- 5 यात्राओं में भाजपा को मिल रहा अपार जन समर्थन
मप्र ही नहीं देशभर में विकास का पोस्टर बॉय बने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी साल में जनता के बीच पहुंचने के लिए जन आशीर्वाद यात्रा का जो फॉर्मूला बनाया था, वह हर बार सत्ता की चाबी साबित हुआ है। इस बार पार्टी ने 5 जन आशीर्वाद यात्राएं निकालकर सत्ता पर काबिज होने का जो प्लान बनाया है, उससे कांग्रेस के सपनों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। क्योंकि प्रदेश में निकाली जा रही जन आशीर्वाद यात्राओं को लोगों का भरपूर समर्थन मिल रहा है।
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। मप्र में अभी तक चुनावी साल में हर साल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जन आशीर्वाद यात्रा निकालते थे और जनता के बीच पहुंचकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते थे। इस बार भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में एक नहीं पांच जन आशीर्वाद यात्राएं निकालने की रणनीति बनाई और शिवराज सिंह के नेतृत्व में उस पर अमल शुरू हो गया है। प्रदेश में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 3 सितंबर को चित्रकूट में कामतानाथ मंदिर में पूजा करने के बाद भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा की शुरूआत की। यह यात्रा 12 जिलों के 48 विधानसभा सीटों से गुजरेगी। यह यात्रा 19 दिन में 2343 किलोमीटर का सफर तय करेगी। वहीं 4 सिंतबर को नीमच में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दूसरी जन आशीर्वाद यात्रा को रवाना किया। 17 दिनों में 2,000 किलोमीटर तय करने वाली यह यात्रा 12 जिलो के 44 विधानसभाओं को कवर करेगी। 5 सितबंर को महाकौशल के मंडला से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तीसरी जन आशीर्वाद यात्रा रवाना की। यह यात्रा 18 दिन में 2303 किलोमीटर की यात्रा करते हुए 10 जिलों की 45 विधानसभा सीटों से गुजरेगी। वहीं इसी दिन चौथी यात्रा ग्वालियर चंबल संभाग के श्योपुर कस्बे से शाह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के जरिए रवाना की। 17 दिन में 1997 किलोमीटर का सफर करने वाली यह यात्रा 11 जिलो के 42 विधानसभाओं से गुजरेगी। वहीं पांचवी और अंतिम यात्रा 6 सितंबर को खंडवा से धूनीवाले बाबा का आशीर्वाद लेकर केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने रवाना की। यह यात्रा 21 दिन में 2,000 किलोमीटर के सफर में 10 जिलों के 42 विधानसभाओं से गुजरेगी।
मप्र में निकाली जा रही जन आशीर्वाद यात्राएं 24 सिंतबर तक 10 हजार 543 किलोमीटर का सफर कर 210 विधानसभाओं को कवर करेंगी। यात्राओं के इस सफर के दौरान मप्र में 211 बड़ी सभाएं, 678 छोटी सभाएं होगी। 998 स्थानों पर यात्राओं का स्वागत और नुक्कड़ सभाएं होगी। 