- शिवराज सिंह चौहान के आत्मनिर्भर मप्र अभियान को उद्योगों ने दी मदद
- अर्थ-व्यवस्था को संभालने के लिए शिवराज सरकार के किए गए प्रयासों का असर
कोरोना संक्रमण के बाद बदहाल हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए देशभर में प्रयास हो रहे हैं, लेकिन मप्र की शिवराज सरकार ने संक्रमणकाल में ही जो प्रयास शुरू किए थे, उसके कारण प्रदेश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह पटरी पर लौट आई है और मजबूत हुई है। मप्र की अर्थव्यवस्था को उद्योगों का बूस्टर डोज मिला है। इसको देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर उद्योग विभाग ने आत्मनिर्भर मप्र अभियान के तहत वर्ष 2022 में औद्योगिक विस्तार का ऐसा खाका तैयार किया है, जिससे लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा।
प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल। कोरोना वायरस की महामारी के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान में जिस तरह अडिग होकर फैसले लिए उसका असर यह हुआ है कि प्रदेश में तेजी से औद्योगिक विकास हुआ है और मप्र की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है। दरअसल, महामारी के बीच भी मुख्यमंत्री ने उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए जिस तरह का वातावरण उपलब्ध कराया है उससे हमें एक सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है। प्रदेश में उद्योगों के लिए इज ऑफ डूइंग बिजनेस बढ़ रहा है। कोरोना वायरस की घातक दो लहर के बावजूद प्रदेश के उद्योग जगत ने 2021 में आत्मनिर्भर मप्र अभियान को बल दिया। रॉ मटेरियल की आसमान छूती कीमतें, वर्किंग कैपिटल की कमी, स्कील्ड मैन पॉवर का अभाव और मांग की कमी ने उद्योग जगत को जरूर कुछ परेशान किया, लेकिन क्लस्टर्स के बूस्टर डोज ने 2022 के लिए आत्मविश्वास बढ़ा दिया है। शासकीय के साथ निजी औद्योगिक क्षेत्र की आधारशिला ने भी सुनहरे भविष्य की तरफ इशारा किया है।
आजादी से अब तक मप्र ने बदहाल अर्थ-व्यवस्था से लेकर विकास की नई उंचाईयां तक देखी है। लंबे समय से प्रदेश का औद्योगिक विकास तेजी से बढ़ रहा था, लेकिन कोरोना काल के पहले झटके ने इसे हिला दिया। बावजूद इसके शुरूआती तौर पर भले ही उद्योगों को लॉकडाउन के समय तगड़ा झटका लगा हो, लेकिन मप्र का उद्योग जगत इससे हारा नहीं। न थका और न रूका, बल्कि कोरोना काल के बीच भी मप में औद्योगिक विकास ने नई राह निकाल ली। बम्पर निवेश हुआ, नौकरियां गई, लेकिन नया रोजगार भी खूब बढ़ा। केवल कोरोना काल में ही पंद्रह हजार लोगों को नया रोजगार मिला। उस पर अब तीन हजार उद्योग और खोले जाना है। यह भी रोजगार की नई राह रहेगी।
मील के पत्थर साबित होंगे कॉरिडोर
