- कमलनाथ व पटवारी की मेहनत हुई बेकार
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में एक के बाद एक चुनाव में कांग्रेस को लगातार मिल रही हार से निराशा बढ़ती ही जा रही है। उधर पहले विधानसभा, फिर लोकसभा और अब अमरवाड़ा विधानसभा उपचुनाव में मिली जीत से भाजपा में उत्साह का बातावरण बना हुआ है। कांग्रेस के लिए संतोष की बात यह है कि वह अमरवाड़ा उप चुनाव में भाजपा को बेहद कठिन चुनौती देने में सफल रही है।
यह बात अलग है कि यह सीट भी कांग्रेस की पंरपरागत सीट मानी जाती है, जिसकी वजह से यह तो पहले से ही तय था कि यहां मुकाबला कांटे का होगा, और परिणाम ने इस संभावना को सही साबित भी किया है। इस परिणाम से कांग्रेस में आने वाले दिनों में अंदरुनी कलह पूरी तौर पर सतह पर आना तय माना जा रहा है। दरअसल कांग्रेस अभी लोकसभा चुनाव में मिले नतीजे को लेकर आत्ममंथन के दौर से गुजर रही थी, हार के लिए अलग-अलग कारण गिनाए जा रहे थे, आखिर सभी 29 सीटों पर कैसे हार गई ? लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अभेद्य किला छिंदवाड़ा में भी सेंध लग गई और कद्दावर कमलनाथ भी अपना गृह क्षेत्र नहीं बचा पाए और पुत्र नकुल नाथ को लोकसभा की दहलीज तक नहीं पहुंचा पाए, इस बीच अब अमरवाड़ा उप चुनाव के परिणाम ने एक बार फिर कांग्रेस के सामने बड़ा सकंट खड़ा कर दिया है। अहम बात यह है कि यह उप चुनाव भी छिंदवाड़ा जिले में ही हुआ है और यहां पर भी कमलनाथ की मर्जी से ही प्रत्याशी उतारा गया है। बीते विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस ने कमलेश शाह पर दांव लगाया था और भाजपा ने मोनिका मनमोहन शाह बट्टी पर। मोनिका कभी गोंगपा के क्षत्रप रहे स्व. मनमोहन शाह की बेटी हैं, लेकिन उनकी हिन्दु विरोधी छवि ने उन्हें 25,086 वोटों के बड़े अंतर से हार का सामना करने को मजबूर कर दिया था। इधर 4 माह बाद ही लोकसभा चुनाव की घंटी बजी , तो भाजपा ने प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने का संकल्प पूरा करने के लिए कांग्रेस में तोडफ़ोड़ कर उसका मनोबल कमजोर करने की कोशिश की और उसमें उसे सफलता भी मिली, लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के कई कद्दावर नेता भाजपा में शामिल हो गए, इनमें अमरवाड़ा के विधायक कमलेश शाह भी शामिल थे।
भाजपा ने बूथ किया बेहद मजबूत
भाजपा ने शाह से विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिलवाकर यहां उप चुनाव का रास्ता साफ करवा दिया। जाहिर है कि जो चार माह पहले कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में मैदान में थे, अब भाजपा का झंडा थामकर अमरवाड़ा विधानसभा उप चुनाव में ताल ठोंक रहे थे। ऐसे में कांग्रेस ने भी तुरुप का इक्का धीरन शाह के रूप में निकाला। धीरन शाह और उनके परिवार की स्वीकार्यता पूरे क्षेत्र में थी, उनके प्रति सम्मान का भी भाव था। उनकी उम्मीदवारी घोषित होते ही भाजपा के रणनीतिकारों के माथे पर बल भी पड़ा, लेकिन संगठन के दम पर बड़ी से बड़ी लड़ाई को जीतने का माद्दा रखने वाली भाजपा ने हौसला नहीं खोया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की अगुवाई में चुनावी कैंपेन शुरू किया। भाजपा ने बूथ मैनेजमेंट को और मजबूत किया, वह ये जानती थी कि दल बदल से कमलेश शाह की छवि कुछ कमजोर हुई है, नजदीकी मुकाबले ये साबित भी किया कि ऊंट किसी भी करवट बदल सकता था। पहले कांग्रेस को यहां मजबूत माना जा रहा था, लेकिन गुजरते वक्त के साथ भाजपा यहां मुकाबले में आती गई और आखिर में जीत भाजपा के खाते में आ गई।
अब बुधनी और विजयपुर की बारी
इस उप चुनाव के परिणाम ने प्रदेश में अभी दो विधानसभा बुधनी और विजयपुर में होने वाले उपचुनाव के लिए भाजपा को उत्साहित कर दिया है। वैसे भी बुधनी शिवराज सिंह चौहान और विजयपुर मंत्री बनाए गए रामनिवास रावत का गढ़ है, ऐसे में माना जा रहा है कि यहां भाजपा को अधिक कठिन सिथति का सामना नहीं करना पड़ेगा। इधर बीना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे ने कांग्रेस से तो इस्तीफा दे दिया है, लेकिन उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से अब तक इस्तीफा नहीं दिया ।ऐसे में अभी यहां उप चुनाव कराने की नौबत आएगी या नहीं, ये आने वाले दिनों निर्मला सप्रे के राजनीतिक पैतरों पर निर्भर करेगा।
नाथ व पटवारी की मेहनत पर फिरा पानी
लोकसभा चुनाव हारने के बाद कमलनाथ ने इस सीट के उपचुनाव को नाक का सवाल बना लिया था। यही वजह है कि पहली बार किसी विधानसभा सीट पर कमलनाथ ने खुद लगातार तीन दिनों तक चुनाव प्रचार किया। यही नहीं उनके बेटे नकुलनाथ भी प्रचार में जमकर सक्रिय रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी भी दलबल के साथ सक्रिय रहे। चुनाव परिणाम कमलनाथ के अनुकूल नहीं आने से उनके और पटवारी के अरमानों पर पानी फिर गया है।