मप्र बनेगा हरित

 हरित
  • डॉ. मोहन का क्लीन-एंड-ग्रीन इनर्जी पर फोकस

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का फोकस सबसे अधिक वन संपदा, खनिज संसाधनों से समृद्ध, हीरे और तांबे के सबसे बड़े भंडार वाले मप्र को हरित प्रदेश बनाने पर है। इसके लिए सरकार का क्लीन-एंड-ग्रीन इनर्जी पर फोकस है।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
मप्र मुख्य रूप से अपने पर्यटन के लिए भी जाना जाता है। मांडू, धार, महेश्वर मंडलेश्वर, चोली, भीमबैठका, पचमढी, खजुराहो, सांची स्तूप, ग्वालियर का किला, और उज्जैन रीवा जल प्रपात मप्र के पर्यटन स्थल के प्रमुख उदाहरण हैं। उज्जैन जिले में प्रत्येक 12 वर्षों में कुंभ (सिंहस्थ) मेले का पुण्यपर्व विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है। शिवपुरी मप्र की पर्यटन नगरी है। मोहन सरकार की कोशिश है कि मप्र को हरित प्रदेश बनाया जाए ताकि विकास के साथ ही प्रदेश में पर्यावरण का नुकसान न हो। भारत का हृदय-प्रदेश मप्र, प्राकृतिक सौंदर्य, बहुरंगी पारिस्थितिकी तंत्र और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोये है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकासशील चिंतन के मार्गदर्शन में प्रदेश डॉ. मोहन यादव के कुशल और आत्मविश्वास से भरे नेतृत्व में विकास के पथ पर अग्रसर है। वर्ष 2025 में सरकार आर्थिक प्रगति और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बना कर आगे बढ़ेगी। स्वच्छ और हरित मप्र मात्र विमर्श नहीं है, अपितु वर्तमान और भावी पीढिय़ों की महती आवश्यकता है। स्वच्छ और हरित मप्र बनाए रखने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र और जनभागीदारी के सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। नागरिकों में प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देने के लिए भी लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए रोडमैप तैयार कर निरन्तर आगे बढ़ रही है।
प्रदेशवासियों के लिए गर्व का विषय है राज्य बीते कई वर्षों से लगातार देश के स्वच्छतम प्रदेशों में सम्मिलित बना हुआ है। इंदौर देश का स्वच्छतम शहर और भोपाल देश की स्वच्छतम राजधानी बनी हुई है। प्रदेश की इस क्लीन-एंड-ग्रीन लिगेसी को बनाए रखने के लिए पहले से सक्रिय कचरा-प्रबंधन प्रणाली को और प्रभावी बनाए जाने के लिए प्रदेश सरकार रणनीतिक स्तर पर काम कर रही है। स्थानीय निकायों में सूखा-गीला कचरा पृथक्करण के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक कचरा, चिकित्सालयों एवं लेबोरेटरीज का कचरा और सीवेज-वेस्ट के पृथक्करण एवं निष्पादन के लिये हाईटेक प्रणालियां विकसित करने की रणनीति पर काम कर रही है। इसके अंतर्गत प्रदेश की स्मार्ट-सिटी परियोजना में सम्मिलित शहरों के साथ ही दूसरे शहरों में भी आधुनिक री-साइक्लिंग प्लांट स्थापित किए जाने की योजना है। गांवों और कस्बों में जैविक कचरे की कंपोस्टिंग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। साथ ही सिंगल-यूज प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के लिए भी आम नागरिकों को जागरूक बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। देश के साथ ही मप्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाली कृषि के क्षेत्र में भी उत्पादन बढ़ाने के लिए इस तरह की तकनीकों पर जोर दिया जा