मप्र में 2003 से लेकर अब तक के मुख्यमंत्रियों के शासनकाल का आंकलन किया जाए तो एक साल में मोहन ‘राज’ (मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का शासनकाल) में जितना नवाचार, विकास हुआ है और कानून व्यवस्था सुधरी है, उतना पहले कभी नहीं देखा गया। इसलिए मोहन ‘राज’ के एक साल को लोग बेमिसाल…बेमिसाल…बेमिसाल… कहकर सराह रहे हैं।
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। किसी भी सरकार के कामकाज का आकलन करने के लिए 365 दिन यानी एक साल का अरसा काफी कम होता है। लेकिन मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने एक साल के कार्यकाल में विकास, विश्वास, सुशासन और प्रशासनिक क्षमता की वह मिसाल पेश की है कि जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। डॉ. यादव ने 13 दिसंबर 2023 को प्रदेश के 19वें मुख्यमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली थी। 13 दिसंबर 2024 को डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बने एक साल पूरे हो गये। ऐसे में उनके बारह महीनों पर एक नजर डालें तो हम पाते हैं कि इस दौरान सरकार ने उन मुद्दों पर अधिक फोकस किया है जिसकी जरूरत सबसे अधिक महसूस की जा रही थी। 11 दिसंबर 2023 को पूरे देश का मीडिया मप्र भाजपा के दफ्तर पर नजर गड़ाए बैठा था। मौका था मप्र के 19वें मुख्यमंत्री को चुनने का। दफ्तर के बाहर मीडिया का हुजूम था, अंदर नेताओं का। घड़ी की हर बढ़ती सूई के साथ नेताओं, उनके समर्थकों और फिर मीडिय़ा की धुकधुकी बढ़ रही थी। संशय ये था कि पिटारे में से किसका नाम निकलेगा। दौड़ में जो नाम थे उनमें खुद शिवराज सिंह चौहान, जिनके नेतृत्व में पार्टी ने शानदार विजय पाई, सांसदी और केंद्र में मंत्री पद छोडक़र आए नरेंद्र सिंह तोमर और प्रह्लाद सिंह पटेल, कई सालों बाद चुनाव लड़े कैलाश विजयवर्गीय। आखिर वो समय आया, पिटारे से नाम निकला और जो नाम निकला, वो था डॉ. मोहन यादव। डॉ. मोहन यादव उस दिन ग्रुप फोटो के लिए तीसरी लाइन में बैठे थे। किसी को अंदाजा भी नहीं था कि उनका नाम भी रेस में है। उस दिन कई लोगों के चेहरे खिले और कईयों के मुरझाए। 13 दिसंबर 2023 को डॉ. मोहन यादव मुख्यमंत्री बने और फिर शुरु हुआ चुनौतियों का सिलसिला।
डॉ. मोहन यादव ने मप्र के मुख्यमंत्री पद की जब शपथ ली, तो उनके नेतृत्व पर सवाल उठे। पूरे प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान से उनकी तुलना की जाने लगी। यादव ने शिवराज सिंह चौहान सरकार में तीन साल तक उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में काम किया था। चौहान के 16 साल से ज़्यादा के शासन के मुकाबले ये अनुभव बहुत थोड़ा था। इसके बावजूद, भाजपा ने अपने सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री को उज्जैन दक्षिण से तीन बार के विधायक से बदल दिया। गौरतलब है कि तत्कालीन सीएम शिवराज चौहान ने कृषि वित्तपोषण, सिंचाई और अन्य सहायक योजनाओं के माध्यम से मप्र को बीमारू राज्य से एक प्रमुख कृषि उत्पादक राज्य में बदल दिया। उन्होंने सडक़ निर्माण, ग्रामीण विकास और महिला सशक्तिकरण का भी सराहनीय काम किया। हालांकि, वे औद्योगिकीकरण और शहरी विकास में पिछड़ गए। शिवराज सिंह चौहान ने इन दिशाओं में प्रयास तो किए, लेकिन 2018 में चुनाव हारने के बाद 15 महीने के अंतराल और फिर मार्च 2020 में शपथ लेने के बाद शुरू हुए कोविड-19 काल के कारण उनके प्रयासों का ज़्यादा फल नहीं मिला।
पहला निर्णय ही बना मिल का पत्थर