मप्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुख्यमंत्री ने कई कदम उठाए हैं। प्रदेश में अधिक से अधिक निवेश हो इसके लिए कई योजनाएं-परियोजनाएं बनाई जा रही हैं। निवेशकों को निवेश के लिए बेहतर माहौल मुहैया कराने के लिए कुछ कॉरिडर प्रस्तावित किए गए हैं। सरकार को उम्मीद है कि इससे प्रदेश में बड़े पैमाने पर निवेश आएगा। गौरतलब है कि प्रदेश सरकार उद्योग लगाने के लिए नियम कायदे सहज बनाने का काम किया है और वह कारोबार शुरू करने की लागत कम करने तथा कारोबारी सुगमता को और आसान बनाने पर काम कर रही है। उद्योग विभाग ने मुंबई-वाराणसी कॉरिडोर प्रस्तावित किया है। इसके तहत प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र-रीवा, जबलपुर, सिंगरौली, कटनी, बोरगांव, मंडीदीप, मोहसा-बाबई, सीहोर आएंगे। इसमें 16000 करोड़ रुपए के निवेश और 70000 कर्मचारियों को रोजगार के साथ क्षेत्र में 200 बड़े और मध्यम उद्योग स्थापित होंगे। वहीं 4-5 औद्योगिक नोड्स मप्र में मुंबई-वाराणसी औद्योगिक कॉरिडोर के साथ विकसित किए जा सकते हैं। इस कॉरिडोर में मिनरल्स, सीमेंट, फूड प्रोसेसिंग, मेंटल एंड नॉन मेंटल, रिन्यूएबल एनर्जी, डिफेंस एंड लॉजिस्टिक्स आदि संभावित सेक्टर शामिल होंगे। वहीं उद्योग विभाग ने इंदौर-विशाखापट्टनम कॉरिडोर का भी प्रस्ताव तैयार किया है। इस कॉरिडोर में प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र- मनेरी, बोरगांव, मंडीदीप, सीहोर, देवास, इलेक्ट्रॉनिक्स कॉम्प्लेक्स इंदौर, रेडी मेड गारमेंट पार्क, राऊ, पीथमपुर शामिल किए गए हैं। 60,000 करोड़ रुपए के निवेश के साथ क्षेत्र में 500 बड़े और मध्यम उद्योग स्थापित होंगे और 1,250,00 कर्मचारियों को रोजगार मिलेगा। मप्र में इंदौर-विशाखापट्टनम औद्योगिक कॉरिडोर के साथ 3-4 औद्योगिक नोड्स विकसित करने का प्रस्ताव है। इस कॉरिडोर में एग्री एंड फूड प्रोसेसिंग, फार्मास्युटिकल्स, ऑटो एंड ऑटो कंपोनेंट्स, हैवी इंजीनियरिंग, डिफेंस, मेंटल, नॉन मेंटल एंड फेरोअलॉयज आदि संभावित सेक्टर होंगे।
2022 में प्रस्तावित प्रोजेक्ट्स
औद्योगिक क्षेत्र क्षेत्र (हेक्टेयर) लागत (करोड़ में) निवेश (करोड़ में) रोजगार
औद्योगिक पार्क बैरसिया, भोपाल 33 26 500 550
औद्योगिक पार्क आष्टा (झिलेला) 215 99 4200 5000
औद्योगिक पार्क धार (तिलगारा) 150 79 2700 3200
मेगा औद्योगिक पार्क, रतलाम (चरण-1) 1467 462 22500 27000
औद्योगिक पार्क नरसिंहपुर 132 48 2200 2700
आईटी पार्क भोपाल 1.0 300 300 6000
आईटी पार्क-3 इंदौर 2.36 400 500 8000
कुल 2000 1414 32900 52450
पांच क्लस्टरर्स को मिली हरी झंडी
वर्ष 2021 ने इंदौर को पांच नए शासकीय औद्योगिक क्लस्टर को हरी झंडी मिली है। आने वाले तीन साल में शहर में फर्नीचर, फार्मा, कन्फेक्शनरी, खिलौना और फूड प्रोसेसिंग क्लस्टर बनाना है। फर्नीचर क्लस्टर के लिए छोटी बेटमा में जमीन भी आवंटित हो गई है। कैबिनेट में पास होने के बाद सीमांकन अक्टूबर में शुरू हो गया है। उज्जैन रोड पर फार्मा क्लस्टर के लिए जमीन तलाशी जा रही है। रंगवासा में खिलौना और कन्फेक्शनरी क्लस्टर भी जल्द धरातल पर होगा। पहली लहर के बाद इस वर्ष की शुरुआत में उद्योग जगत कुछ टै्रक पर लौटे ही थे कि मार्च अंत से दूसरी लहर शुरू होने से संकट बढऩे लगा। आर्थिक हालातों को संभालने के लिए उद्योगों को लॉकडाउन और कफ्र्यू की जद से बाहर रखा गया था, लेकिन रॉ मटेरियल (कच्चे माल) की आसामान छूती कीमतों ने उत्पादन की कमर तोड़ थी। फार्मा, मेटल, प्लास्टिक, फूड प्रोसेसिंग, मशीनरी सहित