6 दर्जन से अधिक आईएएस की गुहार…
मप्र में कॉडर मैनेजमेंट कुछ इस तरह गड़बड़ा गया है कि कलेक्टरी के लिए सीधी भर्ती और प्रमोटी आईएएस में रार छिड़ गई है। आलम यह है कि वर्तमान समय में करीब 6 दर्जन से अधिक आईएएस (सीधी भर्ती और प्रमोटी) को कलेक्टरी का इंतजार है। इनमें से अधिकांश अपने संपर्कों के माध्यम से कलेक्टर बनने के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। संभावना जताई जा रही है की इस बार सरकार चुनावी रणनीति के तहत एक बड़ी प्रशासनिक सर्जरी करेगी और अपने पसंद के अफसरों को कलेक्टरी से नवाजेगी। जिसमें 2014 बैच के आईएएस अधिकारियों की लॉटरी लग सकती है।
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। मप्र में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। विधानसभा चुनाव से पहले सरकार प्रशासनिक अधिकारियों की जमावट करने जा रही है। खासकर मैदान में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की पदस्थापना महत्वपूर्ण है। माना जा रहा है कि सरकार अपने विश्वसनीय आईएएस अफसरों को जिलों की कमान सौंपेगी। जिनमें प्रमोटी आईएएस अधिकारियों की संख्या बढ़ सकती है। चुनावी साल से पहले होने वाली जमावट में महत्वपूर्ण जिलों की कमान पाने के लिए आईएएस अधिकारियों में जमकर लॉबिंग हो रही है। इस जमावट में सरकार 2014 बैच के एक-दो अफसरों को जिले में पदस्थ कर सकती है। लेकिन 2015, 2016, 2017 और 2018 बैच के जो आईएएस अधिकारी कलेक्टरी करने के लिए पात्र बन गए हैं, उन्हें अभी लंबा इंतजार करना पड़ेगा।
केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय (डीओपीटी) के नियमानुसार, भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में चयनित उम्मीदवार को कलेक्टर बनने के लिए 103 सप्ताह यानी दो साल की ट्रेनिंग अनिवार्य है। यानी एक आईएएस दो साल बाद कलेक्टर बन सकता है, लेकिन मप्र में वर्तमान समय में 2013 बैच के सीधी भर्ती के आईएएस ही कलेक्टर बन पाए हैं। वहीं प्रमोटी आईएएस का अभी नंबर नहीं लगा है। हालांकि इससे पूर्व के भी कई बैच के कई प्रमोटी आईएएस अभी कलेक्टरी की आस लगाए हुए हैं। अगर सीधी भर्ती के आईएएस की बात करें तो डीओपीटी के नियमानुसार, वर्तमान समय में 2014 बैच के 16, 2015 बैच के 12, 2016 बैच के 10 और 2017 बैच के 13, 2018 बैच के 10 अधिकारी कलेक्टर बनने के लिए पात्र हो गए हैं। कलेक्टरी के लिए वर्ष 2013 में एसएएस व नान एसएएस से आईएएस पद पर प्रमोट होने वाले अफसरों को भी आने वाले समय का इंतजार है। वर्ष 2014 में आईएएस बने 20 अफसरों में से एक को भी अभी तक कलेक्टरी नहीं मिली है, जबकि इन्हें वरिष्ठता वर्ष 2006 व 2007 की मिली है।
कलेक्टर बनना हर आईएएस का सपना