रहा है जो पर्यावरण के अनुकूल हों। इसके अंतर्गत जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इससे किसान रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशक के रूप में रसायनों का प्रयोग कम से कम करने के लिए प्रोत्साहित होंगे और खेतों की मिट्टी भी उर्वर एवं शस्य-श्यामला बनी रहेगी। इसके लिए किसानों को गांवों में पर्यावरण संरक्षण और प्रिसिजन फार्मिंग संबंधी प्रशिक्षण दिये जाएंगे। किसानों को समृद्ध बनाने की रणनीति के अंतर्गत बाजारों की जरूरतों के अनुरूप फसल विविधीकरण, उद्यानिकी और पशुपालन से एकीकृत खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।

जनभागीदारी से बढ़ाई जायेगी ग्रीनरी
सबसे अधिक वनावरण और वृक्षावरण के साथ प्रदेश लगातार देश में प्रथम स्थान पर बना हुआ है। इस तरह हम जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने की दिशा में सबसे आगे हैं। इससे हमारी जैव-विविधता में भी सुधार हो रहा है। हम इससे संतुष्ट होकर नहीं बैठे है प्रदेश की इस परंपरा को आने वाले वर्षों में भी बनाये रखने के लिए सरकार सामुदायिक भागीदारी के साथ बड़े पैमाने पर वनीकरण अभियान चलाती रहेगी। इसके साथ ही शहरों में ग्रीन-बेल्ट और पार्कों का विकास किया जा रहा है। विकास कार्यों के कारण वन भूमि को संभावित क्षति के दृष्टिगत उसकी सुरक्षा और पुनस्र्थापना के लिए भी योजनाबद्ध रूप से सरकार काम कर रही है। किसानों को भी बीच कृषि वानिकी की परंपरी बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। कृषि, उद्योग और घरेलू आवश्यकताओं के लिए सतत जल प्रबंधन महत्वपूर्ण है। इसके लिए मप्र को वर्ष के आरंभ में ही प्रधानमंत्री मोदी की ओर से पार्वती-कालीसिंध-चंबल नदी लिंक और केन-बेतवा नदी लिंक परियोजनाओं का उपहार मिला है। ये परियोजनाएं प्रदेश की सिंचाई आवश्यकताओं के साथ ही नागरिकों के लिए पेयजल और उद्योगों को उनकी जरूरतों के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध कराएंगीं। इसके साथ ही प्रदेश सरकार भूगर्भ में संचित जल स्तर को बढ़ाने के लिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रेन-वाटर हार्वेस्टिंग प्रणालियों का विस्तार कर रही है, पारंपरिक जल-निकायों (कुएं, बावड़ी एवं तालाब) और नदियों को पुनर्जीवित किए जाने की योजनाओं पर भी काम कर रही है। खेती में पानी की बर्बादी को रोकने के लिए स्प्रिंकलर-सिस्टम और ड्रिप-इरिगेशन जैसी माइक्रो-इरिगेशन तकनीकों को बढ़ावा दिया जा रहा है। वर्ष 2025 में मप्र सरकार यातायात के साधनों की पर्याप्तता बनाए रखते हुए पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए विशेष नीतियों पर काम कर रही है। इसके लिए सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों का विस्तार किया जा रहा है। सार्वजनिक परिवहन के लिए मप्र परिवहन निगम को पुनर्जीवित किया जा रहा है। प्रदेश में इंटर-सिटी कनेक्टिविटी और शहरी सार्वजनिक परिवहन के लिए लेक्ट्रिक बसें प्रारंभ की जा रही हैं। साथ ही राजधानी भोपाल और इंदौर में मेट्रो ट्रेन शुरू की जा रही हैं। निजी परिवहन में ईवी (इलैक्ट्रिक वाहन) के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए इनकी खरीद पर अनुदान का प्रावदान किया गया है, साथ ही चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर भी बढ़ाया जा रहा है। शहरों में साइक्लिंग ट्रैक और पैदल