लगभग सभी उद्योगों का कच्चा माल जून से सितंबर के बीच 40-50 फीसदी तक महंगा हो गया, इस कारण उत्पादन कम हो गया। वर्ष के अंतिम आठ महीने यह चुनौती बनी रही। अप्रैल से अक्टूबर के बीच पेट्रोल, डीजल, कोयला सहित अन्य ईंधनों के मूल्य में बेतहाशा वृद्धि ने भी उद्योगों को परेशानी में डाला। इस साल में मप्र में कई बड़े उद्योग स्थापित होंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मप्र को औद्योगिक हब बनाने का जो प्रयास शुरू किया है उसके सार्थक परिणाम नजर आने लगे हैं। अगर सबकुछ ऐसे ही चलता रहा तो मप्र आने वाले समय में देश को रोजगार का बूस्टर डोज देगा। इसके लिए तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं। कई क्लस्टरों को हरी झंडी मिलने के साथ ही उन पर काम भी शुरू हो चुका है। बड़े उद्योग भी यहां उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि पांच साल में करीब 15 लाख से अधिक रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। इसका फायदा अन्य सेक्टर को मिलेगा। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के साधन बढऩे से दूसरे कारोबार भी बूम करेंगे। मप्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने जो कार्ययोजना बनाई है, उसमें वर्ष 2022 में गतिविधियां तेजी से आगे बढ़ाई जाएंगी। सरकार का सबसे अधिक फोकस उद्योग-धंधों पर है। इस साल रोजगार के अधिकतम अवसर उपलब्ध कराने के लिए निवेश बढ़ाने पर सर्वाधिक जोर दिया जाएगा। उद्योग विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस साल वैसे तो प्रदेशभर में औद्योगिक विकास होगा, लेकिन निवेशकों का सबसे अधिक फोकस मालवा-निमाड़ क्षेत्र पर है। इसलिए फिलहाल सरकार का भी फोकस इसी क्षेत्र में हैं।
आधा दर्जन से अधिक औद्योगिक क्लस्टर
गौरतलब है कि कोविड काल में अनगिनत नौकरियां चली गईं। ऐसे में अब लोगों की निगाहें रोजगार के नए माध्यमों पर हैं। मालवा-निमाड़ की बात करें तो आने वाले पांच साल में आधा दर्जन से अधिक औद्योगिक क्लस्टर और लॉजिस्टिक हब अस्तित्व में आ जाएंगे। खिलौना, कन्फेक्शनरी, फर्नीचर, फार्मा व फूड प्रोसेसिंग क्लस्टर को सरकार ने पहले ही हरी झंडी दे दी है। पीथमपुर में नए उद्योग स्थापित हो रहे हैं। ई-व्हीकल प्रोडक्शन को प्रमोट करने को लेकर अच्छा प्लान तैयार किया गया है। देवास में एयरकार्गो, लॉजिस्टिक हब पांच साल के अंदर शुरू हो जाएगा। इसके अलावा फार्मा क्लस्टर व मेडिकल डिवाइस हब भी आकार ले लेगा। बेटमा में 450 एकड़ में तैयार होने वाले फर्नीचर क्लस्टर के प्रारंभिक चरण में पांच हजार लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है। 170 कंपनियां 750 करोड़ के निवेश प्रस्ताव दे भी चुकी है। कुछ अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी यहां आना चाहती हैं। बेटमा में ही बनने वाले इस प्लास्टिक क्लस्टर में पहले चरण में 200 एकड़ जमीन दी जाएगी। प्रारंभिक चरण में 10 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। पांच साल बाद यहां हर वर्ष करीब 3 हजार करोड़ प्रति वर्ष के कारोबार की उम्मीद है। पहले चरण के लिए 150 