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने प्रभार ग्रहण करने के बाद पहली नस्ती पर हस्ताक्षर कर ध्वनि प्रदूषण की जांच के लिये सभी जिलों में उडऩदस्ते गठित करने का फैसला किया था। इसमें धार्मिक स्थल अथवा अन्य स्थान में निर्धारित मापदण्ड के अनुरूप ही ध्वनि विस्तारक यंत्रों यानि लाउड स्पीकर, डीजे का उपयोग की बात थी। यह 13 दिसंबर 2023 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद डॉ. मोहन यादव द्वारा हस्ताक्षरित पहली नस्ती थी, जिसने मोहन की विशेष छवि बनाई है। तो 13 दिसंबर 2023 को ही खुले में मांस एवं मछली के विक्रय पर रोक लगाने का दूसरा फैसला डॉ. मोहन यादव ने लिया था। इसके तहत नगरीय क्षेत्रों में 15 दिसम्बर से विशेष जांच अभियान चलाने का आदेश दिया था। इन दोनों ही फैसलों में एक बेहतर मप्र और डॉ. मोहन यादव की सीएम बतौर एक विशेष छवि की झलक सभी ने देखी थी। हालांकि दोनों ही फैसलों को इस नजर से भी देखा गया था कि यह एक संप्रदाय विरोधी हैं। पर ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग सभी धर्म के धार्मिक स्थलों पर होता है। तो मांस की खुले में बिक्री में भी सभी धर्म के लोग शामिल हैं। और जब इन फैसलों पर अमल हुआ, तब लोगों में फील गुड का भाव देखा गया था। पर यह सख्ती लगातार देखने को नहीं मिली, जिसका लोगों को इंतजार है। राज्य शासन के किसी भी प्रकार के धार्मिक स्थल अथवा अन्य स्थान में निर्धारित मापदण्ड के अनुरूप ध्वनि विस्तारक यंत्रों आदि का उपयोग करने के निर्णय पर सख्ती से अमल होना चाहिए। सभी जिलों में उडऩदस्ते गठित हों और उनकी कार्यवाही भी सबको नजर आनी चाहिए। यहां तक कि शादियों या अन्य कार्यक्रमों में भी इस फैसले का उल्लंघन कतई बर्दाश्त नहीं किया जाए। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मंत्रालय में प्रभार ग्रहण करने के बाद हस्ताक्षर की गई प्रथम नस्ती बहुत ही अच्छी थी। मप्र में धार्मिक स्थल और अन्य स्थानों पर मप्र कोलाहल नियंत्रण अधिनियम, ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम 2000 के प्रावधानों तथा सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों के अनुक्रम में राज्य शासन का यह निर्णय काबिले तारीफ था। इसके तहत लाउडस्पीकर एवं अन्य ध्वनि विस्तारक यंत्रों के नियम विरूद्ध तेज आवाज में बिना अनुमति के उपयोग को पूर्णत: प्रतिबंधित किया गया है। पर फैसले के अनुरूप ध्वनि प्रदूषण तथा लाउड स्पीकर आदि के अवैधानिक उपयोग की जांच के लिये सभी जिलों में उडऩदस्ते नियमित और आकस्मिक रूप से धार्मिक और सार्वजनिक स्थानों जहाँ ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग होता है, का निरीक्षण करते नजर नहीं आ रहे हैं। उडऩदस्तों में जिला प्रशासन द्वारा नामित अधिकारी, संबंधित थाने का प्रभारी तथा मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा नामित अधिकारी सदस्य रहना था। जिले के समस्त उडऩदस्तों का नोडल अधिकारी जिला कलेक्टर द्वारा नामित एक अतिरिक्त जिला दण्डाधिकारी स्तर का अधिकारी होना था। इस संबंध में गृह विभाग द्वारा विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये गये थे। पर फिलहाल एक साल में इस फैसले पर ज्यादा सख्ती से पालन की उम्मीद सभी को है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 13 दिसंबर 2023 को ही कहा था कि प्रदेश में खुले में बिना अनुमति मांस तथा मछली का विक्रय प्रतिबंधित किया जायेगा। इसके संबंध में 15 दिसम्बर से सभी नगरीय निकायों में मप्र नगरपालिक निगम अधिनियम-1956 के प्रावधानों के तहत विशेष अभियान चलाया जाना था।