
- जल संरक्षण और संग्रहण के काम नहीं आ रहे तालाब
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भोपाल में गर्मी के दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट से निपटने और भू जल स्तर ठीक रखने के लिए केंद्र सरकार ने अमृत सरोवर योजना शुरू की थी। योजना के तहत जिले में अमृत सरोवर भी बन गए। लेकिन अब ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट की आहट होने लगी है तो ऐसे में जिले भर अमृत सरोवरों में बूंद भर पानी नहीं है, इन सरोवरों में धूल उड़ रही है। इनका उपयोग बच्चों द्वारा खेल के मैदान के रुप में किया जा रहा है। न तो ये सरोवर क्षेत्र का जल स्तर बढ़ाने में कामयाब हुए और न ही जल संग्रहण के काम ही आ पा रहे हैं।
गौरतलब है कि जिले में इस योजना के तहत बनाए गए अमृत सरोवरों पर करीब 12 करोड़ रुपए की राशि खर्च हो गई है, अधिकांश सरोवर बन चुके हैं। लेकिन यह तालाब खाली पड़े हुए हैं, इनके बनने के बाद भी क्षेत्र के लोगों को इस गर्मी में लाभ नहीं मिल पा रहा है। यदि इनमें पानी होता तो क्षेत्र का जल स्तर बढ़ता और गर्मी के दिनों में पशु पक्षियों के लिए पानी मिलता, लेकिन यह योजना मूल उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर सकी। इससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं कि कहीं इस योजना के क्रियान्वयन में तो कोई चूक नहीं हुई है।
75 तालाबों का होना था निर्माण
जिले में अमृत सरोवर योजना के तहत करीब 12 करोड़ की लागत से बनाए गए तालाबों में अमृत रूपी पानी ही नहीं बचा। इस योजना से 75 तालाबों का निर्माण किया जाना था, लेकिन बनाने वालों ने तालाब बनाने के आधारभूत सिद्धांतों की अनदेखी की। इसे केवल दिखावे के लिए बनाया गया। परिणाम यह रहा कि जब पानी की जरूरत है उन तालाबों से धूल उड़ रही है। भोपाल जिले में कुल 222 ग्राम पंचायतें हैं, इनमें से जनपद पंचायत बैरसिया में 126 और फंदा में 96 पंचायतें हैं। इनमें से कुल 75 पंचायतों को अमृत सरोवर बनाने के लिए चिह्नित किया गया था। सबसे अधिक बैरसिया में 65 सरोवर करीब 10 करोड़ रुपये की लागत से और फंदा में 10 सरोवर करीब दो करोड़ रुपये की लागत से बनाए गए। इनको बनाने के पीछे वर्षा जल का संचय मुख्य उद्देश्य था। कहा गया था कि तालाबों का पानी, गर्मी के मौसम में खेतों की सिंचाई के अलावा मत्स्य पालन, सिंघाड़े की खेती जैसे कई काम आएगा। 75 अमृत सरोवरों का तीन तरह के मद से निर्माण किया गया था। एक सरोवर के निर्माण में 10 से 15 लाख तो कुछ में 20 लाख तक खर्च हुए हैं। इतनी रकम खर्च होने के बाद भी सरोवरों का उपयोग जल संग्रहण में नहीं किया जा सका है। ग्रामीणों को इनसे कोई लाभ नहीं मिल रहा है। जिला पंचायत सदस्य विक्रम भालेश्वर का कहना है कि क्षेत्र में बनाए गए तालाब आधे अधूरे पड़े हैं। कई बार अधिकारियों से शिकायत हुई कि काम पूरा करा दें, लेकिन किसी ने नहीं सुनी।
आधे-अधूरे पड़े तालाब
वर्ष 2022 से इस पर काम शुरू हुआ, लेकिन अधिकांश तालाबों को आधा-अधूरा बनाकर छोड़ दिया गया। कई जगह तो केवल पाल उठाई गई, वहीं कई गांवों में नाले में पक्का स्ट्रक्चर बनाकर उसे अमृत सरोवर नाम दे दिया गया है। अब जब अंचल में जल संकट गहरा रहा है तो इन अमृत सरोवरों की तल से उठती धूल व्यवस्था को चिढ़ा रही है। जिन गांवों में सरोवर बने हैं उनमें बैरसिया की मनीखेड़ी, कदैयाचवर, आंकिया, सुनगा, दौलतपुरा, सूरजपुरा, सिधोंड़ा, कोलूखेड़ी खुर्द, जमूसर, कलां, गढ़ाकलां, बागसी, खंडारिया, कोटरा, परसौरा, दमीला, डुंगरिया, दोहाया, बर्राई, ललरिया, कदैयाशाह, गुनगा, कलारा, हिनोतिया पीरान, उनीदा, गढ़ाकलां, गढ़ाखुर्द, खेरखेड़ा, सुनगा, कदैयाचंवर, बबचिया, कोल्हूखेड़ी कलां, खजूरिया रामदास, बर्रीछीरखेड़ा, इमलियानरेंद्र, रमाहा, खितवास, बोरपुरा, कल्याणपुरा, जूनापानी, लंगरपुर, खजूरियाकलां, बहोरी, भोजापुरा, रानीखजूरी, धर्मरा, रामटेक, भमोरा पंचायत शामिल हैं। वहीं फंदा की सुरैयानगर, बोरदा, खौरी, झिरनिया, चंदेरी, निपानियासूखा में अमृत सरोवर बनाए गए हैं। जिला पंचायत सदस्य रश्मि भार्गव का कहना है कि अमृत सरोवरों के निर्माण में करोड़ों का बजट खत्म कर दिया, पर यह कहीं नजर नहीं आते हैं और जहां मौजूद हैं वहां जल नहीं रहता है। वहीं सीईओ जिला पंचायत इला तिवारी का कहना है कि पंचायतों में जल संरचनाओं, अमृत सरोवरों के जीर्णोद्धार, मरम्मत, गहरीकरण के लिए कार्य योजना पर काम शुरू कर दिया गया है। 30 जून तक जल गंगा संर्वधन अभियान के तहत यह कार्य पूरे कर लिए जाएंगे। जिससे वर्षा के मौसम का जल इनमें संग्रहित हो सके।