उद्योगपतियों ने 300 करोड़ के निवेश के प्रस्ताव दिए हैं। राऊ के पास रंगवासा में 70 करोड़ के निवेश के साथ खिलौना क्लस्टर के पहले चरण में करीब 4 हजार लोगों को रोजगार मिल सकेगा। इसके सेकंड फेस की भी तैयारी की गई है। अनुमान है यहां 250 करोड़ कारोबार हर वर्ष होगा और करीब 30 करोड़ का जीएसटी सरकार को मिलेगा। इंदौर और उज्जैन के बीच 100 एकड़ में फार्मा क्लस्टर बनाने की तैयारी है। पहले चरण में 80 दवा कंपनियां वहां 1000 करोड़ का निवेश करने को तैयार हैं। 10 हजार लोगों को रोजगार मिलना तय है। पुनासा के पास 20 एकड़ में बनने वाले ग्रीन एनर्जी क्लस्टर को लेकर सरकार ने सहमति दे दी है। करीब 26 निवेशक 60 करोड़ का निवेश कर प्लांट शुरू करेंगे। इंदौर के आसपास भी एक ग्रीन एनर्जी क्लस्टर योजना में है। दोनों मिलाकर करीब 5 हजार लोगों को रोजगार देने की उम्मीद है।
इन क्लस्टर्स को मिल चुकी है हरी झंडी
दरअसल, कोविड काल में अनगिनत नौकरियां चली गईं। ऐसे में अब लोगों की निगाहें रोजगार के नए माध्यमों पर हैं। मालवा-निमाड़ की बात करें तो आने वाले पांच साल में आधा दर्जन से अधिक औद्योगिक क्लस्टर और लॉजिस्टिक हब अस्तित्व में आ जाएंगे। खिलौना, कन्फेक्शनरी, फर्नीचर, फार्मा व फूड प्रोसेसिंग क्लस्टर को सरकार ने पहले ही हरी झंडी दे दी है। पीथमपुर में नए उद्योग स्थापित हो रहे हैं। ई-व्हीकल प्रोडक्शन को प्रमोट करने को लेकर अच्छा प्लान तैयार किया गया है। देवास में एयरकार्गो, लॉजिस्टिक हब पांच साल के अंदर शुरू हो जाएगा। इसके अलावा फार्मा क्लस्टर व मेडिकल डिवाइस हब भी आकार ले लेगा। दो फूड प्रोसेसिंग क्लस्टर सरकार की योजना में है। एक महू के पास और दूसरा नेमावर रोड पर। हालांकि दोनों पर अंतिम फैसला बाकी है, लेकिन इससे जुड़े उद्योगपतियों का कहना है दोनों के लिए करीब 100 निवेशक तैयार हैं और पहले चरण में ही पांच हजार लोगों को रोजगार मिल सकता है। इंदौर में तीसरे आईटी पार्क की तैयारी के साथ ही सिंहासा में नया आईटी पार्क शुरू हो गया है। सुपर कॉरिडोर पर भी कुछ बड़ी कंपनियां आईटी सेक्टर में निवेश करने का प्रस्ताव दे चुकी हैं। पांच साल में यहां पर 50 हजार से अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे।
कर्नाटका एंटी बायोटिक्स का सीएम करेंगे भूमिपूजन
देवास रोड स्थित विक्रम उद्योगपुरी में मेडिकल डिवाइस पार्क के साथ मेडिकल से जुड़े अन्य उद्योग भी आएंगे। इस कड़ी में सबसे पहले केंद्र सरकार के उपक्रम कर्नाटका एंटी बायोटिक्स एंड फार्मा स्यूटीकल्स लिमिटेड को जमीन देने की तैयारी है। राज्य शासन के स्तर पर सभी प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी हैं। इस कारखाने में पांच सौ लोगों को सीधे रोजगार मिलेगा। इस कारखाने के लिए रॉ-मटेरियल बनाने वाले 15 अन्य कारखाने भी आएंगे। कर्नाटका एंटी बायोटिक्स सहित अनेक नए उद्योग आने की घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा बेस्ट लाइफ स्टाइल के कारखाने के भूमिपूजन के दौरान हुई थी। इसके बाद प्रतिभा सिंथेटिक्स उद्योग के आने को मंजूरी मिली। इसका भूमिपूजन सीएम से कराने के लिए तैयारी की जा रही