समीक्षा के बाद आयुक्त प्रणाली पर होगा मंथन

आयुक्त प्रणाली
  • अपराधों का भी किया जाएगा तुलनात्मक अध्ययन

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। शिवराज सरकार द्वारा आनन-फानन में लागू की गई पुलिस आयुक्त प्रणाली की अब मोहन सरकार समीक्षा करने जा रही है। इसके बाद तय किया जाएगा कि इसे आगे बढ़ाया जाए या फिर इसमें फेरबदल किया जाए। दरअसल, भोपाल और इंदौर में इसके लागू होने के बाद भी अपराधों में लगाम नहीं लग पा रही है। इसके उलट आमजन की सुनवाई भी मुश्किल हो गई है। इस प्रणाली को लागू हुए तीन साल से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन थानों और मैदानी स्तर पर पुलिस का अमला बढऩे  की जगह कम हो गया है, जबकि अफसरों की फौज आ गई है। इससे सरकार का खर्च भी बढ़ गया है और सडक़ों पर पुलिस कम हो गई है। 9 दिसंबर 2021 से भोपाल और इंदौर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने के बाद यह पहला मौका है, जब सरकार इसकी समीक्षा करने जा रही है। दोनों शहरों की अपराधिक रिपोर्ट के आधार पर तय होगा कि पुलिस आयुक्तों के अधिकारों में कटौती की जाए या फिर बढ़ोत्तरी। हालाकि आयुक्त प्रणाली की समीक्षा विधानसभा सत्र के आसपास होने की संभावना है। सामान्यतः: 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू की जाती है। मप्र में इंदौर और भोपाल में लंबे समय से इस प्रणाली की मांग की जा रही थी, लेकिन 3 साल पहले सरकार ने अचानक इन दोनों शहरों में इस व्यवस्था को लागू कर दिया था। तब भोपाल के शहरी क्षेत्र में 38 थाने और इंदौर के 36 थाना क्षेत्रों को पुलिस कमिश्नर प्रणाली में शामिल किया गया। ग्रामीण क्षेत्र में पुलिस अधीक्षक प्रणाली लागू है। यदि इस व्यवस्था से भोपाल एवं इंदौर शहर में अपराधिक ग्राफ में सुधार हुआ होगा, तो फिर उज्जैन, जबलपुर और ग्वालियर में में भी कमिश्नर प्रणाली अक्टूबर 2028 से पहले लागू की जा सकती है। यदि अपराधों में ज्यादा गिरावट नहीं दिखी, तो फिर दूसरे शहरों में इस व्यवस्था को लागू करने का फैसला टाल दिया जाएगा। इसके साथ ही मौजूदा पुलिस आयुक्तों के अधिकारों पर भी विचार होगा। बताया गया कि सरकार कुछ महीने पहले ही आयुक्त प्रणाली की समीक्षा करने वाली थी, लेकिन कतिपय वजहों से यह टल गयी।
दोनों शहरों में स्थिति यह है कि एक -एक दजर्न आईपीएस पदस्थ हैं। इससे इनके कार्यालय- स्टॉप और सुविधाओं पर भी भारी भरकम रकम खर्च करनी पड़ रही है। इसके उलट थानों में पुलिसकर्मी कम होते जा रहे हैं। आमजन भी परेशान है। उसे समझ ही नहीं आता है कि उसे कौन से अधिकारी के पास अपनी फरियाद लेकर जाना है। इसी तरह से निचले स्तर पर भी एएसपी और उीएसपी स्तर के अफसरों की भी संख्या अत्याधिक हो गई है। इनके स्टॉफ के लिए प्र्याप्त अमला नहीं होने से अधिकांश अफसरों के पास पुलिसकर्मी अटैच कर काम चलाया जा रहा है।  
आईपीएस अफसरों की हुई भरमार
पुलिस आयुक्त प्रणाली से पहले भोपाल एवं इंदौर में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रणाली लागू थी। जिसमें 4 आईपीएस अधिकारी होते थे। एक वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, 3 पुलिस अधीक्षक (मुख्यालय, उत्तर और दक्षिण) होते थे। पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने के बाद दोनों शहरों में आईपीएस अधिकारियों की संख्या लगभग चार गुनी हो गई है। दोनों शहरों में पुलिस आयुक्त समेत 16-16 आईपीएस अधिकारी पदस्थ हैं। इनमें 1 पुलिस आयुक्त, 2 अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, 8 पुलिस उपायुक्त, 12 अतिरक्ति पुलिस उपायुक्त होते हैं। हालांकि अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त पद पर राज्य पुलिस सेवा के अधिकारी भी पदस्थ है। दोनों शहरों में करीब 30 आईपीएस अधिकारी पदस्थ हैं। जबकि अन्य जिलों में पुलिस की कमान पुलिस अधीक्षक के हाथ में ही है। मप्र सरकार के गृह विभाग द्वारा विधानसभा में दिए गए अपराधिक आंकड़े और राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार पुलिस आयुक्त प्रणाली वाले शहर और पुलिस अधीक्षक प्रणाली वाले जिलों की कानून व्यवस्था में ज्यादा अंतर नहीं है।
चुनावी घोषणा में शामिल हैं अन्य शहर
पिछले विधानसभा चुनाव में जबलपुर, ग्वालियर में भी पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने की घोषणा की गई थी। जिस पर निकट भविष्य में अमल होगा। बताया गया कि अब मप्र के अन्य शहरों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने से पहले जनभावनाओं का ध्यान रखा जाएगा यानी जनप्रतिनिधियों का भी पक्ष लिया जाएगा। पुलिस आयुक्त प्रणाली में पुलिस को मजिस्ट्रियल अधिकार दिए जाते हैं। हालांकि भोपाल, इंदौर पुलिस को नई दिल्ली, नोएडा, लखनऊ, कोलकाता, मुंबई, चैन्नई पुलिस आयुक्त की तरह अधिकारी नहीं दिए गए हैं।

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