एक आईएएस अगर जीवन में कलेक्टर न बन पाए और आईपीएस एसपी न बन पाए तो मानना चाहिए कि जीवन व्यर्थ गया। यही दोनों पद ऐसे हैं जो एक रिक्रूटी बाबू को भले पूरी नौकरी में मात्र कुछ साल के लिए ही मिलें वह अपने पूरे जीवन की साध पूरी कर लेता है। कलेक्टर या एसपी न बने फिर चाहे चीफ सेक्रेट्री या कैबिनेट सेक्रेट्री अथवा डीजीपी भले बन जाए मगर न तो वह रुतबा प्राप्त हो पाता है न पैसा। आईएएस बनने के बाद जिले की चाह न हो, ऐसा मुमकिन नहीं। पिछली डीपीसी में आईएएस बने कई अफसरों का कमिश्नर और कलेक्टर बनने का सपना अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। आईएएस बनने के बाद ज्यादातर अफसरों की कलेक्टर बनने की चाह होती है, लेकिन सभी अफसरों का यह सपना पूरा नहीं हुआ है। जहां तक मध्यप्रदेश की बात है तो यहां के 52 जिलों में से 19 जिलों की कमान फिलहाल प्रमोटी अफसरों के पास है, जबकि कई अफसरों को कलेक्टर बनने का मौका अभी तक नहीं मिल पाया है, वहीं 33 जिलों की कमान सीधी भर्ती वालों के पास है।
सीधी भर्ती से आए 2014, 2015, 2016, 2017 और 2018 बैच के आईएएस अधिकारी कलेक्टरी पाने के लिए जोर आजमाईश कर रहे हैं, वहीं प्रमोटी अफसर अभी सरकार के रुख का इंतजार कर रहे हैं। सीधी भर्ती वाले अफसरों में शासन ने अब तक वर्ष 2013 बैच अफसरों को कलेक्टरी दे दी है। प्रदेश भर में इन दिनों सीधी भर्ती वाले अफसरों का जिलों में दबदबा है। सरकार ने प्रमोटी अफसरों के बजाए सीधी भर्ती वाले युवा आईएएस अफसरों पर भरोसा जताया है। कलेक्टरों की पदस्थापना में सीधी भर्ती के अफसरों की संख्या ज्यादा है। इसके विपरीत प्रमोटी अफसरों को कलेक्टरी कम मिली है। सूत्रों का कहना है कि प्रमोटी अफसरों को अब चुनाव का समय आने का इंतजार है। सरकार चुनाव के समय प्रमोटी अफसरों को फील्ड में ज्यादा पदस्थापना देती है। इसे देखते हुए प्रमोटी अफसर कुछ माह तक इंतजार करके फिर दो से ढाई साल की कलेक्टरी करने के लिए प्रयास करने पर जोर दे रहे हैं।
2014 बैच की खुलेगी लॉटरी
2013 बैच की आईएएस अधिकारी रजनी सिंह को झाबुआ कलेक्टर बनाए जाने के साथ ही 2014 बैच के आईएएस अधिकारियों के कलेक्टर बनने का रास्ता खुल गया है। रजनी सिंह 2013 बैच की सीधी भर्ती की आखिरी आईएएस अधिकारी हैं। अब सरकार 2014 बैच के सीधी भर्ती वाले 16 आईएएस अफसरों को कलेक्टर बनाएगी। गौरतलब है कि राज्य शासन ने कलेक्टर झाबुआ सोमेश मिश्रा को हटा दिया है। उनके स्थान पर वर्ष 2013 बैच की आईएएस अधिकारी रजनी सिंह को कलेक्टर झाबुआ पदस्थ किया गया है। कलेक्टर के रूप में रजनी सिंह की यह पहली पोस्टिंग है। वे 2013 बैच सीधी भर्ती की आखिरी आईएएस अधिकारी हैं, जिन्हें अब तक जिले की कमान नहीं मिल पाई थी। अब वे भी कलेक्टर बन गई हैं। इसके साथ ही प्रदेश में वर्ष 2013 बैच के सीधी भर्ती के सभी आईएएस अधिकारियों की कलेक्टर के रूप में पदस्थापना की जा चुकी है।