यात्री मार्ग भी बनाए जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के विजन को मूर्त रूप दिए जाने के उद्देश्य से प्रदेश में तेज गति से कार्य किया जा रहा है। मप्र में फ्यूचर रेडी इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जा रहा है, जिससे यहां अधिक से अधिक निवेश आएं, उद्योग धंधे स्थापित हों और बड़ी संख्या में रोजगार सृजित हो। मप्र में रेल, सडक़ और हवाई सेवाओं का निरंतर विस्तार किया जा रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने बताया कि राज्य के आंतरिक मार्गों के साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क का भी विस्तार किया जा रहा है। प्रदेश के शहरों में सडक़ यातायात के सुधार के लिए इंदौर, भोपाल, देवास, ग्वालियर, जबलपुर और सतना में एलिवेटेड कॉरिडोर बनाए जा रहे हैं। इनमें से इंदौर एलिवेटेड कॉरिडोर पर 350 करोड़, ग्वालियर में 1100 करोड़, जबलपुर में 660 करोड़ और भोपाल में 306 करोड़ रुपए की लागत आएगी। साथ ही राज्य सरकार ने 724 किमी लंबी 24 सडक़ परियोजनाओं का लोकार्पण एवं भूमि-पूजन किया है, जिनकी कुल लागत 10 हजार करोड़ रूपये है। ये परियोजनाएं प्रदेश के शहरों की रोड-कनेक्टिविटी को बढ़ाएंगी, यात्रा समय को कम करेंगी और व्यापार को बढ़ावा देंगी। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने बताया कि प्रदेश में मजबूत राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं का निर्माण और उन्नयन केन्द्र सरकार से मिले 3,500 करोड़ रुपए से किया जा रहा है। विशेष रूप से उज्जैन-जावरा 4-लेन ग्रीनफील्ड हाइ-वे परियोजना को 5 हजार करोड़ रूपये से अधिक के निवेश के साथ मंजूरी दी गई है। यह हाइ-वे उज्जैन, इंदौर और आस-पास के क्षेत्रों को मुंबई-दिल्ली इंडस्ट्रियल कॉरीडोर से जोड़ेगा। मुख्यमंत्री डॉ. यादव में बताया कि प्रदेश में ग्रामीण यातायात को सुगम करने के लिए मुख्यमंत्री ग्राम सडक़ योजना चलाई जा रही है, जिसका उद्देश्य 8,565 गांवों को 19,378 किमी लंबी सडक़ों के नैटवर्क से जोडऩा है। यह पहल ग्रामीण कनेक्टिविटी को सुधारने के लिए महत्वपूर्ण है, जिससे गांवों को मुख्य सडक़ों से जोड़ा जा सके और यात्री व वस्तुओं की आवाजाही सुगम हो सके। प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के तहत प्रदेश में 2024-25 के वित्तीय वर्ष के दौरान 1 हजार किमी नई सडक़ों का निर्माण और लगभग 2 हजार किमी सडक़ों की नवीनीकरण किया जाएगा ताकि ग्रामीण यातायात नेटवर्क को और भी मजबूत किया जा सके। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रदेश के रेलवे नेटवर्क को आधुनिक बनाने के लिए महत्वपूर्ण परियोजनाएं शुरू की गई हैं। प्रदेश में 133 रेलवे ओवरब्रिज और अंडरपास का निर्माण किया गया है, इससे यातायात की गति में सुधार होगा एवं यात्रा सुगम और सुरक्षित होगी। वंदे भारत एक्सप्रेस का शुभारंभ मप्र में हाई-स्पीड ट्रेन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इसके अलावा, भोपाल में 100 करोड़ रुपए की लागत से एक नया कोच कॉम्प्लेक्स बन रहा है, जो राज्य की रेलवे सुविधाओं को और बेहतर बनाएगा और यात्रियों को बेहतर सेवाएं प्रदान करेगा। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि मप्र के अन्य राज्यों और विदेशों के साथ संपर्क में सुधार के लिए हवाई सेवाओं का विस्तार किया जा रहा है। रीवा में हवाई अड्डे का निर्माण और ग्वालियर में राजमाता विजयराजे सिंधिया हवाई अड्डे का विस्तार एवं आधुनिकीकरण राज्य की हवाई कनेक्टिविटी को बढ़ाने के महत्वपूर्ण कदम हैं। इनसे निवेशकों को सुविधाएं मिलेंगी और निवेश आकर्षित होगा। हवाई सेवाओं के विस्तार से मप्र में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।

