नीति आयोग ने माना मोहन ‘राज’ का लोहा

मोहन यादव

मप्र आज तेज गति से विकास कर रहा है। राज्य की अर्थव्यवस्था निरंतर मजबूत हो रही है। मप्र का विकास कृषि से प्रेरित है जबकि वर्तमान में औद्योगिक विकास अर्थव्यवस्था का बड़ा आधार बनता जा रहा है। इस तथ्य पर नीति आयोग ने भी मुहर लगाई है और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार की नीतियों को सराहा है।

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
मप्र में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में सरकार बने अभी 14 माह ही हुए हैं, लेकिन सरकार ने विकास के कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। मप्र में जिस गति से सर्वांगिण विकास हो रहा है उसको नीति आयोग ने भी सराहा है। मप्र सरकार की नीतियों का परिणाम है कि आज देश के टॉप-10 धनी राज्यों में मप्र गिनती होने लगी है। 13.87 लाख करोड़ रुपए की जीडीपी के साथ अर्थव्यवस्था के मामले में देश में 10वें नंबर पर आ चुका है। तरक्की का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मप्र 9वें नंंबर पर काबिज तेलंगाना से बस 1 पायदान पीछे है। गौरतलब है की मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का पूरा फोकस प्रदेश में एक समान विकास पर है। इसके लिए वे रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का आयोजन किया जा रहा है। दरअसल, सरकार की कोशिश है कि चार साल में विधानसभा क्षेत्रों कोआदर्श बनाया जाए। स्कूल, बिजली, पानी, सडक़, नाली, सामुदायिक भवन, आंगनबाड़ी केंद्र समेत सभी सुविधाएं होंगी। केंद्र और राज्य सरकार की सभी योजनाओं से पात्रों को लाभांवित किया जाएगा। रोजगार के लिए मेलों का आयोजन होगा तो खेलकूद की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के साथ गोवंश के सरंक्षण और पर्यटन की गतिविधियों के विकास पर ध्यान दिया जाएगा। मप्र में सरकार चाहती है की प्रदेश के विकास में सबकी भूमिका हो। इसके लिए सरकार ने तय किया है कि विधानसभा क्षेत्रों को आदर्श बनाया जाएगा। इसके लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से दी जाने वाली राशि के साथ विधायक, सांसद निधि और कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी का उपयोग किया जाएगा। जो राशि और लगानी होगी, वह सरकार अपने वित्तीय संसाधनों से लगाएगी।
मप्र की अर्थव्यवस्था 2011-12 और 2021-22 के बीच औसतन लगभग 6.6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ी है, जो इस अवधि के दौरान 1 ट्रिलियन रुपए और उससे अधिक की राज्य जीडीपी (जीएसडीपी) वाले राज्यों में चौथी सबसे ऊंची वृद्धि दर है। हालांकि, विकास की इस उच्च दर ने इसे एक औद्योगिक राज्य नहीं बनाया है। इसके अलावा, मप्र अब अधिक कृषि प्रधान है। लेकिन इसका पांच पड़ोसी राज्यों और राष्ट्रीय औसत की तुलना में कई सामाजिक-आर्थिक और जनसांख्यिकीय संकेतकों पर खराब प्रदर्शन किया है। इसको देखते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने खामियों को दूर करने के मिशन पर काम शुरू कर दिया है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय 2011-12 के आधार वर्ष का उपयोग करके राज्य के घरेलू उत्पादों (अलग-अलग राज्यों का उत्पादन) की गणना करता है। चूंकि 2011-12 से पहले की अवधि के लिए राज्यों का आधार मूल्य जिस पर वास्तविक/मुद्रास्फीति-समायोजित वृद्धि की गणना की जाती है, उपलब्ध नहीं है, दिप्रिंट का विश्लेषण 2011-12 और 2021-22 