भोज के एक दर्जन कर्मचारियों पर गिर सकती है बर्खास्तगी की गाज

बर्खास्तगी की गाज
  • गड़बड़ियों के लिए हो चुका है विवि विख्यात, प्रो.जैन पर हुई कार्रवाई के बाद बड़ी उम्मीदें

    भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। भोज विश्वविद्यालय अपने काम की वजह से कम और गड़बड़ियों की वजह से अधिक चर्चा में रहता है। यह प्रदेश का ऐसा पहला विवि है जिसके कुलपति से लेकर निचले कर्मचारियों तक पर भ्रष्टाचार से लेकर तमाम गड़बड़ियों तक  के आरोप लगते रहना आम बात हो चुकी है। यह पहला मौका है जब इस तरह के मामलों में विव द्वारा बड़ी और बेहद कठोर कार्रवाई करते हुए अपने एकमात्र प्रोफेसर प्रवीण जैन को बर्खास्त कर दिया है। इसके साथ ही उन एक दर्जन कर्मचारियों पर भी अब बर्खास्तगी की तलवार लटक गई ह, जिनके खिलाफ अभी जांच चल रही है। प्रो जैन  पर एक दर्जन गंभीर मामलों की जांच चल रही थी। उन पर आरोप सिद्ध होने के बाद बोर्ड आॅफ मैनेजमेंट की बैठक में उन्हें बर्खास्त करने का फैसला किया गया है। र्प्रवीण जैन की नियुक्ति 2003 में की गई थी। वे अपनी नौकरी से बीस साल भी पूरे नहीं कर सके उसके पहले ही उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है। उनके खिलाफ वित्तीय अनमितताओं के आरोप लगे थे । 28 बिंदुओं पर शिकायत के बाद अगस्त 2017 तत्कालीन कुलपति रविंद्र रामचंद्र कान्हेरे ने उन्हें निलंबित कर दिया था। इसकी वजह से वे बीते पांच साल से निलंबित चल रहे थे। उनका रीवा रीजनल सेंटर मुख्यालय बनाया गया था। खास बात यह है की उनकी  नियुक्ति संबधी  दस्तावेज गायब होने की वजह से उन पर विवि प्रशासन ने एफआईआर भी दर्ज कराई थी। निलंबन के साथ ही विधि में जैन को एक दर्जन बिंदुओं का आरोप पत्र जारी किया था जवाब से संतुष्ट नहीं होने पर विधि ने जांच कमेटी बनाई थी। पूर्व न्यायाधीश अनिल पारे और रविंद्र गुणाने जांच कर रिपोर्ट विवि भेजी थी। रिपोर्ट में आरोप सिद्ध पाए गए। उनकी जांच रिपोर्ट बोर्ड आॅफ मैनेजमेंट की बैठक में पटल पर रखी गई। बैठक में राज भवन द्वारा 9 अप्रैल 2018 को उनके विरुद्ध विधिक अभियत लेकर कार्रवाई संबंधी पत्र का भी हवाला दिया गया है। जैन के अलावा विधि में कई ऐसे कर्मचारी और असिस्टेंट प्रोफेसर पदस्थ हैं, जिसकी नियुक्तियां सही नहीं है। उनकी जांच कर सेवाएं समाप्त की जा सकती है।
    यह थे प्रमुख आरोप
    डॉ. जैन पर आर्थिक अनियमितता के आरोप हैं। जैन का यह निलंबन 28 शिकायती बिंदुओं के आधार पर किया गया है। कार्रवाई अगस्त 2017 में की गई है। आरोप है कि एक दिन के रजिस्ट्रार के चार्ज में उन्होंने 80 संविदा कर्मचारियों को नियमित कर दिया था, जिसे बाद में शासन ने खारिज किया। उन पर चपरासियों की पदस्थापना तृतीय श्रेणी में करने, सुरक्षा एजेंसी के तहत कार्यरत स्टाफ को असिस्टेंट प्रोफेसर बनाने, बाउंड्रीवॉल के लिए निर्धारित 38 लाख का उपयोग कैंपस की सड़क के लिए डायवर्ट करने के भी आरोप थे ।
    पुलिस का मिलता रहा साथ
    हाईकोर्ट के निर्देश के बाद चूनाभट्टी पुलिस ने भोज मुक्त विश्वविद्यालय से निलंबित चल रहे प्रोफेसर डॉ. प्रवीण जैन के खिलाफ धोखाधड़ी का एक मामला करीब चार साल पहले दर्ज किया गया था, लेकिन इस मामले में भी पुलिस ने उन पर कोई ठोस कार्रवई नहीं की , बल्कि उनकी गिरफ्तारी तक करने में हीला हवाली अब तक जारी है।  विश्वविद्यालय प्रशासन ने एफआईआर दर्ज कराने से पहले पुलिस को 1600 से अधिक पेज का कच्चा-चिट्ठा सौंपा था। इसमें विभिन्न कोर्स से जुड़े टेबुलेशन रजिस्टर की ऐसी फोटो कॉपी भी शामिल है जिसमें डॉ. जैन द्वारा फेल छात्रों को पास कर दिया गया है। इसमें छात्रों को पास करने के लिए कम नंबर को गोल घेरे में करके नंबर बढ़ाए गए थे। डॉ. जैन द्वारा विद्यार्थियों के रिजल्ट से संबंधित टेबुलेशन रजिस्टर को मनमाने तरीके से संशोधित किया गया तथा वर्ष 2013 के परीक्षार्थियों के पुनर्मूल्यांकन कार्य में परीक्षकों द्वारा दिए गए अंकों में काट छांट, परिवर्तन, वृद्धि करके संबंधित छात्रों को अनुचित लाभ पहुंचा गया। टेबुलेशन रजिस्टर में डॉ. जैन ने स्वयं अकेले के हस्ताक्षर कर दिए गए थे। जबकि नियमानुसार टेबुलेशन रजिस्टर में सुधार रजिस्ट्रार एवं कुलपति के नोटशीट के आधार पर किया जा सकता है।
    34 लाख का नियम विरुद्ध भुगतान
    ईओडब्ल्यू की प्रारंभिक जांच के अनुसार डॉ. जैन ने प्रवेश एवं मूल्यांकन के निदेशक रहते हुए 2001-04 के बीच विवि की ट्रेजरी से 34,41,822 का नियम विरुद्ध तरीके से नगद भुगतान मुद्रक लक्ष्मीकांत गुप्ता को किया गया। विवि की वित्तीय व्यवस्था के मुताबिक 30 हजार रुपए से अधिक राशि के कार्य के लिए खुली निविदा बुलाई जाती है। लेकिन जैन द्वारा ऐसा नहीं कर तीन फर्मों के कोटेशन बुलाकर प्रश्नपत्र छपाई का कार्य मुद्रक लक्ष्मीकांत को दिया गया था।

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