- सियासी सुस्ती के बीच किसान खाद में उलझे
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मतदान की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब प्रदेश में पूरी तरह से सियासी सुस्ती छाई हुई है, लेकिन इस बीच प्रदेश का अन्नदाता खाद के लिए परेशान है, लेकिन कोई भी उसकी इस परेशानी को दूर करता नजर नहीं आ रहा है। हालात यह है कि किसान बुबाई छोडक़र खाद के लिए सोसाइटी से लेकर विपणन केंद्रों के बाहर लंबी-लंबी लाइन लगाने के लिए मजबूर बना हुआ है।
यह हालात प्रदेश में इसी साल ही नहीं बने हैं, बल्कि हर साल बनते हैं, लेकिन राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी और प्रशासनिक अक्षमता की वजह से हर साल किसानों को खाद के लिए इसी तरह से जूझना पड़ता है। इसकी वजह से किसानों को हर साल खाद की ङ्क्षचता से गुजरना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि किसानों के सामने खाद का संकट एक अंचल में है, बल्कि प्रदेश के हर अंचल में बना हुआ है, जिसकी वजह से किसानों की लाइनें अल सुबह से शुरु हो जाती हैं और देर शाम तक लगी रहती हैं। सोमवार को ऐसी ही तस्वीर खरगोन में देखने को मिली। खंडवा, जबलपुर सहित ज्यादातर जिलों की यही स्थिति है।
विभागीय अधिकारी चुनाव में ड्यूटी को खाद वितरण में में देरी का कारण बता रहे हैं। किसानों ने खरीफ सीजन में बेमौसम बारिश की मार से फसलों के बर्बाद होने के चलते रबी में सपने देखे थे, लेकिन खाद नहीं मिलने से इस सीजन में भी फसलें कमजोर होने की आशंका बढ़ गई है। अगर अंचल के हिसाब से देखें तो मालवा, मध्य, विंध्य, चंबल और महाकोशल में 60 फीसदी बुवाई पूरी हो चुकी है लेकिन खाद की किल्लत ने फसलों की बढ़त को प्रभावित करना शुरू किया है। महाकोशल और मध्य के जिलों में दिवाली बाद बोवनी होती है, वहां भी किसान खाद के लिए परेशान हो रहे हैं। मालवा के इंदौर उज्जैन संभाग में डीएपी और एनपीके की जरूरत थी, लेकिन किसानों को मुहैया नहीं हो पाया। अब गेहूं और आलू में जरूरत है यूरिया की। अगर यूरिया फसलों को नहीं मिली तो उत्पादन पर 30 प्रतिशत की कमी आ सकती है। उधर, निमाड़ में मुख्य रूप से रबी सीजन में गेहूं और चना की फसलें होती हैं। इसमें से चने की 80 प्रतिशत तक बोवनी हो चुकी है, जबकि गेहूं की बोवनी का काम जोरों पर है। इसके लिए जरुरी डीएपी और एनपीके की भारी कमी से किसानों को जूझना पड़ रहा है। अब किसानों को आगे फसलों की बढ़वार को लेकर चिंता है और वे कह रहे हैं कि यूरिया अगर नहीं आया तो संकट खड़ा हो जाएगा। आलू, प्याज, लहसुन से लेकर गोभी, भिंडी, धनिया, अदरक आदि में सल्फर, पोटाश और एनपीके चाहिए। भारतीय किसान संघ के खरगोन जिला प्रमुख सदाशिव पाटीदार बताते हैं कि आचार संहिता के नाम पर पहले किसानों को खाद की कमी बनी रही। अच्छी पैदावार के लिए यूरिया ओर एनपीके की जरूरत है, जिसकी व्यवस्था शासन शीघ्र करे। महाकौशल अंचल में दिवाली के बाद से ही धान की कटाई जारी है। इसके बाद दूसरी फसल की बुबाई होनी है। अब आगे किसानों को डीएपी की जरूरत है। यही नहीं मटर के लिए भी खाद की जरूरत है।
प्राइवेट में डेढ़ गुना अधिक कीमत
ग्वालियर-चंबल के जिलों में सरसों की बुवाई का काम पूरा हो चुका है। पहले से ही किसान दो बार बुबाई करने से परेशान हैं। पहली बुबाई के बाद फसल में कीड़ा लगने से बीज बर्बाद हो गया। ऐसे में कुछ जगह सरसों लेट हो गई है , तो वहां दोबारा पलेवा करना पड़ रहा है। अब गेहूं की बुवाई के लिए पलेवा के बाद बुवाई का काम शुरू होने वाला है। ऐसे में डीएपी और एनपीके की किल्लत परेशान कर रही है। अंचल में ब्लैक में खाद उपलब्ध है , लेकिन इसके लिए किसानों को डेढ़ गुना अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है। किसानों द्वारा इसकी शिकायत भी की जा चुकी है , लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं हो रहा है।