प्रदेश के विभिन्न शहरों में सामान्यत: किसी भी प्रकार के व्यवसाय, दुकान, बाजार या रेहड़ी आदि लगाने के लिये नगरीय निकायों द्वारा मप्र नगरपालिक निगम अधिनियम-1956 एवं अन्य सुसंगत अधिनियमों के अंतर्गत अनुज्ञा,अनुमति, अनापत्ति प्रदान की जाती हैं। विशेष रूप से किसी भी प्रकार के मांस एवं मछली के विक्रय के लिये नगरीय विकास विभाग के अधिनियमों के अतिरिक्त खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम-2006 के प्रावधान लागू होते हैं। इसके अंतर्गत जिलों में मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा मांस एवं मछली के विक्रय के संबंध में अतिरिक्त शर्तें लगाई जाती हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत मांस एवं मछली के विक्रय के समस्त प्रतिष्ठानों में अपारदर्शी कांच/दरवाजा एवं साफ-सफाई की सम्पूर्ण व्यवस्था होना अनिवार्य है। इसके साथ ही किसी भी धार्मिक स्थल के मुख्य द्वार के सामने 100 मीटर की दूरी के भीतर उक्त सामग्री का विक्रय या प्रदर्शन प्रतिबंधित है। सभी जिला कलेक्टर्स, नगरीय निकायों के आयुक्तों और मुख्य नगरपालिका अधिकारियों को अधिनियमों/नियमों एवं लायसेंस की शर्तों का पालन कड़ाई से कराने के निर्देश दिये गये थे। सभी निकाय क्षेत्रों में 15 दिवस तक अतिक्रमण निरोधी दस्ते तथा स्वास्थ्य अमले के अतिरिक्त जिला एवं पुलिस प्रशासन को विशेष अभियान चलाने का निर्देश दिया गया था। यह अभियान 15 दिसम्बर से प्रारंभ होकर 31 दिसम्बर तक चलना था और चला भी था। अभियान की राज्य स्तर पर मॉनिटरिंग करने के निर्देश भी थे। शुरुआत में मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप हुई सख्त कार्यवाही ने सबका दिल जीता था। और इस मामले में उतनी ही सख्त कार्यवाही की अपेक्षा अब भी समूचे मध्य प्रदेश को है। तो अलग सोच के साथ सत्ता के संग चल रहे डॉ. मोहन यादव के यह दो फैसले उनकी एक विशेष छवि बना रहे हैं। इनका प्रभावी क्रियान्वयन मप्र के हर नागरिक में अनुशासन लाने में सक्षम है। और अनुशासन की यह डोर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सोच से समूचे मप्र को बांधने में सक्षम है।
सबसे आगे निकले
11 दिसंबर 2024 को जब उनके नाम का ऐलान हुआ था, तब कई बुद्धिजीवियों का सवाल था कि लगभग 20 साल सरकार चलाने वाले शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले उन्हें मुख्यमंत्री क्यों बनाया गया। लेकिन अपने एक साल के कार्यकाल में ही डॉ. मोहन यादव ने यह साबित कर दिया है कि आलाकमान ने जो फैसला लिया था वह सौ टका टंच था। चाहें शिवराज सिंह चौहान हों या उमा भारती, स्व. बाबूलाल गौर हों या कमलनाथ सबको मात देकर डॉ. मोहन आगे निकल गए हैं। डॉ. मोहन यादव ने अपने एक साल के कार्यकाल में कई काम ऐसे किए हैं, जो उन्हें शिवराज सिंह चौहान से आगे लाकर खड़ा करते हैं। मसलन छिंदवाड़ा की सीट, जिसे जीतने के लिए भाजपा ने पूरा जोर लगा दिया था लेकिन उनके कार्यकाल में जीत नहीं पाए। वहीं, जब कमान सीएम यादव के हाथ में आई तो उन्होंने 26 साल बाद कमलनाथ के अभेद किले को ढ़हा दिया। लगता है कि उन्होंने सरकार चलाने के लिए अपनी प्राथमिकताएं तय कर ली हैं। वो उद्योग, शहरी विकास और राजस्व बढ़ाने पर ध्यान दे रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने युवाओं, नारी, किसानों और गरीबों के अभावग्रस्त जीवन के आर्थिक उन्नयन के साथ उनमें आत्म-विश्वास भरने और उनके जीवन