25 सितंबर को पं. दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर भोपाल में यात्राओं का समापन होगा जिसे प्रधानमंत्री मोदी संबांधित करेंगे। भाजपा के रणनीतिकारों का कहना है कि इस दिन तय हो जाएगा, कि मप्र में भाजपा की सरकार एक बार फिर बड़े बहुमत के साथ आएगी। हालांकि भाजपा की ये राजनीतिक यात्राएं कितनी फायदेमंद होती हैं यह तो आने वाला समय बताएगा। राजनीति में यात्राओं का बड़ा महत्व होता है। यही कारण है कि जब भी चुनावी समर शुरू होता है, राजनीतिक पार्टियां जनता तक पहुंचने के लिए यात्राओं का सहारा लेने लगती हैं। मप्र के इतिहास में मिशन 2023 ऐसा है, जिसको साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां यात्राओं का सहारा ले रही हैं। दरअसल, 2018 में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने नर्मदा यात्रा निकालकर कांग्रेस के लिए जीत की पृष्ठभूमि तैयार की थी। उसको देखते हुए अब मप्र में भाजपा और कांग्रेस दोनों का फोकस यात्राओं पर है। वैसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो बराबर यात्राएं निकालते रहे हैं, लेकिन अब कांग्रेस भी यात्राओं के सहारे वोटबैंक मजबूत करने में लगी हुई है। यात्राओं का फायदा किसको होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन दोनों पार्टियां दावा कर रही हैं कि प्रदेश के मतदाता उनको अधिक महत्व दे रहे हैं। यह महत्व वोट में कितना तब्दील हो पाता है, यह तीन महीने बाद होने वाले चुनाव में सबके सामने आ जाएगा।
शिवराज के विकास पर मुहर
प्रदेश में पांचों जन आशीर्वाद यात्राओं के शुभारंभ अवसर पर केंद्रीय नेताओं ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विकास पर मुहर लगाकर यह संकेत दे दिया है कि मप्र में विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। पांचवीं जन आशीर्वाद यात्रा को शुरू करने के अवसर पर खंडवा में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने सीएम शिवराज की तारीफों के पुल बांधे। उन्होंने कहा, विकास का पावर स्टेशन अगर मध्यप्रदेश बना है तो इसका श्रेय शिवराज सिंह को जाता है। अभी तो विकास का ट्रेलर है, सही फिल्म शुरू होना बाकी है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह के आने से पहले रोड की हालत मुझे याद है। मैं नागपुर से छिंदवाड़ा जा रहा था। रोड पर गड्ढे थे। एक कार्यकर्ता बार-बार पलटकर देख रहा था कि उसकी पत्नी स्कूटर पर बैठी है या गिर गई। उन्होंने कहा कि शिवराज और मोदी के नेतृत्व में मेडिकल कॉलेजों की संख्या पांच से 30 हो गई है। हर हाथ को काम, हर खेत को पानी की बात को हाथ में लेकर शिवराज ने कृषि उत्पादन बढ़ाया और 7 बार प्रथम होने का अवॉर्ड लिया। मप्र में सिंचाई का क्षेत्र बढऩे से उत्पादन बढ़ा है। आज मध्यप्रदेश बीमारू से विकासशील प्रदेश है। इसके लिए शिवराज सिंह चौहान को बधाई। गडकरी ने कहा, कपास सस्ता है, कपड़ा महंगा है, तिलहन सस्ती है, तेल महंगा है…। हमने सपना देखा था कि किसान केवल अन्नदाता नहीं, किसान ऊर्जादाता बनेगा। यह सपना पूरा हो रहा है। 7-6 दिन पहले टोयोटा गाड़ी किसानों के तैयार किए इथेनॉल से चली। टाटा के विस्तारा का हवाई जहाज किसानों के बॉयो फ्यूल पर आया। इस तरह किसान ऊर्जादाता बनेगा। शिवराज ने थर्मल पावर, विंड पावर, सोलर पावर प्लांट तैयार किए। आने वाले दिनों में हाइड्रोजन फ्यूल होगा। मेरे पास दिल्ली में एक गाड़ी है। मप्र ग्रीन फ्यूल उत्पादन करने वाला देश का पहला राज्य होगा। अब तो हमारे यहां पराली से बिटुमिन भी तैयार हो रहा है।
