सात दशक बाद फिर मप्र में सफेद बाघों की दहाड़ से गूंजेंगे जंगल

 सफेद बाघों

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। सात दशक बाद एक बार फिर से मप्र के जंगलों में सफेद बाघों की दहाड़ सुनाई देगी। यह संभव होता दिख रहा है राज्य सरकार द्वारा संजय डुबरी टाइगर रिजर्व में सफेद बाघों को बसाने के लिए सैद्धांतिक सहमति प्रदान किए जाने से।
दरअसल इस रिजर्व में सफेद बाघों की ब्रिडिंग कराने के बाद उनसे होने वाले शावकों को जंगल के माहौल के अनुकूल बनाकर उन्हें खुले जंगलों में छोड़ने की योजना है। फिलहाल प्रदेश में इंदौर, ग्वालियर, सतना मुकुंदपुर और भोपाल में सफेद बाघ हैं। इसके बाद भी पड़ौसी राज्य छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों से भी सफेद बाघों को लाने के प्रयास किए जाने की तैयारी की जा रही है। इसकी वजह है उनके बीच अपस में  जींस क्रास की कोई समस्या न आए। इसके साथ ही वन विभाग ने महाराजा मार्तण्य सिंह जूदेव व्हाइट टाइगर सफारी एवं चिड़ियाघर मुकुंदपुर रीवा में मौजूद एक जोड़ा सफेद बाघ और बाघिन के शावकों को वाइल्ड (जंगली) बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। उन्हें तैयार करने के बाद पास के ही सीधी के जंगल में छोड़ने की योजना है। इनकी कुछ समय तक जंगल में रेडियो कालर के माध्म से निगरानी भी की जाएगी। जिससे उनके बारे में वास्तविक सिथति पर नजर रखी जा सके। मप्र में वन विभाग पहले भी इस तरह का सफल प्रयोग कर चुका है।
सात सालों तक का लग सकता है समय
सात दशक पहले बनाए गए संजय डुबरी टाइगर रिजर्व में अब सफेद बाघों को लाने की तैयारी की जा रही है। इसमें पांच लेकर सात सालों तक का समय लगने का अनुमान है। इसके लिए वाइल्ड लाइफ मुख्यालय विशेष परियोजना में शामिल करते हुए ऐक्शन प्लान तैयार करने का काम कर रहा है। दरअसल पूर्व में भी इन जंगलों में  सफेद बाघ होने की वजह से उनके लिए यहां की जलवायु को उनके अनुकूल माना जाता है। खास बात यह है कि विश्व का पहला सफेद बाघ सीधी के जंगल में ही पाया गया था। यह सफेद बाघ 1951 में रीवा महाराज मार्तण्ड सिंह जूदेव को एक सफेद बाघ के शावक के रुप में मिला था। जिसे वे अपने गोविंदगढ़ किले में ले आए थे। इस शावक का नाम बाद में मोहन रखा गया था। उसका पालन पोषण किले में किया गया था। माना जाता है कि इसी बाघ की संतानें पूरे विश्व में हैं।

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