साल 2024 रहा भाजपा के नाम

  • डॉ. मोहन और वीडी की जोड़ी का कमाल

2023 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद जब डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी तो सरकार के सामने चुनौतियों का पहाड़ था। डॉ. मोहन ने प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ मिलकर चुनौतियों को पस्त किया और साल 2024 भाजपा के नाम किया।

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
राजनीति के कैलेंडर में देखें तो 2024 का साल मप्र के लिए चुनावी साल के तौर पर दर्ज है। 2023 की विदाई विधानसभा चुनाव नतीजों के साथ और 2024 की अगुवाई लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ। मप्र की चुनावी सियासत में ये साल खास तौर पर दर्ज हुआ है। वो इसलिए की इसी एक साल में मप्र भाजपा ने लोकसभा चुनाव में इतिहास रच दिया। पहली बार प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों पर कमल खिला। जो अपने आप में एक रिकार्ड था। 1951 में वजूद में आई इस सीट पर 66 वर्षों तक कांग्रेस का कब्जा रहा जो 2024 में जाकर खत्म हुआ। 2024 का साल मप्र के राजनीतिक कैलेंडर पर इस रिकार्ड के साथ दर्ज होगा कि इसी साल में भाजपा ने कांग्रेस का गढ़ रहा आखिरी छिंदवाड़ा का किला भी जीत लिया और 29 की 29 सीटें अपने नाम कर लीं। हालांकि ये आसान नहीं था। कमलनाथ का गढ़ छिंदवाड़ा अकेली ऐसी सीट थी जहां सात की सात विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। भाजपा ने 6 महीने से भी कम समय में इस सीट की सियासत बदल दी, जो आसान नहीं था।
जाहिर है पार्टी को भी इसके लिए मशक्कत करनी पड़ी। यूं तो छिंदवाड़ा पर जीत दर्ज करने के लिए लंबे समय से रणनीति बनाई पार्टी ने। महाकौशल का प्रभारी प्रहलाद पटेल को बनाया गया और जिम्मेदारी सौंपी गई। कांग्रेस की प्रवक्ता संगीता शर्मा कहती हैं, असल में भाजपा ने छिंदवाड़ा में जीत के लिए साम दाम दंड भेद सब आजमाया। कार्यकर्ताओं के दबाव में दल बदल कराए गए। प्रशासनिक तंत्र का दबाव डाला गया, वरना छंदवाड़ा सीट जो कांग्रेस का गढ़ कही जाती है वहां भाजपा का जीतना आसान नहीं था। छिंदवाड़ा से कांग्रेस की जमीन खिसकाने के लिए भाजपा ने ठीक लोकसभा चुनाव के पहले दल बदल की आंधी शुरु की और इस आंधी का केन्द्र छिंदवाड़ा को रखा। कमोबेश हर दिन सैकड़ों की तादात में कांग्रेसी भाजपा में शामिल होते गए। शुरुआत कांग्रेस के दांए हाथ पूर्व प्रोटेम स्पीकर दीपक सक्सेना से हुई। फिर इनके बाद तो विधायक कमलेश प्रताप शाह से लेकर मेयर विक्रम अहाते तक भाजपा चलो का अभियान छिंड़ गया छिंदवाड़ा में। चौरई के गंभीर सिंह, नीरज बंटी पटेल, पांढूर्णा के उज्जवल सिंह चौहान, जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष सीताराम डहरिया ये वो प्रमुख नाम थे जिनके कांग्रेस छोड़ देने से छिंदवाड़ा में कमलनाथ की जमीन कमजोर हुई।

66 साल बाद कांग्रेस को करारा झटका