मप्र में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियां एक्टिव मोड़ में आ गई हैं। भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने स्तर पर रणनीति बना रहे हैं। चुनावी माहौल से पहले मप्र की सियासत इन दिनों सुर्खियों में है। इसकी मुख्य वजह है यात्रा पॉलिटिक्स। मप्र में विधानसभा चुनाव से पहले हर एक व्यक्ति तक पहुंच बनाने के लिए भाजपा और कांग्रेस यात्राओं के सहारे हैं। भाजपा 24 सितंबर तक जनआशीर्वाद यात्रा निकालेगी। 10,000 किलोमीटर का सफर तय कर भाजपा एक बड़ी आबादी को साधने की कोशिश में जुटी हुई है। 24 सितंबर को सभी रथ जब वापस लौट आएंगे। उसके दूसरे ही दिन 25 सितंबर को भोपाल में कार्यकर्ता महाकुंभ होगा। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे। प्रदेश में अक्टूबर में आचार संहिता लग सकती है। आपको बता दें कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता 6 अक्टूबर को लग गई थी। इससे पहले साल 2013 के चुनाव में 8 अक्टूबर को आचार संहिता लागू की गई थी।
150 सीटों के साथ भाजपा सरकार
वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दो जन आशीर्वाद यात्राओं में शामिल हुए। अमित शाह खराब मौसम के चलते श्योपुर नहीं पहुंचे सके। उन्होंने फोन पर ही सभा को संबोधित किया। शाह ने कहा कि ग्वालियर में बारिश की वजह से हेलिकॉप्टर श्योपुर के लिए नहीं उड़ सका। लेकिन मैं इसी चुनाव अभियान में श्योपुर जरूर आऊंगा। शाह ने फोन पर अपने छोटे संबोधन में कहा कि मप्र में डबल इंजन की सरकार विकास के नए आयाम स्थापित कर रही है। 2003 से 2023 तक भाजपा ने मप्र को एक बीमारू राज्य से बेमिसाल राज्य बनाया है। इससे पूर्व मंडला में सभा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दावा किया कि मध्यप्रदेश में इस बार 150 सीटों के साथ भाजपा की सरकार बनने जा रही है। शाह ने मंडला में भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इसके पहले उन्होंने एक सभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा- आपके आशीर्वाद के साथ जन आशीर्वाद यात्रा शुरू कर रहे हैं। ऐसी पांच यात्रा प्रदेश की 210 विधानसभा क्षेत्र में घूमकर भोपाल जाएंगी। शाह ने कहा – मैं आज दावे से कहने आया हूं, बंटाधार जी आप और करप्शन नाथ दोनों सुन लो, जब 25 सितंबर को हमारी जन आशीर्वाद यात्रा समाप्त होगी, उसी दिन तय हो जाएगा कि मध्यप्रदेश में अगली बार 150 सीटों के साथ फिर से भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनेगी।
अमित शाह ने कहा कि मध्यप्रदेश को बीमारू राज्य बनाकर मिस्टर बंटाढार छोडक़र गए थे। भ्रष्टाचार, लूट-खसोट, बिना बिजली गरीबों का घर, बिना सिंचाई की खेती छोडक़र गए थे। भाजपा के मुख्यमंत्रियों ने इसे बेमिसाल बनाकर आगे बढ़ाने का काम किया। मध्यप्रदेश ने पेसा कानून को जमीन पर उतारने का काम किया है। उन्होंने कहा कि मैं आदिवासी सम्मेलन में आया था। सीएम शिवराज ने धड़ाधड़ घोषणाएं कर दीं। मैंने पूछा ये पूरी हुई या नहीं तो उन्होंने बताया सभी पूरी कर दी। कमलनाथ और बंटाढार की केंद्र में सरकार थी। मनमोहन सिंह पीएम थे, उन्होंने कहा- देश की तिजोरी पर सबसे पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है। सबने विरोध किया, मगर वो नहीं माने। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में सरकार डूबी रही। अंतत: 2014 में मोदीजी की सरकार आई। मोदीजी ने सांसदों को भाषण दिया और कहा- मेरी सरकार आदिवासी, पिछड़ों, दलित और गरीबों की सरकार है। आपको चयन करना है दो विचारधाराओं के बीच। एक ओर कांग्रेसियों के लिए देश के खजाने पर अल्पसंख्यकों का अधिकार हैं और मोदीजी कहते हैं गरीबों का अधिकार है। 