समानांतर सिनेमा की एक और स्मिता…. भूमिका दुबे…

समानांतर सिनेमा

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। किसी ने कब सोचा था कि कमर्शियल सिनेमा से इतर आर्ट फिल्मों से अपनी शुरुआत करने वाली एक सीधी सादी, दुबली पतली और सांवल वर्ण की युवती एक दिन इसी सिनेमा के माध्यम से कुछ ऐसा कर गुजर जाएगी कि देश ही नहीं दुनिया में उसकी खूबसूरत अदाकारी के चर्चे आम होंगे और कमर्शियल सिनेमा भी उसका मुरीद हो जाएगा.. नाम तो याद है न स्मिता पाटिल.. अब तमाम सालों के बाद एक बार फिर उन्हीं स्मिता का अक्स एक और अभिनेत्री में दिखाई दे रहा है.. गर्व करने की बात यह है कि यह अभिनेत्री मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से नाता रखती है…..  महज एक दशक से भी कम समय में काम के साथ नाम और दाम कमाने वाली इस अभिनेत्री का नाम है भूमिका दुबे..
पहली वेब सीरीज टाइपराइटर
भूमिका के कलापथ पर एक नजर डालें तो मानव कौल जैसे मंजे हुए डायरेक्टर के साथ देश दुनिया में थिएटर करने के बाद भूमिका ने बेव सीरीज की ओर रुख किया और इनकी पहली वेब सीरीज थी टाईप राइटर.. जॉय घोष के निर्देशन में इस सीरीज में अपने अभिनय की छाप छोड़ने वाली भूमिका के कदम इसक बाद जमते चले गए। नितिन कक्कड़ के निर्देशन में कृतिका कामरा के साथ पहली फिल्म मित्रों से अपने अभिनय को और निखारा और फिर फिल्म मोतीचूर चकनाचूर में नवाजउद्दीन सिद्दीकी की बहन हेमा का किरदार निभाकर रातों रात शोहरत की बुलंदियों पर पहुंच गयीं। हॉट स्टार पर वेब सीरीज फियर, सोनी लिव पर योर ऑनर में भूमिका की भूमिका लाजवाब रही है। लगभग 25 से ज्यादा कमर्शियल एड करने वाली भूमिका को एक शॉर्ट फिल्म अगला स्टेशन के लिए रिलायंस मेट्रो फेस्टिवल में बेस्ट एक्ट्रेस का तमगा भी मिल चुका है।  
रंग नहीं कला देखो
भूमिका कहती हैं आज भी हमारे देश में कला से ज्यादा रंग रूप देखा जा रहा है… इंडस्ट्री भी इससे अछूती नहीं है वहां भी गोरी और सुंदर लड़कियां एक्टिंग पर भारी पड़ती हैं और रोल ले भागती हैं… लेकिन अब बदलाव भी आ रहा है टेलीविजन पर ही देख लीजिए… कई सीधी साधी और कमतर सुंदर लड़कियों पर सीरियल बेस्ड हो रहे हैं.. वे शायद यही कहना चाह रहे हैं कि रंग नहीं कला देखो।  निर्देशन और निर्माण में कदम रखने वाली भूमिका की चाहत अब ऐसी औरतों पर कहानियां बनाना है जो ग्रामीण परिवेश से जुड़ी हों। छोटे शहरों की इन कहानियों को समाज के सामने पेश करने का बीड़ा उठाने का काम भी भूमिका के ख्वाबों की ही एक तस्वीर है।
इंडिपेंडेंट सिनेमा की पक्षधर
भूमिका कहती हैं कि मुझे कामर्शियल की जगह छोटे बजट की आर्ट फिल्मों मेंं काम करने में ज्यादा मजा आता है। ऐसा नहीं है कि आर्ट फिल्मों को पहचान नहीं मिलती….. आप पहले का दौर देख लीजिए अर्थ जैसी फिल्मों को कितने लोगों का प्यार मिला है और इसमें काम करने वाली अभिनेत्रियों को भी बाद में हाथों हाथ लिया गया। ऐसे ही पैरलल सिनेमा से हम अपनी पहचान देश और दुनिया में बना रहे हैं। हमारी फिल्म 12 बाय 12 को ही लीजिए…. मेलबर्न से लेकर बीजिंग तक फिल्म फेस्टिवल्स में सराही गयी है और अब इस फिल्म को अक्टूबर में शिकागो फिल्म फेस्टिवल में लेकर जा रहे हैं और विश्वास है कि हमारे अभिनय पटकथा और निर्देशन को इस फिल्म के माध्यम से पूरी दुनिया के कला जगत में सराहना मिलेगी।
शॉर्ट फिल्म से बनाउंगी अपनी पहचान
भूमिका अब न सिर्फ अपने अभिनय के लिए जानी जाती हैं बल्कि वे अब फिल्मों का निर्माण करने में भी अग्रणी होने जा रही हैं। भूमिका थिएटर ग्रुप के बैनर तले उन्होंने न सिर्फ अभिनय बल्कि कॉस्टिंग डायरेक्टर से लेकर निर्देशन, लेखन, प्रोडक्शन में भी हाथ आजमाया है, उनके कौशल का ही नतीजा है कि उनकी साइकिल.. ची पटाका दुम्पा जैसी शॉर्ट फिल्में जो भोपाल की कहानी पर ही बेस्ड हैं ओटीटी प्लेटफार्म पर धूम मचाने को तैयार हैं।
जनता ही है गॉड फादर
भूमिका कहती हैं भले ही बॉलीवुड में यह माना जाता हो कि वहां काम करने के लिए किसी गॉड फादर का होना जरूरी है… लेकिन मेरा मत इससे जुदा है… कलाकारों का अगर कोई गॉड फादर है तो वह जनता है जो उन्हें देखती है और उनके काम को सराहती है।  वे सबूत देते हुए कहती हैं कि आप मिर्जापुर को ही देख लीजिए… आज न जाने कितनी ए ग्रेड फिल्मों पर यह सीरीज भारी पड़ रही है। पिछले पांच सालों के ट्रेंड पर नजर डालें तो इंडस्ट्री में न जाने कितने ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने गुमनामी के अंधेरे से निकलकर बॉलीवुड को हैरान कर दिया है…. सही मायने में देखा जाए तो आज बड़े नाम नहीं बल्कि एक्टर की कदर बढ़ी है।
रग रग में थिएटर
भोपाल के नामी थिएटर आर्टिस्ट गोपाल दुबे की बेटी भूमिका का बचपन से ही एक्टिंग से नाता होना स्वाभाविक था, इसी का परिणाम यह हुआ कि मुंबई में मास कम्युनिकेशन की डिग्री लेने पहुंची भूमिका ने जल्द ही मायानगरी से देश का दिल दिल्ली की ओर रुख कर लिया क्योंकि जो चाहत उनके भीतर बस रही थी वह नेशनल स्कूल आफ ड्रामा में ही पूरी हो सकती थी। 2012 में एनएसडी में प्रवेश के बाद जब भूमिका वहां से डिग्री लेकर निकलीं तो उनके सामने अभिनय का एक बड़ा संसार उनकी आगवानी के लिए खड़ा था लेकिन कला को समर्पित भूमिका ने आर्ट फिल्मों का रास्ता अपनाया और धीरे धीरे
ही सही अपने कदम अभिनय की दुनिया में जमाने शुरू कर दिए।

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