के बीच की अवधि तक सीमित है। इस अवधि के दौरान, मप्र के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (राज्य में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य) में प्रति वर्ष औसतन 6.65 प्रतिशत की वृद्धि हुई – जो गुजरात (8.35 प्रतिशत), कर्नाटक (7.33 प्रतिशत) और हरियाणा (6.7 प्रतिशत) के बाद चौथी सबसे बड़ी वृद्धि दर है। अपने पांच पड़ोसी राज्यों से तुलना करने पर, एमपी की जीएसडीपी वृद्धि गुजरात के बाद दूसरे स्थान पर है, जिसमें राजस्थान (5.45 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (5.41 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (5.22 प्रतिशत) और महाराष्ट्र (4.71 प्रतिशत) पीछे हैं। लेकिन यह वृद्धि प्रति व्यक्ति आय के मामले में मप्र की स्थिति को नहीं दर्शाती है। 1 ट्रिलियन रुपए और उससे अधिक के जीएसडीपी वाले 21 राज्यों में से, यह 2011-12 में 18वें स्थान पर था – छत्तीसगढ़, बिहार और उत्तर प्रदेश से ऊपर थे। तब से 1.2 लाख रुपए प्रति व्यक्ति आय के साथ राज्य 2021-22 तक 16वीं रैंक तक पहुंचने के लिए केवल दो सीढिय़ां ही ऊपर चढ़ सका। मंत्रालय के संशोधित अनुमान के अनुसार, राष्ट्रीय औसत प्रति व्यक्ति आय 1.48 लाख रुपए है। अपने पड़ोसियों में, मप्र इस मामले में छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से बेहतर प्रदर्शन किया है, जबकि गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान इस फेहरिस्त में इससे आगे हैं। और कृषि विकास से राज्य को अधिक आय मिली है, हालांकि यह आवश्यक रूप से सर्वांगीण विकास (ऑल राउंड डेवलपमेंट) के बराबर नहीं है।

भविष्य का खाका किया तैयार
गौरतलब हो, जैसे ही भाजपा ने देश के हार्टलैंड स्टेट की सभी 29 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की, भारतीय राजनीति में गेम-चेंजर के रूप में उनकी भूमिका को रेखांकित किया गया। कैबिनेट के हर फैसले के साथ उन्होंने राज्य के भविष्य का खाका तैयार किया। पद संभालने के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव का पहला कदम उनकी गहरी प्रतिबद्धता का प्रमाण था। दरअसल, शिक्षा- एक ऐसा क्षेत्र है, जिसकी देखरेख उन्होंने सीएम बनने से ठीक पहले की थी। उन्होंने पूरे एमपी में प्रत्येक जिले मुख्यालय में पीएम कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने के लिए 460 करोड़ का आवंटन किया। महज इतना ही नहीं, प्रदेश को एक आर्थिक महाशक्ति बनाने की उनके लक्ष्य को पूरा करने के लिए उनकी सरकार के पहले बजट ने राज्य के अब तक के सबसे बड़े परिव्यय ?3,56,078 का अनावरण कर इस महत्वाकांक्षा को और सुदृढ़ किया। जैसा कि पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च से एक विश्लेषण द्वारा उजागर किया गया है कि उनकी सरकार का बजट शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिए सभी राज्यों (2023-24) के औसत को पार कर गया।
इस दिशा में मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने आवंटन, प्रस्तावों को कुछ ही घंटों में मंजूरी में बदल कर भूमि पर तेजी से काम करके राज्य के निवेश परिदृश्य को बढ़ाया है। औद्योगिक पार्कों के पास की भूमि को कौशल पार्कों के लिए अलग रखा जा रहा है। पशुपालन, डेयरी और पुनर्जीवन सहकारी समितियों पर विशेष ध्यान देने के साथ ही डॉ. यादव ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और देश के दुग्ध उत्पादन में हिस्सेदारी 20त्न से दोगुना करने के लिए