छिंदवाड़ा लोकसभा सीट का इतिहास 1951 से शुरु होता है। बीते 66 बरस देखें तो सियासी तौर पर छिंदवाड़ा गढ़ बन चुका था कांग्रेस का। 66 साल तक लगातार ये मध्य प्रदेश की अकेली सीट थी जहां से कांग्रेस का ही सांसद चुना गया। 66 में से 45 साल अकेले कमलनाथ के खाते में हैं और दस साल फिर उनकी पत्नी अलकानाथ और नकुलनाथ के हैं। कमलनाथ के अलावा भीकू लाल चांडक, रायचंद भाई शाह और गाग्री शंकर मिश्र छिंदवाड़ा से कांग्रेस के सांसद बतौर चुने गए थे। 2024 में वह भी हुआ जिसके बारे में कांग्रेस को आभास भी नहीं था। अमरवाड़ा विधानसभा से कांग्रेस के विधायक कमलेश शाह ने पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा ज्वाइन कर ली। जिसके बाद अमरवाड़ा में उपचुनाव हुए। भाजपा ने कमलेश शाह को ही प्रत्याशी बनाया। इसके बाद दोनों पार्टियों के सीनियर लीडर्स ने अपने अपने प्रत्याशियों की जीत के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया। लेकिन उपचुनाव में जीत का सेहरा भाजपा प्रत्याशी कमलेश शाह के सिर सजा। वह कांग्रेस के धीरनशा इनवाती को हराकर विधायक बने। वहीं, विजयपुर और बुधनी में भी उपचुनाव हुए। विजयपुर से विधायक रहे रामनिवास रावत ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा ज्वाइन कर ली। यहां से भाजपा ने रमाकांत को अपना उम्मीदवार बनाया। जबकि कांग्रेस की तरफ से मुकेश मल्होत्रा मैदान में उतरे। मतदान से पहले तक ऐसा लग रहा था कि रामनिवास रावत उपचुनाव आसानी से जीत जाएंगे, लेकिन हुआ इसका उलट। जनता ने कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश मल्होत्रा को भारी वोटों से जिता दिया। इधर, शिवराज सिंह चौहान ने सांसद बनने के बाद बुधनी सीट से इस्तीफा दिया। उनके इस्तीफे के बाद बुधनी सीट खाली हुई। उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी रमाकांत भार्गव ने कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमार पटेल को हराया।

भाजपा ने खेली लाजवाब पारी
अगर सामान्य ज्ञान के सवाल में मप्र के संदर्भ में पूछा जाए कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन करा देने वाले दलबदल कब-कब हुआ, तो साठ के दशक में विजयाराजे सिंधिया के कांग्रेस सरकार गिराने के बाद 2020 का सत्ता परिवर्तन दर्ज किया जाएगा। जिसमें सिंधिया ने 22 विधायकों के साथ कांग्रेस छोडक़र कमलनाथ सरकार गिरा दी थी। इस दलबदल की शुरुआत 2020 से हुई, लेकिन दलबदल के साथ नई सदस्यता का रिकार्ड 2024 में बना। जब भाजपा एक दिन में सवा लाख और तीन महीने में करीब 11 लाख लोगों ने भाजपा की सदस्यता ली। बाकायदा पार्टी में न्यू ज्वाइनिंग टोली बनाई गई। 2024 में बना ये रिकार्ड जब एक दिन में सवा लाख लोगों ने भाजपा का फटका पहना और पार्टी की औपचारिक सदस्यता ली। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा में न्यू ज्वाइिंग टोली एक्टिव हुई। सक्रीयता इस तरह थी कि तकरीबन हर दिन पार्टी में एक ना एक सदस्यता होती। कांग्रेस के केंद्रीय मंत्री रहे वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी की बड़ी टूट भी इसी दौर की है। इसके बाद जबलपुर के मेयर जगत बहादूर अन्नू, पूर्व महाअधिवक्ता शशांक शेखर, उसके बाद अलग-अलग जिलों से भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं का थोक में दलबदल हुआ। फिर पार्टी ने तय किया कि एक दिन में न्यू ज्वाइनिंग टोली सर्वाधिक लोगों को भाजपा की सदस्यता दिलाई जाए। पार्टी के स्थापना दिवस 6 अप्रैल को इसके लिए चुना गया। स्थापना दिवस के दिन एक दिन में सवा लाख लोगों ने भाजपा की सदस्यता ली। न्यू ज्वाइनिंग टोली के प्रभारी डॉ नरोत्तम मिश्रा का कहना था कि इसमें 80 फीसदी कांग्रेसी ही थे। इसके अलावा भाजपा का