प्रदेश की 24 फीसदी आबादी खुले में शौच करने को विवश

स्वच्छ भारत मिशन
  • नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट में हुआ खुलासा

    भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
    स्वच्छ भारत मिशन के तहत गांव और शहर में शौचालय बनवाकर मप्र 2019 में ओडीएफ घोषित हो गया था। दावा किया गया था कि प्रदेश लगभग पूरी तरह खुले में शौच से मुक्त हो गया है। लेकिन सरकार के दावों की हकीकत सामने आई है। जिसमें कागजी दावों की पोल खुल गई है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के गांवों के हाल अच्छे नहीं हैं। प्रदेश में 24 फीसदी आबादी खुले में शौच करने को विवश है। यानी, 6 करोड़ की आबादी वाले प्रदेश में 1.92 करोड़ लोगों को शौचालय मयस्सर नहीं है।  मप्र 2019 में खुले में शौच से मुक्त राज्य घोषित किया जा चुका है लेकिन, हकीकत इससे उलट दिखाई देती है। राजधानी भोपाल से सटे जिले रायसेन, सीहोर, विदिशा, राजगढ़, दमोह, पन्ना, गुना, डिंडोरी, रीवा, सतना, श्योपुर, शिवपुरी, सीधी, सिंगरौली के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खुले में शौच को विवश हैं। उक्त जिलों में 45 प्रतिशत ग्रामीण शौचालय इस्तेमाल नहीं करते। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट भी बताती है, ग्रामीण क्षेत्र में 30.2 प्रतिशत के पास शौचालय नहीं हैं, जबकि शहरी क्षेत्र में 6.5 प्रतिशत लोग अब भी शौचालय से दूर हैं। 14 जिलों में 42 प्रतिशत लोग खुले में शौच जाते हैं। यूं तो सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय बनवाए, लेकिन कई जगह ये या तो जर्जर हो गए या ठेकेदारों ने बीच में छोड़ दिया। नतीजा, कई जगह अधूरे शौचालयों में कंडे व ईंटें भरी हैं।
    ओडीएफ के 6 साल बाद भी सीहार में खुले में शौच