मप्र ने वन्यजीव संरक्षण का इतिहास रचा
नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में मप्र की आकर्षक झांकी में इस बार कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में हुई चीता की वापसी की झलक दुनिया के सामने प्रदर्शित होगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राज्य सरकार की वन्यजीव संरक्षण के लिये प्रतिबद्धता को दोहराया है। भारत में चीते की वापसी अंतरमहाद्वीपीय वन्यजीव स्थानांतरण की ऐतिहासिक पहल है। यह 1950 के दशक में विलुप्त हो गए चीते की आबादी को फिर से स्थापित करने में भारत को मिली ऐतिहासिक सफलता है। अफ्रीका से स्वस्थ चीतों की परिवहन प्रक्रिया भारत के वन्यजीव संरक्षण इतिहास में एक मील का पत्थर है। भारत में 17 सितंबर 2022 को आठ चीतों का पहला समूह आया, जिसमें 5 मादाएं और 3 नर चीते थे। नामीबिया से कूनो राष्ट्रीय उद्यान श्योपुर में इन्हें स्थानांतरित किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इन्हें कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोडऩे की सम्पूर्ण प्रक्रिया की सतत मॉनीटरिंग की। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका से 18 फरवरी 2023 को दूसरा समूह पहुंचा, इनमें 12 चीते (7 नर और 5 मादा) थे। प्रोजेक्ट चीता एक उल्लेखनीय वैज्ञानिक उपलब्धि के रूप में हमारे सामने है, जो राष्ट्रीय गौरव की पुनस्र्थापना में योगदान कर रहा है। इसने भारत के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा है। चीते को भारत में फिर से वापस लाने से पहले उनके लिए एक आदर्श रहवास का चयन करने के लिए बहुत सावधानी से योजना बनाई गई। ईरान से एशियाई चीते के अस्तित्व के अभाव को देखते हुए दुनिया भर के प्रसिद्ध संरक्षणवादी, आनुवंशिकीविदों से परामर्श किया गया। दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से आए उप-प्रजातियों को सबसे उपयुक्त माना गया, जो स्थिर और पर्याप्त आबादी का समर्थन करते हैं।
भारतीय वन्यजीव संस्थान ने 2022 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के मार्गदर्शन में एक व्यापक वैज्ञानिक कार्य योजना तैयार की। यह ऐतिहासिक पहल अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) के दिशा-निर्देशों के अनुरूप है, जो मांसाहारी प्रजातियों के स्थानांतरण के लिए एक रणनीतिक और पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण को सुनिश्चित करती है। भारत में चीते की वापसी की पहल सिर्फ एक परियोजना नहीं है, बल्कि उनके मौलिक रहवासों के पुनस्र्थापना का एक वैज्ञानिक प्रोटोटाइप है। यह ग्रासलैंड पारिस्थितिकी को पुनर्जीवित करने और स्थानीय जैव-विविधता का संरक्षण करने की पहल है। चीते की वापसी की योजना ने ऐतिहासिक जैव पारिस्थितिकी के नाजुक संतुलन को बनाये रखने के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य किया है। इसके लिये उपयुक्त रहवास स्थलों की पहचान करने में मध्य भारत के दस स्थानों का सर्वेक्षण किया गया। इन स्थानों में से मप्र का कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान सबसे उपयुक्त पाया गया। कुल 748 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला कूनो राष्ट्रीय उद्यान न केवल उपयुक्त रहवास है, अपितु यहाँ चीतों के लिए पर्याप्त शिकार भी उपलब्ध हैं। साथ ही यह स्थान मानवीय गतिविधियों से मुक्त है। 