एक मिशन शुरू किया है। पिछले वर्ष के इन सतत प्रयासों के परिणामस्वरूप, मध्य प्रदेश में अब देश में सबसे कम बेरोजगारी दर 2.6त्न है, जो राष्ट्रीय औसत 10.2त्न से काफी कम है, जैसा कि सितंबर में जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण में पता चला है। युवाओं की पूरी क्षमता उजागर करना और उन्हें नौकरी के लिए तैयार करने के लिए सरकार ने वित्त वर्ष-2025 के बजट का 14.9त्न शिक्षा को समर्पित किया। अपने पहले वर्ष में, इसने 9,200 सीएम राइज स्कूल, 12 मेडिकल कॉलेज, 13 नर्सिंग कॉलेज, 1,079 आईसी लैब व एक टेक रिसर्च और डिस्कवरी कैम्पस को मंजूरी दी। इसके अलावा लैपटॉप, ई-स्कूटर, साइकिल और वर्दी के साथ-साथ छात्रों को छात्रवृत्ति से भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। मुख्यमंत्री के रूप में और उनके कार्यकाल के दौरान डॉ. मोहन यादव का शिक्षा पर निरंतर ध्यान रहा है। उन्होंने उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में एमपी के सकल नामांकन को बढ़ावा दिया है। वहीं दूसरी ओर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के मिशन के तहत सरकार ने 56 अवैध मदरसों की मान्यता रद्द कर दी और अनधिकृत कोचिंग संस्थान बंद कर दिए गए।
मध्य प्रदेश सरकार कुशल कार्यबल विकसित करने के साथ-साथ, बुनियादी ढांचे को बढ़ाकर व्यवसाय-अनुकूल वातावरण बनाने में, ऊर्जा, परिवहन, सिंचाई और खनन, राज्य को एक केंद्र के रूप में स्थापित करने का कार्य कर रही है। मध्यप्रदेश नवकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में नवाचार करने में अग्रणी रहा है। वर्ष 2012 में प्रदेश की लगभग 500 मेगावॉट नवकरणीय ऊर्जा की क्षमता थी। वर्तमान में कुल क्षमता बढक़र 7 हजार मेगावॉट हो गयी है, जो कि विगत 12 वर्षों में लगभग 14 गुना बढ़ी है। राज्य की कुल ऊर्जा क्षमता में नवकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढक़र 21 प्रतिशत हो गयी है। आगे राज्य सरकार की नवकरणीय ऊर्जा की उत्पादन क्षमता को वर्ष 2030 तक बढ़ाकर 20 हजार मेगावॉट करने की योजना है। आज प्रदेश में मौजूद रीवा और ओंकारेश्वर जैसी विश्व-स्तरीय सौर परियोजनाएं देश में राज्य सरकार के दृढ़ संकल्प और इच्छा-शक्ति का गौरव-गान कर रही हैं। रीवा सोलर प्रोजेक्ट 1590 हेक्टेयर क्षेत्र में स्थापित है। यह विश्व के सबसे बड़े सिंगल साइड सौर संयंत्रों में से एक है। इस प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन को एक आदर्श के रूप में पहचान मिली है।

उद्योग और सामाजिक कल्याण में प्रगति
उल्लेखनीय है, मध्य प्रदेश उद्योग और सामाजिक कल्याण दोनों क्षेत्रों में प्रगति कर रहा है। विविधीकरण और उन्नत तकनीक, अभिनव कृषि-उन्नति पहल, जबकि प्रमुख सिंचाई परियोजनाओं में तेजी लाई जा रही है, जो फसल के साथ कृषि में भी बदलाव ला रही है। रानी दुर्गावती, श्री अन्ना प्रमोशन, मिशन दलहन, पीएम किसान और सीएम किसान योजना के माध्यम से सीधी वित्तीय सहायता जैसी योजनाओं से किसानों को लाभ होता है। वहीं, लाडली बहना योजना के सशक्तिकरण के सामाजिक कल्याण पहल से महिलाएं लाभ अर्जित कर रही हैं। स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ाने वाली मुफ्त एयर एम्बुलेंस और साइबर तहसील शासन का आधुनिकीकरण, समानता के लिए राज्य के प्रयास में आदिवासी कल्याण और सिविल सेवाओं में महिला आरक्षण, इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। समावेशी विकास के लिए पिछले वर्ष