काम के नाम पर कर दी जाती है मनमानी पदस्थापना

मनमानी पदस्थापना

प्रभारी मंत्री से लेकर संचानालय तक को किया जाता है दरकिनार

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के वन विभाग की कार्यशैली हमेशा से ही चर्चा में रहती है। इस विभाग के अफसर तथा नाम यथा गुण को सार्थक करने में कभी भी पीछे नहीं रहते हैं।  इसकी वजह है विभाग के अफसरों की कार्यशैली। जिस अफसर को जो कार्यशैली पसंद आती है वह उसका अनुसरण करने लगता है। इसमें नियमों कायदों व परंपराओं को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया जाता है।
हालात यह है कि अपनी पसंद व नापसंद के चलते इस विभाग के मैदानी अफसर कार्य आवंटन के नाम पर अधीनस्थ अफसरों की मनमर्जी से नई पदस्थापना तक करने में पीछे नहीं रहते हैं। नियमानुसार जब किसी भी कर्मचारी की कोई भी विभाग जिले के अंदर नई पदस्थापना करता है तो उसके लिए उसे जिला प्रभारी मंत्री से अनुमोदन प्राप्त करना होता है।   अगर किसी कारणवश ऐसा करना संभव नहीं होता है तो फिर विभाग से अनुमति लेनी होती है, लेकिन मैदानी अफसरों द्वारा इस नियम का पालन ही नहीं किया जा रहा है। हद तो यह है कि का वन विभाग में सर्किल और वन मंडलों में पदस्थ आईएफएस अफसर द्वारा मैनेजमेंट फार्मूले के तहत मैदानी कर्मचारियों के अपने हिसाब से तबादले किए जा रहे हैं। यह तबादले कार्य आवंटन के नाम पर किए जा रहे हैं। खास बात यह है कि यह जानकारी जब विभाग के उच्च स्तर तक पहुंचती हैं तो विभाग संबंधित अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने की जगह विभाग द्वारा नोटिस जारी कर इतिश्री कर ली जाती है। इस मामले में भी विभाग द्वारा मैदानी अफसर के रसूख को देखकर कार्रवाई की जाती है। ऐसे ही एक मामले में अपवाद स्वरूप बीते चार माह पहले हरदा डीएफओ नरेश दोहरे को जरुर निलंबित किया गया है। ऐसे ही अन्य एक मामले में हाल ही में उत्तर बालाघाट के डीएफओ अभिनव पल्लव को नोटिस जारी किया गया है। वन विभाग में स्थानांतरण नीति की कंडिका 12.3 में स्पष्ट प्रावधान है कि प्रभारी मंत्री अथवा कलेक्टर के अनुमोदन के साथ ही सर्किल अथवा वन मंडलों में कार्य आवंटन के लिए डिप्टी रेंजर से लेकर बीट गार्ड तक के तबादले का अधिकार मुख्य वन संरक्षक, वन संरक्षक और डीएफओ को दिए गए हैं, लेकिन वन विभाग में प्रभारी मंत्री, कलेक्टर अथवा मुख्यालय के अनुमोदन के बिना ही सर्किल और वन मंडलों में कार्य विभाजन के नाम पर मैनेजमेंट के आधार पर तबादले का खेल जमकर खेला जा रहा है। पिछले दिनों बैतूल सर्किल के पश्चिम बैतूल वन मंडल, दक्षिण बैतूल वन मंडल और होशंगाबाद वन मंडल में जिला प्रभारी मंत्री के अनुमोदन लिए बिना ही कार्य आवंटन के नाम पर मैदानी अमले की नए सिरे से पदस्थापनाएं कर दीं गईं। सूत्रों के दावों पर भरोसा करें तो इस तरह का खेल 2 दर्जन से अधिक वन मण्डलों में किया जा रहा है। यही नहीं इस तरह का खेल पूरे साल चलता रहता है।
किसी का निलंबन तो किसी को नोटिस
एक ही तरह के मामलों में विभाग के आला अफसर अलग-अलग तरह की कार्रवाई करने में भी महारत रखते हैं। यही वजह है कि एक जैसे ही मामलों में किसी को निलंबित कर दिया जाता है तो किसी को नोटिस देकर मामले का पटाक्षेप कर दिया जाता है। इसको इससे ही समझा जा सकता है कि कार्यआंवटन के नाम पर किए गए तबादलों के एक मामले में जहां हरदा डीएफओ नरेश दोहर को निलंबित किया गया , तो वहीं उत्तर बालाघाट में पदस्थ अभिनव पल्लव और ग्वालियर में पदस्थ डीएफओ बृजेंद्र श्रीवास्तव के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई तक नहीं की गई है। इसके पहले बैतूल में पदस्थ रहे एपीसीसीए मोहन मीणा ने भी 100 से अधिक तबादले किए थे। विधानसभा में मामला उठने के बाद भी उन पर इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की गई।
जारी किए गए नोटिस
उत्तर वन मंडल बालाघाट में पदस्थ डीएफओ अभिनव पल्लव के खिलाफ अखिल भारतीय सेवाएं (अनुशासन एवं अपील) नियम 1969 के नियम 10 के अंतर्गत कार्रवाई करने का निर्णय लिया गया है।  इन पर आरोप है कि जब वे 2019-20 में ग्वालियर में पदस्थ थे ,तब इन्होंने 83 कर्मचारियों की कार्य आवंटन के नाम पर तबादले किए थे। इन से स्पष्टीकरण मांगा गया था। स्पष्टीकरण का जवाब संतोषजनक नहीं होने के बाद अभिनव पल्लव के खिलाफ कार्यवाही का निर्णय लिया गया। दिलचस्प पहलू यह भी है कि ग्वालियर में ही पदस्थ बृजेश श्रीवास्तव के खिलाफ भी कार्य विभाजन के नाम पर स्थानांतरण किए जाने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।

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