1952 में भारत सरकार ने चीते की दयनीय स्थिति को समझ लिया था और उसे विशेष संरक्षण देने का संकल्प लिया था। इसके बाद 1970 के दशक में ईरान से एशियाई चीते लाने की बातचीत असफल रही। भारत में चीतों की वापसी की कहानी एक घुमावदार कहानी है, जो 1950 के दशक में प्रजातियों के विलुप्त होने तक जाती है। आधिकारिक प्रयास 1970 के दशक में शुरू हुए, जिसमें ईरान और उसके बाद केन्या से बातचीत शुरू हुई। वर्ष 2009 में, भारत ने अफ्रीकी चीतों के लिए प्रस्ताव रखा। वर्ष 2020 में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए सीमित संख्या में चीते लाने की अनुमति मिली, ताकि उनकी भारतीय पर्यावरण में रहने की क्षमता का परीक्षण किया जा सके।

नवकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना
मप्र ने सौर और पवन ऊर्जा के उपयोग में महत्वपूर्ण प्रगति की है। रीवा में अल्ट्रा मेगा सोलर पावर प्रोजेक्ट नवकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में प्रदेश को देश के एक अन्य राज्यों के लिए रोल-मॉडल बनाने के लक्ष्य का प्रतीक है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रदेश सरकार ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सौर ऊर्जा के साथ ही पवन ऊर्जा परियोजनाओं का विस्तार करने पर भी फोकस कर रही है। नवकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में सरकारी के साथ ही निजी निवेश को भी बढ़ावा दिये जाने की रणनीति बना रही है। प्रदेश के आम नागरिकों को उनकी आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों के अंतर्गत घरों और व्यवसायिक संस्थानों के लिए रूफटॉप सोलर इंस्टॉलेशन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। यहां तक कि प्रदेश के सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता अर्थात किसानों को भी सिंचाई के लिए सोलर-पंप जैसी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रदेश सरकार के इन प्रयासों से नागरिक तो ऊर्जा के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनेंगे ही, उनका अतिरिक्त उत्पादन ग्रिड से जुड़ कर प्रदेश को विद्युत सर-प्लस राज्यों के शीर्ष पर बनाए रखने में सहयोगी होगा। इस तरह मप्र देश को क्लीन-एंड-ग्रीन इनर्जी सेक्टर में विश्व में अग्रणी बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकेगा।
प्रधानमंत्री मोदी की आत्मनिर्भर भारत के प्रति प्रतिबद्धता का लक्ष्य 2047 तक भारत को ऊर्जा के मामले में स्वतंत्र बनाना है। हालांकि, भारत वर्तमान में अपने तेल का 90 प्रतिशत और औद्योगिक कोयले का 80 प्रतिशत आयात करता है। वैश्विक ऊर्जा बाजारों में मूल्य और आपूर्ति में उतार-चढ़ाव, जैसा कि हाल के वर्षों में देखा गया है, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में व्यापक मुद्रास्फीति होती है। स्वच्छ ऊर्जा की लागत में हाल ही में हुई नाटकीय गिरावट भारत को अक्षय ऊर्जा, बैटरी भंडारण, ईवी और हरित हाइड्रोजन में निवेश के माध्यम से ऊर्जा आयात को कम करने का अवसर प्रदान करती है। यह