प्रदेश में जहां 2013 बैच के सीधी भर्ती वाले सभी 17 आईएएस अधिकारियों को कलेक्टर बना दिया गया है, वहीं इस बैच के एक भी प्रमोटी को अभी तक कलेक्टर नहीं बनाया गया है। प्रदेश में वर्ष 2013 बैच के 10 प्रमोटी अधिकारी हैं। इन अफसरों में विकास मिश्रा, अजय श्रीवास्तव, मीनाक्षी सिंह, कैलाश वानखेड़े, अमर बहादुर सिंह, मनीषा सेंतिया, नीरज कुमार वशिष्ठ, किशोर कान्याल, रूही खान और पवन कुमार जैन शामिल हैं। वहीं वर्ष 2013 बैच के सीधी भर्ती के आईएएस प्रियंक मिश्रा कटनी, अमनबीर सिंह बैंस बैतूल, ऋषि गर्ग हरदा, मयंक अग्रवाल नीमच, सोनिया मीना अनूपपुर, सतीश कुमार एस. भिंड, फ्रेंक नोबल ए, गुना, एस. कृष्ण चैतन्य दमोह, अनूप कुमार सिंह खंडवा, हर्ष दीक्षित राजगढ़, संदीप जीआर छतरपुर, गिरीश कुमार मिश्रा बालाघाट, उमा माहेश्वरी आर अशोकनगर, शिवम वर्मा श्योपुर, राघवेंद्र सिंह अलीराजपुर और रजनी सिंह झाबुआ की कलेक्टर हैं। मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि अब वर्ष 2014 बैच के सीधी भर्ती के आईएएस अफसरों को जिलों की कमान देने की शुरुआत की जाएगी। प्रदेश में वर्ष 2014 बैच के सीधी भर्ती के 16 आईएएस अधिकारी हैं। ये अधिकारी वर्तमान में जिला पंचायत सीईओ, एडीशनल कलेक्टर, सीईओ स्मार्ट सिटी, नगर निगम आयुक्त, नगर निगम उपायुक्त आदि के पदों पर पदस्थ हैं।
पुन: कलेक्टरी के लिए भी अफसर लगा रहे जोर
इस साल के अंत तक संभावित प्रशासनिक सर्जरी में वर्ष 2008 बैच के कई आईएएस अधिकारी जो एक बार कलेक्टर रह चुके हैं, वे फिर से कलेक्टरी पाने के लिए जोर आजमाईश कर रहे हैं। दरअसल, प्रमोटी अफसरों को महत्व देने के कारण ही मध्यप्रदेश में कॉडर मैनेजमेंट गड़बड़ा गया है। हो यह रहा है कि प्रदेश में प्रमोटी आईएएस चार से पांच जिलों में कलेक्टरी करने के बाद मंत्रालय पहुंच रहे हैं। इस कारण कलेक्टर बनने वाले अफसरों की लंबी कतार लग जाती है। ऐसे में सरकार चिन्ह-चिन्ह कर रेवड़ी बांटती है। इस कारण किसी आईएएस को कुछ माह के लिए ही कलेक्टरी मिल पाती है तो कुछ सालों साल राज करते हैं। यह पहला मौका है जब 52 में से केवल 19 जिलों में ही प्रमोटी आईएएस के पास जिलों की कमान है। वहीं सीधी भर्ती के आईएएस अफसरों की संख्या 33 है। हालांकि 10 संभागों में से 6 संभागों में कमिश्नर प्रमोटी आईएएस ही हैं। ऐसे में सीधी भर्ती के आईएएस परेशान हो रहे हैं। लेकिन यह सबके साथ नहीं है। कई प्रमोटी आईएएस तो कलेक्टरी के इंतजार में रिटायर तक हो गए। कुछ चुनिंदा अफसरों को ही राज्य सरकार की कृपा मिल रही है। बाकी तो जिलों में पहुंचे बिना ही रिटायर हो रहे हैं।