    करोड़ों रुपये खर्च कर जिलेभर में एक लाख 11 हजार शौचालय बनाकर वर्ष 2016 में ओडीएफ घोषित कर दिया गया, लेकिन पूर्व से ही शौचालय निर्माण में कमियों व कागजों में बनने से लोग आज भी खुले में शौच करने को मजबूर हैं। हालांकि, अब ऐसे शौचालय को चिन्हित कर नवीन कार्य बताकर निर्माण किया जा रहा है, वहीं छह साल पहले बने शौचालय बदहाल होने के बाद बेकार साबित हो रहे हैं। इतना ही नहीं जिले में बनाए गए 200 सामुदायिक शौचालय रख रखाव के आभाव में शुभारंभ के बाद भी ताले में कैद हैं।  जानकारी के अनुसार सीहोर जिले में 542 ग्राम पंचायतों में अब तक समग्र स्वच्छता अभियान के तहत अब तक 1 लाख 11 हजार 606 पात्र हितग्राहियों को शौचालय का निर्माण कराया गया। लेकिन ओडीएफ घोषित करने की जल्दबाजी में हजारों हितग्राही योजना से वंचित रह गए हैं जो आज भी खुले में शौच करने को मजबूर हैं। जबकि स्वच्छता समन्वयक की माने तो 2020-21 और 2021-22 में सर्वे कर शौचालय विहीन हितग्राही चिन्हित कर शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है। जबकि हकीकत यह है कि इससे कहीं अधिक हितग्राही आज भी दस्तावेजों के आभावों में योजना से वंचित होकर ग्राम पंचायतों से लेकर जिला पंचायत तक भटक रहे हैं। ऐसे में विभाग की लीपापोती से प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन पर आकंडों की बाजीगरी की गंदगी ग्रामीण क्षेत्रों में नजर आ रही है।
    सर्वे के नाम पर लीपापोती
    जिला पंचायत समग्र स्वच्छता प्रभारी की माने तो 2 अक्टूबर से 26 जनवरी तक रेट्रो फिटिंग अभियान के तहत ऐसे हितग्राहियों का सर्वे किया जा रहा है जो अब भी योजना से वंचित होकर खुले में शौच कर रहे हैं। इनमें ऐसे लोग भी देखे जा रहे हैं जो आवास की संख्या बढ़ने के बाद पात्र होते हुए भी योजना से वंचित हैं, लेकिन हकीकत यह है कि ओडीएफ घोषित होने के पूर्व से ही अधिकतर ग्राम पंचातयों में दस्तावेज के साथ ही टैंक, पाईप लइन, शीट और पानी आदि की कमीं के चलते आज भी उपयोगी साबित नहीं हो रहे हैं, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण शहर से लगे हुए ग्राम जहांगीरपुरा, अल्हादाखेडी में देखा जा सकता है जहां अभी भी बड़ी संख्या में लोग खुले में शौच कर रहे हैं।
    सामुदायिक शौचालयों में लटके ताले
    दो साल पहले समग्र स्वच्छता मिशन के तहत अलग-अलग मदों से करीब 7 करोड़ रूपए खर्च कर जिलेभर में 200 ग्राम पंचायतों में सामुदायिक शौचालय बनाए गए हैं जिनका उदेश्य था कि यहां लगने वाले हाट बाजार, सार्वजनिक कार्यक्रम, शादी विवाह समारोह, बस स्टैंड सहित सहित अन्य मौकों पर उमड़ने  वाली भीड़ यहां स्नान व शौच कर सके, लेकिन हालत यह है कि इनकों आगे से रंग रोगन कर शुभारंभ के फीते तो कटवा दिए हैं, लेकिन कई जगह अंदर से निर्माण कार्य, रंग रोगन पानी की व्यवस्था और कर्मचारी के आभाव के चलते अभी भी ताले लटके हुए हैं, जिससे अभी भी यह सामुदायिक शौचालय करोड़ों रुपये खर्च होन के बाद भी बेकार साबित हो रहे हैं।
    सबसे खराब हालत दमोह की
    प्रदेश में सबसे खराब हालत दमोह की है। यहां 51.5 फीसदी लोग ही शौचालय का इस्तेमाल कर रहे हैं। 48.5 प्रतिशत ओडीएफ होने के बाद भी खुले में शौच करते हैं। यहां 76.2 फीसदी शहरी आबादी के बाद शौचालय है,  जबकि 56 प्रतिशत ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती है। शौचालय के इस्तेमाल से दूरी में पन्ना दूसरे नंबर पर है। यहां 54.5 प्रतिशत आबादी शौचालय का इस्तेमाल करती है। इनमें 48 प्रतिशत ग्रामीण तो 34.5 प्रतिशत शहरी 7 आबादी खुले में शौच करती है। तीसरे नंबर पर राजगढ़ है। यहां 33 प्रतिशत आबादी खुले में शौच करती है। इनमें 23 फीसदी शहरी आबादी तो 45 प्रतिशत ग्रामीण आबादी है।
    गुना में शौचालय अभी भी अधूरे
    विजयपुर नगरपालिका क्षेत्र के राघौगढ़ गांव के प्रीतम रजक ने बताया, ठेकेदार ने गांव में पांच साल पहले शौचालय बनाया, लेकिन अधूरा ही छोड़ दिया। इसमें न सीट लगाई, न ही दरवाजे लगाए। पानी तक नहीं है। घर के खुले में ही शौच को जाते हैं। कुम्हार मोहल्ले में ज्यादातर घरों में शौचालय हैं, लेकिन एक भी पूरा नहीं बना। बुंदेल सिंह ने बताया, उनके घर में भी जो शौचालय बना, उसमें दीवार के अलावा कुछ नहीं है। न टैंक, न पानी..। नतीजा, अब इसमें कंडे भर दिए हैं। सभी खुले में जाते हैं। दतिया की सेंवढ़ा तहसील की सिरसा पंचायत में ग्रामीणों के लिए सामुदायिक स्वच्छता परिसर बनाया। लेकिन निर्माण में गुणवत्ता का ध्यान न रखने से यह बदहाल हो गया। 1800 की आबादी वाले गांव में 3.44 लाख से भवन तो बना, लेकिन इसमें पानी तक नहीं है। इसमें लगे कमोड ही दुर्दशा का शिकार है। नतीजा, लोग इसका इस्तेमाल नहीं करते।

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