-जल संसाधन में हुए 800 करोड़ के एडवांस भुगतान का मामला …
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में आर्थिक गड़बड़िय़ों के मामले में भले ही राज्य की जांच एजेंसियां सरकारी अफसरों पर शिकंजा कसने में लापरवाह बनी रहती है , लेकिन अब ऐसे अफसरों की मुश्किलें केन्द्रीय एजेंसियां बढ़ाने जा रही हैं। पहले इसी तरह के एक मामले में ईडी यानि की प्रर्वतन निदेशाालय लोकायुक्त कार्यालय से जानकारी मांग चुकी है। अब इसके बाद ईडी द्वारा राज्य जल संसाधन विभाग द्वारा सिंचाई परियोजनाओं के लिए कथित तौर पर 800 करोड़ रुपए के एडवांस भुगतान घोटाले में प्रदेश की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) से एफआईआर की एक कॉपी मांगी गई है। इसके लिए ईडी कार्यालय ने ईओडब्ल्यू को धनशोधन कानून की धारा- 50 के तहत पत्र लिखा है। इस मामले में ईओडब्ल्यू ने इसी साल मार्च में एफआईआर दर्ज की थी। एफआईआर के मुताबिक, राज्य जल संसाधन विभाग ने अगस्त 2018 से फरवरी 2019 के बीच बांध और हाई प्रेशर पाइप नहर प्रणाली के निर्माण के लिए टेंडर निकाले थे। विभाग ने सात सिंचाई प्रोजेक्ट के 3,333 करोड़ रुपए के सात टेंडरों को मंजूरी दी थी। मंजूर टेंडर मुख्य रूप से बांध निर्माण और जलाशय से पानी की आपूर्ति के लिए निर्धारित प्रेशर पंप हाउस, प्रेशराइज्ड पाइप लाइन के साथ-साथ नियंत्रण उपकरण स्थापित करके संचाई के लिए पानी की आपूर्ति करने के लिए मंजूर किए गए थे। इसके बाद रीवा के मुख्य अभियंता गंगा कहार ने सरकार को जानकारी दी कि गोंड मेगा वृहद प्रोजक्ट के लिए शासन से 27 मई 2019 के आदेश में पेमेंट शेड्यूल की कंडिका 3 को शिथिल कर भुगतान कर दिया गया। इस भुगतान को करने से पहले संबंधित विभाग या राज्य शासन की अनुमति नहीं ली गई। जब इस मामले में शासन ने प्रमुख अभियंता व मुख्य अभियंता प्रोक्यूरमेंट, जल संसाधन विभाग से फाइलें तलब कीं, तब यह जानकारी सामने आई कि शासन की अनुमति के बिना ही प्रमुख अभियंता ने अपने स्तर पर सभी अभियंताओं को पत्र जारी कर दिया, जबकि शासन और एजेंसी के बीच अनुबंध के बाद किसी भी शर्त को हटाया और जोड़ा नहीं जा सकता था। इस मामले में यह भी सामने आया था कि परियोजनाओं के मुख्य अभियंताओं और अन्य क्षेत्र के अधिकारियों ने भी निर्धारित मानदंडों के उल्लंघन में परियोजनाओं के शुरू होने से बहुत पहले नहरों और दबाव वाले पाइपों के काम की सामग्री के भुगतान की प्रक्रिया की। इसके लिए 800 करोड़ रुपए से अधिक का अग्रिम भुगतान कर दिया। खास बात यह है कि अभी सभी योजनाएं अधूरी हैं। अब इस केस में ईडी की एंट्री होने की राह खुल गई है।
इस तरह से किया गया भुगतान
रीवा के मुख्य अभियंता गंगा कछार ने सरकार को जानकारी दी थी कि गोंड मेगा वृहद प्रोजक्ट के लिए शासन से 27 मई 2019 के आदेश में पेमेंट शेड्यूल की कंडिका 3 को शिथिल कर भुगतान कर दिया गया था। इसके बाद शासन ने इसकी पड़ताल की तो पाया कि शासन ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया। इस मामले में शासन ने प्रमुख अभियंता व मुख्य अभियंता प्रोक्यूरमेंट, जल संसाधन विभाग से फाइलें तलब की, जिसमें यह जानकारी सामने आई कि शासन की अनुमति के बिना ही इस शर्त को खत्म कर प्रमुख अभियंता ने अपने स्तर पर सभी अंभियंताओं को पत्र जारी कर दिया, जबकि शासन और एजेंसी के बीच अनुबंध के बाद किसी भी शर्त को हटाया और जोड़ा नहीं जा सकता। इस मामले में मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस द्वारा अधिकारियों को पूरी पड़ताल करने के निर्देश दिए गए थे।
नहीं दी जा रही जानकारी
जानकारी के अनुसार ईडी ने लोकायुक्त से रिटायर्ड आईएएस के खिलाफ एफआईआर की कॉपी मांगी है, ताकि मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत कार्रवाई की जाए, लेकिन लोकायुक्त द्वारा ईडी को कागजात ही मुहैया नहीं कराए जा रहे हैं। कागजात नहीं मिलने के कारण ईडी की जांच गति नहीं पकड़ पा रही है। दरअसल कई ऐसे अधिकारी है, इनके खिलाफ लोकायुक्त ने भले ही एक्शन लिया है, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। यही वजह है कि केंद्रीय एजेंसी ने हस्तक्षेप किया है। पिछले महीने 10 अक्टूबर को आबकारी विभाग के एसिस्टेंट कमिश्नर आलोक खरे के खिलाफ जानकारी उपलब्ध कराने के लिए लोकायुक्त डीजी कैलाश मकवाना को पत्र लिखा था। आलम यह है कि एक महीने बाद भी ईडी को दस्तावेज लोकायुक्त ने नहीं भेजा है। बताया जा रहा है की ईडी दो आईएएस अधिकारी के भ्रष्टाचार के अलावा एक आय के अधिक संपति के मामले में जांच करने की तैयारी मे है।
22/11/2022
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