को बेहतर बनाने का संकल्प लिया है। उन्होंने कहा कि मप्र सरकार इन वर्गों के आर्थिक विकास के लिए ठोस पहल कर रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संकल्प को पूरा करने के लिए 1 जनवरी से 4 नए मिशन प्रारंभ करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने दशकों से उपेक्षा के शिकार रहे समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन को बदलने का संकल्प लिया है। हमारी सरकार युवा, नारी, किसान और गरीब वर्ग के आर्थिक सशक्तिकरण के जनवरी-2025 में मिशन मोड में प्रतिबद्धतापूर्वक कार्य करने जा रही है। सीएम यादव ने कहा कि प्रदेश में एक जनवरी 2025 से 4 मिशन- युवा शक्ति मिशन, गरीब कल्याण मिशन, किसान कल्याण मिशन और नारी सशक्तिकरण मिशन प्रारंभ किये जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के संकल्प को पूरा करने की पहल करने वाला मप्र पहला राज्य है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि युवा शक्ति मिशन में युवाओं को रोजगार, कौशल विकास और नेतृत्व के अवसर प्रदान कर सशक्त बनाने का कार्य किया जायेगा। गरीब कल्याण मिशन में गरीब और वंचित वर्गों को सामाजिक सुरक्षा, रोजगार और बुनियादी सुविधाएँ प्रदान की जायेंगी। नारी सशक्तिकरण मिशन में महिलाओं को आत्म-निर्भर बनाने के साथ उन्हें आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से सशक्त बनायेंगे। किसान कल्याण मिशन में किसानों की आय में वृद्धि करने के साथ कृषि को और अधिक लाभकारी व्यवसाय बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रदेश में लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को साकार करने के लिए वर्तमान वित्तीय वर्ष में साढ़े 3 लाख करोड़ से अधिक राशि का लोक कल्याणकारी बजट पारित किया गया। सरकार ने तय किया है कि आने वाले वर्षों में बजट को दोगुना किया जायेगा। सरकार का प्रयास है कि प्रदेश को सशक्त बनाने के लिये किये जाने वाले कार्यों में जनता की सहभागिता सुनिश्चित रहे। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि मप्र को देश में अग्रणी राज्य बनाने में प्रदेश की जनता का विश्वास हमें संबल प्रदान करता है। हमारे साढ़े 8 करोड़ प्रदेशवासी मिलकर विकास की दिशा में जब काम करेंगे, तो विकास के नये आयाम प्रदेश में रचे जाएंगे। जहां तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान पिछड़े, नए सीएम ने वहीं से अपना काम शुरु किया। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद एमपी में हर महीने क्षेत्रीय उद्योग सम्मेलन हो रहे हैं। उज्जैन के क्षेत्रीय उद्योग सम्मेलन में 1 लाख करोड़ रुपये के निवेश के प्रस्ताव आए। यह बहुत बड़ी सफलता थी। जबलपुर में 17,000 करोड़ रुपये के प्रस्ताव आए। इनमें से 5,000 करोड़ रुपये एमएसएमई से थे। इसी तरह ग्वालियर के सम्मेलन से 1.84 लाख करोड़ रुपये के प्रस्ताव मिले। सागर से 23,000 करोड़ रुपये के प्रस्ताव आए। इनमें डेटा सेंटर और स्टील प्लांट शामिल थे। रीवा का सम्मेलन भी सफल रहा। अक्टूबर में वहां 31,000 करोड़ रुपये के प्रस्ताव आए। यादव विदेशी निवेश लाने के लिए कई देश गए। हाल ही में यूके से उन्हें 60,000 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिले हैं। शहरों के विकास में समय लगता है लेकिन सीएम यादव ने शुरुआत कर दी है। इंदौर और भोपाल में अभी मेट्रो नहीं है। शायद भोपाल में 2025 से मेट्रो शुरु हो जाए। इसके प्रयास भी तेजी से चल रहे हैं। इंदौर में बीआरटीएस को नया