अध्ययन भारत के लिए अपनी बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और 2047 तक लगभग पूर्ण ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने के मार्ग का आकलन करता है, जो भारत के तीन सबसे बड़े ऊर्जा उपभोग क्षेत्रों – बिजली, परिवहन और उद्योग – पर केंद्रित है, जो सामूहिक रूप से ऊर्जा खपत और ऊर्जा से संबंधित कार्बनडाईऑक्साइड उत्सर्जन के 80 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसे में सरकार का फोकस सौर ऊर्जा पर है। मप्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों को साकार करने में सबसे आगे है।
वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिये निरंतर कार्य किये जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सपनों के अनुकूल पर्यावरण संरक्षित प्रदेश बनने में मप्र निरंतर आगे बढ़ रहा है। आज मप्र मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में नये कीर्तिमान रचने जा रहा है। वर्ष 2012 में प्रदेश की लगभग 500 मेगावॉट नवकरणीय ऊर्जा की क्षमता थी। वर्तमान में कुल क्षमता बढक़र 7 हजार मेगावॉट हो गयी है, जो कि विगत 12 वर्षों में लगभग 14 गुना बढ़ी है। राज्य की कुल ऊर्जा क्षमता में नवकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढक़र 21 प्रतिशत हो गयी है। राज्य सरकार की नवकरणीय ऊर्जा की उत्पादन क्षमता को वर्ष 2030 तक बढ़ाकर 20 हजार मेगावॉट करने की योजना है। आज प्रदेश में मौजूद रीवा और ओंकारेश्वर जैसी विश्व-स्तरीय सौर परियोजनाएँ देश में राज्य सरकार के दृढ़ संकल्प और इच्छा-शक्ति का गौरव-गान कर रही हैं। मप्र नवकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में नवाचार करने में अग्रणी रहा है। रीवा सोलर प्रोजेक्ट 1590 हेक्टेयर क्षेत्र में स्थापित है। यह विश्व के सबसे बड़े सिंगल साइड सौर संयंत्रों में से एक है। इस प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन को एक आदर्श के रूप में पहचान मिली है। परियोजना से उत्पादित ऊर्जा का 76 प्रतिशत अंश पावर मैनेजमेंट कम्पनी उपयोग कर रही है। पहली बार ओपन एक्सेस से राज्य के बाहर दिल्ली मेट्रो जैसे व्यावसायिक संस्थान को उत्पादित बिजली का शेष 24 प्रतिशत अंश भी प्रदान किया जा रहा है। इससे प्रतिवर्ष 15.7 लाख टन कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जन को रोका जा रहा है, जो 2 करोड़ 60 लाख पेड़ लगाने के बराबर है।
सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करते हुए मप्र में वर्तमान में आगर-शाजापुर-नीमच में 1500 मेगावॉट क्षमता का सोलर पार्क निर्माणाधीन है। इसमें आगर जिले की 550 मेगावॉट की क्षमता स्थापित की जा चुकी है। शाजापुर एवं नीमच जिले की 780 मेगावॉट क्षमता अक्टूबर 2024 तक पूर्ण कर ली जायेगी। इसके अतिरिक्त मंदसौर में 250 मेगावॉट का सोलर पार्क तैयार किया गया है। इससे उत्पादित ऊर्जा मप्र की वितरण कम्पनियों द्वारा क्रय की जा रही है। प्रदेश की जीवनदायिनी मां नर्मदा के तट पर बसे ओंकारेश्वर में विश्व का सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट (पानी पर तैरने वाली सौर परियोजना) विकसित किया जा रहा है। इसकी क्षमता 600 मेगावॉट है। इससे बहुमूल्य भूमि की बचत होगी। पैनल से पानी की सतह को ढंकने से वाष्पीकरण द्वारा होने वाले जल की हानि को कम किया जा सकेगा। परियोजना की स्थापना से कोई