2014 में मोदी जी बोले। मैं 2023 में आपके सामने आया हूं। इन 9 सालों में मोदीजी ने ढेर सारे बदलाव किए हैं। कांग्रेस पार्टी नारा देती थी, जल, जंगल और जमीन की रक्षा करेंगे। उन्होंने तो नहीं की। मोदीजी ने जल, जंगल और जमीन के साथ सुरक्षा, सम्मान, समन्वित विकास का काम किया। भाजपा के अटलजी ने आदिवासी मंत्रालय बनाया। मोदीजी ने दो और जातियों को आदिवासियों में जोड़ा। भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को गौरव दिवस घोषित किया। देशभर में 10 जगह पर बिरसा मुंडा, शंकर शाह आदिवासियों के संग्राहलय बनाए। मैं आज बंटाढार और कमलनाथ से पूछने आया हूं, जब आपकी सरकार थी, तब आदिवासी कल्याण मंत्रालय का बजट कितना था? मनमोहन सिंह सरकार केवल 24 हजार करोड़ रुपया सालाना देती थी। मोदीजी ने बढ़ाकर 1.19 लाख करोड़ का कर दिया। 287 करोड़ रुपया एकलव्य स्कूलों के लिए खर्च करना शुरू किया। इसी बीच संथाली आदिवासी द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने का काम भी किया। कांग्रेस ने इतने सालों तक शासन किया, कभी आदिवासी बेटा-बेटी को राष्ट्रपति नहीं बनाया।
अच्छी तरह फिनिश कर जीतना जानते हैं शिवराज
वहीं नीमच में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि मोदी जी और शिवराज जी को आपका आशीर्वाद चाहिए। आपके मामा शिवराज राजनीति के धोनी हैं। राजनीति का धोनी इसलिए कह रहा हूं। क्योंकि इन्हें 30 सालों से जानता हूं। शुरुआत जैसी भी हो, अच्छी तरह से ये फिनिश कर जीतना जानते हैं। शिवराज जी कला के माध्यम से ही चुनावी कामयाबी हासिल नहीं करते। उन्होंने सेवक के रूप में जनता की सेवा की है। ऐसी मान्यता है कि मालवा खुशहाल होता है तो पूरा प्रदेश खुशहाल होता है। राजनाथ सिंह ने कहा कि शिवराज सिंह चौहान के भीतर गरीबों के प्रति संवेदनशीलता जो मैंने देखी है, राजनीति में बिरले लोगों में ही यह देखने को मिलती है। मध्यप्रदेश आज विकासित राज्यों की कतार में खड़ा है। देश के रक्षा मंत्री ने कहा कि 2047 यानी आजादी के 100 पूरे होते-होते हम भारत को अर्थव्यवस्था में विश्व में सबसे बड़ा देश बनाना चाहते हैं। यही हमारा संकल्प है। उन्होंने कहा कि राज्यों में भी अनुकूल सरकारें होनी चाहिए। मोदी जी कुछ कहें और राज्यों की सरकार सुने ही नहीं। ऐसे में हम कैसे आगे बढ़ेंगे। मप्र में जो बदलाव आया है, वह किसी भी सूरत में रुकना नहीं चाहिए। बीच में कमलनाथ जी आए थे। उन्होंने गरीबों के सिर से छत छीनने का काम किया। हमारी पुरानी योजनाओं को बंद करने का काम किया। मोदी जी की योजनाओं पर बाधाएं डालीं। कोई सरकार शायद ही इतनी असंवेदनशील हो सकती है। वे कहते थे कि हम मकान बनाएंगे ही नहीं।
मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में नर्मदा परिक्रमा यात्रा शुरू की थी। दिग्विजय समेत पूरी कांग्रेस ने इस यात्रा को धार्मिक यात्रा बताया था और कहा था कि इसका राजनीति से कोई संपर्क नहीं था। 