बनाया जा रहा है। यादव भोपाल को महानगर बनाना चाहते हैं। वो दिल्ली-एनसीआर की तरह भोपाल को स्टेट कैपिटल रीजन बनाने के लिए भी काम कर रहे हैं। मप्र में चिकित्सा शिक्षा की कमी भी एक चुनौती है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान में लगभग हर जिले में मेडिकल कॉलेज है। मध्य प्रदेश में सिर्फ़ 17 सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं। इसी तरह सरकार ने अपने संकल्प पत्र में 2.5 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया था। लेकिन अभी तक विज्ञापनों के अलावा इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
जानजातियों का उद्धार
डॉ. मोहन यादव सरकार के गठन के बाद पहली कैबिनेट जनवरी 2024 को रानी दुर्गावती और वीरांगना रानी अवंतीबाई के नाम पर जबलपुर में हुई थी। 5 अक्टूबर को वीरांगना रानी दुर्गावती की पहली राजधानी सिंग्रामपुर में कैबिनेट की बैठक की गई। ऐसे में सवाल उठने लगे कि ऐसे में आयोजन करने भर से जानजातियों का उद्धार हो जाएगा? इस सवाल के जवाब मप्र सरकार का बजट और योजनाओं का विश्लेषण करने पर मिलता है। वित्त वर्ष 2024-25 में मप्र सरकार ने अनुसूचित जनजाति (उप योजना) के लिये 40 हजार 804 करोड़ रुपये का बजट पारित किया है। वित्त वर्ष 2023-24 से इसकी तुलना करें तो यह राशि 3,856 करोड़ रुपए (करीब 23.4 प्रतिशत) अधिक है। आइए जानते हैं क्या बजट की यह राशि जनजातीय वर्ग को लाभांवित कर रही है? पेसा नियमों से एक करोड़ से अधिक जनजातीय आबादी को लाभ मिलने का दावा सरकार ने किया है। आपको बता दें कि पेसा नियम प्रदेश के 20 जिलों के 88 विकासखंडों की 5 हजार 133 ग्राम पंचायतों के अधीन 11 हजार 596 गावों में लागू है। इन नियमों में प्राप्त अधिकारों का उपयोग जनजातीय वर्ग के हितों के लिये अत्यंत प्रभावशाली साबित हो रहा है। वे अपनी क्षेत्रीय परम्पराओं, अपनी संस्कृति और जरूरतों के मुताबिक फैसले लेकर विकास की राह में आगे बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाअभियान (पीएम जन-मन) के तहत पिछड़े, कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के सर्वांगीण विकास के लिये काम किया जा रहा है। विशेष पिछड़ी जनजातियां बैगा, भारिया एवं सहरिया निवास क्षेत्रों में बहुउद्देश्यी केन्द्र, ग्रामीण आवास, ग्रामीण सडक़, समग्र शिक्षा एवं विद्युतीकरण से जुडे कार्य कराये जा रहे हैं। इसके लिए 1,607 करोड़ रुपये का बजट अलग है। शौर्य संकल्प योजना के अंतर्गत बैगा, भारिया एवं सहरिया के लिये अलग से बटालियन गठित करने की प्रक्रिया अभी जारी है। समूह के इच्छुक युवाओं को पुलिस, सेना एवं होमगार्ड में भर्ती कराने के लिये आवश्यक प्रशिक्षण दिये जाने की कार्ययोजना तैयार की जा रही है। आहार अनुदान योजना के तहत जनजातीय परिवारों की महिला मुखिया को 1,500 रुपये प्रतिमाह पोषण आहार अनुदान राशि दी जा रही है। बजट 2024-25 में इसके लिए 450 करोड़ रूपये आवंटित हैं। डॉ. मोहन सरकार बैगा, भारिया एवं सहरिया जनजातीय परिवारों के समग्र विकास के लिये 2024-25 में 100 करोड़ रूपये अतिरिक्त व्यय कर रही है। जनजातीय वर्ग के विद्यार्थियों को राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं की तैयारी कराने के लिये फ्री-कोचिंग, सभी जनजातीय विकासखंडों में रानी दुर्गावती प्रशिक्षण अकादमी स्थापित करने की तैयारी है। यहां पर जनजातीय विद्यार्थियों को जेईई, नीट, क्लेट और यूपीएससी जैसी राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर की बड़ी