68 सीटें तय करेंगी सत्ता की राह

 सत्ता की राह
  • महाकौशल और विंध्य पर भाजपा- कांग्रेस की निगाह

चिन्मय दीक्षित/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र की राजनीति में महाकौशल और विंध्य का क्या महत्व है ,इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन दोनों क्षेत्रों की 68 सीटों पर चुनावी रुझान को अपने पाले में करने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेताओं को दांव पर लगा दिया है। तभी तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा पहले ही चरण में यहां आ चुके हैं। दरअसल, माना जाता है की महाकौशल और विंध्य क्षेत्री की 68 सीटें सत्ता की राहत तय करती हैं। इसलिए दोनों पार्टियों ने इन सीटों का जीतने के लिए अपना पूरा दमखम लगा दिया है। मप्र में महाकौशल और विंध्य ऐसे क्षेत्र हैं, जो सत्ता दिलाने में पार्टियों की काफी मदद करते हैं। इसी वजह से विगत चुनाव से भाजपा और कांग्रेस को यह समझ में आ गया है कि महाकौशल और विंध्य में जिसका पलड़ा भारी होगा सत्ता उसी के पास होगी। यहां की 68 विधानसभा सीटों पर चुनावी रुझान अपने पक्ष में करने के लिए दोनों ही पार्टियों के दिग्गज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा पहले ही चरण में यहां आ चुके हैं। इससे तय हो चुका है कि यहां कांटे का मुकाबला होने वाला है। पिछले चुनाव (वर्ष 2018) में विंध्य में भाजपा और महाकौशल में कांग्रेस आगे रही थी।
68 सीटों पर टिकी रहेंगी सभी की नजर
महाकौशल और विंध्य की 68 सीटों पर चुनावी रुझान को अपने पाले में करने के लिए दोनों ही पार्टियां दिग्गज नेताओं को बुला रही है। तभी तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा पहले ही चरण में यहां आ चुके हैं। इसी से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां पर कांटे की भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर होने वाली है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में विंध्य में भाजपा और महाकौशल में कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा। विंध्य की 30 सीटों में से भाजपा के पाले में 24 आईं, जबकि महाकौशल में कांग्रेस ने 38 में से 24 सीटों पर कब्जा किया था। महाकौशल में दूसरे नंबर पर रही भाजपा ने 13 विधानसभा क्षेत्रों में जीत दर्ज की थी तो विंध्य में कांग्रेस केवल छह सीटें ही जीतने में कामयाब हुई। अगर दोनों पार्टियों का महाकौशल और विंध्य का संयुक्त प्रदर्शन देखा जाएं तो भाजपा ने कांग्रेस को सात सीटों से पीछे छोड़ दिया था। कुल 68 सीटों में से भाजपा को 37 और कांग्रेस को 30 सीटें प्राप्त हुई थीं। इस क्षेत्र से एक निर्दलीय ने चुनाव बाद भाजपा का दामन थामा था। मौजूदा समय में चुनावी परिदृश्य को देखा जाए तो महाकौशल और विंध्य की एक-एक सीट महत्वपूर्ण है। इसी वजह से तो चुनाव से लगभग तीन माह पूर्व ही यहां पर चुनावी संग्राम शुरू हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शहडोल और रीवा का दौरा किया है, जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का सतना प्रवास हो चुका है। वहीं, कांग्रेस से प्रियंका गांधी वाड्रा जबलपुर से चुनावी शंखनाद कर ही चुकी हैं। जल्द ही कांग्रेस सांसद राहुल गांधी शहडोल से अपने चुनावी अभियान की शुरुआत कर
सकते हैं।
क्यों महत्वपूर्ण है यह क्षेत्र
महाकौशल और विंध्य से बना राजनीतिक माहौल प्रदेश की न केवल सामान्य बल्कि सभी आरक्षित सीटों पर भी दिखाई देगा। इस क्षेत्र में एसटी के लिए 22 और एससी के लिए पांच सीटें आरक्षित हैं। खासतौर पर आदिवासी वर्ग के मतदाताओं की बात करें तो मंडला, डिंडौरी और शहडोल जिले ऐसे हैं, जहां की सारी सीटें इसी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। स्पष्ट है कि ऐसे जिलों से बनी लहर केवल महाकौशल और विंध्य ही नहीं, पूरे प्रदेश में असर दिखाती है। इन तीन जिलों में कुल आठ सीटें आती हैं जो फिलहाल भाजपा और कांग्रेस में आधी-आधी बंटी हुई हैं।
क्या बसपा देगी भाजपा-कांग्रेस को चुनौती
विधानसभा चुनाव की तैयारियों में बसपा सबसे आगे दिखाई दे रही है। पार्टी ने कई सीटों पर अपने प्रत्याशियों का एलान कर दिया है। साल 2013 में बसपा से शीला त्यागी रीवा के मनगवां से और ऊषा चौधरी सतना के रैगांव से चुनावी मुकाबला जीता था। ऐसे में बसपा अपने पुराने वोट बैंक की तलाश में जुटी हुई है। इस क्षेत्र में कभी भाजपा और कांग्रेस को छोडक़र बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का प्रभाव हुआ करता था, लेकिन पिछले विधानसभा में बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का पूरी तरह से सफाया हो गया। बालाघाट जिले की वारासिवनी सीट से महज एक निर्दलीय प्रदीप जायसवाल ने बाजी मारी थी। हालांकि, बाद में वो भाजपा के पाले में आ गए थे। विंध्य और महाकौशल क्षेत्र से दोनों ही प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस को जीत की आस है, इसलिए कोई भी दल यहां कसर बाकी नहीं रखना चाहता। अगर दूसरे नंबर के नेताओं की सभाओं और चुनावी दौरों की तुलना करें तो यहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ की सबसे ज्यादा सभाएं हुई हैं। शिवराज तो लगभग हर पखवाड़े में इस क्षेत्र में आ रहे हैं। वहीं, शहडोल, सिंगरौली, अनूपपुर और उमरिया में पड़ोसी राज छत्तीसगढ़ की चुनावी हलचल का प्रभाव भी दिखाई देगा। यही वह आदिवासी बेल्ट है, जहां पर भाजपा और कांग्रेस दोनों की ही नजरें हैं।

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