में, एमपी ने न केवल तेजी से विकास किया बल्कि प्रकृति संरक्षण का समर्थन भी किया है। इसके पर्यटन बोर्ड ने सर्वश्रेष्ठ खिताब अर्जित किया। राज्य ने अपने बाघ अभयारण्यों को नौ तक विस्तारित किया। देश ने अपनी सूची में 57वां बाघ अभयारण्य जोड़ा है। इस सूची में शामिल होने वाला नवीनतम स्थान मध्य प्रदेश में रातापानी टाइगर रिजर्व है। इसके अतिरिक्त एक ही दिन में, हरित भविष्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए एमपी ने 11 लाख से अधिक पौधे लगाकर गिनीज वल्र्ड रिकॉर्ड भी बनाया।

मप्र की आर्थिक स्थिति हुई मजबूत
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर प्रदेश के विभिन्न अंचलों में रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव के आयोजनों से प्रदेश में औद्योगिक क्रांति के नए द्वार खोल दिये है। उनके औद्योगिक प्रगति के नए मंत्र से आंचलिक उद्यमियों को नई ऊर्जा मिली है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने लघु और मध्यम श्रेणी (एमएसएमई) के उद्यमियों को प्रोत्साहित करने की महत्वपूर्ण और सामयिक पहल की है। विभिन्न क्षेत्रों में छोटी और मध्यम श्रेणियों की इकाइयों का संचालन करने वाले उद्यमी शासन द्वारा दी जा रही सुविधाओं का लाभ लेने के लिए अग्रसर होंगे। विशेष रूप से कृषि, फूड प्रोसेसिंग, खनिज, रक्षा उत्पादन, पर्यटन और वस्त्र उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए प्रारंभ किए गए प्रयास सफलता के नए आयाम स्थापित करेंगे। प्रदेश में हो रही रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव बहुआयामी गतिविधियों के कारण उद्योगों के विकास का आधार बन रही हैं। ये कॉन्क्लेव जहां बायर- सेलर मीट के माध्यम से महत्वपूर्ण मंच सिद्ध होती हैं, वहीं वृहद औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए मुख्यमंत्री डॉ. यादव और प्रमुख उद्योगपतियों के बीच वन-टू-वन बैठकें मील का पत्थर का साबित होंगी। उद्योगों के लिए आवश्यक सुविधाओं को प्रदाय करने में जहाँ कोई बाधा या कठिनाई सामने आती है, वन-टू-वन बैठकें ऐसी कठिनाइयों को दूर कर त्वरित समाधान में सहायक बनती हैं। प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में एमएसएमई सेक्टर की भूमिका निरंतर महत्वपूर्ण बन रही है।
वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए, मप्र का मौजूदा कीमतों पर राज्य सकल घरेलू उत्पाद 13,63,327 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। यह राज्य की अर्थव्यवस्था के विस्तार दर्शाता है। इसमें उत्पादन, वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य दोनों की वृद्धि को शामिल किया गया है। पिछले वित्तीय वर्ष के राज्य सकल घरेलू उत्पाद 12,46,471 करोड़ रुपये से लगभग 9.37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। आज यहां आर्थिक सर्वेक्षण में स्पष्ट रेखांकित हुआ कि वर्ष 2023-24 के लिए स्थिर कीमतों पर जीएसडीपी 6,60,363 करोड़ रुपये थी, जो पिछले वर्ष के 6,22,908 करोड़ रुपये से ज्यादा है। यह लगभग 6.01 प्रतिशत की वृद्धि है, जो दिखाती है कि मप्र सतत रूप से आर्थिक प्रगति कर रहा है। उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने कहा की आर्थिक सर्वेक्षण मप्र की उत्कृष्ट आर्थिक प्रगति को रेखांकित करता है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मप्र आर्थिक समृद्धि के नये सोपान तय करेगा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपेक्षा