मध्यप्रदेश कैडर के सीधी भर्ती से आए एक सीनियर अफसर कहते हैं कि ऐसा लगता है जैसे प्रदेश में काबिल आईएएस अफसरों का टोटा पड़ गया है। प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक हालात के चलते काबिल अफसरों को मौका नहीं दिया जा रहा है। आज हालत यह है कि सीधी भर्ती वाले आईएएस की लंबी कतार लगती जा रही है और जिलों के कलेक्टर और आयुक्त पद पर प्रमोट हुए आईएएस अफसर तैनात हैं। जानकारों का कहना है कि प्रदेश में नौकरशाही पर सत्ता का दखल लगातार बढ़ा है। इसके चलते कुछ चुनिंदा अफसरों की चांदी हो गई है। मध्य प्रदेश में नौकरशाहों के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाने के साथ-साथ सत्ता के साथ भी संतुलन बनाए रखना पड़ता है। जो इस कला में पारंगत नहीं होते, उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। प्रमोटी आईएएस अफसर और सीधी भर्ती के आईएएस अफसरों के बीच एक द्वंद्व लगातार चलता रहा है। वैसे भी सीधी भर्ती के अफसरों के मुकाबले प्रमोटी आईएएस अफसरों की साख आम लोगों के बीच कम होती है। मामला सिर्फ आईएएस अफसरों तक ही सीमित नहीं है। कमोवेश ऐसी ही स्थिति आईपीएस अफसरों को लेकर भी है। लेकिन सरकार की नजर में प्रमोटी सरकार के प्रति अधिक वफादार होते हैं।
चुनावी साल में प्रमोटी बनेंगे आंख के तारे
प्रदेश के शासन और प्रशासन की समझ रखने वाले अफसरों का दावा है की आज भले ही 29 जिलों में सीधी भर्ती वाले आईएएस कलेक्टर बने हैं, लेकिन चुनावी साल में प्रमोटी ही सरकार की आंख के तारे बनेंगे। वर्तमान में सरकार ने कैडर मैंनेजमेंट को दुरूस्त करने के लिए सीधी भर्ती वालों को अधिक संख्या में कलेक्टर बनाया है। चुनावी साल में सरकार प्रमोटी अफसरों पर थोकबंद मेहरबान होगी।
दरअसल,सरकार का मानना है कि प्रदेश के बड़े हाकिम (सीधी भर्ती के आईएएस)किसी काम के नहीं होते है। मुख्यमंत्री के टॉप टेन अफसरों में भले ही सीधी भर्ती के आईएएस की भरमार है। अपना दम दिखाने में राज्य प्रशासनिक सेवा के प्रमोटी आईएएस भी पीछे नहीं रहते, यहीं कारण है कि सरकार के चहेते कलेक्टर-कमिश्नरों की प्रदेश में कमी नहीं है। एक ही जिले में कलेक्टर नहीं, बल्कि तीन-चार जिलों में कलेक्टरी कर सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर मुख्यमंत्री के भी खास बन जाते हैं। इसी का नतीजा है कि आज भोपाल, ग्वालियर, उज्जैन, रीवा, शहडोल और चंबल जैसे महत्वपूर्ण संभागों में कमिश्नरी ही नहीं, बल्कि 21 जिलों में कलेक्टरी भी संभाल रहे हैं। आने वाले समय में यह तस्वीर और बदलेगी तथा फील्ड में सीधी भर्ती के आईएएस की अपेक्षा प्रमोटी आईएएस अफसरों पर ज्यादा दबदबा देखने को मिलेगा।
प्रदेश के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी कहते हैं कि प्रमोटी आईएएस को जिलों में कलेक्टर बनाने के नाम पर सरकार के भीतर अंतद्र्वंद्व की स्थिति निर्मित हो गई है। कुछ लोग चाहते हैं पिछले दो चुनावों की भांति जिलों में अब प्रमोटी की संख्या बढ़ाई जाए। तो कुछ यूपी और पंजाब का हवाला देते हुए रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस का ही प्रभुत्व कायम रखने की वकालत कर रहे हैं। यूपी और पंजाब में 60 फीसदी से अधिक जिलों में कलेक्टर और एसपी प्रमोटी थे। दोनों ही सूबों में सरकारें निबट गईं। ऐसे में सरकार के सामने एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति है।