है। इस बीच मेडिकल डिवाइस पार्क के लिए विक्रम उद्योगपुरी को चुना गया। इस कड़ी में कर्नाटका एंटी बायोटिक्स की मंजूरी का फैसला भी हो गया। राज्य शासन स्तर पर सभी प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी हैं। सांसद अनिल फिरोजिया के अनुसार कारखाने की मंजूरी हो चुकी है। अब जमीन का आवंटन होते ही इसका भूमिपूजन होकर कारखाने का निर्माण शुरू हो जाएगा। राज्य शासन ने इस कारखाने को कई विशेषताओं के कारण मंजूरी दी है। इसमें बड़ा पूंजी निवेश और रोजगार अवसर हैं। विशेष तरह का उत्पादन होने से यहां स्किल डेवलपमेंट होगा। क्षेत्र में कारखाने से जुड़े अन्य रोजगार अवसर आने से आर्थिक विकास होगा। निर्यात के कारण विदेशी मुद्रा आएगी। सरकारी कंपनी होने से सीएसआर के माध्यम से सामाजिक विकास में मदद मिलेगी।
आत्मनिर्भर मप्र को दिया दम
कोरोना काल में उद्योग जगत ने आत्मनिर्भर मप्र अभियान को सबसे अधिक बल दिया। महामारी के बीच चाहे पीपीई किट का निर्माण हो या सैनिटाइजर का सप्लाय। जरूरत पडऩे पर ब्लैक फंगस का इंजेक्शन हो या बुखार उतारने में इस्तेमाल होने वाली फेबिफ्लू टेबलट, हमारे उद्योगों ने उनका निर्माण किया और पूरे देश सहित विदेशों तक सप्लाय किया। कोरोना में जीवन रक्षक साबित हो रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन को इंदौर में बनाने का भी दवा हमारे उद्योगपतियों ने किया था, लेकिन तकनीकि कारणों से अनुमति नहीं मिली। दूसरी लहर में ऑक्सीजन की किल्लत सबसे अधिक महसूस हुई। प्रदेश को जरूरत हुई तो उद्योग जगत ने अपने ऑक्सीजन सिलेंडर जनता की सेवा में लगा दिए। औद्योगिक क्षेत्र में लगे सभी ऑक्सीजन प्लांट से अस्पतालों में सप्लाय की गई। अधिक जरूरत पड़ी तो उद्योगपति राजस्थान जाकर ऑक्सीजन सिलेंडर भरवाकर इंदौर ले आए। जुलाई के बाद से अचानक भारत सहित पूरे देश में आयात-निर्यात में उपयोग होने वाले कन्टेनर्स की कमी होने लगी। इस कमी के चलते हमारे प्रदेश से होने वाले निर्यात पर 20 फीसदी तक की कमी देखी गई। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑगे्रनाइजेशन की मानें तो कंटेनर्स की कमी और भाड़े में 25-30 फीसदी की बढ़ोतरी से प्रदेश के निर्यात में करीब 12 प्रतिशत की कमी देखी गई। कन्टेनर्स नहीं होने ही रॉ मटेरियल की कीमतें भी बढ़ीं। डिमांड-सप्लाय में गड़बड़ी उद्योगों के लिए यह साल डिमांड और सप्लाय के बीच तालमेल नहीं बन पाने के लिए याद किया जाएगा। कोरोना की दूसरी लहर आने से फार्मा को छोडक़र अन्य सेक्टर की डिमांड अचानक कम हो गई। साल की शुरुआत में अच्छी डिमांड होने से उद्योगों में बड़ी मात्रा में स्टॉक था। अप्रैल में हालात बिगडऩे के चलते पुराने ऑर्डर तैयार होने के बाद भी गोडाउनों में भरे रहे। यह चैन टूटने और आर्थिक हालत खराब होने से उद्योगपतियों की वर्किंग कैपिटल प्रभावित हो गई, जो साल के अंत तक परेशानी देती रही। महंगा रॉ मटेरियल खरीदकर बनाया गया माल बाद में सस्ती कीमतों पर बेचना पड़ा।