अनुसार देश की पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने भरपूर सहयोग देगा। मप्र में अर्थव्यवस्था बढऩे के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों के विकास एवं सभी वर्गों के उत्थान के लिए के लिए कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों का संचालन हो रहा है। जनजातीय एवं अनुसूचित जाति समाज के आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तिकरण के कार्यक्रम, महिलाओं को अधिकार देने, उद्योग एवं व्यापार को बढ़ावा देने के लिए नियमों को सरल बनाकर उनका पालन आसान करने, कृषि में तकनीक का समावेश तथा खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से कृषकों की आय बढ़ाने के उपाय करने जैसे कई प्रयास सुशासन के अप्रतिम उदाहरण बनकर सामने आये हैं। राज्य में साक्ष्य परक एवं डाटा आधारित नीति निर्माण एवं विश्लेषण को अत्यधिक महत्व दिया जा रहा है। मप्र आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में यह प्रयास स्पष्ट दिखता है। इस बार का आर्थिक सर्वेक्षण प्रदेश की निवेश, निर्यात, उद्योग, विज्ञान एवं सूचना प्रौद्योगिकी, शिक्षा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में हुई प्रगति को दर्शाता है।

आर्थिक लाभ वाली योजनाओं को प्राथमिकता
लाड़ली बहना और लाड़ली लक्ष्मी जैसी डायरेक्ट बेनिफिट योजनाओं के कारण मप्र के खर्च का पैटर्न बदल गया है। प्रदेश सरकार ने बीते 5 सालों में जनता को सीधे आर्थिक लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं को प्राथमिकता दी है। इसी के चलते नीति आयोग की हाल में जारी फिस्कल हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट में मप्र को फ्रंट रनर कैटेगरी में रखा गया है। क्वालिटी ऑफ एक्सपेंडिचर में पहले जबकि ओवर ऑल रैंकिंग में हम देश में 9वें स्थान पर रहे। रिपोर्ट बताती है कि सरकार ने अपने बजट का बड़ा हिस्सा सीधी लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं पर खर्च किया, जिससे जनता की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई और जीवन स्तर में सुधार आया। साल 2018-19 में जहां सरकार ने कुल बजट का 37 प्रतिशत हिस्सा इन योजनाओं पर खर्च किया था, अब यह बढक़र 41 प्रतिशत हो गया है। इसके अलावा 27 प्रतिशत बजट सडक़, पुल बिजली, अस्पताल और स्कूलों जैसे बुनियादी ढांचे को विकसित करने में खर्च किया गया। हालांकि, रिपोर्ट रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने बीते वर्षों में रोजगार सृजन पर खर्च घटा दिया है, जिससे राजस्व कलेक्शन पर असर पड़ा है। साल 2018-19 में रोजगार सूजन पर सरकार ने कुल खर्च का 13 प्रतिशत लगाया था, जो 2022-23 में 11 प्रतिशत रह गया। इससे राजस्व संग्रहरण में 3 प्रतिशत की गिरावट आई। 2018-19 में यह 18 प्रतिशत था, जो 2022-23 में घटकर 15 प्रतिशत रह गया। रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश सरकार की योजनाओं से जनता को सीधा लाभ पहुंचा है। पर रोजगार सृजन और राजस्व कलेक्शन में गिरावट एक बड़ी चुनौती बन सकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सरकार को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और उद्योगों में निवेश बढ़ाना होगा, ताकि रोजगार के अवस्स पैदा हों। आरबीआई बोर्ड के सदस्य और मप्र नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष सचिन चतुर्वेदी का कहना है कि सरकार की इन योजनाओं से