रिकार्ड ये कहते हैं, लोकसभा चुनाव के पहले के तीन महीनों में करीब 6 लाख लोगों ने भाजपा की सदस्यता ली है। न्यू ज्वाइनिंग टोली के प्रभारी रहे पूर्व मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा कहते हैं, ये जो इतिहास 2024 में रचा गया। ये केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू था। उनके कार्य, उनके विचार, उनकी राष्ट्रीयता से प्रभावित होकर इस तादात में लोगों ने भाजपा की सदस्यता ली। कांग्रेस के गढ़ छिंदवाड़ा में मेयर से लेकर विधायक और कमलनाथ के करीबी दीपक सक्सेना तक को भाजपा की सदस्यता दिलवाकर पार्टी ने जहां सबसे मजबूत जमीन कमजोर की। उसके बाद इंदौर जैसी भाजपा की मजबूत जमीन रही सीट पर कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार अक्षय बम ने नामांकन वापसी के आखिरी दिन ही मैदान छोड़ दिया। कैलाश विजयवर्गीय के आशीर्वाद से ये भाजपा में शामिल हो गए।
तीसरा झटका ग्वालियर चंबल से लगा। जहां विजयपुर से कांग्रेस के विधायक रहे रामनिवास रावत ने भाजपा का दामन थाम लिया था। ये मोरल डाउन जो कांग्रेस का हुआ, उसके नतीजे लोकसभा चुनाव में दिखाई दिए। वरिष्ठ पत्रकार पवन देवलिया कहते हैं, बात केवल पार्टी में हुई न्यू ज्वाइनिंग की नहीं थी। जिस तरह से कांग्रेस का मोरल डाउन हुआ, वो सबसे अहम था। चुनाव के एन पहले पार्टी के भीतर तक और जनता के बीच ये संदेश चला गया कि कांग्रेस कमजोर हो रही है। ये संदेश जनता के बीच पहुंचाने में भाजपा कामयाब रही। जिसके नतीजे लोकसभा चुनाव में मिले। एमपी में दलबदल की ये शुरुआत 2020 से हुई। जब कांग्रेस से नाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 22 विधायकों के साथ पार्टी को छोडक़र बड़ा झटका दिया। उसके बाद तो एमपी में ये संख्या 28 सीटों तक पहुंच गई। सिंधिया समर्थकों के अलावा भी कांग्रेस से विधायक टूटकर भाजपा में आए, लेकिन चार साल बाद 2024 में ये दलबदल अपने शबाब पर था।

मोहन यादव ने मप्र में बदला सीन
दिसंबर का यही महीना था। 163 विधायक कतार में बैठे थे। केन्द्र की राजनीति से राज्य की राजनीति में भेजे गए एक नेता के बंगले पर कयासों का शामियाना सजने लगा था। छन छनकर खबरें आ रही कि मुख्यमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार के बंगले पर सिक्योरिटी भी बढ़ा दी गई है। दो दशक एमपी में भाजपा की सत्ता का चेहरा रहे शिवराज सीएम पद की दौड़ से बाहर हो चुके थे। दोपहर के बाद जैसे-जैसे शाम ढली, कद्दावर पूर्व केन्द्रीय मंत्री का नाम भी कमजोर पडऩे लगा। सवाल उठा तब कौन सीएम बनेगा। तभी तीसरी पंक्ति में इत्मीनान से बैठे एक विधायक के नाम पुकारा गया। वो नाम डॉ मोहन यादव का था। तीसरी पंक्ति के विधायक को पहली पंक्ति में मुख्यमंत्री बनाकर बेशक भाजपा हाइकमान ने पहुंचाया, लेकिन चार बार के सीएम रहे शिवराज सिंह चौहान मप्र में जो मानक तय कर गए, उसके आगे अपनी लकीर खींच पाना डॉ मोहन यादव का सबसे बड़ा इम्तेहान था। बीते एक साल में मोहन यादव एमपी के मानस में किस तरह दर्ज हुए। उनके फैसले चार साल भाजपा की सत्ता के मिथक बने शिवराज की छाया को पीछे छोड़ पाए। मोहन यादव ने किस तरह से एमपी में अपनी आमद दर्ज की। कैसे अपनी अलग लकीर खींच पाए। क्या पहला साल आश्वस्ति है कि मोहन यादव भाजपा के गढ़ बन चुके एमपी में लंबी पारी के खिलाड़ी हैं। मोहन कैबिनेट