सूखी नदी को निर्मल बनाने स्वाहा होंगे 626 करोड़

सूखी नदी
  • शिप्रा के शुद्धिकरण के लिए एक और कागजी खाका तैयार …

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। सूखी और कचरे तथा गंदगी से पटी हुई शिप्रा मैय्या का कायाकल्प करने के लिए अधिकारियों ने करीब 626 करोड़ रुपए का खाका तैयार किया है। इसके तहत सिंहस्थ 2028 से पहले शिप्रा का शुद्धिकरण कर दिया जाएगा। अधिकारियों का दावा है की उनके द्वारा तैयार डीपीआर के अनुसार काम होगा तो पावन और पवित्र शिप्रा पूरी तरह निर्मल हो जाएगी।
गौरतलब है कि शिप्रा को स्वच्छ व प्रवाहमान बनाने के नाम पर 21 साल में 650 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। इसके बावजूद शिप्रा नदी का पानी आचमन तो दूर नहाने लायक भी नहीं है। शिप्रा नदी का पानी डी ग्रेड का है। जनप्रतिनिधि इसका कारण इंदौर से आने वाले प्रदूषित पानी की रोकथाम के लिए सही उपाय नहीं होना बता कर पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं। वहीं सिंहस्थ 2028 को देखते हुए अधिकारियों ने शिप्रा शुद्धिकरण की एक डीपीआर तैयार की है।
जल संसाधन विभाग ने तैयार की क्लोज डक्ट की डीपीआर
 शिप्रा को खान के गंदे पानी से बचाने के लिए अफसरों ने 626.26 करोड़ के क्लोज डक्ट की डीपीआर तैयार कर भोपाल भेज दी है। क्लोज डक्ट की डीपीआर जल संसाधन विभाग ने तैयार की है। विभाग दावा कर रहा है कि इस प्रोजेक्ट पर काम होता है तो शिप्रा को खान के गंदे पानी से बचाया जा सकेगा। प्रोजेक्ट के तहत खान के गंदे पानी को गोठड़ा से शिप्रा में मिलने से रोकते हुए आरसीसी के पॉकेटनुमा पक्के बॉक्स से डायवर्ट किया जाएगा। बॉक्स का दूसरा सिरा कालियादेह पर रहेगा। जहां गंदा पानी बाहर निकलेगा। बीच में पड़ने वाले शिप्रा के त्रिवेणी, सिद्धवट, रामघाट, मंगलनाथ सहित प्रमुख घाट गंदे पानी से बच सकेंगे। इससे पहले अफसरों ने 465 करोड़ से ओपन नहर का प्रस्ताव शासन को भेजा था। अब उसे रिवाइज करके क्लोज डक्ट डीपीआर तैयार की गई है।
ऐसा रहेगा क्लोज डक्ट
जल संसाधन विभाग की डीपीआर के अनुसार क्लोज डक्ट आरसीसी का एक लंबा-चौड़ा पॉकेटनुमा बॉक्स (बड़ा नाला) रहेगा। जो शिप्रा के पैरेलल त्रिवेणी के पास गोठड़ा से शुरू होकर कालियादेह महल तक 16.700 किमी लंबा बनेगा। शुरू में व आखिरी में 100-100 मीटर में यह डक्ट ओपन रहेगा। बाकी का हिस्सा पैक रहेगा। सफाई-मेंटेनेंस के लिए बीच में चार जगह रास्ते रहेंगे। इसके लिए 7 से 8 हेक्टेयर जमीन स्थायी अधिग्रहित की जाएगी। बाकी अस्थायी रूप से अधिग्रहित करेंगे जिसको निर्माण के बाद पैक करेंगे। जमीन मुआवजे का प्रावधान भी डीपीआर में है। डीपीआर में गोठड़ा में पक्का स्टापडेम बनाया जाना भी शामिल है।
अब तक के प्रयास रहे हैं असफल
महाकाल की नगरी में स्थिति पावन और पवित्र नदी को निर्मल बनाने के लिए पिछले 21 साल के दौरान कई असफल प्रयास किए गए हैं। राघौ पिपलिया पर करोड़ों खर्च कर स्टॉपडेम बनाया गया। यह पूरी तरह से सफल नहीं हुआ। ओवर फ्लो होकर गंदा पानी आगे बढ़ता है। फिर 2004 में 6 करोड़ की नदी संरक्षण योजना के तहत शहर के सभी बड़े नालों को पाइप लाइन व पंपिंग स्टेशनों से जोड़कर गंदे पानी को सदावल ट्रीटमेंट प्लांट पर छोड़ा जाने लगा। नगर निगम पर सालाना एक करोड़ बिजली खर्च आने लगा। बार-बार पंपिंग बंद होने से गंदा पानी शिप्रा में मिलता रहा है। वहीं 4 करोड़ से हरसिद्धि से लाइन डाली। जो रुद्रसागर में एकत्रित गंदे पानी को रामघाट पर मिलने से रोक कर नदी में आगे लेकर छोड़ती है। फिर 2016 में राघौ पिपलिया से लेकर कालियादेह तक खान डायवर्सन  के रूप में भूमिगत पाइप लाइन बिछाई गई। इसमें 80 करोड़ से अधिक खर्च हुए। बावजूद लाइन खान के गंदे पानी को शिप्रा में मिलने से रोकने में सफल नहीं रही।
650 करोड़ खर्च होने के बार भी स्थिति जस की तस
शिप्रा के शुद्धिकरण के लिए 500 करोड़ से अधिक लागत की नर्मदा-शिप्रा लिंक और उज्जैनी टू उज्जैन योजना लागू की गई। इससे समय-समय पर नर्मदा का पानी लिया जाता है, लेकिन प्रवाहमान की स्थिति बनना मुश्किल रहती है। इस तरह 21 साल में शिप्रा को स्वच्छ रखने व प्रवाहमान के नाम पर जिम्मेदारों ने करीब 650 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। बावजूद न तो शिप्रा स्वच्छ हो पाई न ही प्रवाहमान। प्रदूषण बोर्ड की स्टडी आती रहती है कि शिप्रा का पानी आचमन तो दूर, नहाने लायक भी नहीं है। अब जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता केजी सिंह का कहना है कि शिप्रा को खान के गंदे पानी से बचाने के लिए 626.26 करोड़ की क्लोज डक्ट की डीपीआर तैयार करके भोपाल मुख्यालय भेज दी है। वहां इसका तकनीकी परीक्षण चल रहा है।

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