192 दिनों की यात्रा में दिग्विजय सिंह ने मप्र, छत्तीसगढ़ और गुजरात का दौरा किया था। इस यात्रा के तहत दिग्विजय सिंह ने अपनी पत्नी के साथ करीब 3,300 किलोमीटर की पद यात्रा की थी। नर्मदा परिक्रमा यात्रा के दौरान दिग्विजय सिंह ने मप्र की 230 में से 110 सीटों का दौरा किया था। भले ही इसे राजनीतिक यात्रा मानने से इंकार किया गया था लेकिन इसके बाद भी दिग्विजय सिंह कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मिलकर उनका जोश बढ़ा रहे थे। जिसका असर 2018 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला था और भाजपा बहुत कम अंतरों से चुनाव हार गई थी। हालांकि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था लेकिन कांग्रेस सरकार बनाने में सफल रही थी। दिग्विजय सिंह की यात्रा के बाद अब मप्र में एक बार फिर से यात्रा शुरू हो रही है।
सबको साधने की नीति
मिशन 2023 और 2024 की तैयारी में जुटी भाजपा किसी एक वर्ग को साधने की बजाय सबको साधने की नीति पर काम कर रही है। भाजपा न केवल मंदिर निर्माण और उनके पुनरुद्धार की रणनीति पर चल रही है, बल्कि पिछड़ों और अति पिछड़ों को रिझाने के लिए तमाम प्रयास भी कर रही है। भाजपा इस समय ओबीसी ही नहीं बल्कि अति पिछड़ा कार्ड खेल रही है। ओबीसी के नाम पर हिंदी प्रदेशों में यादव, गुर्जर, कुर्मी, बिश्नोई और जाट समुदाय ने ज्यादातर लाभ उठाया है जो पहले से ही साधन संपन्न ताकतवर जातियां हैं। इन शक्तिशाली पिछड़ी जातियों के कारण अति पिछड़ों के साथ अन्याय हुआ। भाजपा इन्हीं अति पिछड़ी जातियों को गोलबंद कर रही है। उप्र में वह ऐसा कर चुकी है। पार्टी ने अति पिछड़ों के कारण ही उप्र में दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनावों में सफलता प्राप्त की है। भाजपा इसी फॉर्मूले को छत्तीसगढ़, राजस्थान, मप्र और बिहार में आजमाने जा रही है। महाराष्ट्र में भी भाजपा अति पिछड़ी जातियों को गोल बंद करने की सोशल इंजीनियरिंग कर रही है।
मप्र में ओबीसी सबसे बड़ा वोटबैंक है। भाजपा के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि उसके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे ओबीसी नेता हैं। लेकिन मप्र में कांग्रेस का नेतृत्व कमलनाथ और दिग्विजय सिंह कर रहे हैं। इसलिए ओबीसी वोटबैंक मप्र में कांग्रेस के पास जाएगा इसकी संभावना कम है। इसलिए भाजपा का पूरा फोकस अति पिछड़ी जातियों को साधने पर है। प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीन से दिए अपने संबोधन में जो विश्वकर्मा और लखपति दीदी योजनाओं की घोषणा की उसका उद्देश्य अति पिछड़ों को टारगेट करना ही है। देश में औसतन 42 फीसदी ओबीसी आबादी है। इनमें 65 फीसदी अति पिछड़े हैं। पिछड़ों के नाम पर राजनीति में यादव, कुर्मी, जाट, गुर्जर, बिश्नोई समुदाय के लोग ही मुख्यमंत्री, मंत्री, केंद्रीय मंत्री, विधायक और सांसद बन रहे हैं। जबकि अति पिछड़े अपेक्षित हैं। भाजपा इन्हीं को गोल बंद कर रही है। पिछले दिनों उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की स्मृति में अलीगढ़ में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने इन्हीं समुदायों के संदर्भ में चर्चा की थी। पिछले 9 वर्षों में पद्म पुरस्कारों पर नजर डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा ओबीसी वर्गों को रिझाने के लिए कितने जतन कर रही है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में ओबीसी वर्ग का हिस्सा इस समय सबसे अधिक है। राज्यपालों और अन्य राजनीतिक नियुक्तियों में भी भाजपा लगातार सोशल इंजीनियरिंग कर रही है।
योजनाओं से साधा अति पिछड़ों को