का पहला फैसला जनता को सीधे प्रभावित करने वाले लाउड स्पीकर से जुड़ा था। उन्होंने पहली ही कैबिनेट में ये फैसला लिया कि मप्र में धार्मिक स्थलों पर लाउड स्पीकर तय मानकों के अनुरुप ही बजाए जाएं। इस फैसले के साथ मोहन यादव ने ये बताया कि उनकी कार्यशैली अलग होगी। सरकार के शुरुआती 25 दिनों में 25 हजार मीट की दुकानें बंद हुई। सीएम का दूसरा जोर खुले में मीट की दुकानों को लेकर था। सीएम डॉ मोहन यादव ने कहा खुले में मीट की दुकानें बंद करवाई और पहले 25 दिनों में 25 हजार मीट की दुकानें हटाई गई।

लकीर का फकीर नहीं बने
सीएम डॉ. मोहन यादव ने बहुत सधी हुई पारी की शुरुआत की। कहां बदलाव जरुरी है और कहां नहीं, बहुत स्पष्ट होकर चले। जिस योजना पर सवार होकर एमपी में सत्ता आई, उस लाड़ली बहना योजना पर सीएम डॉ. मोहन यादव का सबसे ज्यादा फोकस रहा। जानकार कहते हैं, डॉ मोहन यादव संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं। वैचारिक प्रतिबद्धताएं उनकी स्पष्ट हैं, लेकिन वे बखूबी जानते हैं कि उन्हें क्या करना है और कहां किसी को अनवरत रहने देना है। वे मामा बेशक नहीं बने, लेकिन लाड़लियों के भैय्या बनकर उन्होंने रक्षाबंधन को उत्सव का रुप दिया। उन्होंने शिवराज सरकार के फैसले भी पलटे। सीपीए जो बंद हो गया था, उसे फिर से एक्टिव कर दिया। एक झटके में बीआरटीएस कॉरीडोर हटवा दिए। राज्य परिवहन निगम को दोबारा शुरू करने का फैसला लिया। शिवराज सिंह चौहान की महत्वाकांक्षी योजना लाडली बहना को लेकर विपक्ष ने कई बार आरोप लगाया कि मोहन सरकार में ये योजना बंद हो जाएगी, लेकिन उन्होंने न सिर्फ इस योजना को जारी रखा बल्कि त्योहारों पर महिलाओं के खाते में अतिरिक्त पैसे भी भेजे। इसके अलावा मोहन यादव ने अपने कार्यकाल में कई महत्वाकांक्षी योजनाएं भी शुरू की। आदिवासियों के लिए बजट सत्र 2024-25 में 40 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया। इससे जनजातीय विकास के लिए कई स्कीम चलाई जा रही हैं। उन्होंने पिछली सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं को आगे ही नहीं बढ़ाया बल्कि कई नई योजनाओं की शुरुआत भी की। कुल मिलाकर डॉ। मोहन यादव ने एक साल में अपने आप को साबित किया है, चाहे वो सियासी मोर्चा हो या सरकार चलाने की कुशलता हो। हालांकि, कई मोर्चों पर वे थोड़े कमजोर भी पड़े हैं। उनके ऊपर कई आरोप भी लगे हैं, जिसमें से अपने गृह जिले उज्जैन पर ज्यादा ध्यान देने का भी आरोप लग चुका है। सरकार का अभी एक साल ही हुआ है। सामने कई चुनौतियां भी हैं जिससे आने वाले समय में पार पाना होगा। अगले 4 साल में वे खुद को और प्रदेश को किस तरह आगे ले जाते हैं ये आने वाला वक्त ही बताएगा।
अब मोहन यादव पर पार्टी आलाकमान द्वारा उनके ऊपर दिखाए गए इतने बड़े विश्वास को सही साबित करने का दबाव था। चंद महीने बाद ही लोकसभा चुनाव के रूप में उनके सामने एक बड़ी चुनौती आने वाली थी। एमपी की 29 लोकसभा सीटों में से भाजपा के खाते में 28 सीटें थी और उनके सामने इस प्रदर्शन को बरकरार रखने का दबाव था। लेकिन डॉ। यादव की राजनीतिक समझ और कुशल नेतृत्व के चलते भाजपा ने मप्र में क्लीन स्वीप कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने वो भी कर दिखाया जो पिछले 27 सालों में नहीं हुआ था। नाथ परिवार और कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाली छिंदवाड़ा सीट पर भी भाजपा ने अपना कब्जा जमा लिया था। इसके बाद साथी और विरोधी भी उनकी कार्यकुशलता के कायल हो गए। लोकसभा चुनाव के दौरान मोहन भाजपा के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल थे और उन्होंने एमपी के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड समेत कई राज्यों में भाजपा प्रत्याशियों के लिए वोट मांगा था। मोहन यादव की पार्टी में लोकप्रियता या कद का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि हरियाणा में भाजपा विधायक दल का नेता चुनने के लिए गृहमंत्री अमित शाह के साथ मोहन यादव को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया था। जानकार कहते हैं कि वैसे देखा जाए तो मोहन यादव का एक साल का कार्यकाल सफल ही कहा जाएगा, क्योंकि शिवराज सिंह चौहान के आभामंडल से निकलना किसी भी नेता के लिए इतना आसान नहीं था। लेकिन मोहन यादव ने अपने एक साल के कार्यकाल में अलग लकीर खींची है। मोहन यादव पर दिल्ली का जो ठप्पा लगा है पर्ची वाला, इस छवि को कुछ हद तक मोहन यादव ने बदला है। लेकिन किसी नए मुख्यमंत्री के लिए पहले साल का आकलन करना और उसके बारे में धारणा बनाना जल्दबाजी होगी।

लोकल से लेकर ग्लोबल इन्वेस्टमेंट प्लान
शुरुआती एक साल में सीएम डॉ मोहन यादव का पूरा जोर इन्वेस्टमेंट पर रहा। रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव जो की मप्र के ही उज्जैन, ग्वालियर, रीवा, जबलपुर, सागर और नर्मदापुरम और देश के महानगर मुंबई, कोयंबटूर, बेंगलुरु और कोलकाता में जो रोड शो हुए, उसमें तीन लाख करोड़ से ज्यादा का निवेश आया। सरकार के मुताबिक जिससे करीब तीन लाख से ज्यादा के रोजगार मिलेंगे। इसी तरह यूके और जर्मनी की यात्रा के दौरान मप्र को 78 हजार करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए। सियासी मोर्चे पर अपने आप को साबित करने के अलावा डॉ. यादव ने प्रदेश को विकास के रास्ते पर ले जाने के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किया। उन्होंने 20 साल से चले आ रहे मप्र और राजस्थान के बीच चंबल-कालीसिंध और पार्वती नदी के पानी के विवाद को अपनी कार्यकुशलता से सुलझा दिया। मप्र सिविल सेवाओं में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला मोहन सरकार का ऐतिहासिक फैसला था। अपने 1 साल के कार्यकाल में मोहन यादव ने अफसरशाही पर भी लगाम लगाया। इस दौरान उन्होंने कई ऐसे कड़े फैसले लिए जिसकी चर्चा प्रदेश ही नहीं देश में भी हुई, चाहे वो गुना में हुए बड़े बस हादसे के बाद कलेक्टर, एसपी और परिवहन आयुक्त को उनकी जिम्मेदारी से हटाना हो या फिर चाहे, शाजापुर कलेक्टर, सागर कलेक्टर, देवास में एसडीएम, के खिलाफ कड़ा फैसला लेना जैसे तमाम फैसले क्यों न हो। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी कहते हैं कि मुख्यमंत्री मोहन यादव का एक साल का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा है। प्रदेश में रीजनल इंडस्ट्री कॉक्लेव की श्रृंखला आयोजित कर मोहन सरकार ने निवेश के नए द्वार खोले हैं। सरकार का फोकस युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाना है। इस दिशा में सरकार आगे बढ़ रही है।
