जर्जर भवनों में गढ़ा जा रहा बच्चों का भविष्य

  • बदहाली से जूझ रहे शासकीय स्कूलों को मरम्मत की दरकार

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में स्कूल शिक्षा के हाल देखने हों तो आपको कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। इसके उदाहरण राजधानी भोपाल में ही एक नहीं कई मिल जाएंगे। यहां जर्जर भवन और बदहाल शाला में भविष्य गढ़ा जा रहा है। बदहाली से जूझ रहे शासकीय स्कूलों को मरम्मत की दरकार है। राजधानी में 282 ऐसे मिडिल-प्राइमरी स्कूल हैं, जिनमें मेजर मरम्मत की जरूरत है। अगर बारिश पूर्व इनमें मेंटेनेंस का कार्य नहीं कराया गया तो खतरा पैदा हो सकता है। हालांकि अफसरों का कहना है कि इस मामले को गंभीरता से लिया गया है। इस समस्या से संबंधित प्रस्ताव को एडब्ल्यूपी (एन्युअल वर्क प्लान) यानि वार्षिक कार्य योजना में शामिल किया गया है।सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों की सुरक्षा के लिए स्कूल भवनों का मजबूत होना जरूरी है, लेकिन भोपाल में 282 स्कूल भवन ऐसे हैं, जहां बैठना पूरी तरह असुरक्षित तो नहीं लेकिन बहुत उपयुक्त भी नहीं कहा जा सकता है। इन स्कूलों की दीवारों में छपाई, पुताई, की जरूरत तो है ही, साथ ही लीकेज-सीपेज से बचाव के लिए भी मरम्मत कराना जरूरी है।
अधिकारियों का कहना है कि पूरे जिले में ऐसे 282 मिडिल और प्राइमरी शालए चिन्हित की गई हैं। जिनमें मरम्मत की जरूरत है। सबसे अधिक बैरसिया में 175 शालाएं हैं, जहां पर सुधार कार्य कराया जाना है। जबकि 93 प्राथमिक और माध्यमिक शालाएं फंदा ब्लाक में चिन्हित की गई हैं। हालांकि अधिकारी दावा कर रहे हैं कि जुलाई पूर्व इनकी मरम्मत की जाएगी। ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं। 5-10 साल में जर्जर हो गए स्कूल
यह वह स्कूल हैं, जिनका निर्माण वर्ष 2015 से साल 2020 की अवधि में कराया गया है। फिर भी इनकी हालत खराब हो गई है। कहीं पर छतें चटक गई हैं, तो कहीं दीवारों में दरारें बन गई हैं। फर्स उखड़ गये हैं तो दरवाजे भी उपयोगी नहीं रहे हैं। यह सभी मिडिल एवं प्राइमरी शालाएं हैं, जहां इस प्रकार की स्थिति सामने आई है। शिक्षक स्वयं कह रहे हैं कि यदि बारिश पूर्व इन स्कूलों की मरम्मत नहीं कराई गई तो बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। शिक्षकों ने पूर्व के भी उदाहरण गिनाये हैं। इनका कहना है कि समय पर मरम्मत नहीं होने के कारण स्कूल बारिश के समय में भरभरा कर गिरे हैं, जिससे बच्चों को भी चोटें झेलनी पड़ी है। समय पर स्कूलों की मरम्मत न होने का खामियाजा बच्चों को उठाना पड़ा है। चिरायु अस्पताल के सामने निर्मल मीरा मिडिल स्कूल की छत का छज्जा 2011 में गिरा था। यह हादसा उस समय हुआ जब बच्चों की कक्षाएं चल रही थी। इसमें अनेक बच्चों को चोटें आई थीं। इस स्कूल को लोक निर्माण विभाग ने डेड घोषित किया था, लेकिन अभी भी यहां स्कूल चल रहा है। 2014 में बिजली नगर मिडिल शाला का छज्जा भी गिरा था। उस वक्त बच्चे मध्यान्ह भोजन कर रहे थे। जमुनिया कला और गिन्नौरी में इसी प्रकार की समस्या बन चुकी है।  डीपीसी भोपाल ओमप्रकाश शर्मा का कहना है कि राजधानी में 282 ऐसे स्कूल है, जिनमें मरम्मत की जरूरत है। वार्षिक कार्य योजना में इनकी मरम्मत का प्रस्ताव शामिल किया गया है, जैसे ही राशि मिलेगी तो इन शालाओं में सुधार कार्य प्रारंभ कराया जाएगा।

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