परीक्षाओं के लिए फ्री कोचिंग देकर इन्हें परीक्षाओं में सफल होने के गुर सिखाए जायेंगे। आकांक्षा योजना के तहत जनजातीय वर्ग के बच्चों को जेईई, नीट, क्लेट की तैयारी के लिये भोपाल, इंदौर एवं जबलपुर में कोचिंग दी जा रही है। जनजातीय सीएम राइज स्कूल के तहत जनजातीय वर्ग के बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के उद्देश्य से सीएम राइज स्कूलों के निर्माण के लिये 667 करोड़ रूपये का बजट प्रावधान किया है। इस वर्ग के विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने के प्रति प्रोत्साहित करने के लिये सरकार ने 11वीं, 12वीं एवं महाविद्यालयीन छात्रवृत्ति के लिये 500 करोड़ रूपये प्रावधान किया हैं। नि:शुल्क कोचिंग के साथ सरकार जनजातीय विद्यार्थियों को टैबलेट भी देगी। टैबलेट के लिये डेटा प्लान भी सरकार नि:शुल्क उपलब्ध करायेगी। योजना के लिये सरकार ने बजट में 10.42 करोड़ रूपये आरक्षित किये हैं। विशेष पिछड़ी जनजातियों के विकास के लिये योजना बनाने एवं योजनाओं का क्रियान्वयन करने के लिये प्रदेश में बैगा, भारिया एवं सहरिया पीवीटीजी के लिये पृथक-पृथक विकास प्राधिकरणों सहित कुल 11 प्राधिकरण कार्यरत हैं। जनजातीय गर्व के कक्षा पहली से आठवीं तक प्री-मेट्रिक राज्य छात्रवृत्ति योजना में वर्ष 2023-24 में 17 लाख 36 हजार 14 विद्यार्थियों को 56 करोड़ 59 लाख रूपये छात्रवृत्ति दी गई है। कक्षा 9वीं और 10वीं केन्द्र प्रवर्तित प्री-मेट्रिक छात्रवृत्ति योजना में वर्ष 2023-24 में 1 लाख 51 हजार 292 विद्यार्थियों को 52 करोड़ 15 लाख रूपये छात्रवृत्ति दी गई। कक्षा 11वीं, 12वीं एवं महाविद्यालय में पढ़ रहे कुल 2 लाख 33 हजार 91 विद्यार्थियों को 356 करोड़ 95 लाख रूपये पोस्ट मेट्रिक छात्रवृति वितरित की गई। वित्त वर्ष 2023-24 में 10 होनहार विद्यार्थियों को 2 करोड़ 89 लाख रूपए की विदेश अध्ययन छात्रवृति राशि दी गई। आवास किराया सहायता योजना में वित्त वर्ष 2023-24 में विभाग द्वारा एक लाख 44 हजार से अधिक विद्यार्थियों को 109 करोड़ 52 लाख रूपये की किराया प्रतिपूर्ति भुगतान की गई। सिविल सेवा परीक्षा के लिये निजी संस्थाओं द्वारा कोचिंग योजना में वर्ष 2023-24 में 2 करोड़ 13 लाख रूपये व्यय कर 97 विद्यार्थियों को कोचिंग कराई गई। सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना में 2023-24 में एक करोड़ से 497 अभ्यर्थियों को लाभ दिया गया। परीक्षा पूर्व प्रशिक्षण योजना में 2023-24 में 18 लाख रूपये से 580 अभ्यर्थियों को लाभान्वित किया गया।
सशक्त मप्र बनाने पर जोर
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का पूरा जोर मप्र को सशक्त राज्य बनाने पर है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मप्र ने पिछले 12 माहों के सुशासन के प्रयासों से यह जाहिर कर दिया है कि प्रदेश की जनता ही असली शासक है। इसका प्रमाण इससे मिलता है कि अगर किसी अफसर ने आमजन के सामने अपनी अफसरी दिखाने की कोशिश की तो उसे कुर्सी से उतारने में तनिक भी देरी नहीं की गई। वहीं माफिया, अपराधी ने अगर कानून-व्यवस्था तोडऩे की कोशिश की तो सरकारी बुल्डोजर ने इसका जवाब दिया। ऐसे में प्रदेश की करीब साढ़े आठ करोड़ जनता को इस बात का अहसास हो रहा है जैसे प्रदेश में उसी का शासन चल रहा है। संवेदनशील मुखिया का ऐसा भरोसा जनता में भी नई आशा को जगाता है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का स्वभाव ऐसा है कि वह जनता की समस्याओं के प्रति हर पल बेहद संवेदनशील