शिव सर्वोपरि… बाकी का कद नाप गए अमित शाह

शिव-अमित

हाल ही में भोपाल के एक दिनी प्रवास पर आए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के भोपाल दौरे ने कई नेताओं की मंशाओं पर पानी फेर दिया है। इन में वे नेता खासतौर पर शमिल हैं, जो अपना प्रदेश में राजनैतिक तौर पर कद बढ़ाने की मंशा पाले हुए थे। इस दौरे में अगर देखा जाए तो शाह द्वारा सबसे अधिक महत्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दिया गया है , जबकि श्रीमंत और प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा को आंशिक रुप से ही महत्व मिला है।

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। यह बात अलग है कि शाह के इस दौरे में सभी प्रमुख अयोजनों में एल मुरुगन, फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रहलाद पटेल प्रमुखता से मौजूद रहे , लेकिन शिव व वीडी के अलावा श्रीमंत ही ऐसे नेता रहे जिन्हें कुछ हद तक महत्व दिया गया है। यह बात अलग है कि शाह के इस  दौरे के समय नरेन्द्र सिंह तोमर पूरी तरह से दूर ही रहे। अब कहा तो यह जा रहा है कि शाह शिव को सर्वोपरि बताकर बाकी दिग्गजों का कद नाप गए  हैं।   इनमें प्रहलाद पटेल से लेकर फग्गन सिंह कुलस्ते तक शामिल हैं। खास बात यह है कि इनमें से जहां प्रहलाद पटेल पिछड़ा वर्ग से आते हैं तो वहीं फग्गन सिंह कुलस्ते आदिवासी समाज से, जबकि एम मुरुगन दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व मप्र के कोटे से  केन्द्रीय मंत्रिमंडल में करते हैं। इसके बाद भी इन तीनों ही नेताओं को विशेष महत्व नहीं दिया जाना बताता है कि उनके कामकाज से शाह खुश नही हैं। यह बात अलग है कि जातिगत व अन्य तरह के समीकरणों के चलते ही वे केन्द्रीय मंत्रिमंडल में बने हुए हैं। यही वजह है कि अब कहा जा रहा है कि शाह के इस दौरे ने कई दिग्गज नेताओं के कद बढ़ाने के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। लगभग यही हाल प्रदेश के दूसरे अन्य नेताओं के भी रहे हैं, जो अपने आप को अब तक शाह का करीबी बताते रहे हैं। उन नेताओं की मंशा पर भी पानी फिरता नजर आया है, जो इस दौरे में अपने नंबर बढ़ाने की फिराक में बने हुए थे। शाह के इस दौरे के समय प्रदेश के कोटे से मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की दूरी सर्वाधिक चर्चा में बनी हुई है। वे केन्द्र में कृषि मंत्री हैं। सभी केन्द्रीय मंत्रियों के आने के बाद भी तामर के न आने की वजह लोगों को अब भी समझ नहीं आ पा रही है। दरअसल तोमर को नरेन्द्र मोदी का करीबी माना जाता है। तोमर व श्रीमंत एक ही अंचल से आते हैं। इन दोनों नेताओं के बीच अंदरुनी तौर पर प्रतिस्पर्धा मानी जाती है। यही नहीं श्रीमंत के भाजपा में आने के बाद से प्रदेश में तोमर का कद कम होता दिख रहा है। वैसे भी बीते दो सालों में तोमर की मप्र में सक्रियता बेहद कम रही है। बहरहाल, शाह के दौरे के सियासी इफेक्ट के तहत आने वाले दिनों में युवा राजनीतिज्ञों का दबदबा बढ़ते के जरुर संकेत साफ तौर पर दिखे हैं।  
तीन केंद्रीय मंत्रियों के यह रहे हाल
इस मामले में तीन केन्द्रीय मंत्रियों के हाल बेहाल रहे हैं। इनमें प्रहलाद पटेल, एल मुरगन एवं फग्गन सिंह कुलस्ते शामिल हैं। केंद्रीय राज्यमंत्री प्रहलाद पटेल ने दमोह उपचुनाव के समय से अपनी सक्रियता प्रदेश में बढ़ा रखी है। उनका नाम कई बार भावी नेतृत्व की दौड़ में भी उछल चुका है, लेकिन पेगासस कांड में नाम आने के बाद से उनका सियासी ग्राफ नहीं बढ़ पा रहा है। वैसे भी उन्हें प्रदेश में पार्टी के अंदर शिव विरोधी नेता के रुप में जाना जाता है। शाह के दौरे में प्रहलाद सब जगह मौजूद जरुर रहे , लेकिन वे महज रस्म अदायगी करते ही नजर आए। उधर, एल मुरुगन भले ही मप्र के कोटे से राज्यसभा सदस्य बनकर केंद्रीय मंत्री बने हुए हैं, लेकिन वे प्रदेश की सियासत से पूरी तरह से दूरी बनाए हुए हैं। यह बात अलग है कि वे बड़ी बैठकों में जरुर दिखते हैं। वे भले ही मप्र के कोटे से हैं , लेकिन उनकी सक्रियता में सबसे बड़ी बाधा हिंदी भाषा है। वे तमिलनाडु से आते हैं। वे मप्र की जगह अपने गृह राज्य में अधिक सक्रिय रहते हैं। यह बात अलग रही की प्रदेश के कोटे से होने के कारण दौरे में सभी जगह मौजूद रहे, लेकिन उन्हें कोई तबज्जो मिलती नहीं दिखी है। यही नहीं वे भले ही दलित समुदाय से आते हैं, लेकिन प्रदेश में उनका कोई जनाधार और अपने वर्ग में पकड़ भी नहीं है। इसी तरह से केंद्रीय मंत्री कुलस्ते प्रदेश की सियासत का चर्चित चेहरा जरुर माने जाते है। भाजपा के आदिवासी वोट बैंक के गणित के कारण उपस्थिति जरूरी थी। वनवासी सम्मेलन में उपस्थिति की विशेष वजह भी यही रही है , लेकिन उन पर खास ध्यान नहीं दिया गया। भाजपा की बैठक के दौरान भी ऐसा रहा है। वे प्रदेश में बहुत कम सक्रिय रहते हैं। प्रदेश के आदिवासी समाज में भी उनकी पकड़ खास नहीं रही है।

Related Articles