विस्थापित नहीं होगा। पैनल्स की सफाई के लिये भूमिगत जल की आवश्यकता भी नहीं रहेगी। ओंकारेश्वर प्रोजेक्ट की प्रथम चरण में 200 मेगावॉट क्षमता स्थापित हो चुकी है। कुल 3900 करोड रुपए की लागत से संपूर्ण 600 मेगावॉट की क्षमता स्थापित होने पर यह 12 लाख टन कार्बन उत्सर्जन को कम करेगी और वर्ष 2070 तक भारत सरकार के शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन मिशन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देगी। उक्त परियोजना जल वाष्पीकरण को कम करके जल संरक्षण में भी सहायक होगी। प्रदेश को नवकरणीय ऊर्जा में आत्मनिर्भर बनाने के अतिरिक्त देश के उन राज्यों, व्यवसायिक संस्थानों को भी नवकरणीय ऊर्जा आपूर्ति हेतु प्रयासरत हैं, जहाँ इसकी उपलब्धता कम है अथवा आवश्यकता है। नवकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में किए जा रहे इन सभी प्रयासों के माध्यम से प्रदेश को हार्ट ऑफ इंडिया के साथ साथ लंग्स आफ इंडिया तैयार करने का विजन रखा गया है। प्रदेश सरकार की नई नवकरणीय ऊर्जा नीति-2022 का लक्ष्य नवकरणीय ऊर्जा परियोजना विकास के लिए प्रदेश में समग्र वातावरण का विकास करना है।
बढ़ाई जा रही है कृषि उत्पादकता
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में किसानों की समृद्धि और खुशहाली राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल है। प्रदेश में संकल्पबद्ध होकर कार्य किया जा रहा है। किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग द्वारा किसानों को समृद्ध बनाने के लिये कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। किसानों को सस्ते दाम पर बीज, फर्टिलाइजर एवं मशीनरी उपलब्ध करवाई जा रही है। विभाग द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय तिलहन मिशन, बीज ग्राम, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और एसएमएएम योजना के माध्यम से उन्नत किस्मों का बीज एवं कृषि उपकरण अनुदानित दरों पर किसानों को प्रदान किये जा रहे हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजनान्तर्गत फसलों के नुकसान का समय पर आंकलन कर राहत राशि वितरित की जाती है। प्रदेश के ग्रामीण युवाओं, फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन और स्व-सहायता समूह के माध्यम से अनुदान सहायता के आधार पर स्थापित कस्टम हायरिंग केन्द्रों से किसानों को किराये पर सस्ते दाम में कृषि उपकरण उपलब्ध कराये जा रहे हैं। कृषि विभाग में प्रचलित कृषि यंत्रीकरण प्रोत्साहन योजना में प्रतिवर्ष 50 करोड़ रूपये का बजट प्रावधान कर एक हजार कस्टम हायरिंग केन्द्र स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित है। प्रदेश में कृषक उत्पादक संगठनों का गठन करके प्रत्येक एफपीओ को 18 लाख रूपये तक की वित्तीय सहायता एवं 5 करोड़ रूपये तक की क्रेडिट गारंटी सुविधा दी जा रही है। श्रीअन्न की फसल बोने पर लघु एवं सीमांत किसानों के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में देय प्रीमियम में सब्सिडी प्रदान की जा रही है। राज्य मिलेट मिशन के अंतर्गत कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा एवं रागी के उत्पादन को बढ़ाया जा रहा है। प्रमाणित बीज वितरण, कृषक अध्ययन, भ्रमण, सेमिनार, वर्कशॉप, मिलेट मेला, प्रचार-प्रसार के लिये सभी जिलों में निर्देश जारी किए गए हैं। फूड फेस्टिवल, ब्रांडिंग