमीन देने को तैयार नहीं…
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। राजस्थान के कोटा से शुरू होकर चंबल नदी किनारे बनने वाला 420 किलोमीटर लंबा अटल प्रोग्रेस-वे फिलहाल अधर में लटका हुआ है। दरअसल, मप्र के किसान अटल प्रोग्रेस-वे के लिए जमीन देने को तैयार नहीं हैं। इस कारण अटल प्रोग्रेस-वे चंबल के बीहड़ में भटक गया है। ऐसे में अटल प्रोग्रेस-वे का निर्माण पांच वर्ष और पिछड़ सकता है। दरअसल किसानों के विरोध के चलते अब नए सिरे से सर्वे कराकर, डीपीआर तैयार की जा रही है। एक्सप्रेस-वे की जद में कम किसानों की जमीन आए, इसके देखते हुए सर्वे और डीपीआर तैयार की जाती है। इसके चलते 12 हजार करोड़ के प्रोजेक्ट की लागत बढक़र 17 हजार करोड़ रुपए तक हो सकती है। प्रोजेक्ट कॉस्ट भी बढ़ेगी। उत्तर प्रदेश को मप्र के तीन जिलों भिंड-मुरैना-श्योपुर के रास्ते राजस्थान के कोटा से जोडऩे वाली प्रदेश और केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी अटल प्रोग्रेस वे परियोजना ठंडे बस्ते में चली गई है। पहले तो चंबल के बीहड़ों में बनने वाले प्रोग्रेस-वे को पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी नहीं मिली। सरकार ने इसमें बदलाव कर प्रोग्रेस वे का सर्वे कराया तो किसानों ने जमीन देने से साफ इंकार कर दिया। इसे देखते हुए मार्च 2023 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सर्वे निरस्त कर पुन: सर्वे के आदेश दिए पर शासन की ओर से अब तक आगे के लिए कोई प्रक्रिया शुरू न होने से परियोजना ठप पड़ी है। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सरकार प्रोग्रेस वे को लेकर गंभीर थी, केंद्र सरकार इसे भारतमाला परियोजना में शामिल कर चुकी है। चुनाव से पहले कोई रास्ता नहीं निकला तो विपक्ष के लिए यह चंबल में बड़ा मुद्दा बनेगा, यह भी तय है। वर्ष 2017 में सरकार ने बीहड़ों से होकर एक्सप्रेस-वे बनाने की घोषणा की थी।
जारी हो गए थे टेंडर
गौरतलब है कि एक्सप्रेस-वे के निर्माण के लिए नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने टेंडर भी जारी कर दिया था। हालांकि एनएचएआई ने इस प्रस्ताव को निरस्त नहीं किया है। शिवराज सरकार ने ग्वालियर- चंबल संभाग में औद्योगिक कॉरिडोर बनाने और इस क्षेत्र को राजस्थान और उत्तर प्रदेश के सीधे जोडऩे के लिए अटल प्रोग्रेस-वेकी घोषणा वर्ष 2017 में की थी। सर्वे एमपीआरडीसी ने किया। इसके बाद इस प्रोजेक्ट को भारत माला प्रोजेक्ट में शामिल किया गया, जिसमें राज्य सरकार को भूमि अधिग्रहण करना था और केन्द्र सरकार को इस जमीन पर हाइवे बनाना था। किसान प्रशांत गूर्जर का कहना है कि अगर हम हट जाएंगे तो हमारे बच्चे कहां जाएंगे। जितना मुआवजा मिल रहा है, उतने में यहां जमीन मिलना मुश्किल है। एक्सप्रेस-वे में मध्य प्रदेश की कुल 27 सौ हेक्टेयर जमीन आ रही है। इसमें मुरैना, श्योपुर और भिंड जिले के सौ से अधिक किसानों की 2200 हेक्टेयर जमीन और 500 हेक्टेयर जमीन सरकारी है। किसानों को जमीन के बदले जमीन देने का सरकार ने वादा किया, लेकिन उसके लिए भी किसान तैयार नहीं हो रहे हैं। इस प्रोजेक्ट को न तो अभी तक निरस्त किया गया है और न ही पुरानी डीपीआर निरस्त की है।
कई बाधाएं आ चुकी हैं
पूर्व में इसका नाम चंबल प्रोग्रेस-वे रखा गया। इसका नाम कई बार बदला और अंत में अटल प्रोग्रेस-वे हुआ। 2021 तक इसके अलाइनमेंट का सर्वे हुआ और केंद्र ने इसे भारतमाला परियोजना में शामिल कर लिया, लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने बीहड़ों में एक्सप्रेस-वे बनाने पर यह कहकर रोक लगा दी कि इससे चंबल नदी के जलीय जीवों व बीहड़ के पर्यावरण को खतरा होगा। इसके बाद सरकार ने बीहड़ से दूर इस एक्सप्रेस-वे को बनाने की योजना बनाई। पहले अलाइनमेंट में 162 गांवों से होकर गुजरने वाला यह एक्सप्रेस-वे नए अलाइनमेंट में चंबल अंचल के 214 गांवों से गुजरता। इसके लिए मुरैना के 110, श्योपुर के 63 और भिंड के 41 गांवों में में किसानो की जमीन अधिग्रहण के लिए सर्वे भी हो गया।
कलेक्टरों को दिया था जिम्मा पर नहीं आए आदेश
अटल प्रोग्रेस वे के दूसरे सर्वे में सरकारी क्षेत्र की 140.36 हेक्टेयर, जबकि निजी क्षेत्र की 1778.299 हेक्टेयर जमीन आ रही थी। इससे 3000 से ज्यादा किसान प्रभावित हो रहे थे। इन जिलों में क्षत्रिय महासभा, किसान महासभा, माकपा आदि संगठनों के साथ किसानों ने विरोध किया था। इसे देखते हुए 28 मार्च को वीडियो कांफ्रेंस में सीएम ने चंबल संभाग आयुक्त सहित अंचल के तीनों जिला कलेक्टरों को पुन: जमीन चिह्नांकन के निर्देश दिए कि इसमें सरकारी जमीन अधिक शामिल करें। किसानों की जमीन न ली जाए।