जूनियर नहीं बनेंगे कलेक्टर
राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते फील्ड में की जाने वाली कलेक्टर की पोस्टिंग के मामले से तबादला बोर्ड संतुष्ट नहीं है। इसके चलते सीनियर अफसर कलेक्टर बनने से वंचित रह जाते हैं। जूनियर अपनी पोस्टिंग कराने में सफल हो जाते हैं। इससे कॉडर मैनेजमेंट पूरी तरह बिगड़ता जा रहा है। अब इसे सुधारने का बीड़ा तबादला बोर्ड ने उठाया है। वैसे सीएस की अध्यक्षता में आईएएस, आईपीएस तथा आईएफएस की पोस्टिंग, प्रमोशन करने सुप्रीम कोर्ट के आदेश से तबादला बोर्ड गठित किया गया है, परंतु पहले की गई गलतियों को सबसे पहले सुधारने का काम किया जाएगा। पिछले कुछ सालों से कलेक्टर की पोस्टिंग में राजनीतिक हस्तक्षेप इतना बढ़ा है कि अधिकारियों की सीनियरिटी का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा गया। जिस भी अफसर की राजनीतिक और प्रशासनिक पहुंच ज्यादा थी, वह कलेक्टर बनने में सफल रहा। इसके कारण अफसरों की नाराजगी भी सरकार को झेलनी पड़ी।
क्या है पोस्टिंग के नियम
मप्र में आईएएस, आईपीएस तथा आईएफएस की सेवा में आने के बाद किसी भी अधिकारी को एक से दो साल की ट्रेनिंग दी जाती है, उसके बाद राजस्व अधिनियम, पुलिस अधिनियम या फॉरेस्ट नियमों का ज्ञान अर्जित करने डेढ़ से दो महीने की ट्रेनिंग अलग से होती है। ट्रेनिंग के बाद उसे राजस्व एसडीओ, फॉरेस्ट एसडीओ तथा डीएसपी आदि के पदों पर दो साल रखा जाता है। इसके बाद अतिरिक्त कलेक्टर, अतिरिक्त एसपी या उप-वनमंडलाधिकारी बनाया जाता है, फिर जिला पंचायत में सीईओ के बाद कलेक्टर बनाए जाने का नियम है। यानी प्रशासनिक क्षेत्र में सात से आठ साल का अनुभव पाने के बाद ही कलेक्टरी दी जाती है। लेकिन कई मामलों में ऐसा नहीं हुआ और कई बार जूनियर अफसरों को कलेक्टर-एसपी बना दिया गया। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित तबादला बोर्ड में उस विभाग का पीएस, विभागाध्यक्ष तथा एक अन्य सदस्य रहता है। बोर्ड ने सीधी भर्ती के अफसरों के मामले में निर्णय लिया है कि सात साल की सेवा के बाद ही किसी आईएएस को कलेक्टर, एसपी और डीएफओ पदस्थ किया जाएगा और प्रमोटी अफसरों के मामले में तीन साल का फर्क रखा जाएगा। इस तरह की प्रक्रिया पोस्टिंग में कांग्रेस शासन में अपनाई जाती थी, परंतु बीते चार-पांच साल से इन नियमों का जमकर उल्लंघन हुआ है।
नए आईएएस डेढ़ साल में बनेंगे कलेक्टर