बाजार में बूम आया और आम जनता का जीवन स्तर सुधरा। लोगों के खाते में सीधे पैसे जाने से उनको क्रय शक्ति बड़ी, जिससे अर्थव्यवस्था को फायदा हुआ। हालांकि, उन्होंने राजस्व संग्रहण और रोजगार सुजन पर ध्यान देने की जरूरत बताई। मप्र राज्य की अर्थव्यवस्था ने पिछले एक दशक में रिकॉर्ड बनाए हैं। भले ही सरकार पर ज्यादा कर्ज लेने के आरोप लगते रहे हैं पर राज्य की जीएसडीपी यानी सकल राज्य घरेलू उत्पाद को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। वर्ष 2023-24 में मप्र की जीएसडीपी 13.87 लाख करोड़ रही है। वहीं 2023 में मध्यप्रदेश में पर कैपिटा इनकम यानी प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 55 हजार 583 रु रही। माना जा रहा है कि प्रदेश आने वाले समय में तरक्की की और ऊंची छलांग लगाते हुए देश की अर्थव्यवस्था में अपना बहुमूल्य योगदान देगा।

प्राथमिक क्षेत्र का योगदान 45.53 प्रतिशत
प्रचलित भावों पर वर्ष 2023-24 में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान 45.53 प्रतिशत रहा जो इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है। द्वितीयक क्षेत्र का योगदान 18.47 प्रतिशत रहा है और तृतीयक क्षेत्र का प्रचलित भावों पर वर्ष 2023-24 में योगदान 36 प्रतिशत रहा है। स्थिर मूल्यों पर यह वर्ष 2023-24 में 39.64 प्रतिशत हुआ है, जो सेवा क्षेत्र में मजबूती को दर्शाता है। सेवा क्षेत्र में निरंतर निवेश और सुधार से तृतीयक क्षेत्र द्वारा राज्य की आर्थिक प्रगति में अधिक योगदान की संभावना है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में, मप्र में प्रमुख फसलों के उत्पादन में 0.20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है। दलहन के उत्पादन में 42.62 प्रतिशत की वृद्धि हुई, और तिलहन में 7.32 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। सब्जियों का उत्पादन 235.41 लाख मीट्रिक टन से बढक़र वर्ष 2023-24 में 242.62 लाख मीट्रिक टन हो गया, और फलों का उत्पादन 95.10 लाख मीट्रिक टन से बढक़र वर्ष 2023-24 में 95.54 लाख मीट्रिक टन हो गया। वर्ष 2023-24 में राजस्व आधिक्य राशि रुपए 413 करोड़ रहने का अनुमान है, इसे कोरोना काल की राजस्व घाटे की स्थिति से उबरने एवं मजबूत वित्तीय स्थिति का संकेत हैं। वर्ष 2019-20 से वर्ष 2022-23 के दौरान राज्य करों का हिस्सा जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में 6.16 प्रतिशत से बढक़र 6.20 प्रतिशत हो गया है इस अवधि के दौरान राज्य के अपने कर संग्रह में 12.79 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ोतरी हुई। प्रधानमंत्री जन धन योजना के माध्यम से प्रदेश में अब तक 4.29 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को बैंकिंग की सुविधाओं से लाभान्वित किया है। सरकार द्वारा बैंकिंग सेवाओं को सुलभ एवं कृषि, उद्योग एवं अन्य क्षेत्रों हेतु ऋण विस्तार के प्रयास किए जा रहे, फलस्वरूप वर्ष 2005-06 से वर्ष 2023-24 तक कृषि ऋण में 16.4 प्रतिशत सी.ए.जी.आर. की वृद्धि एवं एम.एस.एम.ई. क्षेत्र में 33.85 प्रतिशत सी.ए.जी.आर. की वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री आवास योजना में शहरी में प्रदेश में 9.50 लाख आवास स्वीकृत हुए हैं, जिसमें से 7.50 लाख आवास पूरे हो चुके हैं। इसके अलावा 3.56 करोड़ लाभार्थियों को डिजिटल आयुष्मान कार्ड जारी करने वाला देश का पहला राज्य है! पीएम स्वनिधि योजना के प्रथम चरण में 8.30 लाख शहरी पथ विक्रेताओं को 827.85 करोड़ रूपए का ऋण वितरित कर राज्य ने देश में पहला स्थान पर है। वर्ष 2004 से 2024 के बीच में पारंपरिक ऊर्जा उत्पादन में 270.47 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। देश के कुल सौर उर्जा उत्पादन में मप्र 8.2 प्रतिशत का योगदान देता है और इस दृष्टि से देश में चौथे स्थान पर है।