अगर देखा जाए तो मप्र में भाजपा पिछले दो दशक से और केंद्र में पिछले 9 वर्षों से अति पिछड़ों को लुभाने की कवायद कर रही है। राज्य और केंद्र की सरकार ने योजनाओं के सहारे अति पिछड़ी जातियों को साधने में सफलता पाई है। इसी के तहत 2017 में रोहिणी आयोग और इस वर्ष 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने विश्वकर्मा योजना पर फोकस किया। विश्वकर्मा योजना के तहत लाभार्थी कामगारों को 5 फीसदी ब्याज दर पर 2 लाख रुपए तक का लोन दिया जा रहा है और साथ ही उन्हें 500 रुपए का भत्ता भी हर महीने ट्रेनिंग के साथ दिया जाएगा। इस योजना का फायदा विश्वकर्मा समुदाय से संबंध रखने वाली जातियां जैसे कि बधेल, बड़ीगर, बग्गा, विधानी, भरद्वाज, लोहार, बढ़ई, पंचाल इत्यादि को प्राप्त होगा। योजना के अंतर्गत कारीगरों को उनके काम की ट्रेनिंग भी दी जाएगी और जो लोग खुद का रोजगार चालू करना चाहते हैं उन्हें सरकार आर्थिक सहायता भी देगी। विश्वकर्मा योजना लागू करने के अलावा भाजपा के पास रोहिणी आयोग का पता भी है। इस आयोग का मकसद अति पिछड़ों की जातियों को छांटना और उन्हें ओबीसी आरक्षण में उनकी संख्या के अनुपात में आरक्षण सुनिश्चित करना है। रोहिणी आयोग के रूप में केंद्र सरकार के पास ऐसा कार्ड है जिसके चलते ही विपक्ष की रणनीति छिन्न-भिन्न हो जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की सभी वर्गों को साधने की रणनीति ने आज प्रदेश में भाजपा को इतना मजबूत बना दिया है कि कांग्रेस का हर दांव अब फेल हो रहा है।
मप्र में भाजपा इस बार का चुनाव कई स्तरों पर लड़ रही है। इसके पीछे पार्टी का मकसद है कि कोई भी ऐसा अवसर छूट न जाए जिससे जीत का रिकॉर्ड बनाने का मौका चूक न जाए। इसी कड़ी में पार्टी ने क्षत्रप फॉर्मूला भी आजमाने की रणनीति बनाई है। इसके तहत पार्टी ने क्षेत्रीय कद्दावर नेताओं को आगे करके चुनाव लडऩे का फैसला किया है। यानी जो नेता जिस क्षेत्र से आता है, उसकी लोकप्रियता को उसी क्षेत्र में भुनाया जाएगा। कह सकते हैं कि चुनावी मोर्चे पर अग्रिम योद्धा क्षेत्रीय क्षत्रप ही रहेंगे। इस रणनीति के तहत पार्टी ने मठाधीशों को जिम्मेदारी दी है। यानी पार्टी के उम्मीदवारों को अपने क्षेत्र में जिताने की जिम्मेदारी मठाधीशों पर रहेगी। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर किसी मठाधीश यानी पार्टी के दिग्गज नेता को उसके क्षेत्र में जिम्मेदारी दी जाएगी तो उसका चुनाव पर काफी असर दिखेगा। इसलिए क्षत्रपों को उन्हीं के क्षेत्र में चुनावी जिम्मेदारी सौंप दी गई है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल सिंह आर्य को ग्वालियर-चंबल अंचल में सक्रिय किया गया है। भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय मालवांचल में मैदानी जमावट करेंगे, तो महाकौशल में केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रहलाद पटेल और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह मोर्चा संभालेंगे। विंध्य अंचल की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी विधायक राजेंद्र शुक्ल को दी गई है। बुंदेलखंड को केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार संभालेंगे, जबकि मध्य भारत क्षेत्र में मैदानी जमावट के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरे प्रदेश में दौरे करेंगे।