मप्र में अभी कैडर मैनेंजमेंट इस कदर गड़बड़ाया है कि दशक बीत जाने के बाद भी कई अफसरों को कलेक्टरी नसीब नहीं हुई है वहीं लाल बहादुर शास्त्री प्रशासन अकादमी मसूरी ने मैदानी प्रशिक्षण का समय कम करने का प्रस्ताव डीओपीटी को भेजा है। प्रस्ताव के अनुसार आईएएस में चयनित उम्मीदवार अब डेढ़ साल के प्रशिक्षण के बाद कलेक्टरी कर सकेंगे। फिलहाल नए नवेले आईएएस को कलेक्टर बनने के लिए 103 सप्ताह यानी दो साल की ट्रेनिंग अनिवार्य है, जिसे अब 75 सप्ताह यानी डेढ़ साल करने की तैयारी है। प्रस्ताव में लिखा है नए आईएएस की मैदानी ट्रेनिंग 54 की जगह 40 सप्ताह की जाए। वहीं रिटायर्ड आईएएस किरण अग्रवाल की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने मैदानी ट्रेनिंग 33 सप्ताह ही करने की अनुशंसा की है। दो अलग-अलग अनुशंसा आने पर डीओपीटी ने राज्यों से सुझाव मांगे हैं। डीओपीटी ने लिखा है कि यह कवायद आईएएस की कमी दूर करने की है। इसके लिए प्रशासन अकादमी मसूरी सहित रिटायर्ड आईएएस अग्रवाल की अध्यक्षता में समिति गठित कर रास्ता निकालने का प्रयास किया गया है। दोनों की अनुशंसाओं में अकादमी का फाउंडेशन कोर्स 15 सप्ताह रखने की बात कही है, लेकिन मैदानी ट्रेनिंग पर अकादमी ने 40 और अग्रवाल समिति 33, प्रोफेशनल कोर्स में अकादमी 22 और अग्रवाल समिति 21, एकडमिक इंस्ट्रक्शन में अकादमी 22 और अग्रवाल समिति 21, विंटर स्टडी अकादमी 6 और अग्रवाल ने 7 सप्ताह में करने की अनुशंसा की है। इस पर जहां अकादमी कुल 103 सप्ताह की ट्रेनिंग को 84 में करने की अनुशंसा की है। वहीं रिटायर्ड आईएएस अग्रवाल ने उक्त ट्रेनिंग को 75 दिन में करने की अनुसंशा की है। दोनों की अनुशंसा में 9 सप्ताह का अंतर होने पर डीओपीटी ने राज्यों से उनका सुझाव मांगा है।
जानकारों का कहना है कि मैदानी प्रशिक्षण कम होने से नए आईएएस को मैदानी प्रशासनिक अनुभव पूरी तरह नहीं मिल पाएगा। वर्तमान में प्रशिक्षु आईएएस को पटवारी, तहसीलदार और डिप्टी कलेक्टर के अधीन प्रशिक्षण करवाने के बाद जिला सहायक कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ फिर कलेक्टर की जिम्मेदारी दी जाती है। इसके पीछे मंशा यह होती है कि आईएएस जब जिले की कमान संभाले तो उसे हर परिस्थिति में प्रशासनिक हालात पर नियंत्रण करने का अनुभव हो। पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा कहते हैं कि नए आईएएस के लिए जितना जरूरी अकादमिक प्रशिक्षण है उससे कहीं ज्यादा जरूरी मैदानी प्रशिक्षण होता है। यदि इसे कम किया जाता है तो नए आईएएस बनने वाले अफसरों की प्रशासनिक क्षमता पर विपरित असर पड़ेगा। वे विषम परिस्थितियों में अपने अधिकारों का सही उपयोग नहीं कर पाएंगे।
गोल्ड मेडलिस्ट बगैर कलेक्टर बने हो गईं रिटायर
भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित होने के बाद सभी अफसरों का सपना होता है, उनको उनके सेवाकाल में लंबे समय तक कलेक्टरी मिले। यदि लंबे समय तक न भी मिले, लेकिन कम से कम एक बार मिले जरूर, जिससे कि वे राज्य सरकार की योजनाओं और कार्यक्रमों को जिले में लागू कर सके और अपनी प्रशासनिक दक्षता दिखाते हुए जिले में कुछ नवाचार भी कर सके। लेकिन मप्र में कलेक्टर बनने के लिए पात्र होने से जरूरी है राजनीतिक पकड़ की। शायद यही वजह है की भारतीय प्रशासनिक सेवा की 1998 बैच की अधिकारी उर्मिला मिश्रा बिना कलेक्टर बने ही सेवानिवृत्त हो गईं। पढ़ाई के दौरान एमए(संस्कृत) में गोल्ड मेडलिस्ट रही श्रीमती मिश्र को कलेक्टर बनने का मौका नहीं मिला। उर्मिला मिश्रा हाल के वर्षों में एकमात्र आईएएस हैं, जिनके साथ कोई विवाद नहीं जुड़ा है, लेकिन उसके बाद भी उनको कलेक्टर बनने का मौका नहीं मिला। वैसे तो दो और अधिकारी हैं, जो भले ही सेवानिवृत्त नहीं हुए हैं, लेकिन अब कलेक्टरी के पद से ऊपर का ओहदा रखते हैं, लेकिन इनको भी समय पर कलेक्टरी का मौका नहीं मिल सका। यह हैं आईएएस रमेश थेटे और शशि कर्णावत। इन दोनों ही अफसरों के साथ लंबे समय से विवाद जुड़ा रहा है। थेटे अब एक बार फिर सरकार की मुख्य धारा में शामिल हैं। वहीं कर्णावत इस समय निलंबित चल रही हैं। कर्णावत 1999 बैच की आईएएस हैं। इस बैच के अधिकारी अब सचिव स्तर के पदों पर पदोन्नत हो चुके हैं, लेकिन कर्णावत को उप सचिव के पद से ही निलंबित होना पड़ा। वहीं थेटे भी लंबे समय तक निलंबित रहे। उन्होंने बहाली के बाद सरकार से लगातार आग्रह किया कि उन्हें एक बार कलेक्टर बना दिया जाए, लेकिन उनकी यह हसरत पूरी नहीं हो सकी। वहीं उर्मिला मिश्रा के साथ कभी कोई विवाद नहीं रहा। उन्हें बेहद शांत और गंभीर किस्म की महिला आईएएस माना जाता रहा, लेकिन लगता है सरकार को उनकी काबिलियत पर भरोसा नहीं रहा हो। उर्मिला मिश्रा ने संस्कृत में एमए किया है और उन्होंने पढ़ाई के दौरान पांच गोल्ड मेडल हासिल किए थे, लेकिन पांच गोल्ड मेडल हासिल करने वाली आईएएस को सरकार में सबसे ताकतवर पदों में शुमार कलेक्टर की जिम्मेदारी निभाने का मौका नहीं मिल सका। वहीं कई और अफसर भी कलेक्टरी मिलने की आस में ही रिटायर हो गए हैं। इनमें राजकुमारी सोलंकी और बीके सिंह भी ऐसे प्रमोटी आईएएस रहे, जो बिना कलेक्टरी किए ही रिटायर हो गए।
पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा कहते हैं कि यदि आईएएस में सलेक्शन हो रहा है तो हरेक को फील्ड पोस्टिंग का अवसर मिलना चाहिए। नाकाबिल होते तो आईएएस नहीं बनते। दरअसल यह कार्मिक विभाग की कमी है। साथ ही कैडर मैनेजमेंट सही नहीं है। मुख्यमंत्री को सब चीजें नहीं मालूम होतीं। कार्मिक विभाग को चाहिए कि वह मुख्यमंत्री के नोटिस में लाए। दूसरा पक्ष यह भी है कि राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कई अफसर कलेक्टर नहीं बन पाते। वहीं पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच कहती हैं कि किसे कहां रखना है? कलेक्टरी किसे देनी है, यह तय करने काम सरकार का है। जिले के लिए जिसे मुफीद माने, उसे दे। क्यों नहीं कलेक्टरी दे रहे, इस पर सरकार को विचार करना चाहिए।