रोजगार संचालनालय द्वारा पिछले एक वर्ष में प्रदेश भर में 540 जॉब फेयर का आयोजन किया गया, जिसमें 61 हजार 114 आवेदकों को रोजगार ऑफर लेटर प्राप्त हुआ। इसके अलावा कॅरियर कॉउंसलिंग योजनान्तर्गत 701 कॅरियर कॉउन्सलिंग सत्र आयोजित किए गए, जिससे 33 हजार 840 युवाओं को मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। प्रदेश के प्रत्येक जिला मुख्यालय पर नवंबर 2024 से युवा संगम कार्यक्रम के तहत रोजगार मेला, अप्रेन्टिसशिप मेला और स्व-रोजगार मेला का संयुक्त रूप से आयोजन किया जा रहा है। इन मेलों के माध्यम से युवाओं को निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर, प्रशिक्षण और स्वरोजगार के अवसर मिल रहे हैं, जो राज्य के युवाओं के लिए स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हो रहे हैं। आगामी वर्षों में प्रत्येक माह प्रत्येक जिला मुख्यालय पर एक युवा संगम कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा, जिसमें रोजगार, स्वरोजगार और अप्रेन्टिस मेले एक साथ आयोजित होंगे। यह पहल युवाओं को उनके कौशल के अनुसार रोजगार दिलाने के साथ-साथ उन्हें स्व-रोजगार की दिशा में भी मार्गदर्शन करेगी।

5 वर्षों में बजट 7 लाख करोड़ करने का लक्ष्य
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का कहना है कि अगले पांच वर्षों में प्रदेश का बजट सात लाख करोड़ रुपये वार्षिक तक ले जाने का प्रयास है। इस बार के बजट में प्रदेश के समग्र विकास के लिए समुचित प्रबंध किए गए हैं। हमें अधोसंरचनात्मक विकास पर विशेष ध्यान देना है, ताकि आने वाले समय में इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। खेती के लिये पर्याप्त सिंचाई हो सके, इसके लिये हमें मिलने वाले पानी का पूर्ण उपयोग करना होगा। महज इतना ही नहीं, प्रदेश को एक आर्थिक महाशक्ति बनाने की उनके लक्ष्य को पूरा करने के लिए उनकी सरकार के पहले बजट ने राज्य के अब तक के सबसे बड़े परिव्यय 3,56,078 का अनावरण कर इस महत्वाकांक्षा को और सुदृढ़ किया। जैसा कि पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च से एक विश्लेषण द्वारा उजागर किया गया है कि उनकी सरकार का बजट शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिए सभी राज्यों (के औसत को पार कर गया। सरकार बनने के बाद उनका लक्ष्य मप्र के 7 करोड़ से अधिक नागरिकों के लिए परिवर्तन लाना और एक नए दृष्टिकोण के साथ राज्य का तेजी से विकास करना था। भाजपा को मजबूत करने की महत्वाकांक्षा, सत्ता पर पकड़ के लिए डॉ. मोहन यादव ने राज्य के भविष्य को नया आकार देने की ठानी। अब जब डॉ। यादव ने अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा कर लिया है, 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद एमपी में हर महीने क्षेत्रीय उद्योग सम्मेलन हो रहे हैं। यही नहीं, उनके नवोन्वेषी निर्णय- जैसे क्षेत्रीय उद्योग कॉन्क्लेव और अंतर्राष्ट्रीय निवेश शिखर सम्मेलनों ने राज्य के लिए 3 लाख करोड़ का निवेश भी हासिल किया है।