अनाज में बसा है मप्र का विकास
अब सवाल यह उठता है कि जीएसडीपी के मामले में चौथी सबसे ऊंची विकास दर होने के बावजूद मप्र अभी भी उसकी तुलना में इतनी समृद्ध क्यों नहीं हुआ है? इसका जवाब उस विकास पथ में बसा है जिसे राज्य ने कृषि पर ध्यान केंद्रित करते हुए चुना है। आंकड़ों से पता चलता है कि मप्र अब अपनी आय के लिए एक दशक पहले की तुलना में कृषि पर अधिक निर्भर है। अपने पड़ोसियों की तुलना में, 2011 के बाद से इसमें अभूतपूर्व कृषि विकास देखा गया है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, इस अवधि के दौरान राज्य में खाद्यान्न उत्पादन दोगुना हो गया। 2011-12 में, राज्य में लगभग 149 लाख टन खाद्यान्न (चावल, गेहूं, मोटे अनाज, दालें) की खेती होती थी, जो 2021-22 तक बढक़र लगभग 349 लाख टन हो गई – जो सालाना चक्रवृद्धि लगभग 9.12 प्रतिशत की बढ़ोतरी है। इसके विपरीत, उसका कोई भी पड़ोसी राज्य इस सफलता की बराबरी नहीं कर सका। इस अवधि के दौरान गुजरात में खाद्यान्न उत्पादन 1.72 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 1.58 प्रतिशत, राजस्थान में 1.02 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 0.96 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ा है। 2011-12 में राज्य द्वारा अर्जित प्रत्येक 100 रुपए के लिए, उद्योग का योगदान 27 रुपए था, जबकि कृषि का योगदान 34 रुपए था। 2021-22 तक, उद्योग की हिस्सेदारी घटकर 19 रुपए हो गई, वहीं कृषि से राज्य की कमाई प्रति 100 रुपए पर बढक़र 48 रुपए हो गई थी। विनिर्माण उत्पादन की वृद्धि के मामले में, मप्र का प्रदर्शन अपने पड़ोसी राज्यों में से सिर्फ महाराष्ट्र से बेहतर है, जिसने इस 10 साल की अवधि में 3.32 प्रतिशत प्रति वर्ष की वृद्धि देखी, जबकि मप्र की 6.22 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। दूसरी ओर, गुजरात में विनिर्माण इस दशक में हर साल 10 प्रतिशत की दर से बढ़ा, इसके बाद छत्तीसगढ़ (7 प्रतिशत), राजस्थान (6.97 प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश (6.37 प्रतिशत) ने लिस्ट में अपनी जगह बनाई है।
भारत का हृदय मप्र आज देश में विकास का पर्याय बना हुआ है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के दूरदर्शी नेतृत्व में आज मप्र जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है, वह डबल इंजन की सरकार का भी असर है। 1 नवम्बर 1956 को अस्तित्व में आए मप्र ने अपने गठन और विभाजन के दौर में अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं लेकिन अब यह राज्य प्रगति के नए सोपान नाप रहा है। डबल इंजन की सरकार इस राज्य की तस्वीर और तकदीर बदलने की दिशा में शिद्दत से लगी हुई है। प्रदेश की जनता की खुशहाली और समरस विकास के लिए तमाम जनहितैषी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जो इस बात की गवाह हैं कि मप्र आने वाले दिनों में सर्वश्रेष्ठ राज्य के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहेगा। इस विकासोन्मुखी अभियान में जहां एक