डैमेज कंट्रोल करने में सफल हुई भाजपा
चुनावी साल में भाजपा के लिए सबसे बड़ी एंटी इनकंबेंसी और कार्यकर्ताओं की नाराजगी थी। पार्टी ने इससे मुंह मोडऩे की वजाय इसे गंभीरता से लिया और नेताओं ने मोर्चा संभाला। केंद्रीय संगठन के नेताओं के साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने डैमेज कंट्रोल करने की जिम्मेदारी अपने हाथ में ली। उन्होंने हर उस मोर्चे पर काम किया जिससे स्थिति बेहतर हो सके। आज स्थिति यह है कि मप्र में भाजपा ने डैमेज कंट्रोल कर लिया है। जहां पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने में सफल हुई है, वहीं एंटी इंकम्बेंसी भी कम हुई है। यानी आज भाजपा एक बार फिर मजबूत नजर आने लगी है। गौरतलब है कि कुछ महीने पहले तक एंटी इनकंबेंसी और कार्यकर्ताओं की नाराजगी का सामना कर रही भाजपा की मुश्किलें लगातार बढ़ती चली जा रही थीं। इसके पीछे की बड़ी वजह फीडबैक में आ रहे भाजपा विधायकों के प्रति जनता की नाराजगी को बताया जा रहा था। जमीनी स्तर से आए फीडबैक से पता चला है कि विधायकों के प्रति न केवल जनता बल्कि, पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ता भी अपने विधायक से नाराज चल रहे हैं। जहां एक तरफ राज्य में भाजपा के वरिष्ठ नेता पार्टी के विधायकों को हिदायत दे रहे थे, वहीं दूसरी ओर पार्टी संगठन ने विधायकों की कार्यशैली और कार्यप्रणाली का ब्यौरा भी तलब किया। उसके बाद दिग्गज नेताओं ने उस पर काम किया, जिसका परिणाम यह हुआ है कि आज भाजपा एक बार फिर मजबूत स्थिति में आ गई है।
जानकारी के अनुसार डेढ़ महीने पहले कार्यकर्ताओं की नाराजगी और एंटी इंकम्बेंसी के फीडबैक से परेशान भाजपा अब कुछ राहत महसूस करने लगी है। संगठन के हालिया सर्वे फीडबैक में असंतोष, नाराजगी व एंटी-इंम्बेंसी को लेकर कुछ हद तक काबू पाने की रिपोट्र्स मिली है। बीते दिनों कोर ग्रुप की बैठक में भी यह फीडबैक आया। इसके बाद सीएम हाउस पर बैठक में भी नेताओं ने खुशी जाहिर की। अब यही रिपोर्ट शीर्ष नेतृत्व को दी जाएगी। दरअसल, डेढ़ महीने पहले संगठन को निगेटिव फीडबैक मिले थे। इसके बाद 12 जुलाई को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अचानक भोपाल का दौरा बना लिया था। इसके बाद शाह से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा और पीएम मोदी तक के दौरे बढ़ गए। शाह ने चुनावी रणनीति की कमान संभाली। इसके अलावा प्रदेश संगठन के नेटवर्क को लेकर बैठक शुरू की गई। भाजपा संगठन ने कोर ग्रुप में 13 प्रमुख लोगों का फीडबैक लिया है। इसमें केंद्रीय मंत्रियों से लेकर अन्य बड़े नेता शामिल हैं। बीते दिनों केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, सीएम शिवराज, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सहित अन्य नेताओं ने अंचलों के दौरे किए हैं। बाकी नेताओं को भी अंचलों में भेजा गया। इनकी रिपोर्ट ही सुधार बता रही है। इसके अलावा पीएम मोदी के कार्यकर्ता महाकुंभ के बाद बाहरी राज्यों के विस्तारकों ने प्रदेश में फीडबैक लिया था। तब, निगेटिव फीडबैक मिला था। अब ग्वालियर में प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की बैठक के बाद बाहरी राज्यों के विधायकों ने प्रदेश में फीडबैक लिया है। इसमें सुधार की स्थिति मिली है। साथ ही जो नाराज नेता थे, उनकी रिपोर्ट भी संगठन के पास पहुंची है।