गौरतलब हो, जैसे ही भाजपा ने देश के हार्टलैंड स्टेट की सभी 29 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की, भारतीय राजनीति में गेम-चेंजर के रूप में उनकी भूमिका को रेखांकित किया गया। कैबिनेट के हर फैसले के साथ उन्होंने राज्य के भविष्य का खाका तैयार किया। पद संभालने के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव का पहला कदम उनकी गहरी प्रतिबद्धता का प्रमाण था। दरअसल, शिक्षा- एक ऐसा क्षेत्र है, जिसकी देखरेख उन्होंने सीएम बनने से ठीक पहले की थी। उन्होंने पूरे एमपी में प्रत्येक जिले मुख्यालय में ‘पीएम कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस’ स्थापित करने के लिए 460 करोड़ का आवंटन किया। सीएम यादव ने एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करते हुए नौकरियों, बुनियादी ढांचे और एमपी को विनिर्माण क्षेत्र बनाने के विजऩ के साथ पांच वर्षों में राज्य के बजट को दोगुना किया। उनकी सरकार 5 लाख नई नौकरियां पैदा करने के लिए तैयार है, जो जनता के बीच समान रूप से विभाजित होंगी। वहीं निजी क्षेत्रों में 1 लाख सरकारी पदों पर पहले से ही भर्ती चल रही है। छह क्षेत्रीय औद्योगिक सम्मेलनों ने 2 लाख नौकरियों के अवसर को अनलॉक किया है। इस दिशा में मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने आवंटन, प्रस्तावों को कुछ ही घंटों में मंजूरी में बदल कर भूमि पर तेजी से काम करके राज्य के निवेश परिदृश्य को बढ़ाया है। औद्योगिक पार्कों के पास की भूमि को कौशल पार्कों के लिए अलग रखा जा रहा है। पशुपालन, डेयरी और पुनर्जीवन सहकारी समितियों पर विशेष ध्यान देने के साथ ही डॉ. यादव ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और देश के दुग्ध उत्पादन में हिस्सेदारी 20 प्रतिशत से दोगुना करने के लिए एक मिशन शुरू किया है। पिछले वर्ष के इन सतत प्रयासों के परिणामस्वरूप, मप्र में अब देश में सबसे कम बेरोजगारी दर 2.6 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत 10.2 प्रतिशत से काफी कम है, जैसा कि सितंबर में जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण में पता चला है। युवाओं की पूरी क्षमता उजागर करना और उन्हें नौकरी के लिए तैयार करने के लिए सरकार ने वित्त वर्ष-2025 के बजट का 14.9 प्रतिशत शिक्षा को समर्पित किया। अपने पहले वर्ष में, इसने 9,200 सीएम राइज स्कूल, 12 मेडिकल कॉलेज, 13 नर्सिंग कॉलेज, 1,079 आईसी लैब व एक टेक रिसर्च और डिस्कवरी कैम्पस को मंजूरी दी। इसके अलावा लैपटॉप, ई-स्कूटर, साइकिल और वर्दी के साथ-साथ छात्रों को छात्रवृत्ति से भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। मुख्यमंत्री के रूप में और उनके कार्यकाल के दौरान डॉ. मोहन यादव का शिक्षा पर निरंतर ध्यान रहा है। उन्होंने उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में एमपी के सकल नामांकन को बढ़ावा दिया है। वहीं दूसरी ओर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के मिशन के तहत सरकार ने 56 अवैध मदरसों की मान्यता रद्द कर दी और अनधिकृत कोचिंग संस्थान बंद कर दिए गए।

अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भी बड़ी उपलब्धि
साल 2024-25 के दौरान एमपी में 16 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 3 लाख 65 हजार करोड़ रुपए से अधिक का बजट प्रस्तुत किया गया। अगले 5 साल में बजट को दोगुना करने का लक्ष्य है। मोहन यादव सरकार ने इंदौर की हुकुमचंद मिल के 4 हजार 800 श्रमिक परिवारों को 224 करोड़ की राशि का भुगतान किया। वहीं स्वामित्व योजना के माध्यम से 24 लाख लोगों को स्वामित्व अधिकार पत्र वितरित किए गए। सरकार ने मुख्यमंत्री जन कल्याण संबल योजना के लिए बजट