कर्मचारियों के प्रमोशन पर जारी है मनमानी

मध्यप्रदेश
  • अब तक हो चुका है सवा लाख कर्मचारियों का नुकसान
    विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम।
    मध्यप्रदेश ऐसा राज्य बन चुका है, जहां पर आला अफसरों की तो बल्ले-बल्ले है, लेकिन छोटे कर्मचारियों की कोई पूछ परख नहीं है, फिर मामला पदोन्नति का हो या फिर उन्हें मिलने वाली अन्य तरह की सुविधाओं का। छोटे कर्मचरियों को पदोन्नति का फायदा नहीं मिले, इसके लिए बगैर सरकारी आदेश के रोक लगा रखी है। इसकी वजह से बीते आठ सालों में बिना प्रमोशन के सवा लाख से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत्त होने का मजबूर हो चुके हैं। इसका खुलासा भी एक सूचना के अधिकार में मिली जासनकारी से हुआ है। अहम बात तो यह है कि पदोन्नति का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है, लेकिन इसके पहले कई बार मप्र हाईकोर्ट अनेक मामलों में साफ कर चुका हे कि पदोन्नति पर कोई रोक नहीं है। हाईकोर्ट में अलग-अलग बेंचों में लगे कुछ प्रकरणों में कर्मचारियों को पदोन्नति भी मिल चुकी है। इसके बाद भी सरकार व शासन इस मामले में लापरवाह बना हुआ है। दरअसल इसकी वजह है इस मामले में अखिल भारतीय सेवा और राज्य सेवा से आने वाले अफसर प्रभावित नही हो रहे हैं जिसकी वजह से वे पूरी तरह से लापरवाह बने हुए हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2016 में हाईकोर्ट जबलपुर ने पदोन्नति नियम 2002 को निरस्त कर दिया था। तब से अब तक तीन सरकारें बदल चुकी हैं, लेकिन कोई भी सरकार पदोन्नति का रास्ता नहीं निकाल पाई हैं। मामला पदोन्नति में आरक्षण को लेकर फंसा हुआ है। इसको लेकर शिवराज सरकार ने समिति भी बनाई और वरिष्ठ अधिवक्ताओं से नियम भी बनवाए पर अभी तक कोई रास्ता नहीं निकल पाया। इस बीच हजारों अधिकारी-कर्मचारी बिना पदोन्नत हुए ही सेवानिवृत्त हो गए। शिवराज सरकार के बाद कमलनाथ सरकार भी 15 माह के लिए आई पर उसने भी कुछ नहीं किया। मार्च 2020 में फिर शिवराज सरकार बनी और उन्होंने पदोन्नति के विकल्प के रूप में उच्च पद का प्रभार देने का निर्णय लेकर कर्मचारियों को साधने का प्रयास किया। प्रकरण अब भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। अब 2016 के बाद से यह चौथी सरकार है और कर्मचारियों को उम्मीद है कि मोहन सरकार पदोन्नति में आरक्षण को लेकर कोई ठोस प्रयास कर इसका रास्ता निकालेगी। इसी बीच पशुपालन विभाग, नगर निगम, स्कूल शिक्षा समेत कुछ विभागों के कर्मचारी पदोन्नति को लेकर सिंगल-सिंगल याचिकाएं लगाई, जिसमें उन्हें पदोन्नति का लाभ भी मिल गया है। हाईकोर्ट ने कई प्रकरणों में कहा है कि पदोन्नति में कोई रोक नहीं है। वहीं, कार्यालय आयुक्त चिकित्सा शिक्षा सतपुड़ा भवन में ग्वालियर के एक व्यक्ति द्वारा सूचना का अधिकार लगाया गया था, जिसमें जानकारी चाही गई कि अपने अधीनस्थ कार्यालयों में वर्ष 2016 से पदोन्नतियां नहीं की जा रही हैं। उक्त पदोन्नतियों पर जिस आदेश से रोक लगाई है, उस आदेश की प्रमाणित प्रति मांगी गई। इसमें करीब बीस दिन पहले 30 जुलाई की तिथि में जवाब दिया गया कि पदोन्नतियों पर रोक संबंधी कोई भी आदेश संचालनालय की राजपत्रित शाखा द्वारा जारी नहीं किया गया है। सपाक्स के अध्यक्ष केएस तोमर का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति पर कोई रोक नहीं लगाई है। सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ पदोन्नति के आदेश को पालन करवाने के मामले में सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कई प्रकरणों में हाईकोर्ट ने कहा है कि पदोन्नति पर कोई रोक नहीं है। वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति दी जा सकती है, लेकिन सरकार पदोन्नति ही नहीं देना चाहती है।
    सात लाख कर्मचारियों को इंतजार
    मध्य प्रदेश के लगभग सात लाख कर्मचारियों का आठ साल से पदोन्नति का इंतजार खत्म नहीं हो रहा है। वैसे इसे लेकर सरकार भी गंभीर नहीं है और दो साल में दो समितियां भी बना चुकी है, पर समितियों की अनुशंसा का लाभ सिर्फ कार्यवाहक पदोन्नति में सिमट गया है। वरिष्ठ पद का प्रभार देने की इस वैकल्पिक व्यवस्था में कर्मचारियों को आर्थिक लाभ से वंचित होना पड़ रहा है। प्रदेश में हर माह औसतन डेढ़ हजार कर्मचारी सेवानिवृत हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इसलिए अप्रैल 2016 से पदोन्नति पर रोक लगी है। इस बीच 1 लाख 25 हजार से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत हो चुके हैं। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को मध्य प्रदेश लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 खारिज किया था।

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