रहते हैं। जनता की सेवा के लिए वह देर रात में भी औचक निरीक्षण करने से भी परहेज नहीं करते। जनता को किसी भी तरह का कष्ट न हो, इसके लिए उनकी मुस्तैदी देखते ही बनती है। वह खुद गरीबी में पले हैं और जनता के कष्टों को अपना कष्ट समझते हैं। साथ ही उनकी संवेदना इसमें जुड़ जाती है। साथ ही सामाजिक सहभागिता के अवसर भी जुटाते हैं। कुल मिलाकर मोहन सरकार ने अपने एक साल के कार्यकाल में कई साहसिक फैसलों के द्वारा जनता के दिल में विशेष छाप छोडऩे में सफलता पाई है।
नए साल में 1 लाख नौकरियां
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण के लिए सरकार ने प्रतिबद्धता जाहिर की है। सबका साथ, सबका विकास,सबका विश्वास तथा सबका प्रयास का नारा वंचितों के जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से नीतियों की आधारशिला बन गया है। जरूरतमंदों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान कर उनके जीवन स्तर में सुधार लाने में सहायता दी जा रही है। मप्र के रिकार्डेड 78 लाख बेरोजगारों के लिए एक अच्छी खबर यह कि मप्र के मुख्य सचिव अनुराग जैन ने युवा बेरोजागारों के लिए ऐसा विजनरी प्लान बना लिया है जिससे एक लाख से अधिक युवाओं का शासकीय नौकरी करने का सपना पूरा हो जाएगा। यह लिखने में कोई संकोच नहीं है कि, मुख्यमंत्री डॉ. यादव का एक वर्ष का कार्यकाल किसी ओर के लिए लाभदायक हो या न हो लेकिन बकौल मुख्य सचिव अनुराग जैन (1989) की दृढ़ इच्छाशक्ति की वजह से मप्र के बेरोजगारों के लिए यह वर्ष मील का पत्थर जरूर बन जाएगा। लेकिन शर्त यह होगी कि बेरोजगारों को ठगने वाले लोगों के खिलाफ भी सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। सूत्रों के अनुसार मप्र का शासकीय उपक्रम सेडमैप में अवैध तरीके से नियुक्त हुई कार्यपालन निदेशक महिला अधिकारी सस्पेंड तो हो गई लेकिन जिस तरह से बेरोजगारों के साथ उसने खिलवाड़ किया था उसके खिलाफ अभी तक सख्त कार्रवाई नहीं होने के कारण बेरोजगारों में निराशा है इस विषय को भी मुख्य सचिव को संज्ञान में लेना पड़ेगा। बता दें कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की घोषणा के एक हफ्ते भीतर ही मुख्य सचिव अनुराग जैन एक्शन मोड़ में आ गए हैं और उन्होंने सरकार के एक लाख पदों पर भर्ती की प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया है। मुख्य सचिव ने सभी विभागों से खाली पदों की जानकारी मांगते हुए सभी विभागों को निर्देश दिए हैं कि अगले एक पखवाड़े के भीतर खाली पदों की जानकारी श्रेणी के हिसाब से सामान्य प्रशासन विभाग को भेजें या फिर पोर्टल पर अपलोड करें। जैन ने कहा कि विभागों को यह स्पष्ट करना होगा कि उनके यहां भर्ती कब से नहीं हुई है। पूर्व में खाली पदों पर भर्ती के लिए क्या कदम उठाए गए थे। उन्होंने यह भी जानकारी स्पष्ट करने के लिए निर्देश दिए कि विभाग में सामान्य, अजा, अजजा, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस एवं दिव्यांगों के कितने पद खाली हैं। उन्होंने कहा कि विभागों की ओर से खाली पदों की जानकारी आते ही भर्ती की प्रक्रिया को शीध्र अति शीध्र प्रोसेस किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कुछ पदों की पूर्ति आउटसोर्स से होगी, जिनमें चतुर्थ श्रेणी के पद शामिल हैं जबकि अन्य श्रेणियों की भर्ती अलग- अलग सरकारी एजेंसियों के माध्यम से होगी। जिनमें कर्मचारी चयन बोर्ड से लेकर मप्र लोक सेवा आयोग तक शामिल है। मुख्य सचिव के निर्देश पर विभागों द्वारा रिक्त पदों की