में 600 करोड़ रुपए का प्रावधान है। मजदूरों की दिव्यांगता और मृत्यु के आधार पर मिलने वाली सहायता राशि बढ़ाकर 4 लाख रुपये की गई। श्रमिकों को ई-स्कूटर खरीदने के लिए 40 हजार की आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया गया। सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं के माध्यम से हर माह 55 लाख से अधिक हितग्राहियों को पिछले 10 महीनों में 3 हजार 300 करोड़ रुपए से अधिक रुपये से अधिक पेंशन राशि का अंतरण किया गया है। अनुसूचित जनजाति कल्याण योजना के तहत तेंदूपत्ता संग्राहकों का पारिश्रमिक 3000 रुपये प्रति मानक बोरासे बढक़र 4000 हजार रुपये किया गया। वहीं जनजातीय वर्ग के समग्र विकास और कल्याण के लिए 40 हजार 804 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान रखा गया जो कि पिछले बजट की तुलना में 23.4 प्रतिशत ज्यादा है। पीएम जन-मन योजना के तहत प्रदेश में बहुउद्देश्यीय केन्द्र, ग्रामीण आवास, ग्रामीण सडक़, समग्र शिक्षा एवं विद्युतीकरण कार्यों के लिए 1,607 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है। 2024-25 में आहार अनुदान योजना के तहत 450 करोड़ रुपए का प्रावधान प्रस्तावित है। छात्रावासों के विद्यार्थियों की समस्याओं के निराकरण और मार्गदर्शन के लिए 24म7 मित्र हेल्पलाइन प्रारंभ की गई है। विमुक्त, घुमन्तू एवं अद्र्ध-घुमन्तु वर्ग के बालकों को मिलने वाली स्कॉलरशिप 1230 रुपए से बढ़ाकर 1550 रुपए की गई है। बालिकाओं को मिलने वाली स्कॉलरशिप 1,270 रुपए से बढ़ाकर 1,590 रुपए प्रतिमाह की गई।
वर्ष 2024-25 हेतु अनुसूचित जाति उपयोजना के तहत 27,900 करोड़ का प्रावधान प्रस्तावित किया गया है। अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति, शिष्यवृत्ति, गणवेश, छात्रावास सुविधा आदि के लिए वर्ष 2024-25 में ?1,427 करोड़ का प्रावधान प्रस्तावित किया गया है। भारत सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में भी मप्र लगातार अग्रणी है। राज्य में जो योजनाएं जमीनी स्तर पर देखने को मिलीं- उनमें हैं- पीएम स्व-निधि योजना,प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना, पीएम आवास योजना, कृषि अवसंरचना निधि, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, स्वामित्व योजना, नशामुक्त भारत अभियान, आयुष्मान भारत योजना, मछुआ क्रेडिट कार्ड योजना, राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम, प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना, राष्ट्रीय आजीविका मिशन, स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी)- लक्ष्य -8,40,940- उपलब्धि- 8,32,098, प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण)- कुल निर्मित आवासों का लक्ष्य 41,67,98-उपलब्धि 36,31,238। इसी तरह जल जीवन मिशन में 89.01, आयुष्मान भारत योजना में 85.83 प्रतिशत, प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना में 99.96 प्रतिशत, पीएम जीवन ज्योति बीमा योजना में 138 प्रतिशत, स्वाइल हेल्थ कार्ड में 41.42 प्रतिशत, किसान क्रेडिट कार्ड 100 प्रतिशत, अटल पेंशन योजना में 156 प्रतिशत, पीएम स्वानिधि में 157.25 प्रतिशत और अमृत सरोवर योजना में 149 प्रतिशत की उपलब्धि हासिल हो चुकी है।

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