अप्रैल में करीब 776 इकाइयां शुरू हो चुकी हैं। इनमें 1160.90 करोड़ रुपए का पूंजी निवेश हुआ। साथ ही 15 हजार लोगों को रोजगाार भी मिला। तीन हजार नए उद्योग और स्थापित होना है। सरकार ने हर महीने एक लाख लोगों को रोजगार देने का लक्ष्य रखा है। इसके तहत इन इकाइयों से रोजगार के नए रास्ते खुलेंगे। कोरोना में उद्योग की नई राह भी निकली। प्रदेश में 32 आजीविका रूरल मार्ट शुरू हो चुके हैं और 44 रूरल मार्ट के प्रस्ताव प्रेषित किये जा चुके हैं, यह भी शीघ्र शुरू हो जायेंगे। इन मार्ट में एक ही स्थान पर समस्त आजीविका उत्पादों का सुपर स्टोर की तरह सामान बेचा जा रहा है। ये ग्रामीण विकास के तहत आजीविका समूह के स्टोर है।
निवेशकों की पहली पसंद मप्र
रोना संक्रमण के दौर में चौथी पारी शुरू करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस बात को भांप लिया था कि प्रदेश में औद्योगिक निवेश ही मप्र की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रख सकता है। इसलिए उन्होंने निवेशकों के लिए रेड कारपेट बिछा दी थी। इसका परिणाम यह हुआ कि दूसरी लहर थमते ही प्रदेश में निवेश करने वालों की कतार लग गई है। पिछले 21 माह में प्रदेश में जहां 16,707 करोड़ रुपए का निवेश हुआ है, वहीं 47,186 लोगों को रोजगार के अवसर मिले हैं। इस दौरान सरकार ने 879 एकड़ औद्योगिक भूमि भी आवंटित की है। मप्र हमेशा से निवेशकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। लेकिन कोरोना संक्रमणकाल में देशभर में सबसे अधिक निवेशकों ने मप्र का रुख किया। इस कारण मप्र में औद्योगिक विकास की गति तेजी से बढ़ी है। मुख्यमंत्री के दिशा-निर्देशन और उद्योग मंत्री राजवर्धन सिंह के मार्गदर्शन में उद्योग विभाग के अधिकारी प्रमुख सचिव संजय कुमार शुक्ला के नेतृत्व में औद्योगिक निवेश को बढ़ाने के लिए नीति पर निरंतर काम कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि कोरोना संक्रमणकाल में मप्र में आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार हो रहा है। अगर प्रदेश में औद्योगिक निवेश का आंकलन करें तो पिछले 3 सालों में इस वर्ष प्रदेश में अधिक निवेश हुआ है। उद्योग विभाग से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2019-20 में 258 निवेशकों ने 6600 करोड़ रुपए का निवेश किया था, वहीं उस साल 630 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी। वर्ष 2020-21 में 384 निवेशकों ने 11 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया था और निवेशकों को 840 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी। जबकि वर्ष 2021-22 में 31 अगस्त तक 495 निवेशकों ने 5707 करोड़ रुपए का निवेश किया है। इस साल अभी तक 832 एकड़ जमीन निवेशकों को आवंटित की गई है। उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव संजय कुमार शुक्ला का कहना है कि मुख्यमंत्री की प्राथमिकता प्रदेश में अधिक से अधिक औद्योगिक निवेश के साथ ही रोजगार के अवसर पैदा करना भी है। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमणकाल के दौरान बेरोजगार हुए लोगों को रोजगार मुहैया कराने के लिए विभाग ने औद्योगिक इकाइयों को कई तरह की सुविधाएं मुहैया कराई हैं। इससे रोजगार के अवसर बढ़े हैं।
बनेगा देश का सबसे बड़ा ग्रीनफील्ड इंटरनेशनल एयरपोर्ट