ओर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुस्पष्ट व दूरगामी सोच है, वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व वाली मप्र सरकार की प्रदेशवासियों की सेवा करने की प्रतिबद्धता है। केन्द्र सरकार की प्रमुख योजनाओं के क्रियान्वयन और उनका लाभ पात्र हितग्राहियों को दिलाने में मप्र देश में लगातार अग्रणी बना हुआ है। पीएम स्वनिधि योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना, पीएम आवास योजना, कृषि अवसंरचना निधि, प्रधानमंत्री मातृ-वंदना योजना, पीएम स्वामित्व योजना, नशामुक्त भारत अभियान, आयुष्मान भारत योजना, प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना, राष्ट्रीय आजीविका मिशन और स्वच्छ भारत मिशन आदि योजनाओं के क्रियान्वयन में मप्र देश में सबसे आगे है। प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) में मप्र में 8 लाख 20 हजार 575 आवास बनाए जा चुके हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) में प्रदेश में 36 लाख 25 हजार 20 आवासों का निर्माण किया जा चुका है। प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के तहत मप्र में 72 हजार 965 किलोमीटर लंबी सडक़ें बन चुकी हैं। किसान क्रेडिट कार्ड योजना में 65 लाख 83 हजार 726 किसानों के क्रेडिट कार्ड तैयार हो गए हैं। अटल पेंशन योजना में 26 लाख 15 हजार (शत प्रतिशत) हितग्राहियों को लाभान्वित किया गया है। पीएम स्वनिधि योजना के क्रियान्वयन में मप्र देश में पहले नम्बर पर है।
यह एक सुखद पक्ष है कि मप्र सरकार की दूरगामी सोच के चलते कृषि क्षेत्र में उन्नति, औद्योगिक विकास, आईटी एवं पर्यटन में बढ़ते सेवा-क्षेत्रों से राज्य के आर्थिक विकास को मजबूती मिल रही है। वर्ष 2023-24 का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जी.एस.डी.पी.) 13,63,327 करोड़ है, जो पिछले वर्ष (2022-23) की तुलना में 9.37 प्रतिशत अधिक है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में प्रदेश में प्रति व्यक्ति की आय 1,42,562 रुपये हो गयी है, जो आधार वर्ष (2011-12) की तुलना में चार गुना अधिक है। मप्र की कृषि विकास दर देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी अधिक है। मप्र से पिछले वर्ष 21 लाख टन गेहूं निर्यात हुआ, जो पूरे देश के गेहूं निर्यात का 45 प्रतिशत है। मप्र गेहूं निर्यात के मामले में देश में नम्बर एक पर है। इसी प्रकार 2023-24 में प्रदेश में 201.22 लाख टन दूध का उत्पादन हुआ, जिससे मप्र देश में दुग्ध उत्पादन में तीसरे नम्बर पर है।यशस्वी प्रधानमंत्री द्वारा मुख्य मंत्री किसान योजना के तहत प्रदेश के 81 लाख से अधिक किसानों के खाते में 1624 करोड़ रुपए की सहायता राशि का अंतरण किया। मप्र में बिजली की बात की जाए तो विद्युत उत्पादन की स्थापित क्षमता 28774 मेगावाट है, जिसमें 22328 मेगावाट बिजली पारंपरिक स्रोत से तथा 5638 मेगावाट नवकरणीय ऊर्जा स्रोत से उत्पादित हो रही है। प्रदेश में कृषि और उद्योगों को जरूरत के हिसाब से पर्याप्त बिजली मिल रही है। मप्र सरकार स्वास्थ्य सेवाओं में लगातार विस्तार कर रही है। प्रदेश में आयुष्मान भारत योजना में 4 करोड़ 2 लाख 22 हजार 893 हितग्रहियों को डिजिटल आयुष्मान कार्ड जारी किये जा चुके हैं। आयुष्मान भारत योजना में सरकार प्रति वर्ष प्रति परिवार 5 लाख रुपए तक अस्पताल में भर्ती व्यय प्रदान करती है। आयुष्मान भारत योजना के क्रियान्वयन में मप्र देश का प्रथम राज्य बन चुका है।

Related Articles