पदोन्नति व डीए को लेकर… कर्मचारियों में असंतोष

पदोन्नति व डीए
  • बड़े पैमाने पर की रही है आंदोलन की तैयारी

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। पुरानी पेंशन, पदोन्नति व डीए की मांग को लेकर प्रदेश के कर्मचारियों में असंतोष बना हुआ है। इसकी वजह से अब तमाम कर्मचारी संगठन लामबंद होने लगे हैं। इनके साथ ही अब तो संविदा कर्मचारी भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी कर रहे हैं। उधर, सरकारी स्कूलों के अध्यापक पहले से ही नाराज चल रहा है। अगर यह कर्मचारी एक साथ लामबंद होकर सड़कों पर उतरते हैं तो चुनावी साल में सरकार की मुश्किलें बढ़ना तय है। इसके अलावा इस बार कर्मचारी अपने साथ युवा बेरोजगारों को भी साथ लाने की तैयारी कर रहे हैं।
कर्मचारियों में सबसे बड़ी नाराजगी की वजह है उन्हें पदोन्नत न करना और सेवानिवृत्त अधिकारियों व कर्मचारियों को संविदा नियुक्ति देकर उनका हक मारना। इसकी वजह से अकेले प्रदेश के आधा सैकड़ा कर्मचारी संगठन सरकार से  नाराज चल रहे हैं। इसकी वजह से ही वे राज्य सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं। कर्मचारी साफ कर चुके हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले सरकार ने इस संबंध में निर्णय नहीं लिया, तो वे उन्हें माफ नहीं करेंगे। यानी इसका असर विधानसभा चुनाव में भी देखने को पूरी तरह से मिल सकता है। बता दें कि प्रदेश में नियमित, संविदा, स्थाई कर्मी, निगम-मंडल मिलाकर 18 लाख से अधिक कर्मचारी हैं। प्रदेश में मई 2016 से पदोन्नति पर रोक लगी है। करीब 35 हजार कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति से ठीक पहले पदोन्नति मिलनी थी। वे इसके बिना ही सेवानिवृत्त हो गए। अब आरक्षित और अनारक्षित दोनों वर्ग के कर्मचारी चाहते हैं कि पदोन्नति शुरू हो जाए, भले ही सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अधीन ही हो। वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस और विभिन्न विभागों के मंत्रियों को ज्ञापन भी सौंप चुके हैं, पर किसी के भी स्तर पर पदोन्नति शुरू करने की पहल नहीं हुई है।
कर्मचारियों की दूसरी बड़ी मांग पुरानी पेंशन बहाली है। इसे लेकर प्रदेश के 22 कर्मचारी संगठन एक साथ खड़े हैं। पांच फरवरी को भोपाल में इसे लेकर महा सम्मेलन भी हो चुका है। मई-जून में कर्मचारी एक बार फिर एकत्र होंगे और सरकार को अपनी चेतावनी याद दिलाएंगे। कर्मचारी सभी विभागों में खाली पदों को लेकर भी नाराज हैं, वे सेवानिवृत्त कर्मचारियों को संविदा नियुक्ति देने के खिलाफ हैं और कई बार अपनी बात सरकार के सामने रख चुके हैं। उनकी मांग है कि युवाओं को मौका देंगे, तो कर्मचारियों की आने वाली पीढ़ी तैयार होगी।
ओल्ड पेंशन स्कीम की भी चुनौती
ओल्ड पेंशन स्कीम, ओपीएस भाजपा के लिए आने वाले दिनों में चुनावी चुनौती बन सकती है। मुख्य विपक्षी दल भी इस मामले को पूरी ताकत के साथ उठा रहा है। कर्मचारियों का साथ पाने के लिए जिस तरह से विपक्ष इस मामले में उनके साथ खड़ा है उससे साफ है कि वह इसे सात महीने बाद होने वाले राज्य के विधानसभा चुनावों में मुद्दा बनाएगा। कुछ समय पूर्व उसने हिमाचल प्रदेश के चुनावों में भी इसे मुद्दा बनाया था और उसे सफलता भी मिली थी। यही वजह है कि वह इस मुद्दे को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा को घेर रहा है। फिलवक्त भाजपा इस मामले में बैकफुट पर दिखाई दे रही है। उधर, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ साफ कह चुके हैं कि कांग्रेस की सरकार बनी तो प्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू की जाएगी। गौरतलब है कि कांग्रेस शासित राज्य छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू है और जिन राज्यों में चुनाव होने है कांग्रेस वहां इसे लागू करने का वादा कर रही है। भाजपा और राज्य सरकार ओल्ड पेंशन स्कीम की कांग्रेस की चुनावी चाल की काट ढूंढ रही है। भाजपा की दिक्क्त यह है कि वह इस मामले में केवल एक राज्य में फैसला नहीं ले सकती। उसे इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीति निर्धारित करनी पड़ेगी। कर्मचारी वर्ग किसी भी चुनाव में राजनीति को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। ऐसा माना जाता है कि 2003 में दिग्विजय सिंह की सरकार के सत्ता से बाहर होने के पीछे कर्मचारी वर्ग की नाराजगी भी एक बड़ा कारण थी।
इसलिए महत्वपूर्ण है ओपीएस
न्यू पेंशन स्कीम और ओल्ड पेंशन स्कीम में बुनियादी अंतर यह है कि न्यू पेंशन स्कीम कंट्रीब्यूटरी होती है। कर्मचारी और नियोक्ता का योगदान म्यूचुअल फंड और अन्य फंडों में नियोजित किया जाता है। रिटायरमेंट के समय पर उस पर जो लाभ मिलता है, उसके हिसाब से कर्मचारी को पेंशन दी जाती है। यानी पेंशन की राशि इन्वेस्टमेंट के रिटर्न के आधार पर निर्धारित होती है। इसके विपरीत ओल्ड पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के महीने में कर्मचारी को मिल रहे वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन निर्धारित हो जाती है। महगाई भत्ता इसके अतिरिक्त होता है। इसलिए एनपीएस में शामिल कर्मचारी ओपीएस के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं। कांग्रेस ने कर्मचारियों की इसी भावना को देखकर चुनावी दांव चला है। कमलनाथ को राजनीति का चतुर खिलाड़ी माना जाता है। पिछले चुनाव में उन्होंने किसानों की कर्जमाफी का दांव खेला था। भाजपा ने भावांतर योजना और किसान सम्मान निधि के नाम पर किसानों को लाभान्वित करने का व्यापक अभियान चलाया था पर कर्जमाफी की घोषणा चुनाव में ज्यादा कारगर रही थीं। इस बार वह कर्मचारियों की ओपीएस स्कीम को मुद्दा बना रही है। सोमवार और मंगलवार को वह किसी न किसी रूप में फिर इस मुद्दे को लेकर इसे चर्चा में रखेगी।

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