देश के हृदय प्रदेश मप्र में औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इन संभावनाओं को देखते हुए उद्योग विभाग ने 10 हजार हैक्टेयर पर देश का सबसे बड़ा ग्रीनफील्ड इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाने की योजना तैयार की है। यह एयरपोर्ट भोपाल-इंदौर रोड पर सोनकच्छ और आष्टा के बीच बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन विभाग द्वारा इसकी टाइमलाइन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने प्रस्तुत की जाएगी, जिसमें इस बात का उल्लेख होगा कि कितने समय और कितने फेज में पीपीपी मॉडल पर किस तरह इसका निर्माण किया जाएगा। सभी कार्यों की समयसीमा तय की जाएगी। जानकारी के अनुसार गत दिवस जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने औद्योगिक नीति व निवेश प्रोत्साहन विभाग की समीक्षा की थी तब समीक्षा के दौरान विभाग के प्रमुख सचिव संजय शुक्ला ने प्रजेंटेशन दिया, जिसमें आने वाले वर्षों में किए जाने वाले कार्यों के बारे में जानकारी दी गई। प्रजेंटेशन में बताया गया कि तेजी से औद्योगिक विकास के लिए इंटरनेशनल एयरपोर्ट के साथ ही अन्य सुविधाएं होना बहुत जरूरी है। इसमें बताया गया कि अमेरिका, चीन, इंग्लैंड, दुबई आदि देशों के प्रमुख एयरपोर्ट की व्यवस्थाओं व सुविधाओं के बारे में विस्तार से अध्ययन किया गया। इसी के तहत मप्र में भविष्य में यातायात की मांग को पूरा करने के लिए हब एंड स्पोक एयरपोर्ट मॉडल के रूप में विकसित होने की काफी संभावनाएं हैं।
मुख्यमंत्री को टाइम लिमिट की रिपोर्ट सौंपे जाने से पहले मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस इस पर विभिन्न विभाग के आला अधिकारियों से चर्चा करेंगे। मुख्य सचिव ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि रिपोर्ट तैयार करने से पहले इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में कार्य करने वाले बड़े उद्योगपतियों से भी चर्चा कर लें। इंदौर व भोपाल से एक घंटे में आने-जाने वाले लोग एयरपोर्ट पहुंच जाएंगे। इसके लिए हाई स्पीड कनेक्टिविटी भी दी जाएगी। प्रजेंटेशन में यह भी बताया गया है कि यात्रा समय को कम करने के लिए प्रस्तावित एयरपोर्ट के माध्यम से इंदौर और भोपाल के बीच मेट्रो रेल परियोजना व एक्सप्रेस-वे का भी प्रावधान किया गया है। प्रस्तावित एयरपोर्ट के आसपास विभिन्न स्थानों पर मेगा औद्योगिक टाउनशिप भी विकसित किया जाएगा। साथ ही इसे भारत सरकार के इंडस्ट्रीयल पार्क स्कीम से भी जोड़ा जाएगा, ताकि केंद्र सरकार से मदद मिल सके। इससे नर्मदा एक्सप्रेस-वे के अंतर्गत भोपाल और इंदौर के बीच आर्थिक गतिविधियों को मजबूती मिलेगी। प्रजेंटेशन में यह भी बताया गया है कि वर्तमान एयरपोर्ट इतने व्यस्त हैं कि प्रशिक्षण व रखरखाव का कार्य वहां नहीं हो पाता। विमानों के सुधार और ट्रायल के लिए मेंटेनेंस रिपेयर एंड ओवर हालिंग (एमआरओ) के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए। प्रस्तावित एयरपोर्ट में पार्किंग व्यवस्था भी होना चाहिए। यह व्यवस्था अभी मप्र के किसी एयरपोर्ट पर नहीं है।