गैलेरी के लिये मप्र टूरिज्म विकास निगम के माध्यम से कार्य किया जा रहा है। वर्ष 2024-25 में 12.60 लाख मीट्रिक टन श्री अन्न (कोदो, कुटकी, रागी, बाजरा आदि) के उत्पादन का लक्ष्य है। वर्ष 2025-26 में 13.85, वर्ष 2026-27 में 15.35, वर्ष 2027-28 में 17.35 एवं वर्ष 2028-29 में 19.85 लाख मीट्रिक टन के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में राज्य सरकार निरंतर किसानों के कल्याण के लिये कृत संपल्पित होकर कार्य कर रही है। सरकार ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ज्ञान से ध्यान पर फोकस करते हुए 4 मिशन के क्रियान्वयन पर जोर दिया है। जल्द ही प्रदेश में किसान कल्याण के लिये मिशन भी प्रारंभ होने वाला है। वर्तमान में किसानों के कल्याण की विभिन्न योजनाएँ संचालित हो रही है। प्रदेश के कृषकों की सहायता के लिये मुख्यमंत्री कृषक जीवन कल्याण योजना लागू की गई है। योजनांतर्गत कृषकों को आंशिक अपंगता के लिये 50 हजार रूपये की सहायता प्रदान की जाती है। स्थायी अपंगता पर एक लाख रूपये एवं मृत्यु होने पर 4 लाख रूपये प्रदान किये जाते है। साथ ही अंत्येष्टि के लिये 4 हजार रूपये की सहायता दिये जाने का प्रावधान है। प्रदेश की कृषि उपज मण्डी समितियों में अनुज्ञप्तिधारी हम्माल एवं तुलावटियों के उत्थान के लिये यह योजना लागू की गई है। इस योजना के अंतर्गत प्रसूति व्यय एवं प्रसूति अवकाश सहायता, विवाह के लिये सहायता, प्रावीण्य छात्रवृत्ति सहायता, चिकित्सा सहायता, दुर्घटना में स्थायी अपंगता सहायता, मृत्यु सहायता, अंत्येष्टि सहायता, मण्डी प्रांगण में कार्य करते समय हुई दुर्घटना में सहायता आदि का समावेश किया गया है। प्रदेश की कृषि उपज मण्डी समितियों में कार्यरत अनुज्ञप्तिधारी हम्माल एवं तुलावटियों के सहायतार्थ मुख्यमंत्री कृषि उपज मण्डी हम्माल एवं तुलावटी वृद्धावस्था सहायता योजना-2015 लागू की गई। यह योजना उन हम्माल एवं तुलावटियों एवं उनके परिवार के आश्रित सदस्यों पर प्रभावी होगी, जो मण्डी उपविधि के प्रावधान अनुसार मण्डी समिति में 18 से 55 वर्ष आयु के अनुज्ञप्तिधारी हम्माल एवं तुलावटी हैं। योजनांतर्गत हितग्राही को न्यूनतम एक हजार एवं अधिकतम 2 हजार रूपये तक प्रति वर्ष अंशदान जमा करना होगा। इस योजना का लाभ पात्रता रखने वाले अनुज्ञप्तिधारी हम्माल एवं तुलावटियों को 60 वर्ष की आयु पूर्ण या हितग्राही की आकस्मिक मृत्यु/स्थायी अपंगता/असाध्य बीमारी होने की दशा में प्राप्त होगा। प्रदेश में मण्डियों में प्रत्येक वर्ष में 2 बार नर्मदा जयंती एवं बलराम जयंती के अवसर पर लॉटरी पद्धति द्वारा ड्रा निकाले जाते हैं, जिसमें बम्पर ड्रा के पुरुस्कार में क प्रवर्ग की मण्डी समिति में 35 अश्व शक्ति का ट्रेक्टर एवं ख, ग तथा घ प्रवर्ग की मण्डी समितियों में 50 हजार रूपये मूल्य तक के कृषि यंत्र दिये जाने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त मण्डी के श्रेणी अनुसार एक हजार से 21 हजार रूपये तक की नगद राशि के रुप में पुरुस्कार दिये जाते हैं। प्रदेश में राज्य शासन द्वारा लिये गये निर्णय अनुसार प्रदेश की 257 मण्डी समितियों में कृषि उपज के विक्रय के लिये आये कृषकों को 5 रुपये में भोजन थाली (न्यूनतम अनिवार्य मीनू 6 पूड़ी अथवा 6 रोटी, दाल एवं सब्जी के साथ) उपलब्ध कराने की योजना लागू की गई।

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