जानकारी को संलग्न करना शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि खाली पदों पर भर्ती की प्रक्रिया भी प्रशासनिक तंत्र को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं। पिछले कुछ सालों में बड़ी संख्या में अधिकारी एवं कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए हैं। इस वजह से मंत्रालय से लेकर लगभग सभी कार्यालयों में कर्मचारियों की भारी कमी हो गई है। सरकार के कामकाज का असर भी इस पर सीधा पड़ रहा है। मुख्य सचिव कार्यालय से विभागों को भेजे गए पत्र में पूछा गया है कि वित्त विभाग को कितने पदों पर भर्ती के प्रस्ताव कब-कब भेजे। कितनों को मंजूरी मिली, कितनों को नहीं मिली। मंजूरी वाले पदों पर भर्ती की क्या स्थिति है। यह जानकारी भी मांगी गई है कि 15 अगस्त 2022 से अब तक कुल कितनी नियुक्तियां (श्रेणीवार) हुई हैं। एक अप्रैल 2024 तक की स्थिति में खाली पद (श्रेणी वार) कितने हैं। 31 मार्च 2025 तक सरकार में कितने पद (श्रेणीवार) खाली होंगे। 31 मार्च 2025 तक कितने पदों पर भर्ती की प्रक्रिया जारी है। मंत्रालय सूत्रों के अनुसार प्रदेश में 1 जनवरी से 1 लाख सरकारी पदों पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इससे पहले सरकार भर्ती की कवायद कर रही है। माना यह जा रहा है कि मोहन सरकार का एक साल का कार्यकाल पूरा होने पर भर्ती प्रकिया शुरू करने की बड़ी घोषणा हो सकती है। उल्लेखनीय है कि भर्ती की पूरी कवायद मुख्य सचिव अनुराग जैन की निगरानी में संपन्न की जा रही है। बता दें कि विभागों में खाली पड़े पदों पर भर्ती के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कर्मचारी चयन बोर्ड के अलावा मप्र लोक सेवा आयोग की बैठक हो चुकी है। बताया जा रहा है कि कुछ भर्तियों विभाग अपने स्तर पर करेंगे। नियमित नियुक्तियों के लिए भी परीक्षाएं आयोजित की जाएगी जबकि कुछ पद संविदा से भरे जाएंगे। हालांकि यह अभी तय नहीं किया गया है कि कितनी भर्तियां आउटसोर्स, संविदा और नियमित होंगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सबसे पहले दिव्यांगों की भर्ती के निर्देश दिए थे। चतुर्थ एवं तृतीय श्रेणी के पदों पर नियुक्ति के अधिकार विभागाध्यक्ष एवं कार्यालयों प्रमुखों को दिए गए थे। शासन के निर्देश पर ऑफलाइन भर्ती की कवायद शुरू की गई। लगभग सभी विभागाध्यक्ष एवं अन्य कार्यालयों ने दिव्यांगों से अलग-अलग पदों पर भर्ती के लिए आवेदन भी बुलाए। लगभग 3 महीने बीतने के बाद भी दिव्यांगों की भर्ती नहीं हो पाई है। किसी भी विभाग ने अभी दिव्यांगों की भर्ती को पूरा नहीं किया है। भर्ती का पैमाना दिव्यांगों के आठवीं, दसवीं परीक्षा के अंकों के साथ-साथ दिव्यांगता का प्रतिशत है। और तो और मप्र के सभी 52 विभागों में अनुकंपा नियुक्तियों से मिलने वाली नौकरियों पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। इसलिए मुख्य सचिव ने अनुकंपा नियुक्ति से न्याय मिलने वाले बेरोजगार आवेदकों की चिंता व्यक्त की है। एक सप्ताह के भीतर कहा गया है कि सभी विभाग में लंबित प्रकरणों की जानकारी मुख्य सचिव कार्यालय को भेजें। इस समाचार विश्लेषण का लब्बोलुआब यह है कि मप्र के मुख्यसचिव ने मुख्यमंत्री द्वारा घोषित किए गए निर्णायक फैसले को मप्र के लाखों बेरोजगारों के हित में लागू करने के लिए धरातल पर उतारने का फैसला कर लिया है इससे पहली बार ऐसा माना जाएगा कि किसी मुख्य सचिव ने ईमानदारी से काम किया है। बेरोजगारों के लिए ठोस प्रशासनिक कदम उठाया है तो चौंकिएगा मत।